इस नवीन श्रृंखला में रवि वेंकटेशन चिंतनशील श्रवणसक्रिय श्रवणगहन श्रवण और व्यावसायिक श्रवण के साथ संवाद के अशाब्दिक संकेतों को समझने की कला पर प्रकाश डाल रहे हैं। वे उस आंतरिक यात्रा के बारे में विस्तार से बता रहे हैं जो अपने विचारों और एहसासों को सुनने से लेकर अपने हृदय को सुनने के गहन अभ्यास तक होती है। वे सुनने की कला के विकास के लिए आवश्यक एक सर्वांगीण रूपरेखा और कुछ व्यावहारिक उपाय भी बता रहे हैं जो हमारे संबंधोंप्रभावी नेतृत्व क्षमता और व्यक्तिगत विकास के लिए महाशक्ति की तरह कार्य करते हैं।

इस श्रृंखला की शुरुआत इससे बेहतर क्या हो सकती थी कि हम सुनने की कला के विशेषज्ञ के विचार सुनेंयहाँ रवि ने मार्क मिल्टन का साक्षात्कार लिया है। वे एक सामाजिक उद्यमी हैंएजुकेशन पीस (www.e4p.orgसंस्था के संस्थापक हैं और उन्हें श्रवण कौशल के क्षेत्र में तीन दशकों का अनुभव है। वे IFOTES (2001-2010) के प्रमुख भी रहे हैं। IFOTES तीस से अधिक नेशनल एसोसिएशन्स ऑफ़ टेलीफ़ोन इमरजेंसी सर्विसेज़ का एक अंतर्राष्ट्रीय संघ है जो आत्महत्या की रोकथाम तथा मानसिक एवं भावनात्मक स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम कर रहा है। आत्महत्या की रोकथाम के लिए असाधारण स्तर के श्रवण कौशल तथा इन्हें विकसित करने के लिए व्यापक प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। 

 

जब आप बोलते हैं तब आप वही दोहराते
हैं जो आप पहले से जानते हैं। 
लेकिन जब आप सुनते हैं तब आप कुछ 
नया सीखते हैं।”

दलाई लामा

सामाजिक उद्यमी बनने की यात्रा

रवि - नमस्ते मार्क! एक सामाजिक उद्यमी क्या होता है और किस चीज़ ने आपको यह बनने के लिए प्रेरित किया

मार्क - मैं सामाजिक उद्यमी को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखता हूँ जो अपनी ऊर्जा और रचनात्मकता का उपयोग ऐसी चीज़ के निर्माण में करता है जिसका समाज पर प्रभाव पड़ता है। एक उद्यमी कुछ बनाता है और उसका सामाजिक आयाम यह होता है कि यह सबकी भलाई के लिए होता है। मूलतः इसमें अपना कोई स्वार्थ नहीं होता है। इसका उद्देश्य सेवा करना होता है। 

रवि - बहुत अच्छा! आपने यह मार्ग क्यों चुनाक्या आप सदा से यही करना चाहते थे या किसी विशेष घटना के कारण जीवन के किसी विशेष मोड़ पर पहुँचकर आप वह करने के लिए प्रेरित हुए?

मार्क - जब आप पलटकर पीछे देखते हैं तब जीवन की कुछ महत्वपूर्ण घटनाएँ नज़र आती हैं। मेरे जीवन में ऐसी एक महत्वपूर्ण घटना मेरी पच्चीस से तीस वर्ष की आयु के दौरान हुई। मैं एक स्विस घड़ी की कंपनी में अच्छे पद पर था और मेरा सबकुछ ठीक चल रहा था। मेरी नई-नई शादी हुई थी और अपनी शानदार कनवर्टिबल स्पोर्ट्स कार (ऐसी कार जिसे छत के साथ या उसके बिना चलाया जा सकता है) से मैं घर जा रहा था। मेरी पत्नी घर पर मेरा इंतज़ार कर रही थी और मैं सोचता जा रहा था कि अरे वाहयह सब कितना अद्भुत है। मैं अभी तीस का भी नहीं हूँ और हमें सिर्फ़ बच्चे चाहिए। मेरा जीवन अभी से ही सफल है।

लेकिन उस रात मैं सो नहीं पाया। मैंने अपने भीतर के किसी अन्य आयाम से उठने वाली एक पुकार महसूस की जो मेरे व्यवसाय से परे थी। वह मुझे एक ऐसी जगह की ओर खींच रही थी जहाँ मैं निस्स्वार्थ भाव से सेवा कर सकूँ और जीवन में अपना योगदान दे सकूँ। 

जब आप स्वयं से प्रश्न करने लगते हैं तब आप ऐसी जगह चले जाते हैं जहाँ आप स्वयं से जीवन के बारे में कहीं अधिक गहरे सवाल करने लगते हैं और फिर कुछ चीज़ें घटित होती हैं और कुछ चीज़ें प्रकट होने लगती हैं। मेरे एक अत्यंत निकट मित्र ने मुझे बताया, “मैं आत्महत्या निरोधक हॉटलाइन पर श्रोता का कार्य करता हूँ।” यह मेरी एक अलग यात्रा की शुरुआत थी। इस बात के एक वर्ष के बाद मैं आत्महत्या निरोधक हॉटलाइन पर श्रोता बनने के लिए प्रशिक्षित हो गया।

