ध्यान के सतत अभ्यास से मन शान्त और स्थिर बन जाएगा।
नियति भी आनुवांशिकता की तरह निर्धारित या लचीली दोनों हो सकती है। यदि ऐसा न होता तो कोई क्रमिक-विकास नहीं होता!
कभी-कभी एक छोटी सी प्रेरणा और प्रोत्साहन ही दूसरों को उनके लक्ष्य तक पहुँचाने के लिए काफ़ी होता है।
बन्धन मन, विचार और धारणाओं में स्थित होता है।
अपनी प्रचुरता को उनके साथ बाँटें जो असमर्थ हैं। उदारता हमारी स्वाभाविक दशा है।