कुमरेश राजगोपालन ने हाल ही में हुए वैश्विक आध्यात्मिक महोत्सव में शंकर महादेवन और शशांक सुब्रमण्यम के साथ मिलकर एक कार्यक्रम प्रस्तुत किया था। इस लेख में वे संगीत के बारे में बात कर रहे हैं कि वह किस तरह से हमको एक साथ बाँधता है।
आध्यात्मिक होने की खूबसूरती और हमारे देश का आध्यात्मिक स्वरूप दुनिया को दिखाना बहुत ज़रूरी है। आध्यात्मिकता लोगों के बीच के अलगाव और हिंसा को मिटाकर इस खंडित दुनिया के लोगों को एकजुट कर सकती है।
संगीत भी एक ऐसा घटक है जो हम सबको आपस में मिलाता है। यह किसी भी तरह के आशय से परे है। यह विभाजन से परे है। यह धर्म और जाति से परे है। जिस तरह आप ईश्वर को नहीं देख सकते उसी तरह आप संगीत को भी देख नहीं सकते। जैसे आप ईश्वर को सिर्फ़ महसूस कर सकते हैं उसी तरह आप संगीत को भी सिर्फ़ महसूस कर सकते हैं, उसका अनुभव कर सकते हैं। आप जिस तरह ईश्वर को पकड़ नहीं सकते हैं उसी तरह आप संगीत को भी अपने हाथों में पकड़ नहीं सकते। ईश्वर न तो धरती है, न हवा है, न आकाश है और न ही अग्नि है; ईश्वर इन सबसे परे है। उसी तरह संगीत भी इनमें से कुछ भी नहीं है। यह हमारा सौभाग्य है कि हमारे अंदर संगीत की ध्वनियों के साथ जुड़ने की योग्यता है। ईश्वर ने हमें उस ध्वनि को अभिव्यक्त करने का एक ज़रिया बनाया है जो लोगों के भीतर अलग-अलग भावों को उत्पन्न करती है। इसलिए इस विशिष्ट आध्यात्मिक कार्यक्रम में भाग लेते हुए हम अपने आपको बहुत ही भाग्यशाली और सम्मानित महसूस कर रहे हैं।
ध्वनि और संगीत का स्रोत मौन का श्रव्य और दृश्य प्रतिबिंब है। संगीत एक कर्णज (सुनाई पड़ने वाला) माध्यम है, मगर जब हम कोई गीत गाते हैं तो उसमें शब्द भी होते हैं। इस प्रकार शब्द इसमें दृश्य तत्व ले आते हैं। अगर हम शब्दों के बिना सिर्फ़ धुन को लें तो वह बस एक कर्णज अनुभव होगा। लेकिन वह आता कहाँ से है? मौन से। भीतर से शांत रहना बहुत ज़रूरी है ताकि हम उस ध्वनि की बारीकियों को समझ सकें।
हर स्वर हमारे शरीर के भीतर मौजूद किसी एक चक्र से जुड़ा है। संगीत के सात सुर - सा, रे, ग, म, प, ध, नी - हमारे शरीर के सात चक्रों से जुड़े हैं - मूलाधार से लेकर सहस्र दल कमल तक। यह एक खूबसूरत यात्रा है। हम बहुत भाग्यशाली हैं कि हम ध्वनि के और संगीत के रहस्यों को उजागर करने के लिए इस यात्रा पर चल पड़े हैं। यह “ओम” का बहुरूपदर्शी प्रतिबिंब है। ये सात सुर सभी के बहुरूपप्रदर्शक हैं। और हम इन प्रतिबिंबों से जुड़कर, शांत बैठकर उस संगीत को उत्पन्न होने देते हैं - यह बहुत ही खूबसूरत होता है।
आध्यात्मिक होना बहुत ज़रूरी है। आध्यात्मिक के बजाय मैं 'स्वाभाविक' कहना चाहूँगा क्योंकि संगीतमय होना हमारी स्वाभाविक अवस्था है। हम सब अपने-अपने तरीके से संगीतमय हैं। संगीत हमें प्रभावित करता है। कुछ लोग संगीत को अनुभव कर पाते हैं, कुछ उसे अभिव्यक्त कर पाते हैं, कुछ को संगीत में आनंद मिलता है और कुछ संगीत की रचना कर पाते हैं। यह हर एक का उस खूबसूरत स्रोत से जुड़ाव है। 'वाईफ़ाई कनेक्शन' की तरह जो कोई भी इस नेटवर्क से जुड़ जाता है वह अपने आपको भाग्यशाली मानता है।