यह मेरे जीवन में एक नया मोड़ था क्योंकि यहाँ मुझे यह एहसास हुआ कि सही ढंग से सुनने की कला सीखने से आपके जीवन में कितना बदलाव आ जाता है। आप न सिर्फ़ दूसरे लोगों को सुनना सीखते हैं बल्कि अपने आपको और अपने परिवेश को सुनना भी सीख जाते हैं। इसलिए मैंने सोचा, “हम अपने बच्चों को स्कूल में सुनने की कला क्यों नहीं सिखाते?” और इसी तरह से मेरे इस काम की शुरुआत हुई।

मुझे यह एहसास हुआ कि सही ढंग से सुनना सीखने से आपके जीवन में कितना बदलाव आ जाता है। आप न सिर्फ़ दूसरे लोगों को सुनना सीखते हैं बल्कि अपने आपको और अपने परिवेश को सुनना भी सीख जाते हैं। और इसी तरह से इसकी शुरुआत हुई।

सुनने का महत्व

रवि - यह अद्भुत है। यह बात मुझे बड़ी दिलचस्प लगती है कि जब मैं लोगों को सुनने की कला विकसित करने के बारे में कहता हूँ तो वे मुझे इस तरह देखते हैं जैसे मेरे सिर पर सींग उग आए हों - “तुम्हारा क्या मतलब हैहर कोई जानता है कि सुनते कैसे हैं।” अधिकतर लोग इसे हलके में लेते हैं और इसलिए इसे ऐसा नहीं मानते कि यह कोई सीखने लायक कौशल है या विकसित किए जाने लायक गुण है या कोई ऐसी चीज़ है जिस पर ध्यान देने की या फिर जिस पर महारत हासिल करने के लिए समय देने की ज़रूरत है। आपको ऐसा क्यों लगता है कि हमारा समाज ऐसा बन गया है जिसमें इतनी महत्वपूर्ण चीज़ की उपेक्षा की जा रही हैआपके मामले मेंआपने आत्महत्या निरोधक हॉटलाइन पर अपने श्रवण कौशल से शायद कई लोगों की ज़िंदगी बचाई होगी। आपको ऐसा क्यों लगता है कि हमारा समाज ऐसा बन गया है जहाँ यह चीज़ बिलकुल नहीं सिखाई जाती?

मार्क - बाइबिल जैसी पवित्र पुस्तकों में भी हमारे पूर्वजों ने ध्यान देकर सुनने के बारे में बहुत कुछ लिखा है। आप ध्यान से सुनने को भी सिर्फ़ सुनाई देना मान सकते हैं, “मुझे सुनाई दे रहा है और समझ आ रहा है कि आप क्या कह रहे हैं,” आप इसके दूसरे छोर पर जाकर यह भी कह सकते हैं, “क्या मैं जीवन को सुन पा रहा हूँक्या मैं उस बात को ध्यान देकर सुन पा रहा हूँ जिसकी ओर जीवन मुझे आमंत्रित कर रहा है?” आप सुनने की प्रक्रिया को बहुत अलग-अलग दृष्टिकोणों से देख सकते हैं। 

मेरी समझ मेंविगत बीस वर्षों से अधिक समय में मानवीय संवाद प्रक्रिया में बहुत बड़ा परिवर्तन आया है। बीसवीं सदी के अंत मेंजो पिछली सहस्त्राब्दी का अंत भी थाकुछ अलग हुआ। भावनात्मक बुद्धिमत्तादृढ़तासकारात्मक मनोविज्ञान आदि बातों का महत्व बढ़ा है। जिस संसार पर विज्ञान का आधिपत्य थाउसमें आज हम आत्म-जागरूकतासजगताध्यान और योग को मुख्य धारा में देखते हैं। बीस वर्ष पहले यह सब कुछ इतना सामान्य नहीं था। इसके साथ-साथ उपचार (healing) का भी आयाम है। इस संसार में इतने सारे कष्ट होने के कारण लोगों में उपचार की आवश्यकता के प्रति भी जागरूकता बढ़ रही है। कोविड की महामारी ने इस जागरूकता के प्रसार में काफ़ी सहायता की है। 

हमारे जीवन में हम सभी को कभी न कभी उपचार की ज़रूरत होती है। हम सभी तकलीफ़ों व कष्टों से गुज़रते हैं। हमारे माता-पिता इनसे गुज़रे और हमारे सभी पूर्वज भी इनसे गुज़रे थे। आजकल सुनने और उपचार के बारे में जागरूकता बढ़ रही है। गत बीस वर्षों में जिन्हें हम व्यावहारिक कौशल (soft skills) कहते रहे हैं - सामाजिक और भावनात्मक कौशल – वह अब एक व्यवसाय बन चुका है। आज शायद ही संसार में कोई व्यावसायिक स्कूल होगा जिसमें व्यावहारिक कौशल नहीं सिखाया जाता होजबकि बीस वर्ष पहले ऐसा नहीं था। 

