सतबीर सिंह खालसा, पी.एचडी. वर्ष 1973 से कुंडलिनी योग के प्रशिक्षक रहे हैं। उन्होंने वर्ष 2001 से योग पर शोध किया है और उनके शोध ने कार्यस्थल एवं सार्वजनिक स्कूलों में अनिद्रा, दीर्घकालिक तनाव और चिंता संबंधी विकारों पर योग के असर का मूल्यांकन किया है। वे इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ़ योग थेरेपिस्ट्स के साथ योग के शोध पर होने वाली वार्षिक संगोष्ठी के विज्ञान निदेशक के रूप में काम करते हैं। वे इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ योग थेरेपी के मुख्य संपादक, हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की विशेष रिपोर्ट ‘इंट्रोडक्शन टू योग’ के चिकित्सीय संपादक और चिकित्सा की पाठ्यपुस्तक ‘द प्रिंसिपल एंड प्रेक्टिस ऑफ़ योग इन हेल्थ केयर’ के मुख्य संपादक हैं। हार्टफुलनेस इंस्टीट्यूट के विक्टर कन्नन द्वारा लिए गए साक्षात्कार में वे योग और स्वास्थ्य के सम्मिलन के विषय पर अपने विचार प्रस्तुत कर रहें हैं।
पारंपरिक योग के चार पहलू
प्र. - आज सुबह का समय देने के लिए धन्यवाद डॉ. खालसा! आपके विचार से योग क्या है?
मैं जिसे ‘पारंपरिक योग’ या ‘ऐतिहासिक योग’ कहता हूँ उस पर ही मुख्यतः बात करना चाहूँगा। यह चार मुख्य तत्वों से बना है। पहला है आसन, शारीरिक मुद्राएँ और व्यायाम। बहुत सारे लोग केवल आसन एवं व्यायाम का अभ्यास करते हैं और यह ठीक है लेकिन यह योग का एक सीमित रूप है। यह योग का केवल एक ही पहलू है।
दूसरा है, श्वास-प्रश्वास तकनीक यानी प्राणायाम। यह उस समृद्ध परंपरा का एक हिस्सा है जो योगाभ्यास के प्राचीन ऐतिहासिक अभिलेखों में दर्ज है और आधुनिक योग अभ्यास में अभी भी जीवंत है।
तीसरा है, शारीरिक तनावमुक्ति जिसे तकनीकी तौर पर मुद्राओं में शामिल कर लिया जाता है लेकिन मैं मानता हूँ कि तनावमुक्ति की अपने आप में एक अलग श्रेणी होनी चाहिए। योग में एक विशिष्ट अभ्यास है जिसे हम शवासन कहते हैं जो स्थूल शरीर की गहन रूप से तनावमुक्ति है। इसके अति विशिष्ट प्रभाव हैं जिसे न केवल योग के अध्ययनों में प्रदर्शित किया गया है बल्कि उसमें भी दर्शाया गया है जिसे प्रगतिशील विश्राम (progressive relaxation) कहते हैं। प्रगतिशील विश्राम पश्चिमी देशों में कई दशकों से मनोविज्ञान के क्षेत्र में उपयोग में लाया जा रहा है। स्थूल शरीर के तनावमुक्त होने का बहुत ही स्पष्ट प्रभाव हमारे व्यवहार और शारीरिक व मानसिक कार्यशीलता पर पड़ता है। वास्तव में यह मन और शरीर के संबंध पर प्रकाश डालता है।
चौथा है ध्यान जो योग का शायद सबसे महत्वपूर्ण घटक है। पतंजलि के योग सूत्र मुख्यतः योगाभ्यास के संज्ञानात्मक पहलू, ध्यानमय तत्व यानी अवधान को केंद्रित करने के बारे में है। ध्यान की मेरी सबसे सरल परिभाषा है – तनावमुक्त और विश्लेषण-रहित अवधान को केंद्रित करना। ध्यान के विभिन्न तरीकों में जो अंतर है वह मात्र उस केंद्रीयता के लक्ष्य का है। लेकिन सभी तरीकों में अवधान को सम्मिलित किया जाता है जिसका अर्थ है कि मस्तिष्क के अवधान तंत्र (attention networks) को एक लक्ष्य पर केंद्रित किया जाता है। लेकिन जब आप कुछ लंबे समय तक अपने लक्ष्य पर केंद्रित रहते हैं तब आपका मन भटकने लगता है। ध्यान में करना यही होता है कि आपको पुनः ध्यान के लक्ष्य पर केंद्रित होना है। ध्यान को उसके केंद्र बिंदु पर या लक्ष्य पर बार-बार लाना होता है।
इसीलिए आसन, तनावमुक्ति, प्राणायाम और ध्यान योग के आधुनिक अभ्यास के चार सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटक हैं।
प्र. - तनावमुक्ति में शारीरिक और मानसिक-मनोवैज्ञानिक दोनों ही पहलू हैं। मेयो क्लीनिक के एक शोध-पत्र में स्वत:जात विश्रांति की बात की गई है। इसका अभ्यास किस प्रकार से काम करता है?
