ममता सुब्रमण्यम ने अपने खुद के परिवर्तन की प्रक्रिया पर विचार करके समझा कि आगे बढ़ने का एक आसान तरीका है, ऐसा रास्ता जिसमें न तो आत्म-दोषारोपण है और न ही तात्कालिक संतुष्टि। वे हर एक पल में होने वाले क्रमिक परिवर्तन के बारे में बात करती हैं और क्रमिक परिवर्तन की अप्रिय प्रक्रिया को अपनाते हुए अपनी ज़िंदगी के लिए एक बेहतर लक्ष्य निर्धारित करती हैं।
मैं क्या बन सकती हूँ, इसको लेकर मेरे बड़े और उच्च सपने हैं।
मैं निरंतर अपनी कल्पना में अपने आपको एक दीप्तिमान, आत्मविश्वास से भरी, अच्छे से बाल काढ़े, ऊँची एड़ी के सैंडल पहने (मेरी लंबाई सिर्फ़ 5'2'' है) हुए देखती हूँ जिसकी चाल उद्देश्यपूर्ण है, बोली विनम्रताभरी है, जिसमें कोई त्रुटि नहीं है, कोई असुरक्षा के भाव नहीं हैं और जिससे हर कोई प्रेम करता है।
अपनी कल्पना में मैं एक आदर्श व्यावसायिक स्त्री हूँ जो कड़ी मेहनत करती है, जो हर परियोजना को उत्तम तरीके से पूरा करती है और जो कभी थकती नहीं है। अपनी कल्पना में मैं अपनी माँ की तरह एक उत्कृष्ट स्त्री हूँ, अपने भाई की तरह बेहतरीन चुटकुले सुनाती हूँ और उसी गति से काम करती हूँ जिस गति से मेरे पिता करते हैं। अपनी कल्पना में मैं एक ऐसी उत्कृष्ट पत्नी हूँ जिसे चुनने पर मेरे पति को कभी पछतावा नहीं होगा, जो हरदम संतुलित रहती है, कभी भी तनावग्रस्त नहीं रहती, जो हरदम उन्हें हँसाती है और जो उनकी हर मुश्किल को आसान बना देती है। ऐसी पत्नी जो हर काम इतनी बखूबी से करती है कि वे हरदम मेरी तारीफ़ ही करते हैं।
अपनी कल्पना में मैं अपने आप को ऐसी बेहतरीन दोस्त समझती हूँ जो हरदम सही बात कहती है, जो उपयुक्त उपहार भेजती है, जो सबको यह महसूस कराती है कि वह उनकी कदर करती है, उन्हें महत्व देती है और उनकी सराहाना करती है। अपनी कल्पना में मैं वह प्रकाश हूँ जिसकी ओर हर कोई आकर्षित होता है, जो हर एक के लिए सब कुछ हो सकती है, जो कभी कोई गलती नहीं करती, जो कभी कुछ गलत नहीं कर सकती।
एक अच्छे, भरोसेमंद आईने की तरह जवाब मेरे सामने, मेरे प्रतिबिंब में था जो केवल इस इंतज़ार में था
कि मैं उसे नज़दीक से देखूँ - परिवर्तन एक छलांग में नहीं होता।
लेकिन मेरी कल्पना का यह बुलबुला उसी समय फूट जाता है जब मैं अपने इनबॉक्स में दर्जनों अनुत्तरित ईमेल देखती हूँ जिनमें निर्धारित समय सीमा के बीतने का उल्लेख होता है, जब दोस्तों के अनेक संदेश देखती हूँ जिन्हें मैं पढ़ तो चुकी हूँ लेकिन जवाब नहीं दे पाई और उस वजह से शायद मेरे दोस्त सोचते होंगे कि कहीं उनसे कोई गलती तो नहीं हो गई जिससे मैं नाराज़ हो गई हूँ (तुमसे कोई गलती नहीं हुई)।
