लिन मेक्टैगर्ट चेतना के नवविज्ञान के क्षेत्र में प्रमुख विशेषज्ञों में से एक हैं। वे सात पुस्तकों की पुरस्कृत लेखिका भी हैं जिनमें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुत लोकप्रिय पुस्तकें ‘द इंटेंशन एक्सपेरिमेंट’, ‘द फ़ील्ड’, ‘द बॉन्ड’ और ‘द पॉवर ऑफ़ एट’ शामिल हैं।

पूर्णिमा रामकृष्णन के साथ साक्षात्कार के इस दूसरे भाग मेंलिन संकल्प और उपचार में आध्यात्मिकता की भूमिकाहमारे अस्तित्व पर परस्पर संबद्धता के प्रभाव और संकल्प क्रांति के बारे में बात कर रही हैं।

 

प्र. - संकल्प में और उपचार में आध्यात्मिकता की क्या भूमिका है? क्या आप इसे प्रक्रिया के एक आवश्यक भाग के तौर पर देखती हैं या यह प्रतिभागियों का एक व्यक्तिगत पहलू है?

हमारे कार्य में आध्यात्मिकता की प्रमुख भूमिका है जो सामूहिक संकल्प से संबंधित है। मेरा बहुत सा काम छोटे समूहों पर केंद्रित रहता है जिनमें मैं ‘पावर ऑफ़ एट’ (आठ की शक्ति) सिद्धांत का उपयोग करती हूँ। वर्ष 2008 में, मैं संकल्प-प्रयोगों में जो सीख रही थी उसे, मैं छोटे समूहों में करने लगी जिनकी सदस्य संख्या आठ के लगभग थी।

मैंने वर्ष 2008 में शिकागो में हुई एक कार्यशाला में सबसे पहले इसका प्रयोग किया था। और तब संकल्प प्रयोगों से मुझे केवल इतनी उम्मीद थी कि इससे लोगों को अच्छा महसूस होगा, जैसे कि पीठ पर मालिश कराने से आराम मिलता है। मैंने लोगों के समूह बनाए और उनसे समूह के एक सदस्य की स्वास्थ्य संबंधी समस्या को लेकर संकल्प लेने यानी केंद्रित विचार भेजने को कहा और फिर अगले दिन उस व्यक्ति को अपना हाल बताने के लिए कहा। मुझे उनसे केवल इतनी ही उम्मीद थी कि वे कहेंगे, “मैं थोड़ा बेहतर महसूस कर रहा हूँ,” लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं कहा। समूह की एक महिला जो घुटने में आर्थराइटिस के कारण लंगड़ाकर चलती थी, उस दिन सामान्य चाल चल रही थी। एक अन्य अवसाद से पीड़ित महिला को लगा जैसे उसका अवसाद चला गया हो। एक महिला को, जिसे आँत में तकलीफ़ थी, उसे आराम महसूस हुआ। इसी तरह एक व्यक्ति को मोतियाबिंद था और उसे पहले से 80% बेहतर महसूस हो रहा था। इन परिणामों से मैं आश्चर्यचकित थी और इसलिए मैंने ये प्रयास जारी रखे। अब तक मैंने हज़ारों लोगों के साथ यह प्रयोग किया है और हर बार लोगों के स्वास्थ्य पर इसके अद्भुत परिणाम पाए हैं।

इसका एक पहलू परोपकारिता भी है। जब आप परोपकारिता के विज्ञान का अध्ययन करते हैं तो पाते हैं कि यह एक बुलेटप्रूफ जैकेट की तरह कार्य करता है। जो लोग बिना अपने लाभ की आशा के दूसरों की सेवा करते हैं, वे न सिर्फ़ दीर्घ आयु प्राप्त करते हैं बल्कि अधिक स्वस्थ व खुशहाल जीवन जीते हैं। इस बारे में वैज्ञानिक आँकड़े एकदम स्पष्ट हैं। यदि आप बीमार हैं और उसी समस्या से ग्रस्त किसी अन्य व्यक्ति की मदद करते हैं तो इस बात की पूरी संभावना है कि आप स्वयं पहले से बेहतर हो जाएँगे।

