अदिति सक्सेना अपने जीवन में अपनी माँ की भूमिका पर अपने विचार प्रस्तुत कर रही हैं। वे उन्हें प्रेममय अनासक्ति का साकार रूप मानती हैं और बता रही हैं कि किस प्रकार उनकी माँ की विरासत ने उनके मनोभाव और मूल्यों को प्रभावित किया है।
“माँ वह है जो सबकी जगह ले सकती है लेकिन उसकी जगह कोई और नहीं ले सकता।”
—कार्डिनल मेरमिलोड
जैसे ही वर्ष 2025 के बसंत उत्सव के जीवंत रंग फीके पड़ने लगे और रविवार की शांत शाम का आगमन हुआ, मैं ‘प्रेममय अनासक्ति’ के विषय पर चिंतन करने लगी जिसके बारे में हार्टफुलनेस के वैश्विक गुरु दाजी ने बताया था। मेरे विचार स्वाभाविक रूप से उस व्यक्ति की ओर प्रवाहित होने लगे जो इस सिद्धांत की जीवंत उदाहरण हैं - मेरी माँ।
बड़े होते हुए मैं अपनी माँ के विवेक की गहराई को कभी भी पूरी तरह से समझ नहीं पाई। लेकिन जब मैं अपने जीवन और बचपन के बारे में विचार करती हूँ तब मैं उन्हें प्रेममय अनासक्ति के साकार रूप में देखती हूँ। यह एक ऐसा सिद्धांत है जो प्रगाढ़ होते हुए भी बहुत सरल है। वे न केवल मेरी रक्षा करने वाली देवात्मा हैं बल्कि मेरी मार्गदर्शक भी हैं। उन्होंने अकेले मेरी और मेरे छोटे भाई की सही परवरिश की। साथ ही हमें स्वतंत्रता और अनुशासन में अनुपम संतुलन रखते हुए पाला। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि सच्चा प्रेम किसी पर मालिकाना हक़ जमाना नहीं बल्कि स्वतंत्रता के साथ पालन-पोषण करना, बुद्धिमत्ता के साथ मार्गदर्शन करना और अनासक्त रहते हुए विकसित होने देना है।
एक मध्यम वर्गीय भारतीय परिवार से होने के कारण हम उन मूल्यों के साथ पले-बढ़े जो सीमाओं से परे थे। इंसानियत का स्थान हमेशा ही किसी भी क्षेत्रीय विभाजन से ऊपर होता था। मेरी माँ ने हमें बचपन से ही सिखाया कि जाति, पंथ और धर्म, सब मनुष्य के बनाए हुए हैं जबकि हर वह चीज़ जो मानवता को एक सूत्र में पिरोती है, अनुकरण करने योग्य है। हम विभिन्न संस्कृतियों, खेलों, संगीत और पवित्र स्थानों व आध्यात्मिक संगठनों के संपर्क में रहते हुए बड़े हुए हैं तथा हमने विभिन्न मतों की महान आध्यात्मिक हस्तियों के जीवन से बहुत कुछ सीखा है। इन सबके माध्यम से मेरी माँ ने हममें जिज्ञासा, दृढ़ता और आत्मनिर्भरता की भावना भरी जिसने हमें उस रूप में गढ़ा जैसे हम आज हैं।
स्वतंत्रता के माध्यम से सशक्तता
“बच्चों को अच्छा बनाने का सर्वोत्तम तरीका है उन्हें प्रसन्न रखना।”
—ऑस्कर वाइल्ड
ज़रूरत से ज़्यादा सक्रिय बच्चा होने के कारण मैं चाहती थी कि मुझपर दूसरों की तुलना में ज़्यादा ध्यान दिया जाए लेकिन मेरी ऊर्जा को दबाने के बजाय मेरी माँ ने इसे सही दिशा देने के तरीके खोजे। वे जान गई थीं कि दुनिया का सामना करने के लिए एक मज़बूत शरीर आवश्यक है और सही नैतिक मूल्यों व आदतों से ही मन सुपोषित होगा। बहुत कम आयु से ही उन्होंने सुनिश्चित किया कि हमें सही वातावरण मिले तथा बहुत ही सूक्ष्मता से मार्गदर्शन करते हुए हमें अपनी उम्र और अनुभव के आधार पर अपनी बुद्धिमत्ता का प्रयोग करना सिखाया।
वे कभी भी हमें लाड़-प्यार नहीं करती थीं, यहाँ तक कि छोटी-छोटी परिस्थितियों में भी नहीं। मुझे याद है कि दूसरे बच्चों के माता-पिता उनको स्कूल जाते समय बस स्टॉप पर छोड़ने आते थे, जबकि मेरी माँ ने ऐसा कभी नहीं किया। बचपन में मुझे बहुत खराब लगता था क्योंकि मैं सोचती थी कि वे हमसे ज़्यादा प्यार नहीं करतीं। लेकिन बाद में मुझे एहसास हुआ कि वे हमें आत्मनिर्भर बना रही थीं और यह सुनिश्चित कर रही थीं कि हम अपने दम पर खड़े हो सकें। उन दिनों जब हम देर से उठते और हमारी बस छूट जाती थी तब वे सारा काम-काज छोड़कर हमें स्कूल छोड़ने के लिए नहीं भागती थीं। बल्कि वे हमें अपनी गुल्लक में जमा किए हुए पैसों से सही बस पकड़ने और अपने दम पर स्कूल पहुँचने के लिए कहती थीं। उस समय मुझे यह नहीं पता था कि वे चुपचाप हम पर नज़र रखती थीं। कभी किसी को स्कूटर पर हमारे पीछे भेजती थीं या स्वयं आती थीं, यह सुनिश्चित करने के लिए कि हम अपने सबक सीखते हुए सुरक्षित थे। वे चाहती थीं कि हम अपनी लड़ाई खुद लड़ें, अपनी समस्याएँ खुद सुलझाएँ तथा अपनी पूरी कोशिश कर लेने के बाद ही उनकी सहायता लें। जवाबदेही और आत्मनिर्भरता का यह सबक जीवन भर हमारे साथ रहा।