मनस-शरीर की तनावमुक्ति के दो पाश्चात्य अभ्यास हैं जिनका एक लंबा इतिहास है। एक
जिसे स्वतःजात (autogenic) प्रशिक्षण कहते हैं (जोहानस हेनरिश शुट्ज़ वर्ष 1932 में प्रकाशित)। यह एक निर्देशित मानसिक अभ्यास है जो तनावमुक्ति का भाव उत्पन्न करने के लिए स्थूल शरीर पर कार्य करता है। दूसरा प्रगतिशील माँसपेशी विश्रांति (progressive muscle relaxation) कहलाता है (वर्ष 1938 में डॉ. ऐडमंड जेकबसन द्वारा प्रकाशित)। विभिन्न शारीरिक और मानसिक विकारों के उपचार के लिए इनका उपयोग किया गया है।
मन और शरीर घनिष्ठता से जुड़े हुए हैं
प्र. - मनस-शरीर का संबंध इस अर्थ में अत्यंत रोचक है क्योंकि मन स्थानिक नहीं है। यह अमूर्त है जबकि शरीर मूर्त या स्थूल है। जहाँ तक हम जानते हैं मन व शरीर का जुड़ाव मस्तिष्क में होता है। तो फिर ध्यान या प्रगतिशील विश्रांति मस्तिष्क की कार्यशीलता को किस प्रकार से प्रभावित करती है? मैंने पढ़ा है कि कम समय का ध्यान भी मस्तिष्क की रासायनिक संरचना को प्रभावित करता है और उसका व्यवहार पर प्रभाव पड़ता है तथा 8 से 13 सप्ताह तक का लंबे समय का ध्यान मस्तिष्क में संरचनात्मक परिवर्तन कर देता है। क्या आप ध्यान और मस्तिष्क के बीच के संबंध के बारे में हमें बता सकते हैं कि वे एकसाथ कैसे काम करते हैं और एक-दूसरे से कैसे प्रभावित होते हैं?
मन और शरीर अत्यंत घनिष्ठता से जुड़े हुए हैं। और निस्संदेह मस्तिष्क के बिना कोई मन नहीं होता। आप इसे आसानी से प्रदर्शित कर सकते हैं। आधुनिक विज्ञान में, जिसमें चिकित्सा विज्ञान भी शामिल है, मन व शरीर को अलग-अलग समझा गया है। ऐसा 1800 की सदी में शुरू हुआ जब दो अलग-अलग चिकित्सा के क्षेत्र विकसित हुए - एक तरफ़ मनोविज्ञान और मनोचिकित्सा और दूसरी तरफ़ शारीरिक चिकित्सा। इसके परिणामस्वरूप आधुनिक चिकित्सा में मन और शरीर के बीच एक आधारभूत अलगाव आ गया।
आजकल हम अक्सर देखते हैं कि जो चिकित्सक शारीरिक विकारों का इलाज करते हैं, उन्हें मरीज़ की मानसिक व भावनात्मक स्थितियों से कोई मतलब नहीं होता। और जो तथाकथित मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सा संबंधी स्थितियों पर काम करते हैं वे उसके शरीर में और उसके भौतिक व्यवहार में क्या चल रहा है, उस बारे में कुछ नहीं पूछते। यह एक बड़ी गलती है क्योंकि मन और शरीर घनिष्ठता से जुड़े हुए हैं।