मैंने बहुत सारी व्यंजन विधियाँ सहेजकर रखी हुई हैं, यह सोचकर कि इस व्यंजन को मैं ज़रूर बनाऊँगी। लेकिन वास्तविकता यह है कि मैं थक जाती हूँ और फिर से चिपोटले से अपना पसंदीदा खाना मंगा लेती हूँ। अपनी माँ की तरह मैं नियंत्रित नहीं रह पाती हूँ, न अपने भाई की तरह चुटकुले सुनाती हूँ और न ही अपने पिता की तरह काम कर पाती हूँ। अपनी असुरक्षा की भावनाओं को लेकर अपने पति के सामने इसी हफ़्ते में मैं तीन बार रोई हूँ। इन असुरक्षा की भावनाओं के कारण मेरे मन में सदैव यह प्रश्न उठता है कि मेरा चयन करके वो खुश हैं या नहीं।
और मैं उस स्त्री के स्वरूप को बहुत साफ़ देखती हूँ जो मैं बन सकती हूँ। काश मैं अपनी उन गलत आदतों के कुचक्र को तोड़ पाती जो मुझे आगे बढ़ने से रोकती हैं, काश मैं आत्मसंतुष्ट रहना बंद कर पाती, काश मैं अपने इस पुराने घिसे-पिटे स्वरूप से बाहर निकल पाती। मेरी आयु तीस के करीब है और हर दिन मुझे ऐसा महसूस होता है कि मेरे पास इन बीते हुए सालों के लिए अपनी योग्यता दिखाने लायक कुछ भी नहीं है।
जब बार-बार मैं वही गलतीयाँ दोहराती हूँ, जब मैं औरों को बढ़ते हुए, बदलते हुए, उन्नति करते हुए देख ईर्ष्या से भर उठती हूँ, जब मैं अपने निर्धारित कामों को पूरा नहीं कर पाती हूँ और हालाँकि मैं यह जानती हूँ कि खुद में परिवर्तन लाने की क्षमता मुझ में ही है तब भी मैं अपने आप को क्या करता हुआ पाती हूँ? मैं यह सोच कर चिंतित हूँ कि यदि मेरी ज़िंदगी के प्रमुख वर्ष बहुत पीछे छूट गए हैं, यदि मेरे तीस का दशक मेरे बीस के दशक से ज़्यादा खराब साबित हुआ जहाँ मेरी किसी भी सफलता को सिर्फ़ इसलिए नजरंदाज़ किया जाएगा क्योंकि अब मैं उतनी युवा नहीं रही और यदि मेरे कुछ भी बनने या कुछ करने के लिए बहुत देर हो चुकी है तो क्या होगा?
किसी एक जगह से वर्तमान में पहुँचने की चाह में मैं बीच की चीज़ों की उपेक्षा करने की गलती को हर बार दोहराती हूँ। जब अपने सपनों को हकीकत में बदलने की बात आती है तो मैं जैसे जड़वत हो जाती हूँ। कोई भी काम करने के लिए मैं उत्साहित तो होती हूँ लेकिन उसकी गहराई में जाने से डरती हूँ। असुरक्षा और आत्मसंतुष्टि की भावनाएँ मेरे ऊपर हावी हो जाती हैं जो मुझे आगे बढ़ने से रोकती हैं। मैं जड़वत हो जाती हूँ।
और फिर मैं खुद पर तरस खाती हूँ और खुद के प्रति शर्म में डूब जाती हूँ। भीतर ही भीतर उन लोगों के प्रति ईर्ष्या और क्रोध से भर जाती हूँ जो अपनी नियति का निर्माण करने की हिम्मत रखते हैं, यह अच्छी तरह जानते हुए कि अगर मैं इतनी डरपोक या आलसी नहीं होती तो अपने सपनों को साकार करने में मैं पूर्णतया सक्षम हूँ।
काश मैं खुद अपने रास्ते का रोड़ा न होती।
आज जब मैं शर्म से भरी हुई एक और सपने को साकार नहीं कर पाई जिसके लिए मैं जानती थी कि थोड़ी सी मेहनत से मैं उस सपने को साकार कर सकती थी, मैंने अपने दिल को एक काल्पनिक आईना दिखाया और खुद से दो मुश्किल सवाल पूछे -
अपने आप में परिवर्तन लाने से मुझे क्या रोक रहा है?
