होना और बनना
डॉ. टोनी नादर एक तंत्रिका वैज्ञानिक, लेखक और ट्रान्सेंडैंटल मेडिटेशन अभियान के अग्रणी हैं। यहाँ वे चेतना और ट्रान्सेंडैंटल मेडिटेशन पर किए गए शोध के निष्कर्ष के बारे में कुछ जानकारियाँ दे रहे हैं जो ‘महर्षि प्रभाव’ को मानवता की चेतना को बढ़ाने के एक तरीके के रूप में प्रस्तुत करते हैं।
सभी आध्यात्मिक मार्गदर्शक जीवन के उस पहलू पर ध्यान देने के महत्व पर ज़ोर देते हैं जो पदार्थ (matter) और भौतिक ऊर्जा से परे है, एक ऐसी वास्तविकता जो सतही संवेदी अनुभूति से परे है।
भौतिक और इस अभौतिक वास्तविकता के बीच के संबंध को लेकर हज़ारों वर्षों से दर्शन और धर्म में बड़े वाद-विवाद होते रहे हैं और ये वाद-विवाद आज के वैज्ञानिकों के बीच भी जारी हैं।
एक छोर पर भौतिकतावादी हैं जो कहते हैं कि कुछ भी आध्यात्मिक नहीं है और चेतना व जागरूकता वास्तविक नहीं बल्कि केवल भ्रामक उपफल हैं - मानव तंत्रिका तंत्र की शारीरिक गतिविधि के साथ होने वाली सहायक घटनाएँ हैं। वे चेतना को अधिक से अधिक एक पहेली के रूप में देखते हैं और मन एवं शरीर के संबंध को एक ‘कठिन समस्या’ कहते हैं क्योंकि वे यह नहीं देख सकते हैं कि यांत्रिक वस्तुनिष्ठ वास्तविकता से व्यक्तिनिष्ठ व्यक्तिगत अनुभव कैसे प्राप्त हो सकते हैं।
फिर द्वैतवादी हैं जो दो भिन्न और एक-दूसरे से अलग मूलभूत वास्तविकताओं की मौजूदगी पर ज़ोर देते हैं - एक वस्तुनिष्ठ और भौतिक तथा दूसरी व्यक्तिनिष्ठ और अभौतिक। यहाँ वही प्रश्न सामने आता है - दो मूल रूप से भिन्न अस्तित्व, जिनमें एक प्राकृतिक और कठोर नियमों का पालन करने वाला है तथा दूसरा अलौकिक प्रतीत होने वाला है, कैसे एक-दूसरे से संपर्क कर सकते हैं और एक-दूसरे को प्रभावित कर सकते हैं।
वैज्ञानिक कुछ अलौकिक होने का दावा करने वाले स्पष्टीकरणों को संदेह की दृष्टि से देखते हैं। वे उन स्पष्टीकरणों से कतराते हैं जो वस्तुनिष्ठ नियमों के अनुरूप नहीं होते हैं। जो कुछ भी अलौकिक होता है वह विज्ञान के लिए समस्या पैदा करता है। ऐसा केवल उन प्रक्रियाओं के मामले में ही नहीं होता जिन्हें समझाया नहीं जा सकता तथा जिनके द्वारा अभौतिक और भौतिक एक-दूसरे को परस्पर प्रभावित करते हैं बल्कि अलौकिक कर्ताओं की ‘स्पष्ट मनोदशा’ की अंतर्निहित शक्ति और ‘अनुचित निर्णयों’ के मामले में भी ऐसा होता है।

अद्वैत वेदांत के दृष्टिकोण को आदि शंकराचार्य द्वारा प्रकाश में लाया गया। इसको स्वामी विवेकानंद ने आगे बढ़ाया और हाल ही में महर्षि महेश योगी द्वारा भी इस पर ज़ोर दिया गया। इसमें चेतना को प्राथमिक और सर्वस्व के रूप में प्रस्तुत किया गया है। चेतना ही सब कुछ है!