जब मैंने वर्ष 2002 में ‘एजुकेशन पीस फ़ाउंडेशन’ शुरू किया था तब हम सामाजिक और भावनात्मक कौशल पर स्कूलों में चलाए जाने वाले कार्यक्रम खोज रहे थे और तब हमें सिर्फ़ ऑस्ट्रेलिया और फ़िनलैंड में कुछ ऐसे कार्यक्रम मिले। आज दुनिया भर में ऐसे दसियों हज़ार कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इसलिए आपके सवाल पर लौटते हुएइस दृष्टिकोण पर ध्यान देना बहुत महत्वपूर्ण है कि गत बीस वर्षों में ही मानवीय संवाद के क्षेत्र में बहुत अधिक परिवर्तन हुआ है। 

 

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सुनने की इस प्रक्रिया में आपका मुख्य उपकरण आप स्वयं ही हैं। अपने बारे में बिना जाने आप अपनी सुनने की क्षमता को विकसित नहीं कर सकते। यह एक अनवरत प्रक्रिया हैएक आजीवन प्रक्रियाचाहे आपको इसमें डिप्लोमा मिला हुआ हो लेकिन यह कहानी कभी खत्म नहीं होती। 


श्रवण के प्रकार 

ध्यान देकर सुनने में यह सीखना होता है कि किसी के साथ वास्तव में कैसे जुड़ा जा सकता है। सामान्यत: श्रवण के कई प्रकार होते हैं। दो आयामों के परिप्रेक्ष्य मेंपहला सक्रिय श्रवण होता है जबकि दूसरे प्रकार के श्रवण में समानुभूति भी शामिल होती है। इन दोनों ही तरीकों में जो बात समान है वह यह कि आपको कहाँ और कब ध्यान से सुनना हैइस बारे में ये आपकी समझ और विवेक को बढ़ाते हैं। क्या आप जिससे बात कर रहे हैं उसके विचारोंमान्यताओं और भावनाओं की दुनिया में सचमुच प्रवेश कर पाते हैं या आप सुनने के दौरान उसके अनुभवों की तुलना अपने अनुभवों से करते हैं या फिर यह सोचते रहते हैं कि जब वह बात पूरी कर लेगा तब उसे उत्तर क्या देना हैऐसे में यह सक्रिय श्रवण नहीं है। 

इसलिए सुनते समय केवल किसी के साथ पूरी तरह से मौजूद रहना सीखना ही ऐसी चीज़ है जिसे हम सभी सीख सकते हैं। लेकिन हमें यह नहीं सिखाया गया है और यह मनोचिकित्सा से संबंधित नहीं है। वास्तव में हरेक माता-पिताप्रत्येक प्रबंधक और हम सब भी इसे सीख सकते हैं। 

रवि - जब आप यह कहते हैं तब मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं क्योंकि मुझे लगता है कि प्रभावी श्रवण में सबसे बड़ी बाधा यही है। यह हम पर निर्भर करता है कि हम अपने मन में उठने वाले इधर-उधर के विचारों को कैसे नियंत्रित कर पाते हैं जिनसे हमारा ध्यान भटक जाता है। मैं आपकी बात से सहमत हूँ कि सबसे बड़ी समस्या यह है कि अपने आप पर नियंत्रण कैसे रखें और अपनी प्रतिक्रिया या प्रत्युत्तर के बारे में न सोचें। इस समस्या का समाधान आपने कैसे कियाआप अपने मन को उस जगह पर कैसे लाते हैं जहाँ आप उसे कह सकें, “अभी रुको! इस समय मुझे अपने भीतर से तुम्हारी आवाज़ नहीं चाहिए क्योंकि मैं बाहर दूसरे व्यक्ति की बात सुन रहा हूँ और उस पर अपना पूरा ध्यान दे रहा हूँ। इसलिए थोड़ी देर के लिए चुप हो जाओ?” 

मार्क - मैं इसकी तुलना ध्यान के साथ करना चाहूँगा। जब हम ध्यान करना सीखते हैं तब हम अपने विचारों के दृष्टा बन जाते हैं और इस तरह हम अपने विचारों के बीच एक खालीपन पैदा कर लेते हैं जिससे आनंदपूर्ण क्षण पैदा होते हैं। इसके कारण हम अचानक गहन व आंतरिक शांति महसूस करते हैं। जब हम ध्यान करते हैं तब अपने साथ रहते हैं। 

जब हम किसी को सचमुच सुनना सीखते हैं तब हम इसी बात का अभ्यास करते हैं। अपने मन में मौजूद विचारों के साथ बने रहने के बजाय हम कोई रायकोई दृष्टिकोण बना लेते हैं या प्रत्युत्तर के बारे में सोचने लगते हैं। यह एक पुनरारंभ है जिसमें हमें अपने सामान्य ढंग को पुनः नियोजित करना होता है। 

