एक पोलिनेशियाई अन्वेषक की खोज यात्रा

 

डॉ. एलिज़ाबेथ कपुवैलानी लिंडसे पहली पोलिनेशियाई अन्वेषक और नेशनल जियोग्राफ़िक सोसाइटी की महिला अध्येता हैं। वे पूर्णिमा रामकृष्णन से बातचीत में सांस्कृतिक खोज की अपनी जीवन यात्रा और विश्वभर के मूल निवासी समुदायों से सीखी गई गहन शिक्षाओं के बारे में बता रही हैं। पोलिनेशियाई नाविकोंसमुद्री खानाबदोशों और आध्यात्मिक गुरुओं के साथ अपनी मुलाकातों से प्राप्त ज्ञान को साझा करते हुए डॉ. लिंडसे तेज़ी से बदलते संसार में मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए हृदय-केंद्रित ज्ञानकथा वाचन और आंतरिक अन्वेषण के महत्व पर ज़ोर देती हैं।

प्र. - आप एक मानवविज्ञानी और नेशनल जियोग्राफ़िक की पहली महिला पोलिनेशियाई अन्वेषक हैं। कृपया हमें अपने जीवन के उस निर्णायक क्षण के बारे में बताएँ जिसने अन्वेषण और सांस्कृतिक समझ हासिल करने के लिए आपके जुनून को जगाया।

पूर्णिमा, मुझे इस साक्षात्कार का हिस्सा बनने का अवसर देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। मैं आपकी आभारी हूँ। सबसे महत्वपूर्ण क्षण मेरे जीवन के शुरुआती दौर में आया था। मेरे माता-पिता दोनों ही पास के विश्वविद्यालय में शिक्षक थे और मेरी दो छोटी बहनों और मेरी देखभाल करने वाली महिलाओं का बहुत ध्यान रखते थे। वे तीन वृद्ध हवाई प्रदेश की महिलाएँ बहुत ही समझदार और आध्यात्मिक थीं। यही मेरे जीवन भर चलने वाली इस यात्रा की शुरुआत थी। वे भी आध्यात्मिक थीं और मेरे माता-पिता भी। मेरे पिता हमारे समाज में बहुत आदरणीय व्यक्ति थे। वे बेहद विनम्र तथा आध्यात्मिक थे। यही वह नींव थी जिस पर मेरी परवरिश हुई। उन शुरुआती वर्षों ने मेरे भीतर लोगों के प्रति गहरा प्रेम पैदा किया।

जब मैं सात साल की थी तभी मेरी देखभाल करने वाली महिलाओं ने भविष्यवाणी की थी कि मैं विश्वभर में बहुत-सी जगहों की यात्रा करूँगी। उन्होंने कहा था, “किसी दिन यह संसार संकट में होगा और संतुलन को वापस लाने के लिए पृथ्वी के दूर-दराज के इलाकों से ज्ञान की आवश्यकता होगी। आपके पास हमेशा माध्यम और विकल्प होते हैं लेकिन हम देख रहे हैं कि इन संस्कृतियों की शिक्षाओं को जीवित रखने के लिए तुम जीवन में बहुत जगहों की यात्रा करोगी क्योंकि संसार को उन संस्कृतियों के ज्ञान की आवश्यकता होगी।”

और इस तरह मेरी यात्रा शुरू हुई।

 

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मेरा मानना है कि बच्चे सच्चाई जानते हैं। यह ऐसा है जैसे कि बच्चे एक आवरण को भेद सकते हैं क्योंकि वे अभी तक अपने समाज में संस्कृति के अनुरूप ढल नहीं पाए हैं। इस तरह से मैंने जल्दी ही सीख लिया कि बड़ों के साथ रहने में क्या समझदारी है। उन्होंने न केवल मुझे सिखाया बल्कि विवेकपूर्ण और करुणामय जीवन जिया जो प्रकृति और आस-पास की दुनिया, दोनों ही के साथ सामंजस्य बनाए हुए था। उन्होंने इसे अत्यधिक विनम्रतापूर्वक किया क्योंकि उनमें से किसी को भी बचपन में कोई सामाजिक या आर्थिक लाभ नहीं मिला था। मैं एक बहुत ही साधारण घर में पली-बढ़ी लेकिन मुझ में जीवन के उद्देश्य व अर्थ के बारे में जानने की गहन तथा विकासशील भावना थी।

प्र. - आपने किसी ऐसी संस्कृति, जो आपकी संस्कृति से बहुत अलग है, से सबसे आश्चर्यजनक सबक क्या सीखा?

