इस लेख में रोज़ालिंड पियरमें कोमलता के मनोभाव तथा कठोरता व कोमलताबल व बलहीनतागर्मजोशी और उदासीनता जैसी अनुभूतियों के बारे में चर्चा कर रही हैं और बता रही हैं कि कैसे हृदय के माध्यम से हम अपने अस्तित्व के केंद्र में मौजूद एक गहन व सुंदर संसार को समझ सकते हैं।

 

म सभी एक कठोर दौर से गुज़र रहे हैं जिसमें पहले से कहीं अधिक कठोर निर्णय लिए जा रहे हैं जो लाखों लोगों को प्रभावित कर रहे हैं।

दूसरी ओर, बाबूजी ने हार्टफुलनेस की शुरुआत से ही इस बात पर ज़ोर दिया है कि यह मार्ग मूलतः एक बलहीन बल यानी कोमलता पर आधारित है।

हार्टफुलनेस के और एक गुरु चारीजी ने हमें कई बार उस छोटी सी जड़ की याद दिलाई है जो पत्थर को भी तोड़ सकती है।

यह कैसा चमत्कार है कि एक सर्वाधिक कोमल चीज़ एक गहनतम, कठोरतम वस्तु को भेद सकती है जबकि एक कठोर वस्तु ही दूसरी कठोर वस्तु को तोड़ सकती है? क्या आप पानी को लोहदंड से पीट कर तोड़ सकते हैं?

हमारे गुरुओं, लालाजी और बाबूजी, ने बहुत ही बड़ा जोखिम मोल लिया। क्योंकि यह ऐसा है जैसे किसी ने मक्खन का घर बनाया हो और फिर उसमें आने वालों से कहा कि हाथ में मशाल लेकर आओ। उससे सारा घर पिघल जाएगा। लेकिन उनमें एक अजीब सा विश्वास था कि कोमल वस्तु कभी नहीं टूटेगी।

हमारी परीकथाओं में भी यह उल्लेख है कि जब आँधी आई तब सारे बड़े वृक्ष, जो झुक नहीं पाए, जड़ से उखड़ गए तथा जो कोमल थे, जिन्हें झुकना मंज़ूर था, वे ज़मीन तक पूरी तरह झुक गए और बच गए। यह कोमलता ही है जो हर लड़ाई में जीतती है। कठोर नहीं जीत पाता, वह टूट जाता है। वह बस तभी तक बचा रहता है जब तक उसकी मुलाकात अपने से अधिक कठोर से नहीं होती। लेकिन जो कोमल है, पूरे ब्रह्मांड में ऐसा कुछ नहीं है जो उसे तोड़ सके। ब्रह्मांड में ऐसा कुछ नहीं है जो उसे नष्ट कर सके।”

बलहीन बल में हमारी यात्रा

ऐसा लगता है कि मनुष्य के रूप में हमारी आत्माएँ ही किसी विशिष्ट अस्तित्व में उस समय व स्थान में रहने का चुनाव करती हैं जो हमारे ग्रह और पूरी सृष्टि के संबंध में उजागर होता है।

तो, हम सभी अनुभूतियों के एक ऐसे क्षेत्र में रहते हैं जो हर एक के लिए विशिष्ट होता है। क्या यह हमारे डी.एन.ए. और गठन के कारण है जिसे हम इस जन्म में अपने साथ लाए हैं? अनुभूतियों के इस क्षेत्र की कई परतें हैं, कई आयाम हैं, कई ग्रंथियाँ हैं जिन्हें हम विभिन्न इंद्रियों के माध्यम से महसूस करते हैं। ये अनुभूतियाँ किसी भी रूप में हो सकती हैं - प्रकाश या रंग, घनत्व या भारीपन, ऊष्मा या ठंडक, ध्वनि या फिर विशेष प्रकार का स्पर्श। एक ऐसे इंसान की मदद से, जो सूक्ष्मतम आयामों को समझता हो, हम एक अत्यंत गहन व खूबसूरत दुनिया को महसूस कर सकते हैं जो मूलतः हमारी ही है और इस प्रकार हम सृष्टि के इस मूलभूत भाग में वापस लौटने की कामना कर सकते हैं।

