अपने जीवन को व्यवस्थित कर केंद्रीयता विकसित करना
विक्टर कन्नन केंद्रीयता, मौन और आंतरिक रिक्त स्थान के बीच संबंध के बारे में विचार करते हैं। जितना ज़्यादा हम इन गुणों को विकसित करते जाते हैं, उतना ही हम स्वयं को व दूसरों को ज़्यादा गहराई से समझने लगते हैं। जितना ज़्यादा हम गहराई में जाते हैं उतनी ही ज़्यादा हमारे समक्ष हमारी आध्यात्मिक यात्रा उजागर होती जाती है।
हमारे आधुनिक व तीव्र गति वाले संसार में केंद्रित होने की योग्यता दुर्लभ होती जा रही है। अस्त-व्यस्त भौतिक स्थानों और हर समय चलते रहने वाले डिजिटल स्क्रीन से लेकर हमारी अत्यधिक व्यस्तता और भावनात्मक उलझनों तक, बहुत सारे मन के भटकाव मौजूद हैं। फिर भी, केंद्रीयता व मौन तथा हमारे भीतर और बाहर के रिक्त स्थान के बीच एक सीधा संबंध है। सोच-समझकर इस स्थान को प्रबंधित करके हम स्पष्टता,
कार्य-कुशलता और गहरी आध्यात्मिक जागरूकता विकसित कर सकते हैं।
मौन और केंद्रीयता
मौन रहना शोर का अभाव मात्र नहीं है; यह अस्तित्व की ऐसी अवस्था है जिसके कारण हमें स्पष्टता व शांति मिलती है। जब बाहरी भटकावों और इधर-उधर की जिज्ञासाओं के प्रति हमारी रुचि कम हो जाती है और हम उनमें कम शामिल होने लगते हैं तब अपना ध्यान केंद्रित करने में हमें आसानी होती है। केंद्रीयता और अवधान ऐसी योग्यताएँ हैं जिनके बारे में हमें स्वाभाविक रूप से तब पता चलता है जब हम मन में दखल देने वाली बातों को हटा देते हैं जिनके कारण वहाँ खलबली मची रहती है।
जब हम कुछ देर रुककर अंतरावलोकन करते हैं तब हम पहचान पाते हैं कि हमारे लिए क्या लाभकारी है और क्या मात्र भटकाव है। हम सचेत रहकर संवेदी वस्तुओं, विचारों, घटनाओं और लोगों के प्रति अनचाहे और गैर-ज़रूरी आकर्षणों के इस फैलाव को कम कर सकते हैं। इन भटकावों की सूची बनाएँ। आप पाएँगे कि उनमें से अधिकांश आपकी उन प्रवृत्तियों से संबंधित हैं जो आपके आचरण के रूप में प्रकट होती हैं। हम सभी अपना बचाव करने की आदत और बदलने की ज़रूरत को स्वीकार न करने की वजह से ऐसे आचरण को सही ठहराते हैं।
मौन के लिए स्थान बनाएँ
मौन रहने का उस स्थान से बहुत गहरा संबंध है जो हम अपने अंदर और बाहर बनाते हैं। भौतिक रूप से देखा जाए तो एक व्यवस्थित वातावण में शांति और सुव्यवस्था प्राप्त होती है। जब हमारे आस-पास के वातावरण में उथल-पुथल होती है तब हमारी आंतरिक अव्यवस्था साफ़ झलकती है और बढ़ती है। अपने स्थान को व्यवस्थित करके, भले ही वह हमारी मेज़ हो या फिर डिजिटल उपकरण, एक सहजता का एहसास होने लगता है जिससे हमारी केंद्रीयता बढ़ती है।
अपने अंदर रिक्त स्थान बनाने के लिए हमें अनावश्यक भावनात्मक भार, पुरानी घिसी-पिटी मान्यताओं और अत्यधिक मानसिक शोर को छोड़ना होता है। हार्टफुलनेस एवं माइंडफुलनेस ध्यान की तकनीकें और डायरी लेखन हमें विचारों पर बिना आसक्ति के गौर करने में सहायता करते हैं। हम अपने अंदर जितनी ज़्यादा खाली जगह बनाते जाते हैं, उतनी ही ज़्यादा हमारे मौन रहने की गुंजाईश पैदा होती है जिसके परिणामस्वरूप हमारी केंद्रीयता बढ़ जाती है।
एक ऐसे कमरे के बारे में सोचकर देखें जो कचरे और बेकार के सामान से खचाखच भरा हुआ है और जिसमें रहना दूभर है। उसमें से कचरे के कारण उत्पन्न स्पंदन ही निकलेंगे। क्या हम चीज़ों को बिस्तर के नीचे छिपा रहे हैं? क्या हम उन चीज़ों का, जिनका हम कभी इस्तेमाल नहीं करते, कोने में ढेर लगा रहे हैं जिन पर बस धूल ही जमा हो रही है? ये सब भय, भ्रांति, अस्तव्यस्तता और केंद्रीयता की कमी दर्शाते हैं। ये वैचारिक स्पंदन, जो हमारी रखी वस्तुओं से उत्पन्न होते हैं, हमारे मन को निरंतर प्रभावित करते हैं जब हम वहाँ जाते हैं। इस तरह हमारे मन के रिक्त स्थान पर बार-बार अतिक्रमण होता रहता है। एक अव्यवस्थित कमरे की तरह एक अव्यवस्थित मन अलग-अलग विचार व असंसाधित भावनाओं की कर्कश ध्वनि की तरह हैं। इनके कारण मन में शोर पैदा होता है जिससे हमारा आंतरिक क्षेत्र दूषित हो जाता है, आंतरिक संकेत हम तक पहुँच नहीं पाते और चीज़ों को स्पष्टतः देखने की हमारी क्षमता कम हो जाती है। केंद्रीयता का अभाव हमारी स्थायी दशा और अस्तित्व की अवस्था बन जाता है।
