कैथलीन स्कारबोरो एक कलाकार के रूप में अपनी यात्रा के बारे में बताते हुए समझाती हैं कि उन्होंने उन विषयों को क्यों चुना जो उन्हें बहुत प्रिय हैं। दिसंबर 2023 में उन्होंने उस यात्रा के सम्मान में फ्रांस के 16वें एरॉनडीज़मॉन ऑफ़ पेरिस के टाउन हॉल में "इंडियन वुमन - ग्रेस एंड रेज़िलिएंस” (भारतीय महिलाएँ - शोभा और दृढ़ता) नामक एक प्रदर्शनी की और हम उनमें से कुछ कलाकृतियाँ यहाँ प्रदर्शित कर रहे हैं।
जब मैं वर्ष 1988 में चारीजी से मिली तब मुझे नहीं पता था कि भारत मेरे जीवन में महत्वपूर्ण होगा या तीस साल तक मैं खुद को विशेष रूप से इस विषय पर पेंटिंग करने के लिए समर्पित करूँगी। ध्यान करने वालों के लिए जीवन समय के साथ अपने मुख्य विषयों को उजागर और प्रकट करता है। जब मैं अपने जीवन के इस पथ पर पीछे मुड़कर देखती हूँ तब ऐसा लगता है कि एक आंतरिक तर्क था जिसका अपना संवेग था और मुझे बस उसका अनुसरण करना था और काम करना था। मुझे याद है कि मेरे पेंटिंग शिक्षक, पैट्रिक बेटाउडियर कहा करते थे कि जब कोई पेंटिंग अस्तित्व में आने के लिए तैयार हो जाती है तब वह खुद को चित्रित करती है। मुझे अक्सर ऐसा ही लगता है।
ध्यान शुरू करने से पूर्व मैं पहले से ही एक पेशेवर चित्रकार थी। मेरे पास अच्छी तकनीक थी और मुझ में कलाकृतियाँ बनाने की इच्छा थी लेकिन मैं अपनी कला के माध्यम से क्या संदेश देना चाहती थी, मैं वास्तव में क्या चित्रित करना चाहती थी, मुझे स्पष्ट नहीं था। इतने सारे कलाकारों द्वारा इतनी सारी दिशाओं में इतनी सारी कलाकृतियाँ बनाई गई थीं और मैं उन सब में अपनी जगह ढूँढ नहीं पा रही थी। एक दिन जब मैं रेयूनियन द्वीप पर भित्तिचित्रों पर काम कर रही थी, अचानक यह स्पष्ट हो गया कि मैं क्या, क्यों और किसके लिए चित्र बनाना चाह रही थी। मुझे यकीन है कि यह एहसास उस ध्यान का परिणाम था जिसका मैंने अभ्यास करना शुरू किया था। ध्यान हमें स्वयं को जानने की स्पष्टता देता है जिससे यह समझ आता है कि दूसरों के साथ साझा करने के लिए अपनी क्षमताओं का उपयोग कैसे किया जाए।
साधारण जीवन जीने वाले लोगों का प्रकृति के अनुरूप जीवन और प्राकृतिक जगत की सुंदरता और सामंजस्य मुझे प्रेरित करता है। मैं आमतौर पर महिलाओं और बच्चों को चित्रित करती हूँ क्योंकि उनका संसार मेरे लिए अधिक सुलभ है और मुझे भी भारतीय महिलाओं के जैसे परिधान, कपड़े और चमकीले रंग पसंद हैं। मुझे जो सुंदरता प्रेरित करती है वह फ़िल्मी सितारों की या युवाओं की उत्तमता नहीं है। मैं एक शांत सुंदरता की तलाश में रहती हूँ जो खुद से अनजान हो और निरंतर बदलते हुए रूप पर निर्भर न हो।
मेरे काम में प्रकृति एक महत्वपूर्ण तत्व है। मुझे बागवानी और फूलों की कोमल बनावट और उनकी क्षणभंगुर सुंदरता से प्यार है। मुझे विभिन्न मुद्राओं और गतिविधियों में लोगों के चित्रों के साथ प्राकृतिक तत्वों और परिदृश्यों को जोड़ना बेहद पसंद है।
मैं आमतौर पर महिलाओं और बच्चों को चित्रित करती हूँ क्योंकि उनका संसार मेरे लिए अधिक सुलभ है
और मुझे भी भारतीय महिलाओं के जैसे परिधान, कपड़े और चमकीले रंग पसंद हैं।