हमारी सुषुम्ना नाड़ी मस्तिष्क का ही विस्तार है जो पूरे शरीर से गुज़रती है और पूरे शरीर की सूचना मस्तिष्क तक लाती है। और फिर मस्तिष्क जानकारी शरीर को वापस भेजता है। जो एक को प्रभावित करता है, वही दूसरे को भी करता है। जब कोई भावनात्मक स्थिति उत्पन्न होती है तब आप दोनों की ही अभिव्यक्तियाँ देखते हैं। जब आप व्यथित होते हैं तब आप रोने लगते हैं। स्पष्ट रूप से ये सारे शारीरिक व्यवहार हैं लेकिन ये एक भावनात्मक घटना की प्रतिक्रिया हैं। दूसरी ओर, यदि आपकी उंगली जल जाती है तो आप अत्यधिक भावनात्मक तनाव का अनुभव करते हैं। मन या शरीर में से एक को नज़रअंदाज़ करना एक वास्तविक कमज़ोरी और गलतफ़हमी है। हमें मनोवैज्ञानिक और मनोचिकित्सकीय स्थितियों का इलाज करने में अधिक सफलता मिलेगी यदि हम इसमें व्यक्ति की शारीरिक हालत को भी ध्यान में रखें और हम शारीरिक चिकित्सा में बहुत अच्छा कर पाएँगे अगर हम व्यक्ति में मानसिक और भावनात्मक स्तर पर चल रही बातों का सम्मान करें व उन्हें समझें।
मेरा पूरा ध्यान वास्तव में मन व शरीर के संबंध पर और इस पर है कि हम क्या नाप सकते हैं। आधुनिक चिकित्सा में मन द्वारा शरीर के आत्म-नियंत्रण के बारे में बहुत ही कम समझ है जबकि योग में हम अपनी मनोवैज्ञानिक और शारीरिक, दोनों आंतरिक अवस्थाओं को नियंत्रित करना सीखते हैं। आत्म-नियंत्रण की यह अवधारणा योग एवं मन-शरीर के अन्य अभ्यासों की विशेषता है।
प्र. - क्या आत्म-नियंत्रण ही प्रत्याहार है जो अष्टांग योग का एक अंग है ?
मुझे नहीं लगता कि आत्म-नियंत्रण का संबंध योग के एक अंग से है। मैं योग के आठ अंगों को एक दिशानिर्देश की तरह मानता हूँ जो बताता है कि मन और शरीर पर योग किस प्रकार से कार्य करता है लेकिन मुझे वह उतना उपयोगी नहीं लगता है। बहुत लोग यम और नियम पर केंद्रित रहते हैं जो नैतिक व्यवहार से संबंधित हैं। इनका कुछ महत्व भी है। लेकिन मेरा सोचना है कि कुछ समय तक नियमित योगाभ्यास करने से ये अपने आप ही विकसित होने लगते हैं। आपको योग का अनुभव लेने के लिए पहले यम और नियम का अभ्यास करना आवश्यक नहीं है।
एक बार जब आप चार में से कोई भी एक अभ्यास करना शुरू करते हैं तब कुछ हद तक बाकी के तीन को भी शुरू करते हैं। योग के चार घटक (आसन, प्राणायाम, तनावमुक्ति और ध्यान) पूरी तरह से एक-दूसरे से गुंथे हुए और आपस में जुड़े हुए हैं। उदाहरणार्थ, धीमी श्वसन प्रक्रिया में आपका स्वायत्त तंत्रिका तंत्र (autonomic nervous system) स्वत: ही धीमा हो जाता है क्योंकि इनका एक घनिष्ठ संबंध है। इसके साथ ही इसका प्रभाव तुरंत मस्तिष्क और उसकी संज्ञानात्मक कार्यशीलता पर भी पड़ता है। इसके अलावा जब आप धीमा श्वास-प्रश्वास करते हैं तब उससे मानसिक तनावमुक्ति भी होती है। प्राणायाम बाकी तीन अभ्यासों के साथ जुड़ा हुआ है। इसी प्रकार जब आप ध्यान करते हैं, इसका एक संज्ञानात्मक प्रभाव होता है और साथ ही शारीरिक तनावमुक्ति भी होती है। आपके श्वसन की गति धीमी हो जाती है। अतः ये सारे अभ्यास आपस में घनिष्ठता से जुड़े हुए हैं।
