जोश बुलरिस 'द बुद्ध प्रोजेक्ट' पर काम करने वाले पेशेवर फ़ोटोग्राफ़र हैं। यह परियोजना दुनिया भर में बुद्ध के अद्वितीय चित्रों की तस्वीरें लेने की एक पहल है। इस छायाचित्र निबंध में जोश इतिहास, अध्यात्म, कला एवं संस्कृति में बुद्ध के प्रभावों का वर्णन कर रहे हैं जो बौद्ध धर्म की सार्वभौमिकता का प्रमाण है।
बौद्ध धर्म दुनिया के प्रमुख धर्मों में से एक है। इसके समृद्ध और विविधतापूर्ण इतिहास की अवधि दो सहस्राब्दियों से भी अधिक समय की रही है। इसका आरंभ छठी शताब्दी ईसा पूर्व भारत में हुआ जब सिद्धार्थ गौतम, अर्थात ऐतिहासिक बुद्ध, ने अपनी शिक्षाओं का प्रचार किया था। जैसे-जैसे बौद्ध धर्म पूरे एशिया महाद्वीप में फैलता गया, इसमें अनेक अद्भुत रूपांतरण होते गए। यह जिस भी क्षेत्र में गया, वहाँ की समृद्ध सांस्कृतिक, कलात्मक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि के अनुकूल बदलता गया। इस रूपांतरण की सबसे प्रत्यक्ष अभिव्यंजना है पूरे एशिया में पाई जाने वाली बुद्ध की विभिन्न प्रकार की प्रतिमाएँ। ये प्रतिमाएँ न केवल बौद्ध धर्म का सार प्रस्तुत करती हैं बल्कि जिन भी देशों में वे हैं, वहाँ की अद्वितीय कलात्मक अभिव्यक्ति, ऐतिहासिक प्रभाव एवं सांस्कृतिक विविधताओं को भी मूर्त रूप प्रदान करती हैं।
सांस्कृतिक रूपांतरण
पूरे एशिया में बौद्ध धर्म का यह सफ़र मात्र धार्मिक विस्तार ही नहीं था बल्कि एक गहरा सांस्कृतिक विलय था। जैसे-जैसे यह विभिन्न देशों में फैला, यह बहुत आसानी से स्थानीय रीति-रिवाज़ों, मान्यताओं एवं कलात्मक परंपराओं के साथ घुलता-मिलता गया। इसका परिणाम था विभिन्न प्रकार की विस्मयकारी बौद्ध प्रतिमाएँ जो प्रत्येक क्षेत्र की विशिष्ट सांस्कृतिक व कलात्मक समझ की प्रतीक हैं। चीन में बौद्ध प्रतिमाओं में विशिष्ट चीनी मुखाकृतियाँ व पारंपरिक परिधान देखने को मिल सकते हैं। जापान में उनमें जापानी सौंदर्य एवं बनावट के तत्व देखने को मिल सकते हैं जो बौद्ध धर्म व जापानी संस्कृति के बीच मौजूद सामंजस्य को दर्शाते हैं।
कलात्मक अभिव्यक्ति
जैसे-जैसे बौद्ध धर्म विभिन्न क्षेत्रों में जड़ें जमाने लगा, स्थानीय कलाकारों व शिल्पकारों ने अपने विशिष्ट दृष्टिकोण से बुद्ध को चित्रित किया। इसी वजह से उनकी मुद्राओं, अभिव्यक्तियों और परिधान में इतनी विविधताएँ हैं। इसके अतिरिक्त, विभिन्न संस्कृतियाँ बुद्ध के जीवन के विशिष्ट पहलुओं पर ज़ोर देती हैं, जैसे एक शिक्षक या एक उपचारक के रूप में उनकी भूमिका। इसी वजह से भी उनके इतने विभिन्न प्रकार के निरूपण हैं। इस प्रकार बुद्ध की प्रतिमाएँ मात्र धार्मिक प्रतीक ही नहीं बल्कि वे कलात्मक रूप से भी उत्कृष्ट कृतियाँ हैं जो मानव जाति की असीमित रचनात्मकता को प्रदर्शित करती हैं।
ये प्रतिमाएँ न केवल बौद्ध धर्म का सार प्रस्तुत करती हैं बल्कि जिन भी देशों में वे हैं, वहाँ की अद्वितीय