और इस सवाल को खुद से फिर पूछने से मुझे क्या रोक सकता है?
एक अच्छे, भरोसेमंद आईने की तरह जवाब मेरे सामने, मेरे प्रतिबिंब में था जो केवल इस इंतज़ार में था कि मैं उसे नज़दीक से देखूँ - परिवर्तन एक छलांग में नहीं होता। वह एक छलांग में हो ही नहीं सकता। वक्त के साथ तेज़ी से होते हुए परिवर्तन को मापा जा सकता है। उस तेज़ी को पाने के लिए आपको धीरे-धीरे एक-एक कदम उठाना होगा।
परिवर्तन मिनट दर मिनट होना चाहिए वरना सिर्फ़ असफलता ही हाथ आएगी। मैं अब ऐसी उम्मीद नहीं कर सकती हूँ कि केवल बदलने के विचार भर से मुझ में परिवर्तन आ जाएगा। अब मैं एक भी पल को व्यर्थ नहीं गँवा सकती। अपने आप में परिवर्तन लाने के लिए मुझ में पूरी कोशिश करने की इच्छा होनी चाहिए। अपनी पूर्व स्थिति से वर्तमान स्थिति तक पहुँचने के लिए हर प्रोत्साहक विचार, आगे बढ़ने का हर प्रयास, परेशानियों को स्वीकार करते हुए पूरी लगन से की गई हर कोशिश, सब इसी स्पष्ट व दृढ़ इरादे से होने चाहिए कि अब पीछे नहीं हटना है। यह कदम उठाते हुए मुझे अपने आपको पूरी हिम्मत से अपनी सारी गलतियों और त्रुटियों सहित देखना होगा और दृढ़ता के साथ यह स्वीकार करना होगा कि भले ही इन सारी खामियों व त्रुटियों को दूर करने में वक्त लगेगा लेकिन इसका परिणाम देखने लायक होगा।
और यह सही वक्त है कि मैं अपनी ताकत को पहचानूँ। अगर मुझे सच में अपनी उन अच्छी बातों पर प्रभुत्व प्राप्त है जो मेरी त्रुटियों से कहीं ज़्यादा हैं तो मैं उन अच्छी बातों की खूबसूरती से अपने भीतर की खामियों रूपी दरारों को भर सकती हूँ।
परिवर्तन जो असली, कठिन, अप्रिय, अच्छा, सकारात्मक, निरंतर बदलने वाला है, उसे लाने के लिए मुझे राह में आने वाली चीज़ों पर भी पूरा ध्यान देने के लिए तैयार रहना होगा। अब मैं यह बात समझ गई हूँ। मैं यह समझ गई हूँ कि मुझे परिवर्तन के दौरान थोड़ा विराम लेना होगा, फिर पुनः प्रयास करना होगा, नहीं तो इसका मतलब यह हुआ कि वास्तव में मेरा लक्ष्य परिवर्तन लाना नहीं है - वह मेरा अभी का बिगड़ा व थका हुआ स्वरूप होगा।
परिवर्तन हर पल होता है।
हम जटिल, रचनात्मक, अस्तव्यस्त, असाधारण, अव्यव्स्थित, सुधरने योग्य और अद्भुत कैनवास हैं जो बदल सकते हैं बशर्ते हम उस बदलाव को होने दें। रास्ता कठिन है पर मैं यह बात सीख रही हूँ कि परिवर्तन मज़ेदार उतार-चढ़ावों भरा भी हो सकता है।
अगर हम उसे होने दें तो।

ममता सुब्रमण्यम
ममता मानसिक स्वास्थ्य एवं ध्यान को अपनी कहानियाँ सुनाने के शौक के साथ जोड़ती हैं और वे इंस्टाग्राम को एक ऐसे मंच की तरह इस्तेमाल करती हैं जिसमें सभी जुड़ सकें। वर्ष 2016 की उनकी टेड प... और पढ़ें