मेरे प्रारंभिक वर्ष इस समझ पर आधारित थे कि हम सभी में भिन्नता की तुलना में समानता अधिक है। मेरे बड़ों ने मुझे यह भी सिखाया कि भारत हमारे पूर्वजों की भूमि है। इसलिए जब मैं पहली बार वर्ष 2009 में भारत आई तो मुझे कई मायनों में ऐसा लगा जैसे कि मैं अपने घर आ गई हूँ। हालाँकि बचपन में मैं यह नहीं समझ पाई कि मेरे बड़े मुझे क्या बताना चाहते थे लेकिन जब मैं भारत आई तब मैंने इसे तुरंत समझ लिया, खासकर दक्षिण में, जहाँ मैंने कोयंबटूर और मैसूर में किसानों के साथ समय बिताया। यहाँ के किसान भी चंद्रमा के चक्रों के आधार पर वैसे ही खेती कर रहे थे जैसे मेरे पूर्वज करते थे। चंद्रमा का चक्र उनके लिए पवित्र था। मेरे पूर्वज हमेशा प्रार्थना करते थे और अपनी भूमि व पौधों को आशीर्वाद देते थे और परिणामस्वरूप उनकी फसलें हमेशा प्रचुर मात्रा में होती थीं।

यह रूपक आज भी हमारे लिए सही है। जब हम अपने काम को देखते हैं, चाहे वह लेखन हो या बोलना हो या मानव विज्ञान हो, यदि वह दूसरे लोगों और दुनिया के प्रति गहन प्रेम और करुणा पर आधारित है तो हमारा काम बेहतर होगा और मानवता की बेहतर सेवा करेगा। मुझे नहीं लगता कि मुझे कभी भी अन्य संस्कृतियों को स्वीकार करने पर हैरानी हुई हो। मुझे बस ऐसा ही लगा कि मैं उनका एक हिस्सा हूँ। एक तरह से इसके कारण मेरे रिश्ते बने और संबंध अधिक प्रगाढ़ हुए। प्रत्येक संस्कृति से मुझे बहुमूल्य शिक्षाएँ मिली हैं। यात्राएँ हमें बदल देती हैं और जब हम वापस लौटते हैं तो हम पहले जैसे नहीं रहते जो एक खूबसूरत बात है। जब हम ऐसा महसूस करते हैं और जब हम जानते हैं कि हम सच्चे अर्थों में विश्व के नागरिक हैं तब युद्ध और संघर्ष पूरी तरह से पागलपन और निरर्थक लगते हैं।


सबसे दृढ़ संस्कृतियाँ वे हैं जिन्होंने अभी भी अपनी पारंपरिक प्रथाओं और ज्ञान को बरकरार रखा है।


प्र. - आप अक्सर कथा वाचन की ताकत पर ज़ोर देती हैं। क्या आप अपनी यात्राओं से जुड़ी कोई विशेष कहानी बता सकती हैं जिसने आपको गहराई से प्रभावित किया हो?

हाँ, मैं माइक्रोनेशिया के सरवाक नामक एक सुदूर द्वीप गई थी। यहीं पर मेरे मार्गदर्शक रहते थे। उस यात्रा में कई चीज़ें हुईं। यह द्वीप इतना दूरस्थ है कि मुझ से पहले नेशनल जियोग्राफ़िक से और कोई भी व्यक्ति वहाँ नहीं गया था। वहाँ पहुँचना बहुत मुश्किल है। मुझे सरवाक जाने हेतु अपने सहयोगियों और स्वयं के लिए एक मालवाहक जहाज़ की व्यवस्था करने के लिए माइक्रोनेशिया की सरकार से बातचीत करनी पड़ी। उस समय मुझे पता चला कि इस मालवाहक जहाज़ पर सरवाक द्वीप के कुछ निवासी थे जिन्हें घर लौटने की ज़रूरत थी। कप्तान ने मुझसे पूछा कि क्या हम उन्हें साथ ले चल सकते हैं और मैंने उसके लिए अपनी सहमति व्यक्त की। जहाज़ पर यात्रा करते हुए मुझे बहुत बड़ी चोट लग गई थी। कोई हड्डी तो नहीं टूटी थी लेकिन दर्द बहुत था। मुझे पता था कि कप्तान और उसके चालक दल के लोग मेरे दल के अलावा किसी और को खाना नहीं खिला रहे थे। जहाज़ पर सवार 20 द्वीपवासियों को खाना नहीं मिल रहा था और उन्हें अपना खाना खुद लाना पड़ा था।

 

