एना मोनार्डो अपने माता-पिता के पारंपरिक परिवार-निर्धारित विवाह (arranged marriage) और उनके अमेरिका में बसने तथा अपने परिवार को एक अच्छा जीवन प्रदान करने के लिए किए गए संघर्षों के बारे में बता रही हैं। इस बेबाक वृत्तांत में वे उन समस्याओं को उजागर कर रही हैं जिनका सामना बहुत से नए अप्रवासी करते हैं। साथ ही वे उन्हें युद्धग्रस्त यूरोप की बेड़ियों से मुक्त जीवन देने के लिए अपने माता-पिता के संघर्ष के प्रति आभार प्रकट कर रही हैं।
मैं अक्सर अपने छात्रों से कक्षा में एक लेखन गतिविधि करवाती थी - अपनी माँ के हाथों के बारे लिखें। दस मिनट की इस गतिविधि से लगभग हमेशा एक उपयोगी प्रालेख तैयार हो जाता था जो भावनात्मक जानकारियों से भरा होता था। लेकिन जितनी बार मैं इस गतिविधि के लिए अपने छात्रों के साथ रहती थी, मैं स्वयं इसे करने से बचती थी। अपनी माँ के हाथों की उस सच्चाई को मैं कागज़ पर लिखना नहीं चाहती थी - सूजे हुए, झिझकते और अनिश्चित कि क्या करना है। इसके बजाए उन दस मिनटों में मैं अपने पिता के हाथों के बारे में लिखती थी - बुद्धिमान, सक्षम, तराशी हुई उँगलियाँ और उनके नाखूनों की जड़ों में बनी सुंदर अर्धचंद्राकार आकृति। वे एक सर्जन थे। उनके हाथों की गतिविधियाँ आत्मविश्वास से भरी थीं जिससे मुझे सुरक्षा का अहसास होता था। इसके विपरीत मुझे अक्सर ऐसा लगता था कि मेरी माँ को मदद की ज़रूरत थी - उसी समय - और केवल मैं ही थी जिससे इस मदद की उम्मीद की जाती थी। मेरे जीवन में ऐसा समय भी आया जब मैं और मेरी माँ रोज़ाना बात करते थे। फिर भी, मैं उनसे कुछ दूरी बनाए रखने की पूरी कोशिश करती थी।
पंद्रह साल पहले जब मैंने ‘आफ़्टर इटली - ए फ़ैमिली मेमॉयर ऑफ़ अरेंज्ड मैरिज’ लिखना शुरू किया था तब मैं भावनात्मक रूप से लगभग वैसी ही स्थिति में थी। मैं कई सालों से इस पारिवारिक संस्मरण पर काम कर रही थी लेकिन वर्ष 2008 में मैं इस कार्य में जुट गई। हाल ही में मुझे उस समय की अपनी एक डायरी में यह प्रविष्टि मिली – “यह पारिवारिक संस्मरण लिखना मेरे जीवन की सबसे भयानक कहानी है।”
कुल मिलाकर हमारा परिवार एक सुखी परिवार था। लेकिन बचपन में मैं इस तथ्य से कतराती थी कि मेरे माता-पिता का विवाह परिवार द्वारा तय किया गया था। मुझे पता था कि मेरे इतालवी पिता ने वर्ष 1949 में मेरी इतालवी-अमेरिकी माँ से इसलिए शादी की थी ताकि वे दक्षिणी इटली से, जो द्वितीय विश्व युद्ध में तबाह हो गया था, अमेरिका में आकर आसानी से बस सकें। मैं जानती थी कि मेरे पिता छह भाई-बहनों वाले परिवार के मुखिया थे और उनका मानना था कि अगर वे अमेरिका में अपना चिकित्सीय व्यवसाय जमा लें तो वे अपने परिवार की बेहतर मदद कर सकेंगे। मुझे पता था कि मेरी माँ के माता-पिता उनकी शादी अपने पैतृक गाँव के किसी व्यक्ति से करना चाहते थे और साथ ही मेरी 18 वर्षीय माँ को 28 वर्षीय डॉक्टर बहुत ही आकर्षक लगे। हाँ, यह विवाह दोनों पक्षों के फ़ायदे को ध्यान में रखकर किया गया था लेकिन सबसे पहले यह एक प्रेम विवाह भी था।
इटली में एक आनंदपूर्ण कोर्टशिप (विवाह से पूर्व मिलना जुलना) के बाद जब दूल्हा यानी मेरे पिता अमेरिका पहुँचे तो वहाँ उन्हें नौकरी पाने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उन्हें मजबूरी में अपनी दुल्हन यानी मेरी माँ को उसके माता-पिता के पास छोड़ना पड़ा क्योंकि वे देश भर के विभिन्न अस्पतालों में काम करके परिवार के प्रति अपने कर्तव्य को पूरा करने की कोशिश कर रहे थे। उधर दुल्हन का एक अलग सपना था। उनके लिए विवाह का मतलब था कि वे दोनों एक ही थे और उनका पहला दायित्व एक-दूसरे के प्रति था। अतः वे परित्यक्त महसूस करती थीं। सबसे बुरा तो तब हुआ जब उनके दूल्हे और उनके पिता के बीच दहेज को लेकर बहस हुई। दहेज? पारंपरिक परिवार-निर्धारित विवाह के उस रिवाज़ ने उन्हें चौंका दिया। एक विवाहित जोड़े की छोटी-सी दुनिया में यह संस्कृतियों का टकराव था जिसके परिणामस्वरूप वे पाँच साल अलग रहे। समय के साथ मेरे माता-पिता ने सुलह कर ली। फिर मेरा और मेरे भाई का जन्म हुआ, लेकिन उनके अलग रहने के घाव कभी नहीं भरे।

मुझे हमेशा संदेह था कि मेरे माता-पिता के जीवन में कुछ अप्रिय घटनाएँ घटी हैं लेकिन मुझे तब तक कुछ भी पता नहीं था जब तक कि मैं लगभग 35 वर्ष की नहीं हो गई। मैं अपनी माँ के साथ छोटे से शहर, फ़्लोरिडा, में समुद्र तट पर बैठी थी जहाँ मेरी माँ और मेरे पिता सेवामुक्त होने के बाद आ बसे थे। मेरे पिता अनेक बीमारियों का शिकार हो चुके थे। मुझे सच में उम्मीद थी कि उम्र के इस मोड़ पर चालीस साल की शादी के बाद वे एक नई शुरुआत करने में कामयाब होंगे। लेकिन जैसे ही मेरी माँ अपनी आराम कुर्सी पर बैठीं और मैं अपने तौलिये पर, उन्होंने उन सभी बातों को दोहराना शुरू कर दिया कि किस तरह पिताजी उन्हें पहले से कहीं ज़्यादा परेशान कर रहे थे। वे पहले भी ये सभी शिकायतें कर चुकी थीं। लेकिन इस बार मैंने ज़ोर देकर पूछा, “आप हमेशा उनसे इतना नाराज़ क्यों रहती हैं?”
