प्रसाद वेलुतनार ऑटिज़्म के लिए एक व्यावहारिक दृष्टिकोण के बारे में बता रहे हैं जो आयुर्वेदिक चिकित्सक के रूप में उनकी भूमिका और आयुर्वेद के क्षेत्र में उनके शोध से विकसित हुआ है।
आधुनिक समाज में ऑटिज़्म से ग्रस्त बच्चों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसी वृद्धि दर पहले कभी नहीं देखी गई। उदाहरण के लिए, अमेरिका और कैनेडा में ऑटिज़्म पीड़ित बच्चों की संख्या में पिछले चालीस वर्षों में लगभग पचास गुना वृद्धि हुई है। ऑटिज़्म के रोगियों को सहारा देने में आयुर्वेद बहुत प्रभावी रहा है। यह विशेष आहार, जड़ी-बूटियों, योग एवं मालिश के उपयोग द्वारा संभव हुआ है।1 आहार, निष्कासन, संवेदनशीलता की जाँच, औषधीय आपूर्ति, योग और सामाजिक सामान्यीकरण द्वारा उपचार से बच्चों में सुधार हुआ है।
पोषण, प्रोबायोटिक और प्रतिरक्षा सहायता
ऑटिज़्म और इसी श्रेणी के अन्य विकारों का एक कारण केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में क्षीण हुआ सेरोटोनिन उपापचय है। ऑटिज़्म पीड़ित बच्चों के रक्त में सेरोटोनिन की मात्रा सामान्य से बहुत अधिक होती है जो सेरोटोनिन के उपापचय की समस्या का संकेत है। (होशीनो एट एल, 2008)
ऑटिज़्म पीड़ित बच्चों में पाचन की समस्या और किसी विशेष भोजन के प्रति संवेदनशीलता होती है। कुछ विशिष्ट खाद्य पदार्थ, योगज (additives) और प्रदूषकों का काफ़ी प्रभाव दिखाई देता है, जैसे दुग्ध उत्पाद, टमाटर, बैंगन, आलू और शिमला मिर्च जैसी ‘नाइटशेड’ (जिनके फूल रात में खिलते हैं) सब्ज़ियाँ, खट्टे फल, मूँगफली, परिरक्षक (preservatives), रंग, खाद्य योगज, कीट नाशक और भारी धातुएँ। वे सेरोटोनिन उपापचय को बाधित कर सकते हैं या आँत में तकलीफ़ उत्पन्न कर सकते हैं। इनमें से कुछ खाद्य पदार्थों के परहेज़ से इन परेशानियों को कम किया या टाला जा सकता है।
अदरक, पिप्पली, काली मिर्च जैसी जड़ी बूटियाँ और इनका मिश्रण, जिसे त्रिकटू कहा जाता है, पाचन में सहायक होता है। त्रिकटू से पाचक एंज़ाइम का उत्पादन और आवश्यक पोषक तत्वों का अवशोषण बढ़ जाता है।
ऑटिज़्म पीड़ित बच्चे खराब पाचन के कारण खाद्य संवेदनशीलता से ज़्यादा ग्रसित होते हैं जिसका कारण उनका पाचन और प्रतिरक्षा तंत्र का कमज़ोर हो जाना है। इसके कारण अधूरा पचा हुआ भोजन रक्त प्रवाह में जा सकता है जिससे स्व-प्रतिरक्षित प्रतिक्रिया या एलर्जी के समान प्रतिक्रिया उत्पन्न हो जाती है।
