हाँ, आप कर सकते हैं
दाजी हृदय से स्वीकार करने और इससे मिलने वाले फ़ायदों पर कुछ विचार प्रस्तुत कर रहे हैं। वे कहते हैं, “यह है जिसकी वजह से हम हर चीज़ को अपने हिस्से के रूप में स्वीकार कर पाते हैं। इसलिए, जो कुछ भी हो सकता है वह हमेशा हम सभी के लिए होगा।” उनके द्वारा प्रस्तावित गतिविधि का आनंद लें जो हमें अपने को बनाए रखने में सहायता करेगी।
प्रिय मित्रों,
हम सभी में अच्छाई अंतर्निहित है। हमें अच्छा बनने के लिए सोचना नहीं पड़ता - यह बस हो जाता है। उदाहरण के लिए, जब कोई आपसे आपका नाम पूछता है तब आप सोचते नहीं हैं, यह आपके मुँह से स्वतः निकल आता है। क्या सच बोलने के लिए प्रयास या कल्पना की ज़रूरत पड़ती है? केवल झूठ बोलने के लिए प्रयास की ज़रूरत पड़ती है। अच्छाई तो स्वाभाविक रूप से भीतर से प्रवाहित होती है।
अपनी अंतर्निहित अच्छाई को प्रकट करना सहज है, यह हृदय की स्वाभाविक प्रवृत्ति है। जब मन शांत होता है तब हृदय स्वतः ही सृजन की ओर उन्मुख होता है। परिवार का पालन-पोषण करना स्वाभाविक है और हृदय इस पुकार का प्रेमपूर्वक प्रत्युत्तर देता है। यदि मन इसमें हस्तक्षेप करता है तो उससे जटिलता की परतें बन सकती हैं। लेकिन एक विकसित मन स्वाभाविक रूप से हृदय के साथ तालमेल में होता है। जब मन एक ग्रहणशील हृदय का साक्षी होता है तब दोनों में सर्वोत्तम तालमेल बन जाता है। हमारे अंतःकरण में स्पष्टता रहती है और हमारी अच्छाई स्वाभाविक रूप से प्रकट होती है।
एक विकसित मन स्वाभाविक रूप से हृदय के साथ तालमेल में होता है। जब मन एक ग्रहणशील हृदय का साक्षी होता है तब दोनों में सर्वोत्तम तालमेल बन जाता है। हमारे अंतःकरण में स्पष्टता रहती है और हमारी अच्छाई स्वाभाविक रूप से प्रकट होती है।
जीवन में, हम कई ज़िम्मेदारियाँ निभाते हैं - अपने परिवार, समाज और यहाँ तक कि दुनिया के प्रति भी। अगर हम चाहें तो हमारा हृदय हर ज़िम्मेदारी को सहज रूप से निभा सकता है।
साथ ही, हमें अपनी ज़रूरतों का भी ध्यान रखना चाहिए - अपने दिल को तैयार करना, परिष्कृत करना एवं उसे संवेदनशील बनाना और अपने मन को आराम देना। इसे ईमानदारी से किए गए ध्यान द्वारा हासिल किया जा सकता है। मन के ध्यानमय होने से हमारे हृदय के भीतर से अंतर्ज्ञान उत्पन्न होता है। भीतर से प्राप्त प्रेरणाओं की मदद से धीरे-धीरे हमारे अंदर बदलाव होने लगता है। ध्यान इस बदलाव में सहायता करता है जिससे हम बेहतर इंसान बनते हैं। तब हम अपने व दूसरों के प्रति अपने कर्तव्यों को ज़्यादा अच्छी तरह समझ पाते हैं और उन्हें स्पष्टता व दिल से पूरा कर पाते हैं।
अपनी प्रभावशीलता या कौशल की तुलना दूसरों के साथ करने की कोई ज़रूरत नहीं है। यह अहंकार का सही उपयोग नहीं है। जब हम दूसरों का अवलोकन करते हैं तो यह प्रेरणा प्राप्त करने के लिए हो सकता है। अहंकार को नियंत्रित करने का सही तरीका है, खुद से प्रतिस्पर्धा करना। ऐसा करके हम पहले से बेहतर बनकर लगातार अपने में सुधार करते हैं। इसके परिणामस्वरूप, हम अपने लिए उच्चतर से उच्चतर लक्ष्य निर्धारित करते हैं। शांतिपूर्ण योद्धाओं की तरह हम हर बार अपने हर कार्य को अधिक कुशलता से करते हैं और अपनी खामियों को दूर करने की कोशिश करते हैं। जैसे-जैसे हम हृदय के अंतर्निहित मूल्यों को प्रकट करते हैं, हम स्वाभाविक रूप से अपनी ज़िम्मेदारियों के प्रति जागरूक होते जाते हैं।