इससे संबंधित सबसे प्रभावशाली अध्ययन में दो समूहों के प्रतिरक्षा प्रणाली गुणांकों का अध्ययन किया गया। वैज्ञानिकों ने एक समूह में उन लोगों को रखा जो अपने सपनों को पूरा कर पा रहे थे और उस समूह को ‘आनंद चाहने वाले’ कहा। उनके पास बहुत पैसा था। वे मनचाहे सैर-सपाटे पर जाते, सबसे अच्छे रेस्तराँ में खाते थे आदि। वैज्ञानिकों को उम्मीद थी कि इन लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली एकदम स्वस्थ होगी लेकिन वे हैरान थे कि ऐसा नहीं था। इन लोगों का प्रतिरक्षा प्रणाली गुणांक बहुत खराब था। इन लोगों को मधुमेह, अल्ज़ाइमर, हृदयाघात, लकवा व अन्य अपक्षयी बीमारियाँ होने की पूर्ण संभावना थी। ऐसे लोगों का जीवन कभी भी समाप्त हो सकता था। दूसरे समूह के लोग समृद्ध तो नहीं थे लेकिन वे सेवाभाव का जीवन जी रहे थे। उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली बहुत मज़बूत थी। उनके जीवन के लंबा होने की पूरी संभावना थी। इस बात ने मुझे परोपकारिता और सेवा की शक्ति के प्रति सबसे ज़्यादा विश्वास दिलाया। यही मेरे ‘पावर ऑफ़ एट’ समूह की मुख्य बात है।

यहाँ इससे संबंधित एक दिलचस्प बात है। आपका समूह आपके लिए संकल्प करता है और आप दूसरों के लिए संकल्प करते हैं। मैंने यह बार-बार अनुभव किया है कि स्वयं को स्वस्थ रखने का यही नुस्खा है। मेरे पास तीन लोग ऐसे आए थे जो संकल्प शक्ति के प्रभाव से व्हीलचेयर को छोड़ सके। मेरे पास लोरी नाम की एक महिला आई थी जिसकी दोनों आँखों के रेटिना में खराबी थी और उसके कारण उसकी आँखों की ज्योति कम होती जा रही थी। उसके डॉक्टर ने कह दिया था कि वे उसके लिए कुछ नहीं कर सकते। तब उसके समूह ने उसके लिए संकल्प शक्ति का प्रयोग किया। उसने अपनी आँखों के पीछे बहुत ऊर्जा महसूस की। कुछ सप्ताह के बाद वह अपने डॉक्टर के पास गई और डॉक्टर ने उससे कहा कि उसका रेटिना अब बिलकुल स्वस्थ है और उसकी दृष्टि क्षमता अब 20-20 है।

इस तरह से लाभ पाने वाली वह अकेली नहीं है। लीज़ा नाम की एक और महिला थी जो जन्मजात लिवर की बीमारी से ग्रस्त थी। उसके लिवर में घाव था और तिल्ली में सूजन थी। लिवर प्रत्यारोपण (transplant) कराना ही उसका इलाज था। उसने ‘पॉवर ऑफ़ एट’ का एक सत्र किया जिसके बाद उसने अपने शरीर के चारों तरफ़ बहुत सारी ऊर्जा महसूस की। फिर कुछ माह के पश्चात उसने दो लिवर विशेषज्ञों को दिखाया। उन्होंने उससे कहा कि उसका लिवर व तिल्ली बिलकुल ठीक थे। सारे घाव, सारी सूजन पूरी तरह से खत्म हो चुकी थी। मैंने ऐसा बार-बार होते देखा है, यहाँ तक कि कुछ लोगों ने चौथी स्टेज के केंसर को भी हराया है।