आत्महत्या निरोधक कार्यक्रम की हॉटलाइन पर श्रवण प्रशिक्षण की सबसे अद्भुत और खास बात यह है कि आप कठोर सत्य को सुनते हैं। आप उन लोगों से बात कर रहे होते हैं जो बड़े गहरे कष्ट में होते हैं। आप बहुत सावधान रहकर सोचते हैं, “क्या मैं प्रत्युत्तर दूँ या सिर्फ़ उपस्थित रहकर सुनूँतब मैं अपने मन का कैसे उपयोग कर रहा हूँ और अपनी ऊर्जा का कैसे उपयोग कर रहा हूँ?” आप मौजूदगी के गुण को विकसित करना सीख लेते हैं और यह जान लेते हैं कि बिना बोले और बिना विचार किए सिर्फ़ पूरे दिल से मौजूद रहकर किसी को सुनने का बहुत बड़ा महत्व है। 

रवि - किसी रहस्यमय ढंग से यह तुरंत महसूस होता हैभले ही आप कुछ भी नहीं कह रहे होते हैं। भले ही आप टेलीफ़ोन पर होते हैंतब भी सामने वाला महसूस कर लेता है कि कब उसे आपकी मौज़ूदगी का उपहार मिला है और कब नहीं। मैं तो कभी इसे समझ नहीं सका लेकिन मुझे पता है कि यह काम करता है। शायद इसलिए कि क्वांटम स्तर पर हम सभी कहीं न कहीं जुड़े हुए हैं। मैंने देखा है कि लोग जान जाते हैं कि कब आप उन पर ध्यान दे रहे हैं और कब नहीं। मेरी पत्नी को तो निश्चित रूप से यह पता चल जाता है! आपको क्या लगता है कि यह कैसे काम करता है?

मार्क - इसकी एक कुंजी है। हम लोग जो इस हॉटलाइन पर काम करते थेआपस में कहा करते थे कि जब कोई सचमुच फ़ोन पर आपके साथ होता है तब आप उसकी भौंहों का हिलना भी सुन सकते हैं। आप उसकी ऊर्जा को समझ व महसूस करते हैं। इसकी कुंजी है आपका इरादा। अक्सर जब हम लोगों को सुनते हैं तब हमारा इरादा दूसरे से जुड़ाव की गुणवत्ता पर केंद्रित नहीं होता है। यह हमारे अपने विचारों पर ही केंद्रित रहता है। हम जानना चाहते हैं कि हमारी मान्यता सही है या नहीं या फिर हम अपने विचारों पर इसलिए केंद्रित रहते हैं ताकि उन्हें मनवा सकें। हमारा इरादा अक्सर हमारी अपनी ज़रूरत से जुड़ा रहता है। सक्रिय श्रवण या समानुभूतिपूर्ण श्रवण सीखने के लिए हमें यह निश्चय करना होता है कि क्या हम उस व्यक्ति के साथ अपने रिश्ते को बनाए रखने और स्वयं उस व्यक्ति के लिए उसके साथ वास्तव में पूर्णत: उपस्थित रहना चाहते हैं। हालाँकि यह एक प्रक्रिया है लेकिन सबसे पहले हमें इसका पक्का इरादा करना होगा। 

जब हम हॉटलाइन पर काम करते हैं तब इसमें मुख्य विचार यह होता है, “मैं इस व्यक्ति की सहायता करना चाहता हूँ।” यही कारण है कि हमारी प्रशिक्षण अवधि एक वर्ष रखी गई है। इस समय में हम दूसरे को ‘बचाने’ की चाहत रखने की अपनी आदत को दूर करना सीखते हैं। हम सबमें यह मानने की प्रवृत्ति है कि दूसरों की मदद करना उनसे संबंध विकसित करने के लिए बहुत अच्छा है। हम यह नहीं सोचते कि पहले पूरी सच्चाई से उसके साथ उपस्थित रहना कितना ज़्यादा महत्वपूर्ण है। 

सक्रिय श्रवण या समानुभूतिपूर्ण श्रवण सीखने के लिए हमें यह निश्चय करना होता है कि हम उस व्यक्ति के साथ अपने रिश्ते को बनाए रखने और स्वयं उस व्यक्ति के लिए उसके साथ वास्तव में पूर्णत: उपस्थित रहना चाहते हैं। हालाँकि यह एक प्रक्रिया है लेकिन सबसे पहले हमें इसका संकल्प लेना होगा।

रवि - इरादा होने और ध्यान में क्या ज़्यादा महत्वपूर्ण हैमुझे लगता है कि इरादा होना सबसे अच्छा है लेकिन अगर हम उस पर अपना ध्यान नहीं दे पाते तो हम जो पाना चाहते हैं वह प्राप्त नहीं कर पाते। इस बारे में आप क्या सोचते हैं?

