घररचनात्मकताअवर्णनीय को अभिव्यक्त करना

14 मई, 2024 को पेरिस के इंस्टिट्यूट ड्यू मोंडा आरबे में गिला क्लारा कीसस ने दाजी का साक्षात्कार लिया। वे यूनेस्को (UNESCO) की शांति कलाकार और कला से संबंधित यूनिवर्सल सर्कल ऑफ़ एम्बेसेडर्स ऑफ़ पीसजेनेवा की सदस्य हैं।

कला आपकी गहनतम अनुभूतियों को अभिव्यक्त करने का माध्यम है

प्र. - आप कला को कैसे परिभाषित करते हैं?

इसे परिभाषित करना बहुत मुश्किल है, लेकिन मैं कहना चाहूँगा कि यह अवर्णनीय को दृश्य चित्रांकन (Graphics) द्वारा अभिव्यक्त करना है।

उदाहरण के लिए, जब हम दार्शनिक रूप से पशु मानव के मानव बनने और मानव के मानवीय होने तथा मानवीय गुण के दिव्य या दैवीय बनने की बात करते हैं तो आप इसे दृश्य रूप से कैसे व्यक्त कर सकते हैं? कोई अन्य व्यक्ति किसी से प्रेम करता है और ऐसे गीत गाते हुए नृत्य कर रहा है जो उसकी आंतरिक अवस्था को अभिव्यक्त करते हैं जिसे अन्यथा कागज़ पर शब्दों में लिखकर अभिव्यक्त करना मुश्किल होता। इसलिए कला आपकी गहनतम अनुभूतियों को अभिव्यक्त करने का तरीका है जिसे किसी और तरीके से शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। जब शब्द नाकाम हो जाते हैं तब कला एक सीमा तक हमारी सहायता कर सकती है। लेकिन एक स्तर के बाद यह भी कठिन हो जाता है। उदाहरण के लिए, आप आनंद के परे की अवस्थाओं को कला के ज़रिए कैसे अभिव्यक्त कर सकते हैं?

प्र. - तो यह मूर्त को अमूर्त के साथ जोड़ने का तरीका है।

हाँ।

प्र. - क्या कला अपनी ऊर्जा को दूसरों की ऊर्जा से जोड़ने में सहायक हो सकती है, जैसा ध्यान में होता है?

कलाकार के लिए कला स्वयं को केंद्रित करने की एक रचनात्मक विधा बन सकती है। खिलाड़ी टेनिस या बैडमिंटन अथवा फ़ुटबॉल खेलते हुए उसमें डूब जाते हैं और बहुत खुश होते हैं क्योंकि वे प्रवाह में होते हैं। एक बाँसुरी वादक या वायलिन वादक या एक कलाकार के साथ भी यही होता है। और ध्यान भी एक तरह का प्रवाह ही है, लेकिन यह अंदर की ओर जाता है। कलात्मक अभिव्यक्ति चीज़ों को बाहर प्रस्तुत करती है। ये दोनों अलग-अलग दिशाएँ हैं।

मैं किसी वस्तु को बाहर व्यक्त करने के लिए एक सीमा तक ही अपने अंदर केंद्रित हो सकता हूँ। कला एक शक्तिशाली साधन हो सकती है लेकिन यह ध्यान की अवस्था का मुकाबला नहीं कर सकती क्योंकि इनकी दिशाएँ अलग हैं। ध्यान में हम गहनतम स्तर पर जुड़े होते हैं। अगर हम एक-दूसरे का हाथ पकड़कर एक गोले में बैठें तो हम अपने हाथों के द्वारा एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं न कि अपने हृदय से। ध्यान हमें अंदर ले जाता है, हृदय का शुद्धिकरण करता है और लोगों के हृदयों को जोड़ता है। मेरी अब तक की समझ यही है।