हमारा निवेदन है कि यह वैदिक दृष्टिकोण विज्ञान और दर्शन की सभी समस्याओं और पहेलियों का समाधान करे। चेतना की कोई कठिन समस्या नहीं है क्योंकि चेतना ही सब कुछ है। यह प्राकृतिक भी है और मूलभूत भी। यह अंतर्निहित भी है और पारलौकिक भी।
अस्तित्व में होना, सचेतन होना है। होने का मतलब सचेतन होना है। विशुद्ध अस्तित्व विशुद्ध चेतना है। बनना वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा चेतना स्वयं को जानती है और अनेक रूपों में प्रकट होते हुए भी यह एक बनी रहती है। मेरी आगामी पुस्तक, जिसका शीर्षक है “कांशसनेस इज़ ऑल देयर इज़” (चेतना ही सब कुछ है), में वर्णित तर्क और अनुभवजन्य साक्ष्य दोनों इस बात को दर्शाते हैं कि कैसे चेतना का एक असीमित सागर अनेकता के रूप में प्रकट होता है। विशुद्ध सत्व का केवल एक ही सागर है जो सतह पर अनंत लहरों के रूप में प्रकट होता है।
सुपरग्रैविटी और एम-सिद्धांत के क्षेत्र में आधुनिक भौतिक-विज्ञान की नवीनतम खोजें समस्त विविधता के मूल में इसी प्रकार की एकीकृत वास्तविकता के होने की ओर इंगित करती हैं। तात्कालिक अनंत सह-संबंध, जो प्रकाश की गति से कहीं अधिक तेज़ी से होने वाली क्रिया के रूप में प्रकट होता है, को वैज्ञानिक रूप से दर्शाया जा चुका है। इस घटना को इंटेंगलमेंट कहा जाता है। कई स्थानों पर एक ही समय में मौजूद होने के तथ्य को अब स्वाभाविक माना जाता है और क्वांटम स्तर पर इसे तरंगों के कार्य के रूप में वर्णित किया जाता है। मूलकणों के व्यवहार में अनिश्चितता और अनियमितता के कारण कठोर और निश्चयात्मक नियमों के दायरे में रहते हुए भी स्वतंत्रता की संभावनाएँ रहती हैं। आधुनिक विज्ञान की ये और अन्य खोजें वैज्ञानिकों को चकित कर देती हैं जो प्रायः इन्हें विचित्र बताते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इन तथ्यों के स्पष्टीकरण की ज़रूरत है जो तभी हो सकता है जब भौतिकवादी और शारीरिक दृष्टिकोण से चेतना-आधारित वैश्विक दृष्टिकोण की ओर एक मौलिक बदलाव आए।
जो अलौकिक या जादुई प्रतीत होता है वह केवल प्रकृति के मूलभूत नियमों की हमारी सीमित समझ के कारण होता है। वैदिक परंपरा में ऐसी तकनीकें हैं जो चेतना के उन मूलभूत पहलुओं का उपयोग करके ऐसे प्रभाव पैदा करती हैं जो परम सत्य से अनभिज्ञ लोगों को अलौकिक प्रतीत हो सकते हैं। लेकिन ये तकनीकें और तथ्य प्राकृतिक हैं और ये कठोर नियमों का पालन करते हैं। अगर दो सौ साल पहले किसी ने कहा होता कि दो लोगों के लिए काफ़ी दूर रहते हुए भी एक-दूसरे से बात करना और एक-दूसरे को देख पाना संभव है तो उसे जादुई और अलौकिक माना जाता। आज वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग दुनिया भर में और उससे परे भी, बातचीत करने का एक पूरी तरह से स्वाभाविक तरीका है जहाँ दो लोग एक-दूसरे को सुन भी सकते हैं और देख भी सकते हैं।
चेतना-आधारित वेदांतिक वैश्विक दृष्टिकोण के लिए सहायक साक्ष्य केवल सैद्धांतिक नहीं हैं अपितु ये विश्वसनीय अनुभवजन्य निष्कर्षों और विचारों पर आधारित हैं। हम ऐसी दुनिया में रह रहे हैं जिसमें भौतिक अभिव्यक्तियाँ लगातार बदलती रहती हैं और जब हम इसकी सावधानीपूर्वक जाँच करते हैं तब हम पाते हैं कि चेतना एक ऐसा पहलू है जिसके बारे में हम सौ प्रतिशत निश्चित हो सकते हैं।