आध्यात्मिकता और परोपकारिता पर वापस चलते हैं। जब लोग कहीं अटक जाते हैं तो मैं सदैव कहती हूँ, “स्वयं को भूल जाओ, किसी दूसरे के लिए एक संकल्प लो और फिर देखो क्या होता है।” हर बार यह एक बदलाव लाता है। एंडी नाम की एक महिला को कुछ वित्तीय परेशानी थी। उसका तलाक होने जा रहा था और उसे पैसों की ज़रूरत थी। उसके दो छोटे बच्चे थे। उसने अपना कारोबार बेच दिया था और उसे दूसरा काम मिल नहीं रहा था। वह अपने ‘पॉवर ऑफ़ एट’ के समूह के साथ अलग-अलग प्रयास कर रही थी। अंततः मैंने उससे कहा, “एंडी, तुम स्वयं को भूल जाओ। इस युवक के लिए संकल्प लो।” वह एक ऐसा युवक था जिसने 40 फ़ीट ऊँचे भवन से ज़मीन पर कूदकर आत्महत्या करने की कोशिश की थी। डॉक्टरों को उसके जीवित रहने की उम्मीद नहीं थी। उसके शरीर की हड्डियाँ टूट गई थीं, नसें, मस्तिष्क, सब कुछ क्षतिग्रस्त हो गया था यानी सब कुछ बुरे हाल में था। एंडी और बाकी की ‘पॉवर ऑफ़ एट’ मास्टर क्लास ने लगातार तीन रविवार को उस युवक के लिए संकल्प शक्ति का प्रयोग किया। हमें उस युवक के माता-पिता से यह जानकारी प्राप्त हुई कि हर बार हमारे संकल्प लेने पर उसके शरीर में प्रतिक्रिया हुई। वह बहुत जल्दी स्वस्थ होकर अस्पताल से बाहर आ गया।


“ स्वयं को भूल जाओकिसी दूसरे के लिए एक संकल्प लो और फिर देखो क्या होता है।” हर बार यह एक बदलाव लाता है।


इस दौरान एंडी के साथ जो हुआ वह तो और भी दिलचस्प था। जैसे ही उसने उस युवक लूक के लिए संकल्प लेना शुरू किया तो अगले ही सप्ताह उसे उसकी पसंदीदा नौकरी के प्रस्ताव का संदेश आ गया। मैंने यह बार-बार देखा है कि जब आप किसी और के लिए कुछ करते हो तो ब्रह्मांड आपको पुरस्कृत करता है। इसलिए आध्यात्मिकता मेरे काम में प्रमुख है।

 

प्र. - वाह! इस बात ने सच में मेरे दिल को छू लिया है। आपने अपनी पुस्तक ‘द पॉवर ऑफ़ एट’ में इन छोटे संकल्प समूहों के प्रभाव को रेखांकित किया है। वह क्या है जो आठ के अंक को इतना प्रभावपूर्ण और अनोखा बनाता है? और यह किस तरह से काम करता है? यह समूह की गतिशीलता के कारण है या यह ऊर्जा का मामला है?

इसका आठ होना ज़रूरी नहीं है। यह तब ‘पॉवर ऑफ़ एट’ हो गया जब मैं यह चर्चा कर रही थी कि काम को एक कार्यशाला में कैसे सीमित करना है। मैं अपने पति और एक कर्मचारी के साथ थी और मैंने कहा, “मैं लोगों को लगभग आठ के समूह में रख सकती हूँ और उन्हें समूह के एक सदस्य के स्वास्थ्य की बहाली के लिए संकल्प लेने को कह सकती हूँ।” मेरे पति, जो कि हेडलाइन बहुत अच्छा लिखते हैं, ने कहा, “मुझे यह अच्छा लगा - पॉवर ऑफ़ एट।” इस तरह से यह नाम बन गया।

समय के साथ, मैंने देखा कि यह छह, दस या बारह लोगों के समूह में भी कारगर है। मैं आमतौर पर लोगों से कहती हूँ कि समूह में पाँच से कम लोग न रहें क्योंकि यह फिर वास्तव में समूह नहीं रहेगा और 12 से अधिक भी न हों क्योंकि तब आपको मौका नहीं मिल पाएगा।

 

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इसके अलावा, यह अंक ऐसा है जो न तो बहुत बड़ा है और न ही बहुत छोटा। विभिन्न संस्कृतियों में इसके साथ विभिन्न अर्थ जुड़े हुए हैं। चीनी सोचते है कि यह अच्छे भाग्य का सूचक है। यह अनंत (infinity) का खड़ा चिह्न है। और इससे संबंधित बहुत सारी पवित्र ज्यामिति भी हैं। यूँ तो यह संयोग से ही चुन लिया गया था लेकिन हो सकता है कि यह मात्र संयोग न हो। हो सकता है कि यह शानदार समक्रमिकता हो।