मार्क - मुझे लगता है वे साथ-साथ चलते हैं। इरादा हमारे मूल्यों की प्राथमिकता तय करने के बारे में होता है जैसे - क्या आप स्पष्ट रूप से यह जानते हैं कि आप किसी दूसरे को क्यों सुन रहे हैंआप इस संबंध से क्या पाना चाहते हैंइसके बारे में क्या आप ईमानदारी से कह सकते हैं या नहींआप इन दोनों बातों में फ़र्क जानना चाहते हैं कि आप किसी को ध्यान से सुनना इसलिए चाहते हैं कि शायद वह भावनात्मक रूप से कमज़ोर है या फिर आप सचमुच किसी को सुनना चाहते हैं। 

जब आप वैसी समानुभूति और वैसी करुणा विकसित कर लेते हैंतब आपके व्यावसायिक कार्य में भीजहाँ सुनना परस्पर लाभ के और आपके कुछ पाने की चाह के आधार पर होता हैआप यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि आपका इरादा न्यायसंगत है और यह संबंध दोनों के लिए लाभप्रद है। सुनने के इस पहलू से आप अपने इरादे को जान पाते हैं। निस्संदेहआपको बहुत ध्यान देने की भी ज़रूरत होती है जिससे आप यह सोचते हुए केंद्रित रह पाते हैं, “क्या मैं वास्तव में केंद्रित हूँक्या जो हो रहा है उसकी मुझे समझ है?”

रवि - बहुत अच्छा। मुझे लगता है कि कई और चीज़ों की तरह श्रवण में भी यह बात लागू होती है, “घर की मुर्गी दाल बराबर”। यह पति-पत्नी के संबंधों मेंपरिजनों के साथयहाँ तक कि सहकर्मियों के साथ भीजिन्हें हम बहुत समय से जानते हैंहोता है। हम जितना ज़्यादा उन्हें जानने लगते हैंहम उतना ही उन्हें कम आँकने लगते हैं। यह किसी को ठीक से सुनने में एक तरह की बाधा उत्पन्न करता है। इस बारे में आपके विचार क्या हैं और आप स्वयं ऐसी परिस्थितियों से कैसे निपटते हैं? 

मार्क - ध्यान देकर सुनने के मार्ग में हमारी सबसे बड़ी बाधाएँ हैं हमारी धारणाएँहमारी मान्यताएँहमारे दृष्टिकोण और हमारे मत। हम बहुत जल्द निष्कर्ष पर पहुँच जाते हैं क्योंकि हमारा मन जानना चाहता है कि वह किस ओर जा रहा है। निस्संदेहयह बहुत उपयोगी होता है क्योंकि हमें अपने जीवन में निर्णय लेने होते हैं। लेकिन इससे हम जिन लोगों को लंबे समय से जानते हैंउनकी बातों से आश्चर्यचकित होने से चूक जाते हैं। जैविक रूप से और भौतिक रूप से भी हर सात वर्ष में हम सब काफ़ी हद तक बदल जाते हैं। हम पूरी तरह वह व्यक्ति नहीं रहते जो हम पहले थे। इसलिए अगर हम एक-दूसरे को हर दिन नए सिरे से देखने व सुनने की कोशिश करेंजीवन का सम्मान करें और उनकी बातों से लगातार अचंभित होते रहें तो यह एक उपहार होगा। जब हम किसी तरह की तुलना करना बंद कर देते हैं तब सच्चाई दिखती है। लेकिन जब दूसरे की कहानी आपको कुछ-कुछ अपनी कहानी जैसी लगती हैतब तुलना करने का और उनसे उनके विशिष्ट अनुभव को न जानने का खतरा रहता है। 

 

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रवि - बाह्य संसार के श्रवण का आंतरिक श्रवण से क्या संबंध हैआपने सजग रहनेअपने और अपने विचारों के मध्य अंतराल पैदा करने के उपाय के रूप में ध्यान करने और इस ठहराव से मिलने वाले अवसर के बारे में बात की थी। यह आंतरिक खेल 
बाह्य परिस्थिति को किस हद तक प्रभावित करता है

मार्क - ये दोनों चीज़ें एक-दूसरे पर पूर्णतया निर्भर हैं और यह हमेशा भीतर से शुरू होता है। आप खुद को सुनने की तुलना में दूसरों को बेहतर ढंग से नहीं सुन सकते। एक बार फिर आत्महत्या निरोधक हॉटलाइन के बारे में बात करते हैं। आप सीधे-सीधे देख सकते हैं कि आप दूसरों को सुनने में कितनी सहजता या असहजता महसूस करते हैंइसका पूरा-पूरा संबंध इस बात से है कि आपका अपने साथ कैसा रिश्ता हैवे किस विषय पर बात कर रहे हैं और उनके बारे में आप क्या सोचते हैं। सुनने की इस प्रक्रिया में आपका मुख्य उपकरण आप स्वयं ही हैं। अपने बारे में बिना जाने आप अपनी सुनने की क्षमता को विकसित नहीं कर सकते। यह एक अनवरत प्रक्रिया हैएक आजीवन प्रक्रियाचाहे आपको इसमें डिप्लोमा मिला हुआ हो लेकिन यह कहानी कभी खत्म नहीं होती। जीवन गतिशील और परिवर्तनशील है क्योंकि हर परिस्थिति नई भावनाओं और विचारों को उत्पन्न करती है। इसके लिए विचारोंभावनाओं और मान्यताओं के संदर्भ में आपके भीतर जो हो रहा है उसके प्रति लगातार सतर्क रहना ज़रूरी है। हम सभी के पूर्वाग्रह होते हैं। क्या आप अपने पूर्वाग्रहों को जानते हैंस्वयं को सुनना सीखना इसकी कुंजी है। 

