अलैंडा ग्रीन सौंदर्य की उस विलक्षण शक्ति के बारे में अपने विचार प्रस्तुत कर रही हैं जो दृष्टिकोण को बदल देती है, दिलों को खोलती है तथा संसार के साथ पारस्परिक रिश्ता बनाने के लिए हमें प्रेरित करती है। इसकी शुरुआत उनके बगीचे में एक परिवर्तनकारी क्षण से होती है।
अभी-अभी बगीचे से निकाले गए दो लाल प्याज़ लेकर उन्हें धोने के लिए मैं जैविक खाद के ढेर के पास बैठ गई। मैं खिन्नता भरे विचारों में डूबी हुई थी। मैं प्याज़ को छील तो रही थी लेकिन मेरा ध्यान इस बात पर था कि मेरे साथ अन्याय हुआ है। मैं विचार कर रही थी कि यह कैसे हुआ और मन ही मन अपनी स्थिति को बयान कर रही थी। लेकिन किसे, यह नहीं कह सकती थी। प्याज़ों को तो नहीं। जैसे ही मैंने एक प्याज़ के लाल बाहरी छिलके को उसके कंद से अलग किया, सूरज की रोशनी उस पर पड़ी और उसने प्याज़ की परत को चमकदार माणिक के रंग में बदल दिया। उसे देखकर मेरा मन ठहर गया। मैं इस मनमोहक रंग को देखकर दंग रह गई और मन विस्मय व आश्चर्य से भर गया। चिड़चिड़े विचार गायब हो गए। वे प्याज़ के इस चमकदार वैभव व हृदयस्पर्शी सौंदर्य के सामने मूर्खतापूर्ण और महत्वहीन लग रहे थे। दुनिया बदली हुई महसूस हुई। मेरा मन भी बदल गया था।
निश्चित रूप से मैं इस लाल प्याज़ की माणिक जैसी चमक से पहले भी सौंदर्य से प्रभावित हुई हूँ - जैसे झील पर झिलमिलाती रोशनी, किसी जल-पक्षी की आवाज़, शाम की हवा में बिखरी चमेली की खुशबू, नवजात शिशु के नाखूनों की संपूर्णता, भोज वृक्ष के पत्तों का हवा में चमकना। लेकिन लाल प्याज़ वाली इस घटना ने मुझे आश्चर्यचकित कर दिया और मेरे मन व हृदय को उस पल में इतना बदल दिया कि मेरे मन में सुंदरता, उसकी क्षमता और उसके रहस्य के बारे में जिज्ञासा जाग उठी।
इस अनुभव के थोड़े समय बाद ही मैंने जेकब बॉम के बारे में पढ़ा जो एक मोची थे और लूथर के अनुयायी भी। उन्होंने कोई भी औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की थी। एक दिन जब उन्होंने कांस्य के एक कटोरे में परावर्तित होते हुए सूर्य के प्रकाश पर अपना ध्यान केंद्रित किया तब उन्हें एक ऐसा दृश्य दिखाई दिया जिसने उनके सामने ब्रह्मांड की आध्यात्मिक संरचना को उजागर कर दिया। कई वर्षों बाद उन्होंने अपने अनुभवों के बारे में लिखना शुरू किया और अपने शेष जीवन में मानव, मानवीय उद्देश्य और ईश्वर के ब्रह्मांडीय संबंधों पर बत्तीस पुस्तकें लिखीं। उनकी पुस्तकों को आज भी व्यापक रूप से पढ़ा जाता है और उन पर चर्चा की जाती है। मुझ पर लाल प्याज़ के छिलके का जितना प्रभाव पड़ा था उससे कहीं अधिक प्रभाव बॉम पर कटोरे में सूर्य के प्रकाश को निहारने का पड़ा था। लेकिन दोनों ही स्थितियों में सौंदर्य की शक्ति का प्रभाव उल्लेखनीय था।