आपके प्रश्न का दूसरा भाग यह था कि यह ऊर्जा किस प्रकार से कार्य करती है। इसके कारगर होने के कई कारण हैं। पहला, संकल्प काम करता है। सामूहिक संकल्प प्रभाव को कई गुना बड़ा देता है। यह छोटे समूहों में भी काम करता है और ज़्यादा बड़ा समूह होने का कोई अतिरिक्त लाभ नहीं है। समूह में संकल्प काम करता है चाहे वह आठ लोगों का हो या अस्सी लोगों का। हमारे विचार दूसरी चीज़ों को प्रभावित करते हैं और एक समूह में लिए गए विचारों का प्रभाव कई गुना बड़ जाता है।

दूसरा, जब लोग एक साथ होते हैं चाहे वे इंटरनेट पर ही क्यों न हों, समूहों का एक उन्नत करने वाला प्रभाव होता है। प्रसिद्ध फ़्रेंच समाजविज्ञानी, एमिल डुकाइम, लोगों के समूह में मिलने को सामूहिक उत्साह कहते हैं। समूह हमें उन्नत करते हैं और इस बात का बहुत प्रभाव पड़ता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि परोपकारिता का स्वास्थ्यवर्धक प्रभाव होता है। हम एक-दूसरे को देने के लिए पैदा हुए हैं। हम जुड़ने और संबद्ध होने के लिए पैदा हुए हैं और यह हमारे लिए उतना ही आवश्यक है जितना साँस लेना। मैंने अपनी पुस्तक ‘द बॉन्ड’ में इसके बारे में विस्तार से लिखा है। मूल रूप से हम जनजातीय हैं, हमारी प्रवृत्ति अपने समाज से जुड़े रहने की है। यह बहुत ही प्रभावपूर्ण है।


मैंने यह बार-बार देखा है कि जब आप किसी और के लिए कुछ करते हो तो ब्रह्मांड आपको पुरस्कृत करता है। इसलिए आध्यात्मिकता मेरे काम में प्रमुख है।


अंत में, सबसे बड़ा कारण है - एकात्मकता। जब भी लोग संकल्प के प्रयोगों या ‘पॉवर ऑफ़ एट’ के समूहों में होते हैं तब इसके कारण बदली हुई अवस्थाओं के बारे में उन्होंने बताया है। मैंने लोगों का सर्वेक्षण किया है और वे कहते हैं कि उन्होंने महसूस किया है कि वे किसी उच्चतर नेटवर्क का हिस्सा हैं। उदाहरणार्थ, लोगों ने अपने-अपने अनुभव बताए, जैसे “मैं बेतहाशा रो रहा था,” “मेरी बाँहों में रोंगटे खड़े हो रहे थे,” “मुझे ऐसा लग रहा था मानो मैं स्टारट्रेक की ऊर्जा किरण के अंदर था।” उन्होंने यह भी कहा कि कुछ बहुत ही अजीब हो रहा था।

इसलिए मैं इन चीज़ों के बारे में जानना चाहती थी। यह मेरा सौभाग्य था कि मुझे डॉ. स्टेफ़नी सलिवन के साथ काम करने का मौका मिला जो विश्व के सबसे बड़े व प्रतिष्ठित काइरोप्रैक्टिक विश्वविद्यालय, लाइफ़ यूनिवर्सिटी में तंत्रिका वैज्ञानिक हैं। डॉ. सलिवन और मैंने एक अध्ययन कार्यक्रम तैयार किया जिसमें स्वयंसेवी विद्यार्थियों के सात समूहों ने ‘पॉवर ऑफ़ एट’ के समूह के रूप में काम किया। ये सभी वे लोग थे जिन्होंने न तो कभी ध्यान किया था और न ही ‘पॉवर ऑफ़ एट’ का काम किया था। हमने समूह के संकल्प भेजने वाले पर एक ई.ई.जी. कैप लगाई और उसके मस्तिष्क में जो कुछ भी हुआ उसे मापा। हमने संकल्प के लाभार्थी से भी जानकारी एकत्र की। समूह के प्रत्येक लाभार्थी ने बताया कि उसके दर्द में कमी आई या दर्द समाप्त हो गया। समूह में हमेशा ऐसे लोग होते थे जिनकी स्थितियाँ दर्दभरी थीं ।