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जहाज़ पर मुझे एक बूढ़ा व्यक्ति दिखाई दिया। मैं नहीं जानती थी कि वह कौन था लेकिन मुझे पता था कि उसके पास गरम खाना नहीं था। इसलिए मैंने उसके लिए गरम चावल और मछली की एक थाली लगाई। जब मैं वापस आई तो वह जा चुका था। मैंने उसे पूरे जहाज़ में खोजा और फिर थाली उसके बिस्तर के पास रख दी। इस लंबी कहानी को संक्षेप में कहें तो मुझे यह पता चला कि वह दुनिया का सबसे बूढ़ा जीवित ऐसा नाविक था जो चाँद एवं तारों की सहायता से समुद्र में रास्ता ढूँढ सकता था। उसकी उम्र 104 वर्ष थी। उसने मेरे भोजन देने के इस छोटे से दयालु व्यवहार का बदला कई गुना देकर चुकाया। उसने मेरे घाव के भरने में मदद की।

उस समय जहाज़ के कप्तान ने 15 फ़ीट ऊँची लहरों का अनुमान लगाया, जिससे यह असंभव लग रहा था कि हम द्वीप पर पहुँच पाएँगे। वहाँ पहुँचने के लिए बहुत प्रयास और खर्चा करना पड़ा था। हमने 5,000 पाउंड की भोजन सामग्री खरीदी थी और यह यात्रा मेरे लिए एक महत्वपूर्ण आर्थिक कार्य था। हालाँकि हम द्वीप को दूर से देख सकते थे लेकिन खतरनाक लहरों के कारण लंगर डालने के लिए कोई सुरक्षित जगह नहीं दिख रही थी।

मैं नहीं जानती थी कि यह बूढ़ा व्यक्ति एक आध्यात्मिक व्यक्ति और संत था और उसने मंत्रोच्चार करके 15 फीट ऊँची लहरों को समतल समुद्र में बदल दिया ताकि हम द्वीप पर पहुँच सकें। यह एक बहुत बड़ा सबक था जिसे मैं हमेशा याद रखूँगी।

दूसरी कहानी जो मैं बताना चाहूँगी, वह भारत में घटित हुई थी। कुछ वर्ष पहले मैं उदयपुर के बाहरी इलाके में थी और एक अनुवादक के साथ धूल भरी सड़क पर चल रही थी। मैंने सामने देखा कि एक महिला सड़क पर एक गड्ढे को गाय के गोबर से भर रही थी। उसने एक सुंदर साड़ी पहनी हुई थी। मैंने अपने अनुवादक से पूछा कि कोई महिला साड़ी पहनकर इस तरह का काम क्यों करेगी। वह ठीक से नहीं जानता था। जैसे ही हम उसके करीब पहुँचे, उसने महिला से वही प्रश्न हिंदी में पूछा। बिना किसी हिचकिचाहट के उस महिला ने अपना हाथ अपने दिल पर रखा और आसमान की ओर देखा। मेरे अनुवादक ने बताया कि उसने ईश्वर के लिए साड़ी पहनी थी। यह मेरे लिए एक और बड़ा सबक था क्योंकि पश्चिम में मैं कभी भी ऐसी महिला से नहीं मिली जिसने कभी सोचा हो कि हम पहले ईश्वर के लिए तैयार होते हैं। इसने वास्तव में मेरी सोच बदल दी।

प्र. - अपने क्षेत्र में काम करते हुए आपने किन चुनौतियों का सामना किया है और उन चुनौतियों ने मानवीय अनुभवों को समझने के प्रति आपके दृष्टिकोण का विकास कैसे किया?

जब भी मैं कार्यक्षेत्र में जाती हूँ तब मैं अक्सर पहले अकेले जाकर बुज़ुर्गों से मिलती हूँ। और लगभग हर बार वे घंटों, कभी-कभी कुछ दिनों तक मुझसे बात किए बिना चुपचाप बैठे रहते हैं। और मुझे यह प्रक्रिया वाकई बहुत पसंद है क्योंकि वे मेरी ऊर्जा के द्वारा मुझे समझ रहे होते हैं। मैं इसकी सराहना करती हूँ क्योंकि उनमें से प्रत्येक ने मेरे साथ जो ज्ञान साझा किया है, वह बहुत मूल्यवान है और उनका सबसे बड़ा खज़ाना है। मैं इस तथ्य की भी कदर करती हूँ कि वे बिना सोचे-समझे अपना ज्ञान हर किसी के साथ साझा नहीं करते। वे पहले यह जानने में समय लेते हैं कि उनसे मिलने वाले लोग कौन हैं। इसलिए अपने काम के लिए मुझे किसी बुज़ुर्ग से मिलने के लिए हफ़्तों और कभी-कभी इससे भी ज़्यादा का समय तो लगता ही है। हम अधिकांश समय बिना बात किए बैठे रहते हैं। हम बिना बात किए तीन दिन तक भी बैठे रह सकते हैं। मुझे यह पसंद है क्योंकि मैं जानती हूँ कि वे क्या कर रहे हैं। नेशनल ज्योग्राफ़िक में ज़्यादातर अन्वेषकों का यही तरीका है।