जीवन गतिशील और परिवर्तनशील है क्योंकि हर परिस्थिति नई भावनाओं और विचारों को उत्पन्न करती है। इसके लिए विचारोंभावनाओं और मान्यताओं के संदर्भ में आपके भीतर जो हो रहा है उसके प्रति लगातार सतर्क रहना ज़रूरी है। हम सभी के पूर्वाग्रह होते हैं। क्या आप अपने पूर्वाग्रहों को जानते हैंस्वयं को सुनना सीखना इसकी कुंजी है।

रवि - हार्वर्ड नेगोशिएशन प्रोजेक्ट के रॉजर फ़िशर और डेनियल शेपिरो अपनी पुस्तक, ‘बियॉन्ड रीज़न’में कहते हैं कि हम भावनात्मक प्राणी हैं जो तार्किक प्राणी होने का दिखावा करते फिरते हैं। अंतत: हर वार्तालाप और परिस्थिति में भावनाओं की भूमिका होती ही है। यह भी एक तरह से वही बात है जो आप कह रहे हैं। 

अब दूसरे विषय पर आते हैं - मुझे पता है कि आपने डॉक्टर मार्शल रोज़ेनबर्ग के साथ और उनके ‘नॉन वायलेंट कम्युनिकेशन’ अभियान में काम किया है। श्रवण के परिप्रेक्ष्य में उन्होंने आपको कैसे प्रभावित किया और उनके साथ आपके अनुभव से आपको कौन-सी एक या दो शिक्षाएँ मिलीं?

मार्क - मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा। जब मैं उनसे वर्ष 2000 में मिलातब मैं स्विट्ज़रलैंड में आत्महत्या निरोधक हॉटलाइन पर पहले से ही छह वर्षों से काम कर रहा था और मुझे लगता था कि इस पहेली का कुछ भाग अब भी मुझे नहीं मिला है। हम अपने वालंटियर्स को जो प्रशिक्षण देते थे उसका आधार कार्ल रॉजर्स का कार्य था जो मानवतावादी मनोविज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी थे। उन्होंने ही समन्वय और समानुभूति के सिद्धांतों को विकसित किया था और मार्शल रोज़ेनबर्ग उनके विद्यार्थी रहे हैं। जब मैं मार्शल से मिला तो मुझे अच्छा लगा कि वे इस समझ के साथ आए हैं कि यह सब केवल श्रवण से संबंधित नहीं है बल्कि इसका संबंध परस्पर संवाद से है। हमारा सुनने का तरीका इस बात से संबंधित है कि हम संवाद कैसे करते हैं। उन्होंने मनोविज्ञान के इतिहास में बहुत से आधारभूत कार्य किए हैं। वे चिकित्सा जगत में डॉक्टरों और नर्सों के लिए कार्ल रॉजर्स के कार्य को न सिर्फ़ आगे बढ़ाना चाहते थे बल्कि इसे सभी को उपलब्ध भी कराना चाहते थे। 

उन्होंने यह बिलकुल स्पष्ट कर दिया था कि हमारी भावनाएँ हमारे अंदर के हिमशैल का शिखर मात्र हैं। वे प्रकाश संकेतक की तरह हैं जो हमें बताते हैं कि कुछ है जिसकी वजह से हम भीतर असहज या सहज महसूस कर 
रहे हैं और यह वह सूत्र है जो हमें आंतरिक आवश्यकताओं तक ले जाता है। अब्राहम मैस्लो और अन्य लोगों ने इन ज़रूरतों का विवरण पहले ही बता दिया था। हमारी सभी भावनाएँ हमारी पूरित या अपूरित आंतरिक आवश्यकताओं की अभिव्यक्तियाँ हैं। और आवश्यकताओं एवं भावनाओं के बीच के इस संबंध को जानने से मुझे कई चीज़ें स्पष्ट हुईं। 

जब हम भावनाओं को उनके पीछे छुपी आवश्यकता से जोड़ना सीख जाते हैं तब यह हमारी चेतना में बड़ा परिवर्तन ले आता है। इससे हम अपनी भावनाओं की पूरी ज़िम्मेदारी ले पाते हैं और अपने जीवन की परिस्थितियों के लिए दूसरों को दोष देना और स्वयं को पीड़ित समझना बंद कर देते हैं। इससे हमें दूसरों को सुननेउनकी भावनाओं को समझने और उनमें निहित आवश्यकताओं तक पहुँचने में मदद मिलती है और यहीं पर हम सही-गलत में भेद कर पाते हैं। 

 

 