मनोचिकित्सक और द्वितीय विश्व युद्ध में पोलैंड में यहूदियों के हुए नरसंहार से जीवित बचे विक्टर फ़्रैंकल ने बताया कि एक दिन वे और दूसरे कैदी दिन भर के काम से थककर अपनी झोपड़ी के फर्श पर बैठे थे। तभी एक और कैदी दौड़कर अंदर आया और उसने उन्हें बाहर आने को कहा। वे लोग चमकते सूर्यास्त को देख अत्यधिक प्रभावित हो विस्मित खड़े थे और कुछ क्षण के लिए वे अपनी परिस्थिति को भी भूल गए थे। सौंदर्य दुख, कुरूपता, पीड़ा और विनाश को दूर नहीं करता बल्कि यह उन्हें सहने योग्य बना देता है, लोगों को आशावान बनाता है और आगे बढ़ने के लिए द्वार खोल देता है।
अपनी किताब, ‘ब्रेडिंग स्वीटग्रास’, में रॉबिन वॉल किमरर उस सौंदर्य का वर्णन करती हैं जिसे उन्होंने बचपन में देखा था जब गहरे बैंगनी रंग के एस्टर और चमकीले गोल्डनरॉड हर वर्ष एक साथ खिलते थे। उन्हें देखकर उनके मन में ये प्रश्न उठे - “वे एक-दूसरे के साथ ही क्यों खिलते हैं जब वे अकेले ही खिल सकते हैं? क्या यह केवल एक संयोग है कि बैंगनी और सुनहरे रंग की भव्यता एक-दूसरे के साथ-साथ रहने में दिखती है? इस रचना का स्रोत क्या है? यह संसार इतना सुंदर क्यों है?”
बाद में विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए साक्षात्कार के समय जब उनसे यह पूछा गया, “आप वनस्पति वैज्ञानिक क्यों बनना चाहती हैं,” तब उनके जवाब में ये प्रश्न भी आ गए लेकिन यह कहते हुए प्रोफ़ेसर ने इन प्रश्नों को खारिज कर दिया, “यह विज्ञान नहीं है।” कई साल बाद उन्होंने वनस्पति विज्ञान में पी.एच.डी. की, लेकिन इसके साथ ही उन्हें अपनी मौलिक समझ और दुनिया की सुंदरता पर अपने आश्चर्य को खोने का एहसास हुआ। एक बार उन्हें एक नावाहो महिला की पौधों के ऊपर की गई प्रस्तुति के अवसर पर आमंत्रित किया गया और वहाँ उन्होंने जो सुना, उसे सुनकर वे चौंक गईं। किमरर ने बताया कि उसने सौंदर्य की बात की। इस बात ने उनके प्रवेश साक्षात्कार के समय की उनकी उस याद को ताज़ा कर दिया जब वनस्पतिविद् बनने के उनके उत्साह को पूरी तरह से नकार दिया गया था। उन्हें कहा गया था, “सौंदर्य एक मान्य वैज्ञानिक अध्ययन नहीं है।” नावाहो महिला के भाषण को सुनकर किमरर समझ गई कि उन्हें प्रोफ़ेसर को समझाना चाहिए था कि विज्ञान जो कुछ भी सिखा सकता है, उसकी तुलना में उनके प्रश्न कहीं अधिक गहरे थे।
यह उनकी स्वदेशीय पृष्ठभूमि और वैज्ञानिक अध्ययन दोनों से प्राप्त पारस्परिक सीख ही थी जिसने उन्हें एस्टर और गोल्डनरॉड के बारे में समझ प्रदान की। चमकते सुनहरे और गहरे बैंगनी रंग के पारस्परिक मेल ने ऐसा दृश्य बनाया जो सौंदर्य से भरपूर था। उन्होंने महसूस किया – “बैंगनी और सुनहरे रंग का यह मेल जीवंत पारस्परिकता है। इससे यह ज्ञान मिलता है कि एक का सौंदर्य दूसरे से प्रकाशित होता है। विज्ञान और कला, पदार्थ और आत्मा, स्वदेशी ज्ञान और पश्चिमी विज्ञान - क्या ये एक-दूसरे के लिए गोल्डनरॉड और एस्टर हो सकते हैं? जब मैं उनके सान्निध्य में होती हूँ तब उनकी सुंदरता मुझसे पारस्परिकता की माँग करती है कि मैं भी पूरक रंग बनूँ और बदले में कुछ सुंदर रचूँ। अर्थात् हमें भी अपने आस-पास सुंदरता विकसित करनी चाहिए।

