स्टीफ़न मर्फ़ी-शिगेमात्सु अपनी मादा कुत्ते के साथ गेंद फेंकने और उसके द्वारा गेंद लाने के सरल खेल में गहन आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि प्राप्त करते हैं। वे हमें अपनी सबसे प्रिय चीज़ को छोड़ने की कठिन कला और उसे त्यागने के लिए आवश्यक साहस के बारे में बताते हैं।
लूसीगेंद के पीछे दौड़ना चाहती है। वह चाहती है कि मैं उसे फेंकूँ। लेकिन बस एक समस्या है - वह मुझे गेंद देना नहीं चाहती।
शुरुआत में तो वह उसे वापस नहीं लाना चाहती थी। कुछ समय बाद उसने ऐसा करना सीख लिया। लेकिन फिर वह उसे छोड़ना नहीं चाहती थी। वह उसे गिरा भी देती थी लेकिन जैसे ही मैं उसके पास जाने की कोशिश करता, वह उसे उठा लेती और लेकर दूर चली जाती। वह इस अजीब दुविधा भरे व्यवहार को कई बार दोहराती। यदि मैं उसके इस व्यवहार के प्रति उदासीनता दिखाता तो उसका ध्यान गेंद पर से हट जाता और वह उसे अरक्षित छोड़ देती। तब मैं उसे उठा लेता, फेंक देता और वह उसके पीछे भागती और पूरी प्रक्रिया फिर से शुरू हो जाती।

लूसी जब गेंद चबा रही होती है तब मेरे पास करने के लिए कुछ नहीं होता, इसलिए मैं गहरी सोच में डूबा रहता हूँ। मैं एक मानव मनोवैज्ञानिक हूँ, कुत्तों का मनोवैज्ञानिक नहीं। मैं नहीं जानता कि उसके दिमाग में क्या चल रहा है, लेकिन यदि वह कुछ मेरे और आपके दिमाग जैसा है तो मैं कहूँगा कि उसकी सोच अस्पष्ट है। वह गेंद छोड़ना भी चाहती है और नहीं भी। गेंद के पीछे दौड़ने का मज़ा लेने के लिए उसे गेंद छोड़नी पड़ेगी - वही चीज़ छोड़नी पड़ेगी जिसे वह चाहती है। यही वह दुविधा है जिसके कारण वह गेंद को मुझसे दूर रखने और उसी क्रिया को होने से रोकने के लिए, जिसे वह चाहती है, अजीब व्यवहार करती है।
शायद यह साँस लेने जैसा है। आप साँस लेना चाहते हैं लेकिन एक बार साँस लेने के बाद आपको और साँस तभी मिलती है जब आप पहले अंदर ली गई साँस को छोड़ते हैं। तब आपके फेफड़े खाली होते हैं और नई साँस के लिए तैयार होते हैं।
या शायद यह प्रेम के जैसा है। हम प्रेम चाहते हैं और उसे पा भी लेते हैं लेकिन यदि हम उसके प्रति आसक्त हो जाते हैं तो प्रेम खो देते हैं। प्रीस्कूल में मैंने बच्चों को गाना सिखाया था - “प्रेम ऐसा भाव है जिसे आप जितना बाँटते हैं उतना ही बढ़ता जाता है।” लूसी का दिल बहुत बड़ा है, इसलिए मुझे लगता है कि वह प्रेम के बारे में यह बात समझती है। वह अपना प्रेम खुलकर देती है और एक-दूसरे के प्रति प्रेम-भाव रखने से यह बढ़ता जाता है।
लेकिन गेंदें उसे चकरा देती हैं जिससे उसका भौतिकवादी स्वभाव और अभाव का भाव उभर आता है। उसके लिए यह जानना ज़रूरी है कि उसके पास पहले से ही पर्याप्त है - खेल खेलने के लिए बस एक गेंद की ज़रूरत होती है।
लूसी यह बात सीख रही है कि पाने के लिए देना पड़ता है। हम कुछ चीज़ों और लोगों से प्रेम करते हैं लेकिन सभी का अंत होता है, सब कुछ बदल जाता है और हम बहुत कुछ खोते हैं। आप जिससे प्रेम करते हैं उसे कैसे छोड़ पाते हैं? जिस चीज़ की हम सबसे ज़्यादा इच्छा रखते हैं, चाहे वह अतीत की कोई याद हो या भविष्य की कोई कल्पना, उसे छोड़ना सीखना सबसे मुश्किल सबक है। फिर भी जीने के लिए हमें प्रेम करते रहना और बिछड़ते रहना पड़ता है।
‘छोड़ देने’ का मतलब है कि किसी भी चीज़ - किसी व्यक्ति, पालतू जानवर, वस्तु, पल, इच्छा - को पकड़कर न रखना या उसका मोह छोड़ देना। यह किसी चीज़ के लिए अपनी ज़िद, विरोध या संघर्ष त्यागकर वर्तमान में जीने का एक सचेत निर्णय है। इसका अर्थ है चीज़ों के प्रति आसक्त हुए बिना उन्हें उनके वर्तमान स्वरूप में स्वीकार करना और कुछ ऐसा ढूँढना जो कहीं अधिक शक्तिशाली और सार्थक है।
‘छोड़ देने’ का मतलब है कि किसी भी चीज़ - किसी व्यक्ति, पालतू जानवर, वस्तु, पल, इच्छा - को पकड़कर न रखना या उसका मोह छोड़ देना। यह किसी चीज़ के लिए अपनी ज़िद, विरोध या संघर्ष त्यागकर वर्तमान में जीने का एक सचेत निर्णय है। इसका अर्थ है चीज़ों के प्रति आसक्त हुए बिना उन्हें उनके वर्तमान स्वरूप में स्वीकार करना और कुछ ऐसा ढूँढना जो कहीं अधिक शक्तिशाली और सार्थक है।
मैं लूसी से कहता हूँ कि वह वास्तविकता को स्वीकार कर सकती है, जो हो रहा है उसके आगे समर्पण कर सकती है और भरोसा रख सकती है कि सब ठीक हो जाएगा - चाहे कुछ भी हो जाए, वह उससे निपट लेगी। मैं उसे धैर्य, ग्रहणशीलता और इस वास्तविकता को खुलकर स्वीकार करते हुए आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता हूँ कि परिवर्तन केवल कर्म के माध्यम से ही नहीं होता, बल्कि स्वीकृति से भी आता है। मैं उसे विश्वास दिलाता हूँ कि अभी सब कुछ ठीक है और आगे इससे भी बेहतर हो सकता है।
मुझे लगता है कि मैं लूसी की दुविधा समझ सकता हूँ क्योंकि मैं भी अपनी सबसे प्रिय वस्तु को छोड़ने में संघर्ष करता हूँ। जो उसके पास है उसे छोड़ने से वह एक अनिश्चितता के लिए एक निश्चितता का त्याग करती है। नियंत्रण छोड़ने के लिए बहुत साहस चाहिए, लेकिन वह कर सकती है। बस उसे यह भरोसा रखना होगा कि एक बार नियंत्रण छोड़ देने के बाद खुशी बहुत जल्दी आ जाएगी। यदि वह गेंद के लिए यानी गेंद को हमेशा के लिए अपने पास रखने की लालसा छोड़ दे तो वह जीवन के प्रवाह के साथ बह सकती है। हर बार जब वह गेंद छोड़ती है तो उसे मृत जैसा महसूस हो सकता है लेकिन हर बार जब वह उसके लिए दौड़कर उसे प्राप्त करती है तो वह फिर से जीवित हो उठती है।
क्या यह अंतर्ज्ञान अत्यधिक असाधारण व रहस्यमय नहीं है? आध्यात्मिकता का सत्य यह है कि हम मुक्ति का अनुभव तभी कर सकते हैं जब हम चीज़ों को छोड़ दें। समर्पण का विरोधाभास इस स्वीकारोक्ति से शुरू होता है कि कुछ भी हमारे नियंत्रण में नहीं है। जब हम अपने भ्रमों और झूठे दिखावों को छोड़ने के लिए तैयार होते हैं तब हम समर्पण कर सकते हैं और वास्तविकता को स्वीकार कर सकते हैं।
छोड़ देने का अर्थ है वास्तविकता के प्रति प्रतिरोध को हटा देना और निश्चितता की चाह को त्याग देना तथा खुद को डर और स्वामित्व के बंधनों से मुक्त करना। लूसी के लिए मुश्किलें इसलिए आती हैं क्योंकि गेंद से उसका लगाव है, उसके बिना होने का डर है और उसका यह मानना है कि गेंद उसका एक अभिन्न अंग है।