प्र. - आपका ये उत्तर बहुत उपयोगी है। लोग किसी भी योगाभ्यास से, जो उन्हें पसंद हो, आरंभ कर सकते हैं और दूसरे घटकों का लाभ भी प्राप्त कर सकते हैं।
यह योग के प्रमुख लाभों में से एक है। हम सबके अलग-अलग व्यक्तित्व हैं और अलग-अलग पसंद है। लेकिन आप अपने लिए उन अभ्यासों को चुन सकते हैं जो आपको अच्छे लगते हैं।
यदि आप अभ्यास नहीं करते हैं तो आपको लाभ नहीं होता। मनस-शरीर चिकित्सा का मात्र ज्ञान होने से लाभ नहीं होता। आपको इन अभ्यासों को करना होगा। और यदि इन अभ्यासों को करने से आपको प्रसन्नता होती है तो आप उन्हें ज़्यादा करने लगते हैं। योग विभिन्न आयामों पर कार्य करता है और यही कारण था कि मैंने योग को मूलत: एक मननशील अभ्यास के तौर पर अपनाया।
योग का रहस्योद्घाटन
प्र. - आप जैसे शोधकर्ताओं और शिक्षाविदों की योग का रहस्योद्घाटन करने में तीव्र रुचि है, विशेषकर कि यह मात्र आसनों का अभ्यास नहीं है।
यह सही है। अनेक लोग, खासतौर पर भारत में जहाँ पर लोगों का यह मत है कि योग उनकी
संस्कृति से आया है, योग के नए मिश्रित स्वरूपों से बहुत विचलित हो जाते हैं। वे कहते हैं, “ओह! आप अमेरिकी लोग हमारे प्राचीन पवित्र अभ्यासों को लेकर उनका संक्षिप्तीकरण करके तथा वाईन योग, बीयर योग और गोट योग जैसी चीज़ें बनाकर योग को बर्बाद कर रहे हैं।” मैं उनका दृष्टिकोण समझता हूँ लेकिन योग के ये सीमित स्वरूप दरअसल एक प्रवेशद्वार का काम करते हैं। लोग शारीरिक रूप से चुस्त रहने के उद्देश्य से सिर्फ़ आसनों से शुरू कर सकते हैं लेकिन इन व्यायामों का मन और शरीर पर अपना एक बहुत ही शक्तिशाली प्रभाव होता है और इस प्रकार लोग अन्य बातों का अनुभव भी करने लगते हैं।
अनेक लोगों का योग की तरफ़ झुकाव का मूल कारण बहुत ही मामूली हो सकता है। कुछ लोग अपने घुटनों या कंधों को ठीक करने के लिए शुरू करते हैं। फिर एक महीने तक नियमित योगाभ्यास करने के बाद वे कहते हैं, “मैं अब कुछ अलग-सा महसूस कर रहा हूँ। मुझे बेहतर महसूस हो रहा है और मेरा जीवन ज़्यादा प्रभावी तरीके से चल रहा है। मेरा तनाव कम हो गया है और मुझे ऐसी अनुभूति और अधिक चाहिए इसलिए अब मैं पारंपरिक योग स्टूडियो में जा रहा हूँ जहाँ मैं और अधिक सीख सकता हूँ।”इस तरह सीमित योग पारंपरिक योग के लिए प्रवेशद्वार हो सकता है और यह अच्छा है। बल्कि मैं तो यह चाहूँगा कि लोग दवाईयाँ लेते रहने के बजाय सीमित योग में सिर्फ़ आसन करते रहें।
योग और न्यूरोप्लास्टीसिटी
प्र.- बिलकुल। एक सूक्ति है कि जो हम पाँच वर्ष की आयु के पहले नहीं सीख पाते हैं वह हम 50 वर्ष की आयु के बाद नहीं सीख सकते। क्या योग शुरू करने की कोई सही आयु है? यह न्यूरोप्लास्टीसिटी से किस तरह से संबंधित है ?