अव्यवस्था से बचें - एक समग्र दृष्टिकोण
अव्यवस्था के कई रूप हैं।
भौतिक अव्यवस्था - जैसे अप्रयुक्त वस्तुएँ या अस्त-व्यस्त कार्य-स्थल - हमारा मन भटकाती है और ऊर्जा व्यय करती है। डिजिटल अव्यवस्था - जैसे ज़रूरत से ज़्यादा ऐप या अधिसूचनाएँ (notifications) व छोटी-मोटी जानकारियाँ - हमारा ध्यान भटकाती है। इसी प्रकार जब हम हमेशा बहुत ज़्यादा व्यस्त रहते हैं जिसमें हमें बहुत सारी ज़िम्मेदारियाँ पूरी करनी होती हैं तब हमें चिंतन करने और स्वाभाविकता के लिए बहुत कम समय मिल पाता है।
भावनात्मक अव्यवस्था - किसी नाराज़गी पर बहुत देर तक सोचते रहना, अनसुलझे झगड़े और अत्यधिक भावनात्मक जुड़ाव - भी हमारे अंदर की काफ़ी महत्वपूर्ण जगह को घेरे रहती है।
मानसिक अव्यवस्था - जैसे किसी को प्रभावित करने की लगातार कोशिश या किसी बेकार की जानकारी को याद करते रहना या फिर किसी स्थिति को अधिक अच्छी तरह से समझाने के लिए उसमें किंतु-परंतु जोड़ना जो अन्य सभी के लिए बिलकुल स्पष्ट है, वर्तमान में जीने की हमारी क्षमता को बाधित करती है।
अव्यवस्था से अपने आप को दूर रखकर हम मौन रहने के रास्ते खोल देते हैं जिससे हमारी केंद्रीयता बढ़ती है। कम से कम चीज़ों में संतुष्ट रहना, समय-प्रबंधन और भावनात्मक अनासक्ति केवल व्यावहारिक उपाय ही नहीं हैं बल्कि ऐसे परिवर्तनकारी अभ्यास हैं जिनसे जीवन के सभी पहलुओं में सामंजस्य आता है।
मौन रहना शोर का अभाव मात्र नहीं है; यह अस्तित्व की ऐसी अवस्था है जिसके कारण हमें स्पष्टता व शांति मिलती है। जब बाहरी भटकावों और इधर-उधर की जिज्ञासाओं के प्रति हमारी रुचि कम हो जाती है और हम उनमें कम शामिल होते हैं तब अपना ध्यान केंद्रित करने में हमें आसानी होती है।
आध्यात्मिक जुड़ाव
जैसे-जैसे हम व्यवस्थित और सहज बनते जाते हैं, हम स्वाभाविक रूप से बाहरी भटकावों से दूर रहकर अपने आप को गहराई से समझने लगते हैं।
हमारी केंद्रित रहने की क्षमता हमारे मौन रहने से संबंधित है। मौन रहने का सीधा संबंध उस आंतरिक रिक्त स्थान से है जिसे हम अपने हृदय व मन में बनाते हैं। और जितना ज़्यादा सचेतन जीवनशैली अपनाकर हम अव्यवस्था से बचे रहते हैं उतना ही ज़्यादा हम अपने अंदर रिक्त स्थान बनाते हैं। यह अस्त-व्यस्तता हमने ही पैदा की है और हम ही उसमें फंसकर सोचते हैं कि यह गड़बड़ किसने की है - हम ही ने तो की है। यह सब भौतिक स्थानों, हमारे स्क्रीन पर डिजिटल ऐप, हमारी हर समय की अत्यधिक व्यस्तता, भावनात्मक उलझनें, संस्कार बनाने की प्रवृत्ति आदि सभी पर लागू होता है। जितना ज़्यादा हम इन सबको कम कर पाते हैं, उतनी ही आसान हमारी आध्यात्मिक उन्नति की यात्रा होती जाती है।
इन पहलुओं पर अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए कृपया दाजी की नवीनतम पुस्तक ‘पावर ऑफ़ पैराडॉक्स’ का अध्याय ‘कम ही अधिक है’ पढ़ें।


विक्टर कन्नन
विक्टर हार्टफुलनेस ध्यान के एक उत्साही अभ्यासी और प्रशिक्षक हैं। व्यावसायिक क्षेत्र के मुख्य वित्तीय अधिकारी के रूप में वे दैनिक कार्यों एवं उत्तरदायित्वों में ध्यान के लाभों को भी ... और पढ़ें