यह तो एक आयाम हुआ। दूसरा आयाम वह प्रक्रिया है जिसका उन्होंने विकास किया। भावनाओं और ज़रूरतों को आपस में जोड़ना संकट और मध्यस्थता में काफ़ी उपयोगी होता है। सर्वप्रथमबिना किसी आकलन के स्पष्ट अवलोकन कर पाने का अपना महत्व होता है। जे. कृष्णमूर्ती के काम में वास्तविक अवलोकन के विषय में बहुत अच्छी तरह बताया गया है। मार्शल के कार्य का आरंभ इस अवलोकन वाले आयाम से हुआ। उसके बाद उसमें भावनाओं व उनसे जुड़ी आवश्यकताओं का आयाम जुड़ा और फिर उसमें यह देखा गया कि वे आवश्यकताएँ किन अनुरोधों में बदल जाती हैं। उन्होंने इसकी एक बहुत सरल लेकिन प्रभावशाली और गहन प्रक्रिया विकसित की जो आज लाखों लोगों की सहायता कर रही है। 

जब हम भावनाओं को उनके पीछे छुपी आवश्यकता से जोड़ना सीख जाते हैं तब यह हमारी चेतना में बड़ा परिवर्तन ले आता है। इससे हम अपनी भावनाओं की पूरी ज़िम्मेदारी ले पाते हैं और अपने जीवन की परिस्थितियों के लिए दूसरों को दोष देना और स्वयं को पीड़ित समझना बंद कर देते हैं। इससे हमें दूसरों को सुननेउनकी भावनाओं को समझने और उनमें निहित आवश्यकताओं तक पहुँचने में मदद मिलती है और यहीं पर हम सही-गलत में भेद कर पाते हैं। 

रवि - मुझे लगता है कि वे कई मायनों में मौलिक परिवर्तन ले आए (व्यक्ति बनाम व्यवहार में परिवर्तन)। स्पष्टतःआप उन लोगों में से हैं जिन्होंने इस क्षेत्र में काफ़ी गहन कार्य किया हैइस पर काफ़ी चिंतन किया हैकाफ़ी सीखा और अभ्यास भी किया है। यह सब करने के लिए बहुत सतर्क रहने की ज़रूरत होती है क्योंकि हम आसानी से फिसल सकते हैं। कोई कितना ही निपुण होफिसलने की संभावना हमेशा बनी रहती है! 

क्या आपने कभी किसी बातचीत से बाहर आकर यह महसूस किया है, “हे भगवान! मैंने ठीक से सुना नहीं। मैंने उस समय ऐसा किया होता तो ठीक होता।” किसी लापरवाह व्यक्ति के लिए यह मामूली बात है लेकिन ऊँचाई पर पहुँचने के बाद यदि आप फिसल जाएँ तो आप ऐसी स्थिति से कैसे निपटते हैं?

मार्क - मैंने कुछ उपयोगी साधन विकसित किए हैं जिन्हें अब मैं दूसरों को सिखा रहा हूँ और संप्रेषित कर रहा हूँ। जो किताब मैं लिख रहा हूँ उसमें यह सब खुलकर लिखा गया है। अब तक पुस्तक का शीर्षक है, ‘बीइंग बिफ़ोर डूइंग’ (करने से पहले होना)और पहली चीज़ जो मैं पाठकों से कहना चाहता हूँ वह यह है कि वे अपनी उपस्थिति की गुणवत्ता को जानें। हमारे सुबह जागने से रात को सोने तक हमारी उपस्थिति का स्तर बदलता रहता है। और यह हम सभी पर लागू होता है। निस्संदेहकुछ लोग ज़रूर ऐसी भी होते हैं जो हमेशा उपस्थिति के शीर्ष स्तर पर बने रहते हैं लेकिन ऐसे अद्भुत लोग दुर्लभ हैं और मैं ऐसे ज़्यादा लोगों से मिला नहीं हूँ। 

तो सबसे पहले यह स्वीकार करें कि हमारी उपस्थिति की गुणवत्ता बदलती रहती है और फिर बिना आकलन किए गतिशीलता पर गौर करें। इसके बाद हम यह जानने की कोशिश करते हैं कि पूरी तरह उपस्थित रहने का मतलब क्या होता है और उपस्थित न रहने का क्या मतलब होता है। मेरे लिए ‘होने’ का क्या अर्थ हैऔर ‘उपस्थित होने’ का क्या अर्थ हैयह महत्वपूर्ण है कि हम दूसरों से तुलना किए बिना अपने लिए इसकी परिभाषा जानें। 

मैंने एक उपकरण विकसित किया है जिसे रिलेशनल कंपास कहते हैं। इसके अनुसार हमारी उपस्थिति के चार आधारभूत स्तर हैं और दिन भर में हमारी उपस्थिति इनके बीच बदलती रहती है। अपने साथदूसरों के साथ और जीवन के साथ संबंध के संदर्भ से हम यह जान सकते हैं कि हम कहाँ हैं। जैसे-जैसे हम इसे अपनाने लगते हैंहम इन बदलावों को देखकर उन पर ध्यान भी दे सकते हैं। हम विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण के अधिक अवलोकनात्मक दृष्टिकोण से स्वयं को जान पाते हैं। इसके बाद हम यह भी देख सकते हैं कि दूसरे भी ऐसी ही किसी जगह पर हैं जिससे उनके प्रति हममें करुणा जागृत होती है। 

मेरे लिए यह महत्वपूर्ण है कि चाहे मैं कोई कठिन बात कह रहा हूँ लेकिन मुझे पहले खुद के प्रति और फिर दूसरों के प्रति पूरी तरह सच्चा रहना चाहिए। फिर मैं ऐसी भाषा का उपयोग करता हूँ जहाँ दूसरे को सम्मानित महसूस हो और उसे जुड़े रहने के लिए प्रेरित करती हो।

रवि - यह काफ़ी ज्ञानवर्धक है और मैं इस पुस्तक को पढ़ने के लिए अधीर हो रहा हूँ। आप इसे कब तक प्रकाशित करने वाले हैं?