कच्चे जैविक आहार में प्राकृतिक रूप से मिलने वाली प्रोबायोटिक वनस्पतियों, खमीर वाली सब्ज़ियों जैसे खट्टी गोभी (sauerkraut) व किमची (कोरियन सलाद) और उच्च-गुणवत्ता युक्त आनुवंशिक विविधता वाले प्रोबायोटिक युक्त पूरक आहार (multi-strain probiotic supplements) से पाचन-स्वास्थ्य में सहायता मिलती है। आँत की नली में प्रोबायोटिक का स्तर कम होने से 170 से अधिक बीमारियाँ और स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न होती हैं जिनमें आँत की परत का क्षतिग्रस्त होना (leaky gut), संवेदनशील आँत की बीमारी (irritable bowel syndrome), आँतों में सूजन (colitis) और खाद्य पदार्थों की एलर्जी शामिल हैं।
एक स्वस्थ पाचक तंत्र में 1000 खरब से अधिक बैक्टीरिया होते हैं। पाचन और प्रतिरक्षा तंत्र को अच्छी तरह काम करने के लिए प्रोबायोटिक व नुकसानदेह बैक्टीरिया का अनुपात 9:1 होना अच्छा होता है। इस अनुपात से प्रतिरक्षा तंत्र सही तरीके से काम करता है और खाद्य संवेदनशीलता की समस्याएँ कम होती हैं जिनमें पाचन समस्या एवं खाने की एलर्जी भी शामिल हैं।

एक अच्छे प्रोबायोटिक के खाद्य स्रोत में कम से कम तीन मुख्य प्रोबायोटिक शामिल होने चाहिए जैसे -
बीफ़िडोबैक्टीरियम लेक्टिस – छिद्रयुक्त आँत, कब्ज़ और सूजन से राहत के लिए।
लेक्टोबेसीलस सलायवेरियस – मुँह, गले और आहार नली में बनने वाले हानिकारक बैक्टीरिया का स्तर कम करने के लिए। इससे मसूड़ों की संवेदनशीलता व अन्य पाचन संबंधित विकार कम होते हैं।
सेकरोमायसिस बोलारडी – प्रतिरक्षा तंत्र को सहायता देने, रक्त कोशिकाओं की औसत संख्या में वृद्धि करने और उच्च तनाव की स्थिति में भी सभी तरह की सूजन को कम करने के लिए।
पाचन में सहायता पहुँचाने के अलावा प्रोबायोटिक्स प्रतिरक्षा प्रणाली की भी मदद करते हैं। यह कई ऑटिज़्म पीड़ित बच्चों के लिए महत्वपूर्ण है जिनका प्रतिरोधक तंत्र कमज़ोर या खराब है।
आयुर्वेद उचित प्रतिरोधक क्षमता पर केंद्रित रहता है। प्रोबायोटिक के अलावा विभिन्न जड़ी-बूटियों की सलाह दी जाती है, उदाहरण के लिए गिलोय, आँवला, पिप्पली, त्रिकटू और मिल्कवैच।
आहार, निष्कासन, संवेदनशीलता की जाँच, औषधीय आपूर्ति, योग और सामाजिक सामान्यीकरण द्वारा उपचार से बच्चों में सुधार हुआ है। |
तंत्रिकाओं का पुनर्निर्माण
भोजन के साथ जड़ी-बूटियाँ और प्राकृतिक उपचार लेना तंत्रिकाओं के पुनर्निर्माण में प्रभावी पाया गया है। कई प्राकृतिक उपचारों से ऑटिज़्म पीड़ित बच्चों के संज्ञानात्मक कार्यों व प्रतिक्रियाओं में सुधार हुआ है। उदाहरण के लिए, गोटू कोला के ताज़े पत्तों के रस से मस्तिष्क के सीखने व स्मरणशक्ति वाले क्षेत्र में तंत्रिकाओं की कार्यशीलता में बहुत सुधार होता है।
ऑटिज़्म से पीड़ित लगभग 30% बच्चों द्वारा आवश्यक वसीय अम्लों (EFAs) का इस्तेमाल किया जाता है। एक सुनियोजित समीक्षा (बेन्ट, बर्टोग्लियो एंड हेन्डरेन, 2009) में पाया गया कि ऑटिज़्म पीड़ित बच्चों में आवश्यक वसीय अम्लों के उपयोग से सकारात्मक परिणाम मिले हैं और उनकी भाषा एवं सीखने की क्षमता में महत्वपूर्ण सुधार पाया गया है। यह ऑटिज़्म पीड़ित बच्चों की तंत्रिकाओं की कार्यक्षमता में सुधार व पुनर्निर्माण और EFA के उपयोग के परस्पर संबंध को दर्शाता है। अन्य वसा जो उपयोगी पाए गए, उनमें मध्यम श्रृंखला वाले ट्राईग्लिसराईड्स (MCT) हैं जो नारियल के तेल में और घास खाने वाले पशुओं से प्राप्त जैविक मक्खन तथा घी में पाए जाते हैं।