कलात्मक अभिव्यक्ति, ऐतिहासिक प्रभाव एवं सांस्कृतिक विविधताओं को भी मूर्त रूप प्रदान करती हैं।
प्रतीकात्मकता
बुद्ध की मूर्तियों में अनेक ऐसे प्रतीकात्मक तत्व हैं जो क्षेत्र के अनुसार सार्थक हैं। श्री लंका में वे अक्सर बुद्ध के सिर के ऊपर एक विशिष्ट लौ दर्शाते हैं जो उनके ज्ञान व ज्ञानोदय का प्रतीक है। दक्षिण-पूर्वी एशिया में वे बुद्ध को अक्सर हाथ की अलग-अलग मुद्राओं के साथ दर्शाते हैं जिनका विशिष्ट अर्थ होता है। ये प्रतीक स्थानीय मान्यताओं पर आधारित हैं, प्रतिमाओं का आध्यात्मिक महत्व बढ़ाते हैं और उस संस्कृति के प्रति जुड़ाव को गहरा बनाते हैं जहाँ से वे उभरे हैं।
क्षेत्रीय प्रभाव
स्थानीय देवी-देवताओं और पौराणिक हस्तियों ने भी बुद्ध की प्रतिमाओं को प्रभावित किया है। समय के साथ ये हस्तियाँ बुद्ध की प्रतिमाओं के साथ पूर्णतय: घुल-मिल गई हैं और यही बात एशिया की बौद्ध कला की पृष्ठभूमि को समृद्ध बनाती है। कुछ जगहों पर शायद बुद्ध की प्रतिमाओं के साथ धार्मिक देवी-देवता को भी मिलाया गया है या फिर उन्हें उस क्षेत्र के अनुसार विशिष्ट भाव या लक्षण दिए गए हैं। इससे धार्मिक व सांस्कृतिक तत्वों का अनोखा मेल देखने को मिलता है।
स्थानीय भक्ति
जिस तरह से बुद्ध को पूजा जाता है, वह अलग-अलग बौद्ध परंपराओं में अलग-अलग हो सकता है। इस विभिन्नता का सीधा प्रभाव मूर्तियों में बुद्ध की अभिव्यक्ति पर पड़ा है। महायान बौद्ध परंपरा की तुलना में थेरवाद बौद्ध परंपरा में बुद्ध के जीवन के एक अलग पक्ष को अधिक महत्व दिया जाता है। पूजा विधि में विभिन्नताओं के कारण मूर्तियों में भी विभिन्नताएँ हैं जो स्वयं बौद्ध धर्म में ही विविध प्रकार की आध्यात्मिक पद्धतियों को दर्शाती हैं।
सामग्री एवं चित्रण
किसी क्षेत्र विशेष में उपलब्ध सामग्री और बौद्ध धर्म के किसी विशिष्ट मत से संबंधित प्रतीकात्मकता ने भी इन प्रतिमाओं को
अलग-अलग रूप दिए हैं। कुछ संस्कृतियों में उनके क्षेत्रों में प्रचुरता में उपलब्ध सामग्री का उपयोग किया गया है जिससे उनके रूप और प्रकृति में विभिन्नताएँ देखने को मिलती हैं। छवि-चित्रण में भी विभिन्नताएँ हैं जैसे थेरवाद बौद्ध परंपरा में बुद्ध को अधिक मानवीय रूप में दर्शाया जाता है जबकि महायान बौद्ध परंपरा में उनके अतिश्रेष्ठ या दिव्य लक्षणों पर ज़ोर दिया जाता है।
ऐतिहासिक प्रभाव
बुद्ध के कला-चित्रण में ऐतिहासिक घटनाओं और राजनीति ने भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इतिहास में जब भी अत्याचार का समय रहा है, खुलकर धार्मिक प्रतीकों को दिखाने से बचने के लिए बौद्ध कला में ज़्यादातर भावात्मक चित्रण किया गया। इन ऐतिहासिक प्रभावों ने बौद्ध प्रतिमाओं के विकास पर और विभिन्न संस्कृतियों व राजनीतिक संदर्भों में बौद्ध धर्म के रूपांतरण पर अपनी छाप छोड़ी है।