सौंदर्य दुख, कुरूपता, पीड़ा और विनाश को दूर नहीं करता बल्कि यह उन्हें सहने योग्य बना देता है, लोगों को आशावान बनाता है और आगे बढ़ने के लिए द्वार खोल देता है।
उनके विश्वविद्यालय में प्रवेश साक्षात्कार ने मुझे अपनी प्रथम वर्ष की अंग्रेज़ी कक्षा की याद दिला दी जब हम जॉन कीट्स की कविता ‘ओड ऑन ए ग्रेसियन अर्न’ पढ़ रहे थे। जब मैं कविता के अंतिम शब्दों पर विचार कर रही थी – सौंदर्य सत्य है, सत्य सौंदर्य है (Beauty is truth, truth beauty) – प्रोफ़ेसर ने उन्हें तुच्छ बताया। उन्होंने कहा, “इसे लिखते-लिखते कीट्स की प्रेरणा खत्म हो गई होगी। इसे तो कोई भी लिख सकता था। इसके अलावा कौन बता सकता है कि सौंदर्य क्या है? यह व्यक्तिगत राय तथा पसंद का विषय है।” मेरे मन में उस समय विचार विकसित हो रहे थे और जो कुछ इसके बारे में कहा गया, मैं उससे कुछ अधिक महसूस कर रही थी। मैं जानती थी कि सौंदर्य व्यक्तिगत राय या बदलते हुए फ़ैशन का विषय नहीं है बल्कि आंतरिक अनुभव का विषय है। मुझे पता था कि कीट्स का इस आंतरिक ज्ञान से जुड़ाव नहीं छूटा था। लेकिन शायद प्रोफ़ेसर का जुड़ाव छूट गया था।
कीट्स का वह कथन जो सौंदर्य और सत्य को समान मानता है, उसका कभी भी कोई निश्चित अर्थ नहीं निकाला जा सका है। यह कविता मेरी खोज को बिना किसी निश्चित व्याख्या पर पहुँचे उसी तरह प्रेरित करती है जैसे कोई भी उत्कृष्ट कविता करती है। उस अंग्रेज़ी कक्षा के कई वर्षों बाद मुझे अरबी फ़कीर, विद्वान और कवि, इब्न अरबी के ये शब्द पढ़कर खुशी हुई, “सौंदर्य वह सुखद सहजता है जिसके साथ सत्य हमारे सामने प्रकट होता है।” सौंदर्य वास्तव में परम सत्य की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करता है, विस्तृत समझ प्राप्त करने का द्वार खोलता है और एक विस्तारित हृदय का अनुभव प्रदान करता है। सौंदर्य सत्य के करीब ले जाता है। तब मन लगातार चलने वाली अपनी बकबक बंद कर देता है, समय ठहर जाता है, सब कुछ आश्चर्य और विस्मय के वर्तमान क्षण में सिमट जाता है। सौंदर्य दुनिया को बदल देता है क्योंकि यह दृष्टिकोण को बदल देता है, मन को बदल देता है।
रूमी ने कहा था, “जिस सुंदरता से तुम प्रेम करते हो, उसे अपना कर्म बनाओ। घुटने टेककर ज़मीन को चूमने - यानी श्रद्धा प्रकट करने - के हज़ारों तरीक़े हैं।” सौंदर्य का व्यक्तिगत अनुभव जीवन का अर्थ, वरदान और उद्देश्य समझने का अवसर प्रदान करता है। जो सुंदर महसूस होता है वह एक ऐसा मार्ग बन सकता है जो अस्तित्व को शुभ बनाता है और संसार का भी भला करता है। यह किमरर की उस भावना के समरूप है जिसे वे ‘सौंदर्य की पारस्परिकता’ कहती हैं। जब वे सौंदर्य की मौजूदगी में होती थीं तब बदले में कुछ सुंदर बनाने के लिए बाध्य महसूस करती थीं।
