प्रिय दाजी,

जब हम एकसाथ काम करने में ही इतनी ज़्यादा कठिनाई अनुभव करते हैं तब हम एकता कैसे विकसित करें ?


प्रिय ईवा,

मुझे खुशी है कि आपको यूरोप के सबसे प्रतिष्ठित मैनेजमेंट स्कूल में प्रवेश मिल गया है। चाहे आप कॉर्पोरेट जगत में हों या आध्यात्मिक संस्था में, परस्पर सामंजस्य, विश्वास और सम्मान सहित एक-दूसरे के साथ काम करने की योग्यता सबसे अधिक मायने रखती है।

क्या ये गुण शैक्षणिक जगत का विषय बन सकते हैं? ज़्यादा से ज़्यादा हम लोगों को यह बता सकते हैं कि अपने व्यक्तित्व के विभिन्न गुणों को एकीकृत करना और अनावश्यक नकारात्मक प्रवृत्तियों को मिटाना कितना महत्वपूर्ण है। यह ऊँचा लक्ष्य सहज रूप से प्राप्त हो सकता है जब हम बाबूजी के बताए हुए दस नियमों का पालन करें। ध्यान के अभ्यास सहित ये सभी सिद्धांत हमारी चेतना के विकास के साथ-साथ हमारे भीतर शांति और सामंजस्य पैदा करते हैं।

शांति और सामंजस्य विकसित होकर हमारे जीवन का चित्र फलक (कैनवास) बन जाते हैं। हमारा यह एकीकृत ‘स्व’ दूसरों के साथ सहज ही समन्वित हो जाता है। जिन लोगों के अपने व्यक्तित्व में समन्वय नहीं होता, उनसे एकता की अपेक्षा नहीं की जा सकती।

निचले चक्रों के प्रबल प्रभाव के कारण व्यक्ति में लड़ने, विवाद करने और दूसरों पर हावी होने की प्रवृत्ति आती है। यह हृदय चक्र, यानी अनाहत चक्र, है जो हमें मनुष्य बनाता है। जब यह विकसित व सक्रिय होता है तब हममें कई गुणों का आविर्भाव होता है, जैसे उदारता, दयालुता, करुणा, साहस आदि। हमारी विवेकशील बुद्धि प्रखर हो जाती है।

एक सामंजस्यपूर्ण वातावरण में हलचल पैदा करने की प्रवृत्ति ऐसी होती है जैसे कोई शेर घात लगाकर हमला करता है। कई लोगों का अभिव्यक्त करने का तरीका इसी श्रेणी का होता है। बाह्य व्यवहार, शब्द और क्रियाएँ किसी भी व्यक्ति के वास्तविक आध्यात्मिक आयाम को प्रकट कर देती हैं। विभिन्न चक्रों के बीच यात्रा में हमेशा बदलाव होता रहता है। एक दिन मैं पूरी तरह तीसरे चक्र की दशा में लय हो सकता हूँ और कुछ ही घंटों के बाद नौवें चक्र की दशा प्रबल हो सकती है। मालिक की कृपा से आप शायद बारहवें चक्र पर हों और आप उस चक्र के वातावरण के गुण प्रदर्शित कर रहे हों लेकिन लापरवाही से आप भयग्रस्त होकर अपनी लयावस्था को चौथे चक्र पर उतार लेते हैं। इसलिए अपनी दशा के प्रति हमें हर समय सावधान रहने की ज़रूरत है।

और अंत में, जब हमारे बीच वास्तव में एकता होती है तो हममें सहजता भी होनी चाहिए। किसी को हमें इसकी ज़रूरत के बारे में बताने की या इसके लिए प्रेरित करने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। अपने आंतरिक भाव को स्वत: अभिव्यक्त होने दें। इसके लिए मार्गदर्शन देने वाली शक्ति हमेशा अपने हृदय की आवाज़ ही होती है। योग के क्षेत्र में प्राणाहुति के साथ ध्यान करना परिवर्तनकारी हो सकता है।

आशा है जल्द ही आप सबसे मुलाकात होगी।

प्रेम और आदर सहित,

कमलेश


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दाजी

दाजी हार्टफुलनेसके मार्गदर्शक

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