आध्यात्मिकता का सत्य यह है कि हम मुक्ति का अनुभव तभी कर सकते हैं जब हम चीज़ों को छोड़ दें। समर्पण का विरोधाभास इस स्वीकारोक्ति से शुरू होता है कि कुछ भी हमारे नियंत्रण में नहीं है। जब हम अपने भ्रमों और झूठे दिखावों को छोड़ने के लिए तैयार होते हैं तब हम समर्पण कर सकते हैं और वास्तविकता को स्वीकार कर सकते हैं।
मेरा मानना है कि ज़िंदगी के खेल पर भरोसा रखकर वह इससे उबर सकती है। मैं जानता हूँ कि यदि वह गेंद को पकड़कर रखने की आदत को छोड़ देती है तो उसे इसके पीछे भागने में और भी ज़्यादा खुशी मिलेगी, कम से कम जब तक मैं इसे फेंकता रहूँगा। मैं बार-बार इनाम के रूप में उसे गेंद फेंककर उसकी मदद कर सकता हूँ। धीरे-धीरे वह अलगाव सीख जाएगी। लेकिन अंततः यह उसी पर निर्भर करता है।
हम ज़िंदगी के इस खेल को खेलते हुए साथ-साथ सीख रहे हैं। मैं एक इंसान हूँ और विचारों में खोया रहता हूँ। मैं शायद चीज़ों पर लूसी से ज़्यादा विचार करता हूँ। लूसी एक मादा कुत्ता है; वह बस खेलना, खाना और प्यार करना चाहती है। वह मुझे देखती है, फिर गेंद को, उत्सुकता से मचलती हुई, इसलिए मैं अपने विचारों से बाहर निकलता हूँ, गेंद उछालता हूँ और उसे पूरे आनंद के साथ गेंद के पीछे दौड़ते हुए देखकर मुस्कुराता हूँ।

स्टीफ़न मर्फ़ी शिगेमात्सु
स्टैनफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में माइंडफुल वैल-बीइंग (सचेत कल्याण) के लाइफ़वर्क्स प्रोग्राम के सह-संस्थापक,