ट्रेब जॉनसन ने ‘ग्लोबल अर्थ एक्सचेंज’ नामक एक संस्था की स्थापना की है। उनके कार्यों में सौंदर्य के नाम पर सचेत कर्म प्रदर्शित किया जाता है। यह संस्था लोगों और समुदायों को पृथ्वी के आहत स्थानों पर जाकर सौंदर्यपूर्ण सरल कार्य करने में सहायता करती है। यह वैश्विक कार्य उनके अपने कार्य से विकसित हुआ जिसका वर्णन उन्होंने अपनी पुस्तक ‘रेडिकल जॉय फ़ॉर हार्ड टाइम्स’ में किया है। जब उन्होंने नष्ट हो चुके, प्रदूषित, क्षतिग्रस्त और विकृत स्थानों की पीड़ा को दूर करने का तरीका खोजने की कोशिश की तब उन्होंने पाया कि उस जगह को सुंदर बनाने से उपचार और सहयोग की भावना उत्पन्न हुई। इससे उन्हें उस सौंदर्य को देखने में भी मदद मिली जो विनाश में अभी तक मौजूद था।
मैंने इस तरह के कार्यों की शक्ति का अनुभव तब किया जब हमारे स्थानीय जंगल के बड़े हिस्से में उगने वाली सारी वनस्पतियों को बेरहमी से काट दिया गया था। ज़मीन पर लकड़ियों और मलबे के ढेर लग गए थे और केवल धूल भरी मिट्टी ही बची थी। यह हृदय विदारक अनुभव था। उसके बाद कई महीनों तक मैं अपनी कार में कुछ सुरीले ट्यूनिंग फ़ोर्क बैग में लेकर चलती थी। जब भी मैं इनमें से किसी इलाके से गुज़रती तब मैं रुककर उस स्थान पर जाकर फ़ोर्क से सुरीली ध्वनियाँ बजाती और उस ज़मीन के घावों के उपचार के लिए प्रार्थना करती। साथ में, जो हुआ उसके लिए दुख व्यक्त करती और मनुष्य के इस कृत्य के लिए क्षमा माँगती थी। ट्रेब जॉनसन के काम को पढ़कर और अपने अनुभव से मैंने समझा कि ऐसे कार्य कितने प्रभावशाली हो सकते हैं और उन्हें एक वैश्विक क्रियाशील समुदाय के रूप में विकसित होते देखना कितना सार्थक है।

लाल प्याज़ के अनुभव ने मुझे सुंदरता के बारे में जानने के लिए प्रेरित किया। सौभाग्यवश मेरे घर में एक बगीचा था जिसके कारण मुझे प्रतिदिन ऐसा करने का भरपूर मौका मिला। मैं ऐसे अनेक स्थानों पर ध्यान देने लगी जहाँ की सुंदरता को मैं विस्मित होकर निहारती रहती थी। बगीचे से जुड़ी शिक्षाओं पर एक किताब (द इंपरमनेंस ऑफ़ ब्रोकली एंड अदर लेसन्स फ़्रॉम द गार्डन) लिखते समय सौंदर्य के एक और पहलू से मेरा परिचय हुआ।
मैंने सीखा कि सौंदर्य से सामना होने पर मस्तिष्क में वास्तव में कुछ घटित होता है। तंत्रिका विज्ञान, मनोचिकित्सा और मनोरोग विज्ञान के क्षेत्रों में हुए शोध से पता चलता है कि मनुष्य संसार को बहुत अलग-अलग दृष्टिकोण से देखते हैं जो इस बात पर निर्भर करता है कि उनके मस्तिष्क का कौन सा भाग सक्रिय है। मस्तिष्क के दोनों भागों और सौंदर्य के बीच संबंध पर एक सरल सारांश इस प्रकार है -