शोध और क्षेत्रों में काम करने वाले कई लोगों के लिए समय कीमती होता है और वे खुद को यह सुविधा नहीं दे पाते हैं। लेकिन मेरे लिए बड़ों के साथ रहना और उनका विश्वास जीतना ज़रूरी है ताकि वे मेरे साथ अत्यंत महत्वपूर्ण और अभाग्यवश लुप्त हो रहे ज्ञान और विवेक को साझा कर पाएँ।

प्र. - वाह! धन्यवाद। आपके अनुसार ऐसे कौन से प्रमुख तत्व हैं जो आज की चुनौतियों का सामना करने के लिए संस्कृति में दृढ़ता लाने में योगदान देते हैं?

एक प्रमुख तत्व यह है कि लोग इस बात को महत्व देते हैं और याद रखते हैं कि वे कौन हैं और उनका ज्ञान व परंपराएँ क्या हैं क्योंकि संसार को इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है। आधुनिक संसार ने अपनी विवेक क्षमता को खो दिया है और वह हर उस चीज़ को महत्व देता है जिसकी गति तेज़ है। हालाँकि तकनीक, विज्ञान और चिकित्सा के क्षेत्रों में बहुत तरक्की हुई है, लेकिन मुझे लगता है कि संसार जानकारी से तो भरा है लेकिन इसमें विवेक की बहुत कमी है। कई बार तो लोग यह भी नहीं जानते कि संसार को विवेक की कितनी ज़रूरत है। यह अधिकाधिक अराजक, विचलित करने वाला और थका देने वाला होता जा रहा है। सबसे दृढ़ संस्कृतियाँ वे हैं जिन्होंने अभी भी अपनी पारंपरिक प्रथाओं और ज्ञान को बरकरार रखा है।

प्र. - हार्टफुलनेस में हम अपने सच्चे आंतरिक स्व से जुड़ते हैं जिसमें सर्वोच्च प्राप्त करने का सामर्थ्य है। हाल ही में हमने एक वैश्विक आध्यात्मिक महोत्सव आयोजित किया था जिसमें 100 से अधिक आध्यात्मिक परंपराओं के अग्रणी और विविध सांस्कृतिक व आध्यात्मिक धर्मों को मानने वाले हज़ारों लोग एक स्थान पर एकत्र हुए थे और उन्होंने आंतरिक शांति तथा एकता व शांति के मार्ग पर आगे बढ़ने के तरीकों के बारे में चर्चाएँ की थीं। आपके विचार में हम विभिन्न संस्कृतियों के बीच संबंध व उज्जवल भविष्य की कल्पना को विकसित करते हुए लोगों को एकजुट रखना कैसे जारी रख सकते हैं?

मेरा हवाईयन नाम कपुवैलानी है, जिसका अर्थ है ‘स्वर्ग का हृदय’। हृदय-केंद्रित ज्ञान और हृदय-आधारित ज्ञान मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं। मैंने अपने मार्गदर्शक, जो एक महान दिशा निर्देशक थे, से एक बात यह सीखी है कि हम अपने दिमाग के देशांतर और अपने दिल के अक्षांश से अपनी जीवन यात्रा करते हैं। और अक्षांश व देशांतर का मिलन बिंदु एक स्थिर बिंदु होता है। यही स्थिर बिंदु वह स्थान है जिस पर हम सदैव अपना रास्ता पाने के लिए ध्यान कर सकते हैं।

वैज्ञानिक शोध से पता चलता है कि हमारे भौतिक शरीर में आने वाली समस्त जानकारी सबसे पहले हमारे हृदय में आती है और फिर तेज़ी से ऊपर हमारे मस्तिष्क में पहुँचती है। यह हृदय के माध्यम से आती है और मेरा मानना है कि हमारा हृदय हमारा आंतरिक गर्भगृह है। यह हमारा सबसे पवित्र स्थान है। यह हमारा सबसे शक्तिशाली शरण स्थल है और इसी स्थिर बिंदु से हमें मार्गदर्शन मिलता है।