हाँ, सीखने की प्रक्रिया विकास के चरणों द्वारा प्रभावित होती है। कुछ ऐसी चीज़ें हैं जो आप छोटी उम्र में ज़्यादा अच्छी तरह से सीख सकते हैं। जीवन में आप जो कुछ भी करते हैं, वह आपके मस्तिष्क की क्रियाओं और मस्तिष्क की संरचना को परिवर्तित करता है। न्यूरोप्लास्टीसिटी और तंत्रिका संबंधी गतिविधि लगातार बदलती रहती है। इसलिए यदि आप बाज़ीगरी (juggle) सीखते हैं तो आप मस्तिष्क की क्रिया और मस्तिष्क की संरचना को परिवर्तित करते हैं। यदि आप अधिक पुस्तकें पढ़ते हैं तो भी आप मस्तिष्क की क्रिया और मस्तिष्क की संरचना को परिवर्तित करते हैं। सब कुछ मस्तिष्क की क्रिया और मस्तिष्क-संरचना में प्रतिबिंबित होता है। यदि आप प्रतिदिन तीन पैकेट सिगरेट पीना शुरू कर देते हैं तो ज़ाहिर है कि ये बदलाव अच्छे नहीं होंगे।
योगाभ्यास के विभिन्न तत्व आपके मस्तिष्क की क्रिया और मस्तिष्क की संरचना, दोनों में ही परिवर्तन करेंगे। ये परिवर्तन जीवन में कभी भी हो सकते हैं। किसी भी अन्य चीज़ की तरह, शायद वे कम आयु में अधिक लाभकारी होते हैं। इसलिए छोटी उम्र से ही इन अभ्यासों को करने के अपने लाभ हैं।
बच्चों के लिए योग
आप बाल्यावस्था से ही योग शुरू कर सकते हैं। प्री-स्कूल के बच्चे आत्म-नियंत्रण के सिद्धांत सीख सकते हैं जैसे अपने शरीर और मन के प्रति कैसे जागरूक हों, शरीर और मन को कैसे तनावमुक्त करें। उस उम्र में किया जा रहा योगाभ्यास उनकी रुचि के अनुरूप होता है। उनके साथ आप जानवरों के खेल खेलते हैं। आप शेर होने का अभिनय करते हैं, आप किसी अन्य जानवर का अभिनय करते हैं और उसके माध्यम से आप योग आसन करते हैं। आप एक तरह की तनावमुक्ति करके बच्चों को सिखा सकते हैं कि आत्म-नियंत्रण कैसे करते हैं। एक योग्य शिक्षक जो प्री-स्कूल में योग सिखाता है वह ऐसे बच्चों के समूह को योग सिखा सकता है जो पूरी ऊर्जा के साथ दीवारों से कूद रहे होते हैं और बाद में 20 मिनट में ही वे सभी शांति से शवासन में लेटे होते हैं। यह एक चमत्कार है। ये बच्चे आत्म-नियंत्रण सीखते हैं, अपनी शारीरिक गतिविधियों और मानसिक ऊर्जा के बारे में जागरूक होना सीखते हैं और इच्छानुसार शांत होने की क्षमता विकसित करते हैं।
अपनी आंतरिक अवस्था, मानसिक और शारीरिक दोनों, के प्रति
जागरूक होना आत्म-नियंत्रण के साथ घनिष्ठता से जुड़ा हुआ है
बच्चे योग और मनस-शरीर चिकित्सा की एक और मूल अवधारणा का अनुभव भी कर सकते हैं जो है मनस-शरीर की जागरूकता। इसके लिए एक शब्द है जो आजकल ‘माइंडफुलनेस’ के नाम से प्रचलित है।
अपनी आंतरिक अवस्था, मानसिक और शारीरिक दोनों, के प्रति जागरूक होना आत्म-नियंत्रण के साथ घनिष्ठता से जुड़ा हुआ है क्योंकि यदि आप जागरूक नहीं हैं तो आत्म-नियंत्रित नहीं हो सकते। इसलिए ये दो अवधारणाएँ - मनस-शरीर की जागरूकता और आंतरिक अवस्था का आत्म-नियंत्रण - संभवतः योग और मनस-शरीर चिकित्सा की सबसे महत्वपूर्ण अवधारणाएँ हैं। ये दोनों बातें छोटे बच्चों को बहुत कम उम्र से ही सिखाई जा सकती हैं। बाद में वे प्राणायाम और ध्यान जैसे अन्य योगाभ्यास सीख सकते हैं और जब वे हाईस्कूल में पहुँचते हैं, वे उन सारी चीज़ों को कर सकते हैं जो एक वयस्क कर सकता है।
आगामी अंक में जारी.......
कलाकृति - अनन्या पटेल

सतबीर सिंह खालसा
डॉ.खालसा, पी.एच.डी., एक विश्व विख्यात योग शोधकर्ता, सहयोगी, लेखक और वक्ता हैं। वे हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में चिकित्सा क्षेत्र में सह प्राध्यापक हैं और कुंडलिनी रिसर्च इंस्टीट्यूट के ... और पढ़ें