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यह बोध मूलतः हमारे हृदय में होता है जो हमारे तंत्रिका तंत्र से, हमारे विभिन्न अंगों से, अंतड़ियों से, मस्तिष्क से, आत्मा से सक्रिय जानकारी को एकीकृत करता है। इसके अलावा, हमारा हृदय समझ व बोध का एक ऐसा अंग माना जा सकता है जिसकी बुद्धिमत्ता ज़िंदगी भर परिष्कृत हो सकती है। यह इसलिए होता है क्योंकि हृदय मन की उस क्षमता से संबंधित है जो सबसे सूक्ष्मतर स्तरों पर विभिन्न अनुभूतियों पर जागरूकता को केंद्रित करती है।

इस प्रकार, हमारा अस्तित्व हमारे पर्यावरण, सभी सचेतन प्राणियों और मनुष्यों के साथ एक स्पंदनात्मक आदान-प्रदान का क्षेत्र है। ये स्पंदन इस तरह झिलमिलाते या चमचमाते हैं जैसे संगीत कभी शांतिदायक तो कभी बेसुरा लगता है।

मुझे ऐसा लगता है कि आध्यात्मिक यात्रा हमें संसार में प्रत्यक्ष हर प्रकार के जीवन के स्रोत के बहुत करीब और उसकी गहराई में ले जा सकती है जो प्रेम की एक ध्वनि की तरह सारी सृष्टि में गूँज रही है। हम इसे एक प्रकार की अनंत कोमलता की परतों में अनुभव कर सकते हैं, जो सब कुछ अवशोषित व रूपांतरित कर देती हैं। इससे सब कुछ संयोजकता के एक बड़े क्षेत्र में आ जाता है। जैसे-जैसे इसका प्रवाह सुसंगत होने लगता है, यह निरंतर विस्तारित एवं कोमल होता जाता है और यह विकासशील जीवन के भीतर बढ़ती जटिलताओं को एकीकृत कर सकता है।

 

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मुझे ऐसा लगता है कि आध्यात्मिक यात्रा हमें संसार में प्रत्यक्ष हर प्रकार के जीवन के स्रोत के बहुत करीब और उसकी गहराई में ले जा सकती है जो प्रेम की एक ध्वनि की तरह सारी सृष्टि में गूँज रही है।

 


 

हार्टफुलनेस हमें स्पंदन के सबसे गहन और सूक्ष्म स्तर से निकलने वाला एक संसाधन अर्थात वह मौलिक क्षोभ प्रदान करता है। इस क्षोभ की याद हमें अपने स्रोत के केंद्र में महसूस किए गए एक शांत कोमल संकेत के माध्यम से दिलाई जाती है। यह फिर उस क्षेत्र में विलीन हो जाने की हमारी सुप्त तड़प को जगाता है और उस बेनाम व अदभुत परमात्मा के साथ सामंजस्य स्थापित करने लगता है। इस सुसंगति, सुंदरता, सत्य और असीमित प्रेम के कारण ही हम अपने स्रोत की ओर वापस जाने की तड़प को महसूस कर सकते हैं। हमारी वैयक्तिक यात्रा को रूप हमारी आंतरिक विशिष्टता और वे विभिन्न प्रकार के संस्कार व प्रवृत्तियाँ देती हैं जिन्हें खत्म करना और इस मौलिक तड़प के अनुकूल बनाना ज़रूरी है।


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रोज़ालिंड पियरमें

रोज़ालिंड पियरमें

रोज़ यूू.के. मेंं ऑक्सफ़ोर्डड केे समीप एबिंंगडन मेंं रहती हैंं और उन्होंंने अपने व्यावसायिक जीवन मेंं सभी उम्र के लोगोंं के समूहोंं के सााथ काम किया है। उनकी हमेशा इस बात मेंं रुचि रही है कि हम कैसे बदल सकते हैंं, रूपांंतरित हो सकते हैंं। ... और पढ़ें

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