 

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हम ई.ई.जी. के परिणामों से अचंभित थे। भेजनेवाले की मस्तिष्क तरंगों के सूचकांकों को देखकर यह पता चला कि उनके मस्तिष्क के वे हिस्से जो हमें दूसरों से अलग महसूस कराते हैं, यानी पार्श्विक पालि (parietal lobes) और शंख पालि (temporal lobes) की गतिविधि कम हो गई थी। मस्तिष्क के ये दोनों हिस्से हमें किसी भी स्थान में चलने में मदद करते हैं; इनकी गतिविधि कम होने से परस्पर संबद्धता का एहसास होता है। दाहिने ललाट खंड (frontal lobes), जो चिंता, आशंका और नकारात्मकता महसूस कराते हैं, की गतिविधि भी कम पाई गई। उनके मस्तिष्क तरंगों के सूचकांक लगभग उन सूचकांकों के समान थे जो डॉ. एंड्रयू न्यूबर्ग ने उन लोगों के दर्ज किए थे जो परमानंदपूर्ण एकात्मकता की दशा में थे - जैसे गहन प्रार्थना में डूबे हुए बौद्ध भिक्षु और तल्लीनता से जप करते सूफ़ी संत। लेकिन यहाँ एक बात महत्वपूर्ण है - एक बौद्ध भिक्षु बनने के लिए वर्षों का अभ्यास लगता है और सूफ़ी नृत्य करने के लिए घंटों की प्रारंभिक तैयारी लगती है। हमारे लोगों ने सिर्फ़ 10 मिनट के लिए एक संकल्प लिया जैसा कि सभी ‘पॉवर ऑफ़ एट’ के समूह करते हैं। वे एकदम नौसिखिए थे फिर भी उनकी मस्तिष्क तरंगों ने यह प्रदर्शित किया कि वे पहले ही एक अद्भुत परिवर्तित मनःस्थिति को प्राप्त करने की दिशा में तीव्रता से आगे बढ़ रहे थे। दरअसल वे एकात्मकता का अनुभव कर रहे थे।

मुझे लगता है कि यही सबसे बड़ा रहस्य है। हम सामान्यतः अपने जीवन में एकात्मकता का अनुभव नहीं करते हैं। हर कोई इसके बारे में बात करता है और मैंने भी इसके बारे में लिखा है - हम सब एक विशाल ऊर्जा क्षेत्र, एक शून्य बिंदु क्षेत्र, का एक हिस्सा हैं। लेकिन हम जीवन का इस प्रकार अनुभव नहीं करते। हम जीवन का अनुभव अलगाव में करते हैं। एक अकेले ग्रह पर रह रहे अकेले छोटे-छोटे अस्तित्वों के रूप में हम अपने जीवन का अनुभव करते हैं। लेकिन संकल्प के उन दस मिनटों के दौरान हम ऐसा अकेलापन महसूस नहीं करते और मुझे लगता है कि यही इसकी एक महत्वपूर्ण बात है जिसके कारण यह इतने प्रभावशाली तरीके से काम करता है और हम स्वस्थ होने लगते हैं।

प्र. - धन्यवाद। यह सुनना भी बहुत प्रभावशाली था। आपको ऐसे समाज से क्या उम्मीदें हैं जो इन विचारों को समझ सकता हो और परस्पर संबद्धता प्राप्त करने के लिए काम कर सकता हो?

यह सिर्फ़ उम्मीद रखने से ज़्यादा है। मैं एक संकल्प क्रांति शुरू कर रही हूँ। इसका अर्थ यह है कि जब मैं अपने चारों तरफ़ के संसार की हालत देखती हूँ तो मुझे हमारी पूरी व्यवस्था ढहती नज़र आती है। हमारे नेताओं को नहीं पता कि चुनौतियों का समाधान कैसे किया जाए। जैसा जीवन हम जी रहे हैं वह हमारे दोषपूर्ण दृष्टिकोण पर आधारित है। हमारा दृष्टिकोण एक पुरातन परंपरा व एक पुराने पड़ चुके वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित है जिसमें हम सबको अलग-अलग इकाई माना गया था। इसके अनुसार सभी चीज़ें अलग-अलग हैं, जैसे एक अच्छा व्यवहार करने वाली इकाई जो निर्धारित समय और स्थान के अनुसार कार्य करती है – यह न्यूटन का पुराना सिद्धांत है। आज इस सिद्धांत को क्वांटम भौतिकी और चीज़ों एवं मनुष्यों की परस्पर संबद्धता व परस्पर निर्भरता की जानकारी के द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया है क्योंकि वे सब वास्तव में ऊर्जा तंत्र ही हैं। और इसीलिए मुझे लगता है कि हमें भिन्न तरीके से एवं परस्पर जुड़ाव बनाकर जीवन जीना सीखना होगा।