तकनीकी रूप से विकसित संस्कृतियों के दृष्टिकोण में बायाँ मस्तिष्क अधिक प्रभावी होता है। इस विचारधारा वाले लोग चीज़ों को एक-दूसरे से अलग और प्रकृति को मनुष्यों से असंबद्ध तथा एक उपयोग करने योग्य संसाधन के रूप में देखते हैं। इसके अलावा, जब मनुष्य खतरा और असुरक्षित महसूस करते हैं तब वे बाएँ मस्तिष्क का उपयोग अधिक करते हैं और अनजाने ही भागने, लड़ने या अलग हो जाने जैसी प्रतिक्रिया करते हैं। ऐसा पाया गया है कि सौंदर्य मस्तिष्क के दाएँ भाग को सक्रिय करता है जिससे बाएँ मस्तिष्क में अलगाव, पृथकता, निराशा, भय या अतिरेक की भावना पर एक संतुलनकारी प्रभाव पड़ता है। सौंदर्य वर्तमान क्षण की भावना को सक्रिय करता है और यह बाएँ मस्तिष्क की उस प्रवृत्ति को भी संतुलित करता है जो खतरा व असुरक्षित महसूस होने पर पीछे हटने और भावनात्मक रूप से बंद हो जाने जैसी प्रतिक्रिया देती है। जब दोनों भाग संतुलन में कार्य करते हैं तब संपूर्णता, संपर्क और वर्तमान के प्रति अधिक जागरूकता रहती है। जब संसार में घटित घटनाओं के कारण चिंता और दुख उभरते हैं तब सौंदर्य और वर्तमान में मौजूद रहने के एहसास के सुधारात्मक प्रभाव भी हो सकते हैं जो उस चिंता को प्रभावहीन करने के लिए प्रतिकारक का काम करते हैं।
जब उन्होंने नष्ट हो चुके, प्रदूषित, क्षतिग्रस्त और विकृत स्थानों की पीड़ा को दूर करने का तरीका खोजने की कोशिश की तब उन्होंने पाया कि उस जगह को सुंदर बनाने से उपचार और सहयोग की भावना उत्पन्न हुई। इससे उन्हें उस सौंदर्य को देखने में भी मदद मिली जो विनाश में अभी तक मौजूद था।
इस कठिन समय में दुनिया के भले के लिए हम स्वयं को परिस्थिति से या दूसरों से अलग कर लेने की ये अनुकूलित प्रतिक्रियाएँ नहीं कर सकते। आवश्यकता है, ग्रहणशील और जागरूक होने की, सजग रहने की ताकि हम समझ पाएँ कि सामने आई परिस्थिति के लिए कैसी प्रतिक्रिया उपयुक्त है। जैसा कि किमरर बताती हैं, जागरूकता और सौंदर्य पारस्परिक जोड़े की तरह काम कर सकते हैं ताकि वे एक-दूसरे को प्रकाशित कर सकें जो इस मामले में मस्तिष्क के दोनों हिस्सों की जोड़ी है।
जब रॉबिन वॉल किमरर ने स्वयं से पूछा कि दुनिया इतनी खूबसूरत क्यों है तब उन्हें एहसास हुआ कि ऐसा होना ज़रूरी नहीं था। इसे किसी बदसूरत तरीके से भी बनाया जा सकता था। सुंदरता की पारस्परिकता के बारे में अपनी अंतर्दृष्टि से उन्हें यह समझ आया कि सुंदरता को देखना, बदले में सुंदरता प्रदान करने का आह्वान है। जब हम इस अंतर्दृष्टि पर विचार करते हैं तब शंबाला या अदन के बाग (Garden of Eden) की उत्कृष्टता को पुनः प्राप्त करने से संबंधित पौराणिक कथाएँ एक संभावना लगती हैं जिसमें हममें से प्रत्येक व्यक्ति पृथ्वी को पुनः एक सुंदर उद्यान बनाने में अपना योगदान देता है। मुझे बौद्ध गुरु टिक नाट हन के शब्द याद आते हैं – “जब हम जीवन की सुंदरता की सराहना और सम्मान करेंगे तब हम सभी प्रकार के जीवन की रक्षा के लिए हर संभव प्रयास करेंगे।”
