विश्वास विकसित करने के लिए हम अपने आप से और दूसरों से दया भाव के साथ बात करते हैं। हेले लॉर्सन हमें इस भाव पर विचार करने के लिए प्रेरित करती हैं। हेले विश्व भर में साक्ष्य-आधारित माइंडफुल सेल्फ़-कंपैशन (MSC) कार्यक्रम सिखाती हैं। वे 25 वर्षों से भी अधिक समय से हार्टफुलनेस का अभ्यास कर रही हैं और हार्टफुलनेस प्रशिक्षक हैं।

दयालुता और सहानुभूति दूसरों की सहायता करने के प्रभावशाली तरीके हैं। जब कोई व्यक्ति, जिसकी हम परवाह करते हैं, किसी काम में विफल हो जाता है या खुद को दोषयुक्त महसूस करता है तब हमारे लिए यह बहुत स्वाभाविक होता है कि हम उससे समझदारी के साथ मिलें और उसे सहयोग दें।

दयालुता, समझ और सहयोग के साथ प्रतिक्रिया करना विश्वास की नींव बनाता है। यह सहानुभूति की परिभाषा भी है। सहानुभूति का अर्थ है पीड़ा को समझने की क्षमता और पीड़ा को कम करने की इच्छा रखना।

हमें कठिनाइयों से निपटने की अपनी क्षमता पर भी विश्वास करना होगा। दूसरों के प्रति समझ और सहयोग की हार्दिक प्रतिक्रिया को सहानुभूति कहा जाता है तथा जब यह स्वयं के प्रति होती है तो आत्म-सहानुभूति कहलाती है।

व्यापक शोध से पता चलता है कि 
आत्म-सहानुभूतिपूर्ण होने की हमारी क्षमता और मानसिक स्वास्थ्य के बीच एक स्पष्ट संबंध है। शोध से पता चलता है कि दूसरों के साथ दृढ़ संबंध बनाने के लिए आत्म-सहानुभूति प्रारंभिक बिंदु है क्योंकि आत्म-सहानुभूति ही संबंधों में अपने कौशल दिखाने का प्रशिक्षण है।

आत्म-सहानुभूति स्वयं को उन लोगों के दायरे में शामिल कर लेना है जिनकी हम सहायता करना चाहते हैं। यह किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसकी हम परवाह करते हैं, कोई सौहार्दपूर्ण प्रतिक्रिया देने से कहीं अधिक कठिन है। 

इसे समझने के लिए आप इन प्रश्नों पर विचार कर सकते हैं -

जब आप स्वयं को अयोग्य महसूस करते हैं या कोई गलती करते हैं तब क्या आप अपने प्रति दयालुता, सहयोग और सहानुभूति के साथ प्रतिक्रिया करते हैं?

यदि आप हममें से अधिकांश लोगों की तरह हैं तो आप अपना आंकलन और अपनी आलोचना करेंगे।

असुविधा का अनुभव होने पर क्या आप स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होने वाली भावनाओं को अव्यक्त रख सकते हैं?

यदि आप हममें से अधिकांश लोगों की तरह हैं तो आप या तो भावनाओं के वशीभूत हो जाएँगे या उनसे बचने, उन्हें दरकिनार करने या उनका दमन करने की कोशिश करेंगे।

जब हम चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में दयालुता और आत्म-सहानुभूति के साथ प्रतिक्रिया करते हैं तब हम अपने आंतरिक स्व के साथ अपना संबंध मज़बूत करते हैं। फिर हम जटिल भावनाओं को अधिक शीघ्रता से सुलझा लेते हैं। अपनी कमियों को और अधिक स्पष्ट रूप से देखने पर हम विनम्र हो जाते हैं।


शोध से पता चलता है कि दूसरों के साथ दृढ़ संबंध बनाने के लिए आत्म-सहानुभूति
प्रारंभिक बिंदु है क्योंकि आत्म-सहानुभूति ही संबंधों में अपने कौशल दिखाने का प्रशिक्षण है।


आत्म-सहानुभूति स्वयं पर गर्व करने, आत्मकेंद्रित होने, आत्म-विलासी होने या स्वयं को दूसरों से बेहतर समझने से कोसों दूर है। यह उन सबके विपरीत है। शोध भी इस धारणा के संबंध में एकदम स्पष्ट है। जब हम आत्म-सहानुभूतिपूर्ण होते हैं तब हम कम आत्मकेंद्रित और दूसरों के प्रति अधिक दयालु हो जाते हैं। 

जब हम कठिन भावनाओं के बीच दयालुता और आत्म-सहानुभूति के साथ प्रतिक्रिया करते हैं तब चाहे कुछ भी हो हम स्वयं से जुड़े रहते हैं। हार्टफुलनेस में हम कहेंगे, “मैं मुश्किल समय में भी अपने दिल से जुड़ा रहता हूँ।” अर्थात जो भी अंदर महसूस होता है, हम न तो उसका महत्व कम करते हैं, न उसकी उपेक्षा करते हैं और न ही उससे बचने की कोशिश करते हैं। इसके लिए स्पष्टता और साहस दोनों की ही आवश्यकता है। आखिरकार, अप्रिय भावनाओं की वास्तविकता से बचने या उनकी उपेक्षा करने के लिए कम प्रयास की आवश्यकता होती है और प्रायः यह स्वाभाविक रूप से होता है।

भरोसा इस बात से शुरू होता है कि हम कैसे प्रतिक्रिया करते हैं। अपने व दूसरों के प्रति एक दयालु, उत्साहपूर्ण और उदार प्रतिक्रिया करें।

Nordic-compassion.com पर आत्म-सहानुभूति के बारे में और पढ़ें।


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हेले लॉर्सन

हेले लॉर्सन

हेले एक प्रमाणित माइंडफुल सेल्फ-कंपैशन (एमएससी) शिक्षक हैं जिन्हें इस क्षेत्र में 20 वर्षों से अधिक का अनुभव प्रा... और पढ़ें

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