संस्कृतियों का विलय
अंतर-सांस्कृतिक आदान-प्रदान और रूपांतरण सबसे ज़्यादा ग्रीको-बौद्ध कलाकृतियों में देखने को मिलता है। इसे गांधार कला कहते हैं। ये कलाकृतियाँ उस समय उभर कर सामने आईं जब मध्य एशिया के यूनान प्रभावित क्षेत्रों और भारत के बौद्ध क्षेत्रों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान एवं दार्शनिक समन्वय हुआ। ये यूनानी-बैक्ट्रिया और भारत-यूनानी साम्राज्यों के काल में विशेषकर तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर पहली शताब्दी ईसा पूर्व के बीच हुआ।
वर्तमान पाकिस्तान व अफ़गानिस्तान के क्षेत्र में यूनानी एवं भारतीय संस्कृतियों के बीच आदान-प्रदान के कारण यूनानी-बौद्ध कला की उत्पत्ति हुई। सिकंदर महान की विजय से मध्य एशिया में यूनानी प्रभाव आया जो अंततः उस समय उस क्षेत्र में मौजूद बौद्ध परंपराओं के साथ घुल-मिल गया।
ग्रीको-बौद्ध कलाकृतियाँ अपनी विशिष्ट मिश्रित शैली के लिए जानी जाती हैं। उनमें अक्सर यूनानी कलाकृतियों की आदर्शवादी एवं प्रकृतिवादी शरीर रचना (anatomy) को बौद्ध कला की शांत व आध्यात्मिक अभिव्यक्ति के साथ मिलाकर प्रस्तुत किया जाता है।
चेहरा रंगाई की परंपरा
नेपाल बौद्ध प्रतिमाओं को अपने विशिष्ट व अनोखे तरीके से प्रस्तुत करने के लिए प्रसिद्ध है, विशेष रूप से चेहरे पर चमकीले व आकर्षक रंगों से रंगाई करने व जटिल बनावट के लिए। इससे उस पूरे क्षेत्र में पाई जाने वाली सांस्कृतिक व कलात्मक विविधता को बढ़ावा मिलता है। यह नेपाली प्रथा बौद्ध संसार में अध्यात्म एवं कला के बीच सक्रिय संबंध का एक और उदाहरण प्रस्तुत करती है।
वे हमें याद दिलाते हैं कि अध्यात्म और संस्कृति बहुत ही जटिल व सुंदर तरीके से आपस में गुथे हुए हैं
जो समय के साथ विकसित होते हुए मानवीय अभिव्यक्ति एवं मान्यताओं की एक समृद्ध पृष्ठभूमि बनाते हैं।
बुद्ध के विविध रूप
कला में बुद्ध के विभिन्न चेहरे बौद्ध धर्म की अनुकूलनशीलता व सार्वभौमिकता का प्रमाण हैं। वे हमें याद दिलाते हैं कि अध्यात्म और संस्कृति बहुत ही जटिल व सुंदर तरीके से आपस में गुथे हुए हैं जो समय के साथ विकसित होते हुए मानवीय अभिव्यक्ति एवं मान्यताओं की एक समृद्ध पृष्ठभूमि बनाते हैं। पूरे एशिया में मौजूद बौद्ध प्रतिमाएँ न केवल बौद्ध धर्म के सार को दर्शाती हैं बल्कि उन क्षेत्रों की सांस्कृतिक संपन्नता को भी प्रस्तुत करती हैं। इससे मानव-जाति की असीमित रचनात्मकता और इस प्राचीन परंपरा की अनुकूलनशीलता प्रदर्शित होती है।
फ़ोटोग्राफ़ी - जोश बुलरिस

जोश बुलरिस
जोश पेशेवर फ़ोटोग्राफ़र हैं जिन्होंंने फ़ोटोोग्राफ़ी की शिक्षा स्वयंं प्राप्त की थी। वे बुद्ध की मूर्तियों के मनोरम चित्रोंं के लिए जााने जााते हैं। उनके चित्रोंं ने कई किताबोंं और पत्रिकाओं के मुखपृष्ठ की शोभा बढ़ाई है। उनकी फ़ोटोग्राफ़ी कल... और पढ़ें