मार्क - इस वर्ष के दूसरे उत्तरार्ध में। 

रवि - मैं इसके बारे में उत्साहित हूँ। यह अभी तक उपलब्ध सामग्री की तुलना में बहुत ही भिन्न और गहन कार्य प्रतीत होता है। 

मार्क - मुझे आशा है कि यह पुस्तक लोगों को यह जानने में मदद करेगी कि बिना विश्लेषण किए अपने सुनने के कौशल को गहन व व्यापक कैसे बनाया जाए जो अपने व दूसरों के संबंध में हमारे अवलोकन का प्रारंभिक बिंदु होगा। मैंने यह भी पाया है जब ध्यान से सुनने के दौरान हम एक विशिष्ट स्थान पर पहुँच जाते हैं तब हमारी भाषा ही बदल जाती है। हममें वह विकसित हो जाता है जिसे मैं प्रामाणिक और समावेशी भाषा कहता हूँ। 

 

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रवि - अद्भुत! मैंने आपका साक्षात्कार लेते समय एक बात पर गौर किया है कि आप जो कहते हैं वही करते हैं। आपकी भाषा विचारपूर्ण और समावेशी थी और इसका लहज़ा कुछ अलग ही था। क्या आपने जो विकसित किया हैयह उसी से संबंधित है?

मार्क - हाँ! मैं जो बता रहा हूँ यह वही है जो मैंने अपने लिए विकसित किया है। मेरे लिए यह महत्वपूर्ण है कि चाहे मैं कोई कठिन बात कह रहा हूँलेकिन मुझे पहले खुद के प्रति और फिर दूसरों के प्रति पूरी तरह सच्चा रहना चाहिए। फिर मैं ऐसी भाषा का उपयोग करता हूँ जहाँ दूसरे को सम्मानित महसूस हो और उसे जुड़े रहने के लिए प्रेरित करती हो। यह मार्शल रोज़ेनबर्ग के काम से ही संबंधित है और मैं उसी को एक अलग तरह से प्रस्तुत कर रहा हूँ। 

बेहतर श्रोता बननेअपने भीतर करुणा विकसित करने और दूसरों की भिन्नताओं को स्वीकार करने से हमारा हृदय ग्रहणशील बनता है। मेरे अनुभव के अनुसार जितना अधिक मेरा हृदय ग्रहणशील होता हैमैं दूसरों को उतने ही अच्छे से सचमुच सुन पाता हूँ और उतना ही अधिक मैं वृहत्तर जीवन से जुड़ाव महसूस करता हूँ। मैं जीवन के स्रोत से जुड़ाव महसूस करता हूँ और उसे सुन पाता हूँ। 

रवि - एक सिद्धांत है जिसके बारे में अक्सर बात की जाती है कि जब आप अपने भीतर की आवाज़ सुनते हैं और बहुत गहराई में जाते हैं तो आप एक ऐसी आवाज़ सुन पाते हैं जो आपसे बढ़कर और आपसे परे होती है। तो हमें बेहतर श्रोता बनाने में अपने से परे अस्तित्व के प्रति आस्था या मान्यता होने की क्या भूमिका हैविशेषकरक्या इसने आपके मामले में कोई भूमिका निभाई है?

मार्क - बेहतर श्रोता बननेअपने भीतर करुणा विकसित करने और दूसरों की भिन्नताओं को स्वीकार करने से हमारा हृदय ग्रहणशील बनता है। मेरे अनुभव के अनुसार जितना अधिक मेरा हृदय ग्रहणशील होता हैमैं जितना अधिक दूसरों को अच्छे से सुनने के लिए उपस्थित रहता हूँउतना ही अधिक मैं वृहत्तर जीवन से जुड़ाव महसूस करता हूँ। मैं जीवन के स्रोत से जुड़ाव महसूस करता हूँ और उसे सुन पाता हूँ। रूमी ने बड़ी खूबसूरती से कहा है, “सत्कर्मों और दुष्कर्मों के परे जो एक जगह हैमैं तुम्हें वहाँ मिलूँगा।”

रवि - बहुत अच्छाअपनी इस हृदयपूर्ण श्रोता श्रृंखला को शुरू करने के लिए इससे बेहतर विचार मुझे नहीं मिल सकते थे। 

मार्क - धन्यवादरवि। 

रवि - धन्यवादमार्क!

 

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मार्क मिल्टन

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रवि वेंकटेशन

रवि वेंकटेशन

रवि एटलांटा में रहने वाले प्रबंधक हैं जो वर्तमान में कैंटालोप में मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में कार्य कर रहे हैं। वे प्रस्तुतिऔर पढ़ें

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