ध्यान में हम गहनतम स्तर पर जुड़े होते हैं। अगर हम एक-दूसरे का हाथ पकड़कर एक गोले में बैठें तो हम अपने हाथों के द्वारा एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं न कि अपने हृदय से। ध्यान हमें अंदर ले जाता हैहृदय का शुद्धिकरण करता है और लोगों के हृदयों को जोड़ता है।

प्र. - तो कला किसी अमूर्त, किसी पवित्र, किसी दैवीय वस्तु को प्रस्तुत करने का तरीका है।

दिव्यता की सुंदरता को व्यक्त करने में एक सीमा तक हृदय हमारी सहायता कर सकता है। लेकिन उदाहरण के लिए, आप सृष्टि-रचना के क्षण को कैसे अभिव्यक्त करेंगे? आप जानती हैं भौतिक विज्ञान में बिग-बैंग सिद्धांत के बारे में बात करते हैं – तब विशिष्ट एकलता (Singularity) थी और इसी एकलता से ऊर्जा का विस्फोट हुआ। वह ऊर्जा इतनी शक्तिशाली थी कि उसने पूरे ब्रह्मांड में भौतिक वस्तुओं का निर्माण कर दिया। आप उस क्षण को कागज़ पर कैसे प्रस्तुत कर सकते हैं? सृजन एक सतत प्रक्रिया है, एक परिवर्तनशील प्रक्रिया है। जैसे ही आप एक कलाकृति का निर्माण करते हैं, उसमें परिवर्तन नहीं हो सकता। इसलिए कला की सीमाएँ हैं। सृष्टि के निरंतर होते विकास का चित्रण करने के लिए हमें बहुत से चित्र बनाने पड़ेंगे जैसे चलचित्र (मूवी) बनाए जाते हैं।

हृदय को स्वाभाविक बनाना

मेरा मानना है कि हृदय का उपयोग बहुत सी चीज़ों के लिए किया जा सकता है। हृदय को स्वाभाविक होना चाहिए। उदाहरण के लिए, मैं सौंदर्य का वर्णन कागज़ पर कैसे करता हूँ? किसी एक खास तरीके से। एक माँ सौंदर्य का वर्णन कागज़ पर कैसे करती है? उसका तरीका मुझसे अलग होगा। आप या कोई अन्य व्यक्ति सौंदर्य का वर्णन कागज़ पर कैसे करते हैं? हम सभी अपनी पृष्ठभूमि और अनुकूलन के आधार पर सौंदर्य को अभिव्यक्त करते हैं।

यहाँ पर 700 से 800 लोग हैं और जब हम एक-दूसरे को देखते हैं तब हम लगातार परीक्षण और छाँटने का काम करते रहते हैं। सबसे पहली चीज़ हमारे दिमाग में आती है - यह महिला है और यह पुरुष है। उसके बाद शायद हम वस्त्रों की विवेचना करें। जो लोग घड़ियों में दिलचस्पी रखते हैं, वे गौर करेंगे कि आपने कौन सी घड़ी पहनी है। गहनों के प्रेमी देखेंगे कि आपने कौन से गहने पहने हुए हैं। एक मोची आपके जूतों को देखेगा और आपके जूतों के आधार पर निर्णय करेगा कि आप कैसे व्यक्ति हैं।

हमारा काम है हृदय को पढ़ना, इसलिए आँखें बंद करके हम हृदय को देखते हैं। हृदय को तभी महसूस किया जा सकता है जब हम अपनी आँखें बंद कर लेते हैं। हृदय चीज़ों का बोध तभी कर सकता है जब हम अपनी आँखें बंद कर लेते हैं। जबकि कलाकृति को हम खुली आँखों से बनाते हैं।

हम जो कुछ भी करते हैं, हर हाल में हमारा हृदय सही संकेत देगा और हृदय के संकेतों को अवश्य सुरक्षित रखना चाहिए। अगर हमारे हृदय और मन निष्पक्ष नहीं हैं तो हमारी अनुभूतियाँ और बोध गलत होंगे। हृदय जितना पवित्र होगा उतना ही वह किसी वस्तु को जैसी है वैसी ही व्यक्त करने के लिए बेहतर संकेत देगा।

प्र. - आप इतने रचनात्मक व्यक्ति हैं। क्या आप खुद को एक कलाकार मानते हैं?

