परिवार और मित्रगणों को पत्र

आदरणीय श्री कमलेश पटेल, 

आध्यात्मिक प्रगति को कैसे आँका जा सकता है ?

मुझे अपने आंतरिक स्वास्थ्य एवं जीवनशैली में किन बदलावों की अपेक्षा करनी चाहिए ?


प्रिय मार्गरेट,

आपकी ईमेल के लिए धन्यवाद। मुझे खुशी है कि आपको अपने स्थानीय सामुदायिक केंद्र में हार्टफुलनेस मिल गया है।आध्यात्मिक प्रगति और जीवन के उद्देश्य के बारे में आपके प्रश्न बहुत अच्छे हैं।

आपके पहले प्रश्न, “आध्यात्मिक प्रगति को कैसे आँका जा सकता है,” का उत्तर देने के लिए मैं आपसे पूछना चाहूँगा, "क्या जीवन के प्रति आपका नज़रिया व आपकी सोच बदल रहे हैं ? और कैसे ?" इस आत्म-चिंतन के अभ्यास से आपको पता चल जाएगा कि आपकी प्रगति हुई है या नहीं।

इसे एक और तरीके से देखा जा सकता है। आध्यात्मिक प्रगति का संबंध शुद्धता और सहजता प्राप्त करने से है। दूसरे शब्दों में, जैसे-जैसे आप प्रगति करते जाएँगे, आप अधिकाधिक शुद्ध व सहज महसूस करते जाएँगे। आप इस बारे में सोचकर पूछ सकती हैं, "मुझ में शुद्धता व सहजता कहाँ है?"

जैसे-जैसे आप प्रगति करती जाएँगी, आप देखेंगी कि आप जीने के सरल तरीकों को प्राथमिकता देने लगी हैं।

आजकल विकसित देशों में लोगों का निरंतर संघर्ष जीवित रहने के लिए नहीं होता है बल्कि मानसिक व भावनात्मक कल्याण के लिए होता है। हर पल सही-गलत, नैतिक-अनैतिक और लाभ-हानि को जानने के लिए ऊर्जा लगती है। हम ऐसे निर्णय कैसे लें जो तर्कसंगत भी हों और हृदय को भी अच्छे लगें। इसका अर्थ है सोच और एहसास दोनों का परिष्करण। हार्टफुलनेस के सरल अभ्यासों से यह आसानी से हो सकता है।

सांसारिक संपत्ति के लिए कुछ हद तक काम और कोशिश की ज़रूरत पड़ती है। इसी प्रकार आध्यात्मिक संपत्ति के लिए भी हमारे सतत प्रयास की आवश्यकता होती है। यह सब इरादों से शुरू होता है।

मानवीय प्रगति के लिए जागरूक होना महत्वपूर्ण है। जब हम पेड़ों पर गौर करते हैं तो देखते हैं कि एक-न-एक दिन बीज स्वाभाविक रूप से एक पेड़ बन जाता है, यदि उसके विकास के लिए उपयुक्त परिस्थितियाँ मिल जाती हैं। जागरूकता इससे थोड़ी अलग है। जागरूकता अनुकूल परिस्थितियाँ मिलने पर भी अपने सामर्थ्य को प्राप्त करने में असफल हो सकती है। क्यों? क्योंकि हमारे पास स्वतंत्र इच्छा-शक्ति है, चुनने की इच्छा-शक्ति और अक्सर हम किसी विकासपरक चीज़ के बजाय आसान चीज़ चुनते हैं।

विकास की प्रक्रियाएँ रूपांतरकारी के साथ-साथ चुनौतीपूर्ण भी होती हैं। यदि हमारी जागरूकता यह तय कर लेती है कि ईश्वर के समान बनना असंभव है, तो समझो हमने उस दिशा में आगे न बढ़ने का विकल्प चुन लिया है। इस तरह की सोच से जागरूकता को पूरी तरह विकसित होने में कैसे मदद मिलेगी? पेड़ कुछ व्यवस्था कर लेते हैं क्योंकि हज़ारों बीजों में से कम से कम दो बीज तो पूरी तरह विकसित हो जाएँगे। लेकिन मनुष्यों में एक ईसा मसीह, एक बुद्ध या एक कृष्ण भी मुश्किल से मिलता है। दुख की बात है कि कई लोग यह मानते हैं कि अतीत के इन अति प्रशंसित व्यक्तित्वों के कोई भी निकट नहीं आ सकता। इसलिए आध्यात्मिक प्रगति की संभावना होने के बावजूद इसके बारे में सोचने से पहले ही इसे त्याग दिया जाता है।

एक आध्यात्मिक पद्धति अनुभव पर आधारित होती है जिसमें प्रगति के प्रति जागरूकता भी शामिल है। मैं आपको इसे खुद आज़माने के लिए आमंत्रित करता हूँ। उसके बाद आप पुनः मुझे लिखें कि आपको क्या पता चला।

शुभकामनाओं सहित,

कमलेश


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दाजी

दाजी हार्टफुलनेसके मार्गदर्शक

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