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि चेतना की तकनीकों पर किए गए सैकड़ों वैज्ञानिक शोध अध्ययनों से यह पता चला है कि इनसे व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन बहुत अधिक लाभान्वित होता है, जैसा कि महर्षि के ट्रान्सेंडैंटल मेडिटेशन® (TM) कार्यक्रम द्वारा प्रदर्शित किया गया है। ये सुधार मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य व व्यवहार और सामाजिक, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय कल्याण के कई स्तरों पर होते हैं। इन चेतना-आधारित वैदिक तकनीकों को लागू करने से यह स्पष्ट हुआ है कि आंतरिक शांति प्राप्त करने से वैश्विक शांति स्थापित की जा सकती है।
जिस प्रकार किसी व्यक्ति की चेतना का सामंजस्य उसके व्यवहार को निर्धारित करता है उसी प्रकार कई व्यक्तियों की सामूहिक चेतना का सामंजस्य सामाजिक व्यवहार को प्रभावित करता है। वैदिक परंपरा के महर्षि द्वारा प्रस्तुत उन्नत ट्रान्सेंडैंटल मेडिटेशन और TM-सिद्धि® कार्यक्रमों का अभ्यास व्यक्तिगत और सामूहिक चेतना दोनों में एक प्रभावशाली सामंजस्य पैदा करता है और यह व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों प्रकार के तनाव को कम करता है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि विश्व शांति प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि हर जगह हर व्यक्ति अपने अंदर आंतरिक शांति विकसित करे। इसका एक छोटा मार्ग भी उपलब्ध है - इसे ‘महर्षि प्रभाव’ कहा जाता है।
‘महर्षि प्रभाव’ उस समय का सकारात्मक परिणाम है जब जनसंख्या के एक प्रतिशत लोग ट्रान्सेंडैंटल मेडिटेशन तकनीक का अभ्यास करते हैं या एक प्रतिशत आबादी के वर्गमूल की संख्या में लोग एक ही स्थान पर एकसाथ ट्रान्सेंडैंटल मेडिटेशन (TM) और TM-सिद्धि कार्यक्रमों का अभ्यास करते हैं। इसकी विशेषता यह है कि इससे सामाजिक रुझानों में महत्वपूर्ण सुधार होता है जिससे अपराध, दुर्घटनाओं और अस्पताल जाने वाले लोगों की संख्या और युद्ध में होने वाली मौतों सहित संघर्ष और हिंसा के संकेतकों जैसे नकारात्मक कारकों में कमी आती है और सकारात्मक आर्थिक और सामाजिक प्रवृत्तियों में वृद्धि होती है।

अपराध की रोकथाम के सामान्य तरीकों, जैसे पुलिस व्यवस्था व सुधार कार्य और विवाद समाधान के सामान्य तरीकों, जैसे सैन्य उपस्थिति और कूटनीति आदि से बहुत ही कम और अस्थायी परिणाम मिले हैं। ये दबाव डालने या समझौतों पर आधारित हैं जबकि सीमित चेतना और संकीर्ण जागरूकता के साथ अधिक तनाव की अंतर्निहित समस्याएँ वैसी ही बनी रहती हैं। सीमित दूरदृष्टि और रचनात्मकता आर्थिक और सामाजिक उथल-पुथल के रूप में प्रकट होती हैं। बल प्रयोग या समझौतों से इन समस्याओं का समाधान नहीं किया जा सकता।
एक ऐसे वैश्विक दृष्टिकोण, जो भौतिकता और भौतिक संपदा को प्राथमिक मानता है, बल्कि सब कुछ ही मानता है, का परिणाम विवाद व अवसरवादिता ही होगा क्योंकि यह नज़रिया अल्पकालिक, संकीर्ण और सीमित है।
आजकल नेतृत्वकर्ता मार्गदर्शन के लिए विज्ञान की ओर रुख कर रहे हैं और विज्ञान अंततः चेतना को स्वीकार कर रहा है। यद्यपि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और अनुवांशिक अभियांत्रिकी (जेनेटिक इंजीनियरिंग) से बड़े लाभ प्राप्त हो सकते हैं किंतु इनसे भारी जोखिम और खतरे पैदा होने का डर भी है। इस कारण मानव चेतना को उसके उच्चतम सामर्थ्य तक उन्नत करना नितांत आवश्यक हो गया है।
