ज़ैक बुश, एम.डी., हमारे भविष्य के उत्थान में प्रकृति की भूमिका और इस तथ्य पर चर्चा करते हैं कि हम अब खुद को प्रकृति से अलग नहीं देख सकते हैं और जब हम स्वीकार करते हैं कि हम इस पृथ्वी का ही हिस्सा हैं तब हम क्या बन सकते हैं।

अब समय आ गया है कि हम देखने के लिए एक नया दर्पण खोजें। मुझे वैश्विक स्तर पर केवल एक ही दर्पण ऐसा मिला है जो हर सामाजिक-आर्थिक वर्ग, हर जाति और हर पंथ के हर व्यक्ति के लिए काम करता है, वह है प्रकृति।
प्रकृति ही एकमात्र ऐसी जगह है जहाँ हमें उस सुंदरता के लिए देखा जाएगा जो हम हो सकते हैं न कि उन कटु अनुभवों के लिए जिन्हें हमने जिया है।
हमारे मनोभाव और प्रकृति के प्रति हमारी जागरूकता से प्रकृति की जन्म देने और सृजन करने की क्षमता कभी नहीं बदलती है। वह लगातार हमें अपने साथ पुनः रिश्ता बनाने के लिए कहती है ताकि रचनात्मकता और सृजन का आनंद हमारी अपनी दयालुता के माध्यम से प्रवाहित हो सके।
हमारे पास कुछ ऐसा बनने के अनेक अवसर हैं जो हम पहले नहीं थे। लेकिन उस अवसर को पाने के लिए इस तथ्य को स्वीकार करने का समय आ गया है कि हम सभी इस पृथ्वी का हिस्सा हैं।
हम इस धरती की मिट्टी, हवा और पानी के तत्वों का ही रूपांतरण हैं। हमारी माताओं के गर्भ में इन तत्वों ने अपने आप को इस तरह व्यवस्थित किया जिससे हमने अपना यह मनुष्य रूप प्राप्त किया। अगर हम इस तथ्य को स्वीकार कर लें कि हम अपने भीतर की और अपने आस-पास की प्रकृति से बिलकुल अलग नहीं हैं तो शायद हम अंततः खुद की सुंदरता और सामर्थ्य को देखने के लिए सही दर्पण में देख पाएँ।
पृथ्वी यह याचना नहीं कर रही है कि हम उसकी ओर देखें। मेरा मानना है कि प्रकृति खुद को हममें देखना चाहती है। अगर उसे इसकी परवाह नहीं होती तो शायद हमारा अस्तित्व ही नहीं होता। लेकिन हम यहाँ हैं, यहाँ के सबसे संवेदनशील और बुद्धिमान प्राणी, जो पृथ्वी की मिट्टी से, हमारे भीतर और हमारे आस-पास रहने वाले सूक्ष्म जीवों से, साथ मिलकर काम करने वाली हज़ारों प्रजातियों की सामूहिक बुद्धिमत्ता से अस्तित्व में आए हैं। हम अपने मन में उस सूचना प्रवाह को बनाते हैं जिससे जिज्ञासा के लिए अवसर बनेंगे, उस जिज्ञासा से रचनात्मकता विकसित होगी और उत्पादकता बढ़ेगी जो प्रकृति की संरचनाओं के तालमेल में होगी और फलदार होगी।
हम प्राकृतिक नियम का जीवित स्वरूप हैं। हम जीव जगत की ऐसी व्यवस्था हैं जो इस ग्रह पर बार-बार दोहराई जाती है जब तक हम इस रूप में नहीं आ जाते। यह हमारी अमूर्त धारणा है कि हम इस पृथ्वी पर जीवन के इस स्रोत से अलग हैं। और इसलिए हम प्रकृति के तत्वों का विनाश और शोषण करते हैं।
काश! हमें याद आ जाए कि पृथ्वी हमारा ध्यान रखती है ताकि हम पुनः खुद को जाँचें, पुनः प्रकृति के साथ तालमेल बना लें और ऐसा मानव बनें जो हम बनने में सक्षम हैं।
मुझे आशा है कि हम सभी आज युद्ध से ग्रस्त हर देश के बच्चों, माताओं, पिताओं और दादा-दादी के लिए प्रार्थना करेंगे। हम सामूहिक प्रार्थना कर सकते हैं कि यह प्रचलन खत्म हो, कि सभी देशों में क्षमा एक भाषा बन जाए जिसे हमारे बच्चों के दिलों में इस तरह बसा दिया जाए कि उन्हें हमारे अतीत की नफ़रत सीखने का अवसर ही न मिले। मुझे उम्मीद है कि हम अपने आस-पास की प्रकृति में तब तक प्रार्थना करते रहेंगे जब तक हम खुद में वह सुंदरता नहीं देख लेते जो हम बन सकते हैं। ईश्वर करे कि हम ऐसी मानवजाति बन पाएँ।

प्रकृति ही एकमात्र ऐसी जगह है जहाँ हमें उस सुंदरता के लिए देखा जाएगा जो हम हो सकते हैं न कि उन कटु अनुभवों के लिए जिन्हें हमने जिया है। |
मैं आप में से प्रत्येक के साथ इस समय जीवित होने के लिए सम्मानित महसूस कर रहा हूँ। हमें साथ मिलकर गहनतम सवाल पूछने होंगे, उनके गहनतम जवाब खोजने होंगे, अपनी प्रकृति में परिवर्तन, रूपांतरण और रचनात्मकता की अपनी क्षमता को जानना होगा।
आप पर ईश्वर की कृपा हो और हर दिन, हर साल प्रकृति के साथ अपनी संबद्धता याद रखें; प्रकृति हमेशा हमें याद रखती है। आप और आपके प्रियजनों को आशीर्वाद। ईश्वर करे कि आपके दिल और दिमाग में एक-दूसरे के प्रति और आपके आस-पास की दुनिया के प्रति क्षमा की भावना हो।
यही हमारा पुनरुज्जीवित भविष्य है।

ज़ैक बुश
ज़ैक आंतरिक चिकित्सा, एंडोक्राइनोलॉजी और मरणासन्न लोगों की देखभाल जैसे अनेक विषयों में... और पढ़ें