मैं वॉयलिन बजाता हूँ और लोग कहते हैं कि मैं अच्छा बजाता हूँ। मुझे नहीं पता। यह आनंदायक कैसे बनता है? क्योंकि यह ईश्वरीय है, एक आशीर्वाद है। इसलिए मैं अपने माता-पिता के, अपने गुरुओं के, अपने आध्यात्मिक गुरुओं के मार्गदर्शन के लिए तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ और सदैव ही उनका आभारी रहूँगा।
हर स्वर हमारे शरीर के भीतर मौजूद किसी एक चक्र से जुड़ा है। संगीत के सात सुर - सा, रे, ग, म, प, ध, नी - हमारे शरीर के सात चक्रों से जुड़े हैं - मूलाधार से लेकर सहस्र दल कमल तक। यह एक खूबसूरत यात्रा है। |

संगीत मेरे परिवार का अहम हिस्सा है। मेरा भाई और मेरी पत्नी, दोनों ही बेहतरीन संगीतकार हैं। हमारी आपस में बातचीत हम सभी को अलग-अलग नज़रियों को समझने में मदद करती है। और सबसे अच्छी बात है कि जब हमारे पिताजी मुझे और मेरे भाई को सिखाते थे तब उन्होंने यह कभी नहीं चाहा था कि हम बस एक ही पथ का अनुसरण करें। वे चाहते थे कि हम अपनी स्वयं की पहचान खोजें ताकि हम अपनी खुद की ध्वनि, अपने खुद के जीवन-दर्शन के साथ अपनी पहचान बना सकें। उन्होंने हमारा मार्गदर्शन करते हुए कहा, “तुम अपने संगीत के द्वारा कहना क्या चाहते हो? बड़े-बड़े संतों ने, आध्यात्मिक गुरुओं ने और संगीतकारों ने बहुत सारी जानकारी दी है मगर तुम क्या कहना चाहते हो? तुम दोनों के पास बताने के लिए अपनी-अपनी कहानी होनी चाहिए और वह कहानी एक जैसी नहीं होनी चाहिए।”
मेरी पत्नी की विचारधारा एकदम ही अलग है। इसलिए उसके साथ बातचीत से मेरा अनुभव, मेरी अभिव्यक्ति, मेरी समझ में वृद्धि होती है। संगीत का विद्यार्थी बने रहना मुझे बहुत पसंद है; यह बहुत सारी खूबसूरत चीज़ों को उजागर करता है।
अन्य कलाकारों के साथ जब मैं बजाता हूँ तो लगता है जैसे कोई संवाद चल रहा हो। हम बातचीत करते हैं; तुम मुझसे कुछ पूछते हो, मैं तुम्हें कुछ बताता हूँ और इस तरह हम अपने संवाद को आगे बढ़ाते हैं। इसलिए कलाकारों का समूह बनाने के लिए यह ज़रूरी है कि हम उनकी शख्सियत को जानें, उनके व्यक्तित्व को पहचानें। जब कोई गाता है या कला (संगीत) की रचना करता है तब वह उसके व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति होती है। जब हम लोगों के व्यक्तित्व को समझ लेते हैं तब संगीत द्वारा बातचीत करना ज़्यादा आसान हो जाता है। हम सप्त सुरों की एक ही भाषा बोलने की कोशिश करते हैं तो बात तो बननी ही चाहिए। जब तक हम एक-दूसरे के संपूरक बने रहते हैं, जब तक कोई स्पर्धा नहीं होती, संगीत प्रस्तुति सुंदर होती है।