लोगों को ट्रान्सेंडैंटल मेडिटेशन से मिलने वाले लाभों पर सैकड़ों शोध अध्ययनों के अतिरिक्त, 116 ऐसे वैज्ञानिक शोध पत्र भी हैं जिनमें ‘महर्षि प्रभाव’ द्वारा सामाजिक जीवन में लाए गए सुधार के लिखित प्रमाण हैं। इनमें से 54 अनुभवजन्य अध्ययन सहकर्मियों द्वारा समीक्षित (peer-reviewed) शोध पत्रिकाओं या व्यावसायिक सम्मेलनों की कार्यवाहियों में प्रकाशित हुए हैं। अन्य 38 शोधपत्र शोध संकलनों में प्रकाशित हुए हैं। इनमें से कई अध्ययनों की समीक्षा स्वतंत्र वैज्ञानिकों की समीक्षा समितियों द्वारा की गई थी। परिणामों के सांख्यिकीय विश्लेषण से बहुत कम संभाव्यताएँ (probabilities) (p-values) प्राप्त हुईं जो लगभग निश्चित रूप से यह संकेत देती हैं कि ये परिणाम संयोगवश या अन्य कारकों के कारण प्राप्त नहीं हुए थे। इन अध्ययनों में सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नियमित आँकड़ों का उपयोग किया गया जिसकी पुष्टि कोई भी कर सकता था। लगभग सभी अध्ययन सर्वप्रथम ऐसे प्रकाशनों द्वारा छापे गए जो महर्षि फाउंडेशन और इसके सहयोगी संस्थानों से अलग थे। इनमें वर्णित परिकल्पना का समर्थन करने के लिए केवल पसंदीदा आँकड़ों को नहीं चुना गया था।

यह पाया गया है कि ‘महर्षि प्रभाव’ कई परिणामों का कारक है न कि केवल अन्योन्याश्रित। उस अवधि के दौरान, जब इसका अनुमान लगाया गया था, विविध सामाजिक संकेतकों के रुझान जो पहले एक-दूसरे के संबंध में बेतरतीब ढंग से बढ़ रहे थे, वे सभी एक ही सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ने लगे। इसके अतिरिक्त, महर्षि प्रभाव के परिणाम ये थे - 18 अध्ययनों में छोटे शहरों में सुधार पाया गया, 5 अध्ययनों में पूरे राज्य में, 32 अध्ययनों में सांस्कृतिक और जातीय रूप से विविध देशों में और 5 अध्ययनों में विश्व के अन्य स्थानों में सुधार पाया गया। 20 सैद्धांतिक शोध पत्रों ने सूक्ष्मता से यह अध्ययन किया है कि ‘महर्षि प्रभाव’ कैसे काम करता है। इस समय चल रही आनुवंशिक जाँच और मस्तिष्क से मस्तिष्क समकालिकता (brain-to-brain synchrony - एक ही गतिविधि से अलग-अलग मस्तिष्कों में होने वाली गतिविधि में तालमेल) पर होने वाले अनुसंधान इस बात की जाँच कर रहे हैं कि कैसे ट्रान्सेंडैंटल मेडिटेशन करने वाले समूह द्वारा ध्यान करने से दूर बैठे उन लोगों के व्यवहार पर भी प्रभाव पड़ता है जो ध्यान नहीं कर रहे होते।
संक्षेप में, ‘महर्षि प्रभाव’ प्रकृति के नियमों के एकीकृत क्षेत्र के स्तर पर, चेतना क्षेत्र में होने वाला एक तथ्य है। विश्व की आठ अरब से अधिक आबादी के लिए यदि 10,000 लोग इन तकनीकों को एक ही स्थान पर ‘महर्षि प्रभाव’ पैदा करने के लिए एकसाथ करें तो वे विश्व शांति की दिशा में प्रगति में तेज़ी लाने के लिए पर्याप्त होंगे।
हम इस महान सभा द्वारा वेदों की इस भूमि से महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाने और कार्रवाइयों को देखने के लिए उत्सुक हैं जो खुशहाली, स्वास्थ्य, समृद्धि और विश्व शांति के लिए एक आदर्श विज्ञान के रूप में चेतना की वैदिक तकनीकों को प्रस्तुत करेंगे और उनका कार्यान्वयन करेंगे।
जिस प्रकार किसी व्यक्ति की चेतना का सामंजस्य उसके व्यवहार को निर्धारित करता है उसी प्रकार कई व्यक्तियों की सामूहिक चेतना का सामंजस्य सामाजिक व्यवहार को प्रभावित करता है। |
(वैश्विक आध्यात्मिकता महोत्सव,
14 से 17 मार्च, 2024)

डॉ. टोनी नादर
महाराजा डॉ. टोनी नादर को इंटरनल मेडिसिन (आंतरिक चिकित्सा) में डिग्री प्राप्त है और वे न्यूरोसाइंस में पीएचडी हैं। वे ए... और पढ़ें