विभिन्न जड़ी-बूटियाँ, जैसे गोटू कोला, ब्राह्मी, गिन्को बिलोबा, कौंच और अश्वगंधा के उपयोग से मस्तिष्क में रक्त प्रवाह में वृद्धि, तंत्रिकाओं की मरम्मत व सुरक्षा, मानसिक शक्ति, एकाग्रता व स्मरणशक्ति में सुधार तथा बुद्धिमत्ता, अवधान एवं समग्र संज्ञानात्मक क्षमता में वृद्धि देखी गई है।
ऑटिज़्म संबंधी आक्रामकता के लिए आयुर्वेद
ऑटिज़्म सामाजिक मेल-मिलाप और आक्रामकता के लिए उत्तरदायी मस्तिष्क के क्षेत्रों को प्रभावित करता है। हालाँकि ऑटिज़्म से पीड़ित सभी बच्चे हिंसक नहीं होते हैं लेकिन ऐसे बहुत सारे बच्चे झुंझलाहट का अनुभव करते हैं जिसे वे स्वयं को नुकसान पहुँचाकर, अचानक अनियंत्रित हरकतें करके व आवाज़ें निकालकर (ticks) और भावनात्मक आवेग (outburst) द्वारा अभिव्यक्त करते हैं।
जड़ी-बूटियों के पूरक में ब्राह्मी देने से इस प्रकार के लक्षणों में काफ़ी कमी आती है। शोधकर्ताओं ने यह माना है कि यह जड़ी-बूटी अपने चिंता निवारक, एंटीऑक्सीडेंट और तंत्रिकाओं की रक्षा करने के गुणों के कारण लाभकारी है।
इसके अतिरिक्त, गोटू कोला, चंदन, लैवेंडर और गुलाब के तेल से नियमित मालिश से शांतिदायक राहत मिलती है। मालिश से रक्त प्रवाह में सुधार होता है। इससे मस्तिष्क और शरीर के विभिन्न अंगों के मध्य तंत्रिकाओं की प्रतिक्रिया तेज़ हो जाती है। शोध से हमें पता चला है कि मालिश से आँखों में आँखें डालना, काम करते समय व्यवहार, सामाजिक जुड़ाव तथा नींद में सुधार होता है और रूढ़िबद्ध व्यवहार में कमी आती है।

ऑटिज़्म पीड़ित बच्चों में सही नींद का नित्य-कर्म उनकी आक्रामक प्रवृत्तियों में कमी लाता है। नींद की सही आदतों और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को दूर करने के अलावा मेलाटोनिन पूरक से भी महत्वपूर्ण परिणाम देखने को मिले हैं (व्हाईट हॉऊस, 2013)। मेलो (2011) ने पाया कि मेलाटोनिन आपूर्ति के मात्र एक सप्ताह के बाद ही ऑटिज़्म पीड़ित बच्चों के व्यवहार और सोने की आदतों में बहुत सुधार आया।
भोजन के साथ जड़ी-बूटियाँ और प्राकृतिक उपचार लेना तंत्रिकाओं के पुनर्निर्माण में प्रभावी पाया गया है। कई प्राकृतिक उपचारों से ऑटिज़्म पीड़ित बच्चों के संज्ञानात्मक कार्यों व प्रतिक्रियाओं में सुधार हुआ है। |
ऑटिज़्म के लिए अन्य उपचार