 

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सबसे बड़ा कारण है - एकात्मकता। जब भी लोग संकल्प के प्रयोगों या ‘पॉवर ऑफ़ एट’ के समूहों में होते हैं तब इसके कारण बदली हुई अवस्थाओं के बारे में उन्होंने बताया है। मैंने लोगों का सर्वेक्षण किया है और वे कहते हैं कि उन्होंने महसूस किया है कि वे किसी उच्चतर नेटवर्क का हिस्सा हैं।


पहले मैं यह सोचती थी कि मुझे बहुत सारे परिवर्तनकारियों की आवश्यकता है और फिर मैंने अनुभव किया कि मेरे पास बहुत सारे परिवर्तनकारी पहले से ही हैं। और ये ‘पावर ऑफ़ एट’ समूह हैं। दुनिया भर में ऐसे हज़ारों शक्ति समूह कार्य कर रहे हैं। क्या ही अच्छा होगा यदि मैं उन सबको एक साथ ला पाऊँ और वे अपने आस-पास के वातावरण को पूरी तरह बदलना आरंभ कर दें। इससे क्या होगा? यह लोगों को समझाने की प्रक्रिया है कि आठ लोगों का छोटा-सा समूह दुनिया बदल सकता है, समाज को बदल सकता है। यह आपको और आपके जीवन को बदल सकता है। यह आपके समूह के सारे लोगों का जीवन बदल सकता है। और सब ‘पावर ऑफ़ एट’ समूह साथ में काम करके छोटे और बड़े परिवर्तन ला सकते हैं।

अब अंतिम बात जिस पर हमें विचार करना चाहिए वह है, इस तरह की गतिविधि का तरंगीय प्रभाव। मैंने गाज़ा के लिए लगभग 30,000 लोगों के साथ तीन संकल्प प्रयोग किए थे। हमने युद्ध विराम और बंदियों की रिहाई के लिए एक संकल्प शक्ति का प्रयोग किया था और एकमात्र युद्ध विराम ठीक इस संकल्प के बाद हुआ। क्या यह हमने किया था? पता नहीं। मुख्य बात यह है कि हम इसके तरंग प्रभाव के बारे में सोच रहे थे। इन 30,000 लोगों का एक सामाजिक नेटवर्क है जिसमें प्रत्येक के साथ औसतन लगभग 150 लोग जुड़े हुए हैं।

हार्वर्ड के एक समाज विज्ञानी, निकोलस ए. क्रिस्टाकिस द्वारा किए गए शोध के अनुसार हमारे सद्गुणों या दुर्गुणों का तंरगीय प्रभाव सामाजिक संबंधों पर पड़ता है। खुशमिज़ाज लोगों के मित्र भी खुशमिज़ाज होंगे, इसलिए नहीं कि उन्होंने स्वयं खुशमिज़ाज लोग चुनें हैं, बल्कि यह खुशी के स्वाभाविक फैलाव के कारण है। ऐसा ही अकेलेपन के दुर्गुण के साथ होता है। उन्होंने यह भी पाया कि अच्छे काम, जैसे दूसरों के प्रति दयालुता, किसी के लिए सकारात्मक संकल्प करना, अजनबियों के लिए प्रेम भाव रखना, सामाजिक तंत्र में भी तरंगित प्रभाव पैदा करते हैं। उदाहरण के लिए, यदि नवीन प्रिया के प्रति दयालु है तो संभवतः प्रिया अभिजीत के प्रति दयालु होगी, अभिजीत रमेश के प्रति दयालु होगा, रमेश हर्ष के प्रति उतना दयालु होगा और इस प्रकार यह सिलसिला जारी रहता है। यह बढ़ते-बढ़ते उनके सामाजिक तंत्र में फैलता जाता है। अंततः यह बहुत अधिक बढ़ जाता है। मैंने यह पाया कि यदि प्रत्येक व्यक्ति के सामाजिक तंत्र में औसतन 150 लोग हैं, तो कुछ ही समय में वे 48 लाख लोगों तक पहुँच जाएँगे। यह इज़राइल की आधी जनसंख्या के बराबर है।