सुंदरता तो उस तरीके में है जिसे हमारे ऋषि-मुनियों ने स्थापित किया है ताकि जीवन पर सीधा चिंतन-मनन हो सके। ज़िंदगी में कुछ समझने के लिए अपनी विचारधारा में नियम-बद्धता और स्वतंत्रता दोनों ज़रूरी हैं। उसी तरह संगीत में भी नियम-बद्धता और स्वतंत्रता की ज़रूरत है - स्वतंत्रता धुन है और नियम उसमें निहित विचार है। जब आप नियम-बद्ध होने के साथ स्वतंत्र होंगे तभी आप अपने आपको खुलकर अभिव्यक्त कर पाएँगे। जब विचार स्वतंत्र होंगे तभी विषय की नियम-बद्धता आपको गहराई तक ले जाएगी और आप उसकी विशालता को समझ पाएँगे। किसी विषय की गहराई में जाकर आप कौन सी अलग-अलग बातें समझ सकते हैं? आपके भीतर उसका क्या प्रभाव पड़ा है? आप उसे पहले से बेहतर कैसे व्यक्त कर सकते हैं, क्योंकि संगीत हर पीढ़ी के साथ बदलता है? हम आज जो बजाते हैं वह 40-50 साल पहले बजाए गए संगीत से बहुत अलग है। पचास साल बाद का संगीत कुछ और ही होगा क्योंकि आर्थिक और सामाजिक छापें जो अंदर पड़ती हैं, वे ध्वनि के रूप में बाहर आती हैं। आप जितनी ज़्यादा तपस्या करेंगे, उतने ज़्यादा नियम-बद्ध रहेंगे और उतनी ही बेहतर आपकी अभिव्यक्ति होगी।
उदाहरणतः, दक्षिण भारत का मनोधर्म कर्नाटक संगीत का तात्कालिक रूप है। यह राग, मधुर रचना और ताल, लयबद्ध रचना, के नियम का उपयोग एक ऐसी रूपरेखा के रूप में करता है जिसमें संगीत रचना की स्वतंत्रता होती है। हिंदुस्तानी और कर्नाटक संगीत के रागों में भी इसी सिद्धांत का उपयोग होता है। ज़िंदगी और संगीत के बीच बहुत ही सुंदर समानता है।
आपको दी हुई स्वतंत्रता के ढाँचे के भीतर आप अपनी रचना बनाते हैं। यह उसी प्रकार है जैसे सामाजिक संरचना व ढाँचा तो सबके लिए वही रहता है लेकिन उसमें आप अपनी खुद की पहचान बनाते हैं, अपने विचार और अपनी ज़िंदगी जीने का तरीका बनाते हैं जो बाकी सबसे अलग हो सकता है। आपको उसी ढाँचे के भीतर ही काम करना होता है। राग और ताल के साथ भी वही है। जैसे राग बागेशरी को अलग-अलग संगीतकार अपने-अपने तरीके से बजाते हैं लेकिन उस राग की मूल संरचना को वे बदल नहीं सकते हैं।
अत्यधिक परिवर्तन के इस समय में भी संगीत एकदम सुरक्षित हाथों में है। हम ईश्वर की बात कर रहे हैं। कोई न कोई ज़रूर होता है जो संगीत को जारी रखने की ज़िम्मेदारी उठाता है और उसका व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है ताकि भावी पीढ़ी उसका सम्मान करे। जब तक मनुष्य जाति जीवित रहेगी, संगीत भी जीवित रहेगा।
अपने भीतर संगीत का अनुभव करना सर्वोत्तम संगीत है जिसे आप सुन सकते हैं। यह कुछ ऐसा है जैसे - आप बहुत कुछ सोच सकते हैं लेकिन जब आप बात करने लगते हैं तब आप सब कुछ कह नहीं पाते हैं। आपकी विचार प्रक्रिया पूरी तरह से बदल जाती है। उसी तरह, जब आप शांत होकर संगीत को सुनते हैं तब वो धुनें सबसे अच्छी होती हैं जो अन्यथा सुनाई नहीं देतीं।

कुमरेश राजगोपालन
कुमारेश को भारतीय शास्त्रीय संगीत में अपने भाई गणेश के साथ मिलकर बनाई गई परियोजना के लिए व्यापक रूप से जाना जाता है। द... और पढ़ें