शीतली प्राणायाम बच्चों में ऑटिज़्म के प्रबंधन में सहायता करता है। यह तनाव, निराशा, चिड़चिड़ापन और गुस्से को कम करता है तथा आंतरिक शांति और संतुलन को बढ़ाता है। शीतली प्राणायाम सही पाचन और नींद लाने में भी सहायक होता है। ये दोनों ही ऑटिज़्म के मरीज़ों के लिए लाभकारी हैं। इस प्राणायाम में यह महत्वपूर्ण है कि जीभ को गोल करके ठंडी साँस को अंदर खींचा जाए।
‘सोऽहम्’ ध्यान बच्चों के मन और शरीर को शांत करने का एक अन्य तरीका है। ‘सोऽहम्’ में गहरी साँस लेकर और ‘हम’ का लगातार उच्चारण करके चेतना का विस्तार तथा तनावमुक्ति व आत्म-जागरूकता में वृद्धि की जाती है। ‘सोऽहम्’ ध्यान 20 से 30 मिनट तक करने से सबसे अधिक प्रभावी होता है लेकिन बच्चे सामान्यतः एक या दो मिनट से आरंभ करते हैं और वे धीरे-धीरे इसका समय बढ़ाते जाते हैं।
जब बच्चे प्रकृति के संपर्क में रहते हैं, जैसे जंगल में घूमना, खुले मैदान में पिकनिक मनाना, समुद्र में तैरना तब वे व्याकुलता में कमी व शांति का अनुभव करते हैं। प्रकृति के सान्निध्य में रहने के बहुत सारे लाभ हैं जैसे शांतिपूर्ण वातावरण, सुखदायक व प्राकृतिक संवेदी अनुभव, जानवरों, पेड़ों, चट्टानों, पहाड़ों, पानी और बादलों से संपर्क, परिवार व मित्रों के साथ आनंददायक सैर। इनसे महत्वपूर्ण सामाजिक मेलजोल तो होता ही है, साथ ही शारीरिक गतिविधियाँ भी होती हैं।
ऑटिज़्म पीड़ित बच्चों में अक्सर सामाजिक कौशलों की कमी पाई जाती है। वास्तव में, ऐसे बहुत से बच्चों को दूसरे बच्चों के साथ खेलना और बातचीत करना सिखाना पड़ता है। जिस प्रकार कुछ बच्चों को गणित में या पढ़ने में परेशानी होती है उसी प्रकार ऑटिज़्म पीड़ित बच्चों को संबंधों के मामले में परेशानी होती है। नियंत्रित वातावरण में अभ्यास और व्यवहार को करके समझाना (behavioral modeling), ये दोनों इन बच्चों की सहायता करने की प्रभावशाली विधियाँ हैं।

शीघ्र उपचार का कार्यक्रम
ऑटिज़्म पीड़ित छोटे बच्चों में शुरुआत में ही उपचार करने से अच्छे सुधार की संभावना होती है। उपचार सबसे ज़्यादा तब सफल होता है जब वह बच्चे की विशेष ज़रूरतों के अनुसार किया जाए। विभिन्न प्रकार के उपचार उपलब्ध हैं जिनमें अप्लाइड बीहेवियर एनालिसिस (ABA), दवाइयाँ, व्यावसायिक चिकित्सा, शारीरिक चिकित्सा, वाणी-भाषा चिकित्सा और आयुर्वेदिक उपचार जैसे शिरोलेप, शिरोधारा, अभ्यंगम, क्षीरधारा एवं आंतरिक दवाइयाँ शामिल हैं।
जड़ी-बूटियों की आपूर्ति, योग, ध्यान और एक विशिष्ट व नियंत्रित आहार का पालन करने से ऑटिज़्म पीड़ित बच्चे अधिक सक्रिय और भरपूर जीवन जी सकते हैं।

डॉ. प्रसाद वेलुतनार
डॉ. प्रसााद ने केरला से आयुर्वेदााचाार्यय चिकित्सा की डिग्री प्रााप्त की। 22 वर्षों के अपने व्याावसाायिक कार्यकाल के दौराान उन्होंंने भाारत, मॉरिशस, मलेशिया, रूस एवंं मिस्र मेंं कार्य किया है। इस भाारतीय ज्ञाान को मिस्र मेंं ले जााने व फ... और पढ़ें