और फिर उन्होंने मुझे शादी के ठीक बाद के अलग रहने के उन पाँच सालों की हर बात बताई - पूरी कहानी। यह सब बताने के लिए मुझे 210 पन्नों का संस्मरण लिखना पड़ा। लेकिन उस रविवार को समुद्र तट पर माँ के साथ बिताए हुए समय की मुझे याद है जब मैं लहरों को गौर से देख रही थी और सोच रही थी, “मैं इस जानकारी का क्या करूँ?” जैसा कि अधिकांश जटिल घरेलू असहमतियों में होता है - दोनों पक्ष सही भी थे और साथ ही हर कोई दोषी भी था। मेरी माँ ने मुझसे कहा, “मैंने उस समय की एक डायरी लिखी थी और अब उसे मैं तुम्हारे लिए छोड़े जा रही हूँ। तुम उसे पढ़ना।”
चार साल बीत गए और मेरे पिता की मृत्यु हो गई। उसके सोलह साल बाद मेरी माँ भी चल बसीं। जब मुझे डायरी मिली थी तब मैं नाराज़ थी क्योंकि मुझे लगा कि उन्होंने उसे मुझ पर थोप दिया था। मुझे अपनी माँ की परवाह थी इसलिए मैंने उस डायरी को बहुत संभालकर अपनी अलमारी में सुरक्षित रख दिया था लेकिन कभी पढ़ा नहीं। माँ के गुज़रने के एक साल और सात महीने बाद मुझे अपनी रसोई के फर्श की मरम्मत की ज़रूरत पड़ी। कामगारों ने रेफ़्रिजरेटर को भोजन करने की जगह सरका दिया और मेज़ कार्यालय में रख दी जिससे मुझे अपनी डेस्क का एक छोटा-सा कोना ही उपलब्ध था। मेरे पालतू कुत्ते का बिस्तर भी मेरे पैरों के नीचे था। मुझे चार दिनों तक अब अपने घर पर ही रहना था अतः मैंने अपनी माँ की डायरी को किसी किताब की तरह पढ़ने का मन बना लिया।
इस डायरी ने किसी अन्य प्रभावशाली पुस्तक की तरह मेरे जीवन को बदल कर रख दिया।
इसने उस पारिवारिक कहानी, जो मैं लिख रही थी, को भी बदल दिया। डायरी की गहराई में जाने पर मुझे महसूस हुआ कि यह कहानी हर दृष्टिकोण से दुखद थी। साथ रहने की उनकी आपसी प्रतिबद्धता को देखते हुए मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि मेरे माता-पिता को अपनी गलतफ़हमियों को दूर करने के लिए बस थोड़े से खुले दिल से संवाद करने की आवश्यकता थी और उपचार के लिए कुछ सालों की थेरेपी की आवश्यकता थी। लेकिन ऐसा कुछ कर पाना उनके लिए संभव न हो सका।
अब जब मुझे पूरी कहानी पता चल गई है तो मैं अपने माता-पिता के लिए विस्मय, उनकी दृढ़ता और उनके अटल संबंध के लिए प्रशंसा जैसा भाव महसूस करती हूँ। उनको गुज़रे बहुत समय बीत चुका है लेकिन इस पुस्तक पर काम करते हुए, जो कि मुख्य रूप से उनके संबंधों के बारे में है, मैंने जीवन के कुछ सबसे गहन सबक सीखे हैं जो उन्होंने मुझे सिखाए। मुझे महसूस हुआ कि प्रेम के बारे में मेरा दृष्टिकोण बहुत संकीर्ण था। मेरे माता-पिता की तरह दीर्घकालिक प्रेम हमेशा आनंदपूर्ण नहीं होता। यह कभी तो आनंदपूर्ण होता है लेकिन समय के साथ बहुत सी अलग-अलग बातें होती रहती हैं। कभी-कभी प्रेम भी प्रेम जैसा महसूस नहीं होता। कभी-कभी यह भय, गुस्सा या शायद गलतफ़हमी जैसा लगता है। प्रेम कोई ऐसी चीज़ नहीं जिसे हम हाथों में समेट सकें लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि प्रेम नहीं है।
प्रेम कोई ऐसी चीज़ नहीं जिसे हम हाथों में समेट सकें लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि प्रेम नहीं है।

ऐना मोनार्डो
ऐना पिट्सबर्ग में पली-बढ़ीं और अपने कैलाब्रियन परिवार के साथ उनके गहरे संबंध थे। उनका संस्मरण, ‘<... और पढ़ें