मनुष्यों के व्यक्तित्व बहुमुखी होते हैं और जब हम इसमें हृदय को शामिल कर लेते हैं तब रचनात्मकता का पक्ष अनंत हो जाता है।

आप एक अच्छी किताब लिख सकते हैं, चित्र बना सकते हैं, संगीत वादन कर सकते हैं और शांति से बैठकर संगीत सुन सकते हैं जैसा कोई और नहीं कर सकता, कई दिनों तक बिना परेशान हुए बिना किसी चीज़ की माँग किए शांति से बैठ सकते हैं या आप पेड़ के नीचे बैठकर रात में तारों को देख सकते हैं। ये सभी आपके व्यक्तित्व के पहलू हैं।

लेकिन हम इस वैयक्तिकता से परे भी जा सकते हैं जो अहंकार का ही एक पहलू है क्योंकि यह हमें सीमित कर देता है। कलाकार, बाँसुरी वादक और वायलिन वादक, इन सभी के सीमित व्यवसाय हैं। जब हम ऐसे व्यक्ति बन जाते हैं जिसकी कोई शख्सियत न हो, कोई मुखौटा न हो और हम अपने हृदय की गहराई में जाते हैं तब रचनात्मकता के रूप में बहुत सी चीज़ें बाहर आती हैं।

अगर मैं कहूँ, “मैं एक कलाकार हूँ” तो पारंपरिक परिभाषा के अनुसार यह सत्य नहीं होगा। कलाकार वह है जो किसी चीज़ को कागज़ पर या कैनवास पर या संगीत के माध्यम से अभिव्यक्त करता है और मैं इनमें से कुछ भी नहीं कर सकता। फिर भी मैं महसूस करता हूँ कि मैं आंतरिक रूप से कलाकार हूँ, लेकिन मैं सिर्फ़ एक कलाकार ही नहीं हूँ। ईश्वर ने हम लोगों को जो बहुमुखी गुण दिए हैं उसका अर्थ यह है कि हम सभी असीमित हैं। हमारी रचनात्मकता की कोई सीमा नहीं है। एक कलाकार होना बहुत अच्छी बात है क्योंकि कला रचनात्मकता दर्शाती है लेकिन सिर्फ़ एक ही तरीके से सृजित करना इसे सीमित कर देता है। सभी महान कलाकार और संगीतकार भी सीमित थे। जब हृदय खुलता है तब वह असीमितता को हमारे समक्ष प्रकट करता है। ध्यान की यही भूमिका है।


हम जो कुछ भी करते हैंहर हाल में हमारा हृदय सही संकेत देगा और हृदय के संकेतों को अवश्य सुरक्षित रखना चाहिए। अगर हमारे हृदय और मन निष्पक्ष नहीं हैं तो हमारी अनुभूतियाँ और बोध गलत होंगे। हृदय जितना पवित्र होगा उतना ही वह किसी वस्तु को जैसी है वैसी ही व्यक्त करने के लिए बेहतर संकेत देगा।


प्र. - युवा पीढ़ी आगे बढ़कर इस रचनात्मकता को स्वछंद रूप से व्यक्त करे और बहुमुखी व्यक्तित्व बन सके इसके लिए आप उन्हें क्या सलाह देंगे?