बदलाव तब और गहरा हो जाता है जब हम अपनी समझ को “मैं इस दुनिया का हूँ, यह मेरे लिए क्या कर सकती है?” से “दुनिया मेरी है! मैं इसके लिए क्या कर सकता हूँ?” में बदल लेते हैं। यह शायद अहंकारी लग सकता है, लेकिन स्वामित्व की भावना, अपनेपन की भावना के बिना हम हमेशा खुद को कमतर आँकते रहेंगे।
यह हृदय की आंतरिक अच्छाई ही है जिसकी वजह से हम जो कुछ भी है उसे अपना मानने लगते हैं। उसी तरह, दूसरे भी हमें अपना मानने लगते हैं। इसलिए, जो कुछ भी होता है वह हमेशा हम सभी के लिए होता है । हम सब मिलकर अपने साझा भाग्य को आकार देते हैं।
अपनेपन की भावना होने से हम रिश्ते बनाते हैं और अपनेपन की भावना के न होने पर हम रिश्ते तोड़ देते हैं। अपनेपन की यह भावना समावेशी है और ब्रह्मांड में सभी प्राणियों को और सभी चीज़ों को स्वीकार करती है।
हर किसी के को पहचानना और उसे स्वीकार करना भी क्षमा की शुरुआत है। हृदय से स्वीकार करने से हम किसी भी चीज़ को सहन करने या उसके आगे समर्पण करने की ज़रूरत से आगे बढ़ जाते हैं। यह हृदय की आंतरिक अच्छाई ही है जिसकी वजह से हम जो कुछ भी है उसे अपना मानने लगते हैं। उसी तरह, दूसरे भी हमें अपना मानने लगते हैं। इसलिए, जो कुछ भी होता है वह हमेशा हम सभी के लिए होता है। हम सब मिलकर अपने साझा भाग्य को आकार देते हैं।
गतिविधि 1 -
इस वाक्यांश, ‘’, पर विचार करें। आपके लिए इसका क्या अर्थ है? अपने विचार अपनी डायरी में लिखें।
गतिविधि 2 –
कुछ मिनटों के लिए इस विचार पर ध्यान करें कि हर कोई प्रेम और भक्ति भाव से भर रहा है और उनमें सच्ची आस्था दृढ़ हो रही है। ईश्वर करे पूरी धरती शांति, प्रेम और प्रभु-कृपा से भर जाए।
गतिविधि 3 –
आज से ही अपने हृदय में और अपने संपर्क में आने वाले सभी लोगों के हृदयों में अंतर्निहित अच्छाई को देखने का अभ्यास करें -
- सुबह अपना दिन शुरू करने से पहले यह संकल्प याद करें और विभिन्न परिस्थितियों में इसका अभ्यास करने की कल्पना करें। इसे अपने आप से लेकर अपने प्रियजनों, अपने समुदाय, अपने सहकर्मियों और रेस्तराँ, किराने की दुकानों तथा अपने शहर आदि के कर्मचारियों तक विस्तारित करें। मन में उठने वाली भावनाओं पर ध्यान दें।
- यदि कोई ऐसी परिस्थिति बन जाती है जब आप किसी से चिढ़ जाते हैं या क्रोधित हो जाते हैं तो थोड़ा रुकें और यह विचार लें कि उस व्यक्ति के हृदय में अच्छाई है, भले ही आप उसे तुरंत न देख पाएँ। उस व्यक्ति के लिए इस प्रार्थना के साथ विराम समाप्त करें - ईश्वर करे वह नकारात्मकता से मुक्त हो जाए।
- दिन के दौरान, रुकें और अपने आप को याद दिलाएँ कि आप में और दूसरों में अंतर्निहित अच्छाई है और यह आपके हृदय से प्रसारित हो रही है।
आपकी आगे की यात्रा के लिए मेरी शुभकामनाएँ,
दाजी