भारतीय महिलाएँ अक्सर माँ होती हैं और उनके दैनिक जीवन में वास्तविकता, काम, दूसरों की देखभाल और एक सुंदर व प्राकृतिक लालित्य की व्यावहारिक भावना का संयोजन होता है। वे हमारे संसार की स्तंभ हैं। मैं इसे अपने चित्रों में व्यक्त करने का प्रयास करती हूँ और यही कारण है कि पेरिस में मेरी नवीनतम प्रदर्शनी का शीर्षक है, ‘इंडियन वुमन - ग्रेस एंड रेज़िलिएंस’ (भारतीय महिलाएँ - शोभा और दृढ़ता)।
चित्रकला के प्रति मेरा दृष्टिकोण पारंपरिक कला से बहुत प्रभावित था। मैं अपना माध्यम और पायसन (emulsion) स्वयं बनाती हूँ और मेरी तकनीक बेल्जियम की और इतालवी पुनर्जागरण की तकनीकों का एक आधुनिक रूप है। इस विधि से पेंटिंग बनाने में महीनों लग जाते हैं और पारदर्शी तेल ग्लेज़ की कई परतों द्वारा रंगों में गहराई लाई जाती है।
मैं वर्ष 1981 में पेशेवर कलाकार बनी। सार्वजनिक कला में अपने व्यावसायिक जीवन के दौरान हमेशा कमीशन प्रणाली से मेरा सरोकार रहा। दूसरे शब्दों में, ग्राहक कलाकृति का अनुरोध करते थे और मैं उनके विचारों और आदर्शों को व्यक्त करने का तरीका ढूँढती थी। इसने मुझे आम दर्शकों के बहुत करीब रखा जो आमतौर पर वीथिओं या संग्रहालयों में पाई जाने वाली कला के बारे में कुछ नहीं जानते थे। दर्शकों के साथ इस जुड़ाव और शहरों, स्कूलों एवं अन्य सार्वजनिक संस्थाओं के साथ काम करने के कारण मुझे समझ में आया कि कला की मूल भूमिका संचार है। सफल होने के लिए ज़रूरी है कि वैचारिक और सौंदर्य स्तर पर ग्राहक भी मेरे काम से संतुष्ट हो और मैं भी। सार्वजनिक कला का यह सबसे कठिन हिस्सा था।
आश्चर्य की बात है कि सार्वजनिक कला ने मुझे एक चित्रफलक चित्रकार (easel painter) बना दिया; मैंने महसूस किया कि मेरे भित्तिचित्र और मूर्तिकला के अनुभव ने मुझे बड़े-बड़े विषयों पर केंद्रित होना सिखाया और मुझे ऐसी स्थिति में ले आया जहाँ मुझे अपनी निजी यात्रा में नहीं बल्कि हम सभी की कहानी में दिलचस्पी थी। यह उसके विपरीत है जो हमने कला विद्यालय में सीखा था जहाँ हमें अपने व्यक्तिगत मनस और विशिष्टताओं का पता लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था।
इस सार्वजनिक कला की ओर उन्मुखता के कारण ही मेरी आँखें अंदर की ओर देखने के बजाय बाहर की ओर, अन्य लोगों और उनके जीवन के तरीकों की ओर निर्देशित हुईं। रेयूनियन में मुझे सबसे पहले अपनी संस्कृति से अलग किसी संस्कृति के बारे में जानने के कई अवसर दिए गए जहाँ मैंने गाँवों का दौरा किया, लोगों से बात की, उनके जानवरों और उनके पर्यावरण की तस्वीरें खींचीं। मैंने दस साल तक इस विषय पर काम किया।
फिर मेरी नज़र भारत की ओर गई। रेयूनियन से भारत जाने पर प्रकाश, प्रतिमा, पोशाक की शैली, वास्तुकला, रंगों का विस्तार, सभी कुछ अलग था। परिणामस्वरूप, मेरी चित्रकला की शैली पूरी तरह से बदल गई। भारत ने गहन, अत्यधिक संतृप्त रंग के साथ-साथ शक्ति, रचनात्मक अवसरों और बहुत सारे परिधानों (साड़ियाँ पहनी महिलाओं को धन्यवाद) के बारे में जानने का एक अद्भुत अवसर प्रदान किया है। अनेक देवी-देवताओं के भारतीय मंदिर, आलौकिक परिदृश्य और भारतीय लोग मेरे चित्रों के लिए अंतहीन प्रेरणा प्रदान करते हैं।
कलाकृति - कैथलीन स्कारबोरो

कैथलीन स्कारबोरो
कैथलीन ने कला में अपने आजीवन व्यवसाय की शुरुआत शिकागो की द पब्लिक आर्ट वर्कशॉप में काम करने से की। उनकी ‘रेयूनियन आइलैंड’