दुनिया भर की आध्यात्मिक परंपराओं में सौंदर्य को इतना महत्व क्यों दिया जाता है, इसका एक पहलू शायद यह हो सकता है कि यह पूर्णता का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। इस बात की गहराई में जाने पर मुझे इसकी व्यापक क्षमता की झलक मिली है लेकिन मुझे संदेह है कि इसमें मेरी समझ से कहीं अधिक गूढ़ ज्ञान छिपा है। सौंदर्य हृदय को ग्रहणशील बनाता है, यह देखने वाले को वर्तमान क्षण में लाता है और यह मन की चंचलता को कम करता है। ये सभी बातें इसका संकेत देती हैं कि सौंदर्य में वर्तमान में रहना, मन को शांत करना और हृदय को खोलना जैसे पारंपरिक आध्यात्मिक अभ्यासों को प्रोत्साहित करने की क्षमता है।
आधुनिक सूफ़ी परंपरा के समर्थक और शिक्षक कबीर हेल्मिंस्की लिखते हैं कि उपस्थिति हृदयपूर्ण जागरूकता की वह अवस्था है जिससे हम उद्देश्य, प्रेरणा और सौंदर्य के बहुत सूक्ष्म अनुभवों को ग्रहण कर पाते हैं। हम एस्टर और गोल्डनरॉड की पारस्परिकता पर वापस आ गए हैं। इस मामले में जागरूकता और सौंदर्य दोनों ही एक-दूसरे को सक्रिय और प्रकाशित करते हैं।

मुझे लगता है कि सौंदर्य आध्यात्मिक शिक्षा का एक ऐसा आयाम है जिसे मैंने अब तक अनदेखा किया है। प्रेम, करुणा, उपस्थिति, स्वीकृति, सहनशीलता, क्षमा, अवधान जैसे गुण ऐसे आदर्श हैं जो अक्सर चुनौतीपूर्ण होते हैं, विशेषकर कठिन समय में। शायद इन्हें ऐसा होना भी चाहिए क्योंकि कठिन क्षण इस बात का खुलासा करते हैं कि इन आदर्शों को किस हद तक अपनाया गया है। लेकिन एक आदर्श के रूप में सौंदर्य? यह कितनी बड़ी बात है? यह डॉ. ज़ैक बुश के शब्दों की याद दिलाता है – “यदि हम अपने कार्य तथा अपने रिश्तों में सुंदरता को निखारने के लिए सचेत रूप से प्रयास करें तो हम अपना सर्वोच्च कार्य करने और आनंदपूर्वक वास्तविकता को देखने पर केंद्रित रह सकते हैं।”
यह निश्चित रूप से एक आश्चर्य से भरपूर उपहार है। जैसे-जैसे मैं इस बात पर ध्यान देती और सराहती हूँ, सुंदरता अनायास ही और अधिक प्रकट होती जाती है। बगीचे के फूल तो अद्भुत हैं ही, साथ ही उबलते पास्ता के बर्तन में बुलबुलों के आकार, कटे हुए खीरे की बनावट में समरूपता और फ़र्श पर पोंछा लगाते समय पानी में बनने वाले छल्ले भी उतने ही अद्भुत हैं। क्या ऐसी सुंदरता का प्रत्युत्तर देना सचमुच एक आध्यात्मिक अभ्यास हो सकता है? एक ऐसा आदर्श जो दूसरे आदर्शों को प्रकाशित और सुदृढ़ करे? मेरा उत्तर है - हाँ। वाह! धन्यवाद।

नावाहो प्रार्थना, ‘इन ब्यूटी आई वॉक’, का अंत इस कथन से होता है - ‘यह सुंदरता में समाप्त होती है।’ मुझे नहीं पता कि इसका क्या अर्थ है लेकिन मैं सोच रही हूँ - क्या ऐसा हो सकता है कि जीवन में हमारी सभी भेंट सुंदरता में पूरी हों?
बगीचे के फूल तो अद्भुत हैं ही, साथ ही उबलते पास्ता के बर्तन में बुलबुलों के आकार, कटे हुए खीरे की बनावट में समरूपता और फ़र्श पर पोंछा लगाते समय पानी में बनने वाले छल्ले भी उतने ही अद्भुत हैं। क्या ऐसी सुंदरता का प्रत्युत्तर देना सचमुच एक आध्यात्मिक अभ्यास हो सकता है? एक ऐसा आदर्श जो दूसरे आदर्शों को प्रकाशित और सुदृढ़ करे? मेरा उत्तर है - हाँ। वाह! धन्यवाद।