आपका समूह आपके लिए संकल्प करता है और आप दूसरों के लिए संकल्प करते हैं। मैंने यह बार-बार अनुभव किया है कि स्वयं को स्वस्थ रखने का यही नुस्खा है।


अंतत: पृथ्वी के सभी लोग शामिल हो जाएँगे। वास्तव में इसी में मेरी दिलचस्पी है – परिवर्तन की तरंग, प्रेम व अहिंसा की तरंग और मेरा मानना है कि छोटे समूह इसे हासिल कर सकते हैं।

हर बड़े सामाजिक आंदोलन के पीछे छोटे समूह ही रहें हैं। गाँधी जी ने भारत को ब्रिटिश शासन से आज़ाद कराया। इसके लिए वे छोटे समुदायों में गए और उन्हें चरखा दिया ताकि उन्हें ब्रिटेन के कपड़ा उद्योग पर निर्भर नहीं रहना पड़े। मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने लोगों के एक छोटे से समूह के साथ नागरिक अधिकारों का आंदोलन शुरू किया। हमेशा से ऐसा ही रहा है। मुझे इन समूहों से बहुत ज़्यादा उम्मीद है और मेरे पास इनके लिए योजनाएँ हैं ताकि ये एक बेहतर विश्व बनाने के लिए बदलाव लाने वाले बनें जहाँ हम स्वयं को और एक-दूसरे को स्वस्थ करने के लिए इस असाधारण संकल्प शक्ति का उपयोग कर सकें।

प्र. - यदि आपके पास असीमित संसाधन और लोगों की असीमित उपलब्धता होती तो आप कौन सा संकल्प प्रयोग करने का सपना पूरा करतीं?

यह लगभग वही होता जो हम 1 फ़रवरी से शुरू करने जा रहे हैं। हम यह मापने जा रहे हैं कि जब लोग एक संकल्प प्रयोग में भाग लेते हैं तो उन लोगों पर क्या प्रभाव होता है। मैं ठीक-ठीक जानना चाहती हूँ कि यह इतना शक्तिशाली क्यों है। मैं इसे हर तरह से मापना चाहती हूँ। निस्संदेह मैं इन संकल्प प्रयोगों से यूक्रेन, इज़राइल, गाज़ा, लेबनान जैसे युद्ध रोकना चाहती हूँ। मैं यह करने के लिए पूरे विश्व को जगाना चाहती हूँ। मैं इसी के लिए प्रयास कर रही हूँ।


पहले मैं यह सोचती थी कि मुझे बहुत सारे परिवर्तनकारियों की आवश्यकता है और फिर मैंने अनुभव किया कि मेरे पास बहुत सारे परिवर्तनकारी पहले से ही हैं। और ये ‘पावर ऑफ़ एट’ समूह हैं। दुनिया भर में ऐसे हज़ारों शक्ति समूह कार्य कर रहे हैं।


 

प्र. - हार्टफुलनेस पत्रिका के पाठक व्यक्तिगत विकास और अध्यात्म की यात्रा पर हैं। आप उन्हें अपनी मानसिकता में क्या बदलाव करने का सुझाव देना चाहेंगी?

संकल्प प्रयोग के लिए आपको वर्षों का अभ्यास नहीं चाहिए। आपको घंटों की प्रारंभिक तैयारी भी नहीं चाहिए। आपको बस एक छोटा-सा समूह और एक सामूहिक संकल्प चाहिए और समझो आपको दुनिया को बदलने का साधन मिल गया।

बहुत-बहुत धन्यवाद।


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लिन चेतना के नवविज्ञान के क्षेत्र में विशेषज्ञ, एक पुरस्कृत लेखिका... और पढ़ें

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