मेरा विश्वास है कि हार्टफुलनेस ध्यान पद्धति हमारी मानवता के माध्यम से भौगोलिक और सांस्कृतिक विशिष्टता से परे संस्कृतियों के बीच संबंधों व उज्जवल भविष्य की कल्पना को पोषित कर सकती है। जब हम इस गहन और आवश्यक सत्य को समझ लेते हैं कि हम सब समान हैं और हम अलग-अलग नहीं हैं, फिर जब हम हार्टफुलनेस ध्यान में एक साथ मिलते हैं तब हमारी सभी अलग करने वाली सुंदर और समृद्ध विशिष्टताएँ पीछे छूट जाती हैं।

प्र. - वाह! फिर से धन्यवाद। संसार तेज़ी से बदल रहा है। ऐसे में आप संस्कृति और प्राचीन ज्ञान को संजोकर रखने की कल्पना कैसे करती हैं और इसे वर्तमान मानवता एवं भविष्य के लोगों के लिए कैसे प्रासंगिक बनाए रखा जा सकता है?

यह बहुत चिंताजनक है क्योंकि हमारे बुज़ुर्गों के गुज़र जाने के साथ बहुत सारा ज्ञान लुप्त होता जा रहा है। यदि हम अपने जीवन काल में अपने परिवार, अपने समाज और अपने आस-पास की कहानियों को लिख लेते हैं और उन्हें जीवित रखते हैं तो हम अपने संसार को एक बड़ा योगदान देते हैं। यदि हम अपना खयाल रखें और अपनी भूमिका निभाते रहें तो हम संसार के ज्ञान को जल्दी नहीं खोएँगे। और फिर मानवता को पहले से कहीं ज़्यादा इसकी ज़रूरत भी है। हम अत्यधिक भाग्यशाली हैं कि हमारे पास ऐसी तकनीक, साधन और उपकरण हैं जो इस ज्ञान व विवेक को रिकॉर्ड करके संसार के साथ साझा करना ज़्यादा आसान बनाते हैं। ये सुविधाएँ पहले उपलब्ध नहीं थीं।

एलिज़ाबेथ आपके इस समस्त ज्ञान के लिए धन्यवाद। कृपया अपने समापन विचार साझा करें।

आपने इस वार्ता में मेरे काम के विभिन्न पहलुओं को समाहित किया है। एक आखिरी विचार यह है - जब मैं बड़ी हो रही थी तब मुझे नहीं पता था कि मानवविज्ञानी क्या होता है। इस क्षेत्र में दशकों तक काम करने के बाद मैंने संसार को देखा है जो युद्धों, विवादों, प्राकृतिक आपदाओं और मुश्किलों के बावजूद बहुत ही खूबसूरत है। हम एक शानदार संसार में रहते हैं और यदि हम सचेत रहें और सही इरादा रखें तो हम इस धरती पर स्वर्ग बना सकते हैं। अतः मैं कहूँगी कि मानवविज्ञानी की मेरी परिभाषा है - वह जो संसार को प्रेमपूर्ण और करुणामय हृदय से देखता है। इस तरह से हम सभी मानवविज्ञानी हो सकते हैं।


भीतर की ओर मुड़कर हम सबसे बड़ा अन्वेषण कर सकते हैं। इस तरह हम संसार के सबसे महान अन्वेषकों में से एक हैं।


 

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अंत में, हम सभी अन्वेषक हैं। मैं भाग्यशाली हूँ कि मेरी यात्राएँ ज्ञान से संपन्न रही हैं और मैंने कई स्थानों की यात्राएँ की है। मैं चार बार दुनिया घूम चुकी हूँ लेकिन मेरा सबसे बड़ा अन्वेषण मेरे हृदय और मेरी आध्यात्मिकता का अन्वेषण होगा। यह एक ऐसा क्षेत्र है जो विशाल और अनंत है। इस क्षेत्र में मैं हमेशा एक छात्रा रहूँगी और हमेशा इस यात्रा पर रहूँगी। लोगों के लिए यह समझना ज़रूरी है कि अन्वेषण के लिए दूर-दराज के स्थानों की यात्रा करने की आवश्यकता नहीं है। भीतर की ओर मुड़कर हम सबसे बड़ा अन्वेषण कर सकते हैं। इस तरह हम संसार के सबसे महान अन्वेषकों में से एक हैं।

इस खूबसूरत निमंत्रण के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।


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एलिज़ाबेथ कपुवैलानी लिंडसे

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