अगर आप आगे बढ़ना चाहते हैं तब सवाल यह है कि आप कहाँ जाएँगे? आपके परे क्या है? आपके हृदय के परे क्या है? आपके मन के परे क्या है? वह है - सृष्टिकर्ता। आप सिर्फ़ पानी की एक बूँद हैं। मान लीजिए कि आप समुद्र तट पर हैं। पानी की बौछार आपके ऊपर पड़ती है और कुछ बूँदें आपकी हथेलियों पर भी पड़ती हैं। अगर उन बूँदों में चेतना होती तो वे क्या सोचतीं? यही कि मैं अपनी माँ से, समुद्र से अलग हो गई हूँ।

हम सब भी बूँदें ही हैं जो चेतना के महासागर से अलग हो गई हैं। हमें यह पता भी नहीं है कि हम अलग हो गए हैं। लेकिन हम अलगाव की पीड़ा को महसूस करते हैं और कोई भी हमारी इस पीड़ा को कम नहीं कर सकता जब तक बूँद वापस समुद्र में नहीं मिल जाती या जब तक यह प्राण-शक्ति एक बार फिर से परम सत्ता में विलीन नहीं हो जाती। यह संभावना सभी के लिए मौजूद है। इस समस्या को हल कर लीजिए फिर जीवन की बाकी समस्याएँ गायब हो जाती हैं।

दूसरी बात, सभी जीव चाहे मनुष्य हों, पक्षी, पशु, या पेड़-पौधे, सभी खुशी चाहते हैं और इसमें कोई अपवाद नहीं है। कोई भी दुख नहीं चाहता, कष्ट नहीं चाहता। क्या आप अशांति के माहौल में खुश रह सकते हैं जहाँ हिंसा है, जहाँ आप नहीं जानते कि आगे क्या होने वाला है? नहीं। हालाँकि आपके पास सब कुछ है लेकिन अनिश्चितता के कारण आप खुश नहीं रहेंगे। इसका अर्थ यह है कि खुशी के लिए अशांति का न होना ज़रूरी है अर्थात आंतरिक और बाह्य स्थिति में पूर्ण रूप से सामंजस्य होना चाहिए। अगर आपके हृदय में शांति न हो तो क्या आप सामंजस्यपूर्ण हो सकते हैं? क्या एक मननशील मन के बिना शांति संभव है? क्या केंद्रित मन के बिना मननशील मन का होना संभव है? और क्या बिना अभ्यास किए मन का केंद्रित होना संभव है? ध्यान ही एकमात्र ऐसा अभ्यास है जिससे हमारा मन केंद्रित हो सकता है। अब आप स्वयं समझ लीजिए मैं क्या कह रहा हूँ।

अगर आप वास्तव में, सच्चे अर्थों में खुश रहना चाहते हैं तो ध्यान कीजिए। उन चीज़ों पर ध्यान कीजिए जिन्हें आप प्यार करते हैं। सिर्फ़ ईश्वर पर ध्यान करना ज़रूरी नहीं है। कला के ज़रिए खुद को अभिव्यक्त कीजिए। कला को ही अपना ध्यान बना लीजिए और हमेशा हृदय के संकेतों को सुनिए। अपने हृदय में अपना ध्यान केंद्रित रखिए और रचनात्मकता को बाहर प्रवाहित होने दीजिए।


अगर आप आगे बढ़ना चाहते हैं तब सवाल यह है कि आप कहाँ जाएँगेआपके परे क्या हैआपके हृदय के परे क्या हैआपके मन के परे क्या हैवह है - सृष्टिकर्ता।


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अगर आप वास्तव मेंसच्चे अर्थों में खुश रहना चाहते हैं तो ध्यान कीजिए । उन चीज़ों पर ध्यान कीजिए जिन्हें आप प्यार करते हैं सिर्फ़ ईश्वर पर ध्यान करना ज़रूरी नहीं है। कला के ज़रिए खुद को अभिव्यक्त कीजिए। कला को ही अपना ध्यान बना लीजिए और हमेशा हृदय के संकेतों को सुनिए। अपने हृदय में अपना ध्यान केंद्रित रखिए और रचनात्मकता को बाहर प्रवाहित होने दीजिए।


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दाजी

दाजी हार्टफुलनेसके मार्गदर्शक

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