पुस्तकों से परे का ज्ञान
“सर्वोत्तम उपहार जो माता-पिता अपने बच्चे को दे सकते हैं वह है नैतिक मूल्यों का एक मज़बूत आधार तथा विकसित होने की स्वतंत्रता।”
मेरी माँ का पालन-पोषण का तरीका अपरंपरागत था। उन्होंने कभी भी हम पर शैक्षणिक रूप से उत्कृष्ट प्रदर्शन करने का दबाव नहीं डाला बल्कि हमें इस बात के प्रति जागरूक किया कि हम जैसा चुनाव करेंगे उसी के अनुसार हमारा भविष्य बनेगा। उन्होंने हमें यह निर्णय लेने की स्वतंत्रता दी कि हम कितना समय पढ़ाई या खेलने में बिताना चाहते हैं जिससे हममें भय के बजाय आत्म-अनुशासन की भावना आए। जैसा कि सूफ़ी संत रूमी ने एक बार कहा था, “आपका काम प्रेम को खोजना नहीं है बल्कि अपने भीतर उन सभी बाधाओं को खोजना और ढूँढ निकालना है जो आपने इसके विरुद्ध खड़ी कर ली हैं।” मेरी माँ ने हमें अपने अवलोकनों से, बाल सुलभ विस्मय से अच्छी बातों को जानने के लिए प्रेरित किया। साथ ही उन्होंने हमें स्वयं से प्रेम करना, अपनी अंतःप्रेरणा पर भरोसा करना और साहस व जिज्ञासा के साथ जीवन को अपनाना सिखाया और इस तरह कई अवरोधों को तोड़ा। उन्होंने हमें विभिन्न रुचियों, जैसे संगीत, रंगमंच, चित्रकला, नृत्य, खेल, मार्शल आर्ट, शास्त्रीय गायन को जानने के लिए प्रोत्साहित किया, यहाँ तक कि तेरह साल की होते-होते शहर के भीतर और बाहर अकेले यात्रा करने के लिए भी प्रोत्साहित किया।
वे कितनी साहसी थीं! उन्हें ईश्वर पर अटूट विश्वास था और साथ ही यह विश्वास भी था कि वे सदैव हमारी रक्षा करेंगें। वे सेल फ़ोन वाले दिन नहीं थे। तब केवल लैंडलाइन और आपातकालीन कॉल के लिए कुछ सिक्के ही हमारी सुरक्षा के साधन हुआ करते थे। इसके बावजूद उन्होंने हमें संसार में निडर होकर आगे बढ़ने की क्षमता प्रदान की जिससे हम सक्षम और आत्मनिर्भर बन पाए।
मेरी माँ ने हमें अपने अवलोकनों से, बाल सुलभ विस्मय से अच्छी बातों को जानने के लिए प्रेरित किया। साथ ही उन्होंने हमें स्वयं से प्रेम करना, अपनी अंतःप्रेरणा पर भरोसा करना और साहस व जिज्ञासा के साथ जीवन को अपनाना सिखाया और इस तरह कई अवरोधों को तोड़ा।

आध्यात्मिकता और सेवा पर आधारित जीवन
“दूसरों की सेवा करना वह किराया है जो आप पृथ्वी पर अपना स्थान पाने के लिए देते हैं।”
—मुहम्मद अली
मेरी माँ ने हमें जो सबसे लाभदायक उपहार दिया, वह था छोटी उम्र में ही आध्यात्मिकता से हमारा परिचय। उन्होंने कभी भी हम पर किसी मत को नहीं थोपा। जब मैंने बौद्ध धर्म, जैन धर्म, सूफ़ीवाद, ईसाई धर्म के बारे में और अधिक जानने में अपनी रुचि व्यक्त की तो बड़ी सहजता से उन्होंने मुझे अपनी चाची के साथ जाने के लिए प्रेरित किया जब वे (मेरी चाची) रविवार की सामूहिक प्रार्थना में शामिल होने या गायक मंडली में गाने के लिए जाती थीं। मैं पुस्तकालय जाकर सूफ़ी संतों के बारे में पढ़ती थी और विभिन्न धर्मों की उत्पत्ति की जानकारी भी हासिल करती थी। उन्होंने हमें हठधर्मिता, रूढ़िवादी सोच और सामाजिक सीमाओं से ऊपर उठने और स्वयं के प्रयासों से ईश्वर की खोज करके उन सार्वभौमिक सत्यों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जो हम सभी को जोड़ते हैं।
जैसा संत कबीर ने बहुत खूबसूरती से कहा है, “जो धारा तुम्हारे अंदर बहती है, वही मेरे अंदर भी बहती है।”
मेरी माँ ने हमें सभी में उसी दिव्य तत्व को देखना सिखाया चाहे उनकी पृष्ठभूमि कुछ भी हो। इसलिए हमारे घर में अलग ही प्रकार के उत्सव मनाए जाते थे - जन्मदिन या कोई महत्वपूर्ण अवसर तथा कुछ सप्ताहांत अनाथालयों, वृद्धाश्रमों और पशु आश्रयों में बीतते थे। हम अपनी खुशियाँ उन लोगों के साथ साझा करते थे जिनके अपने परिवार नहीं थे। उन्होंने हमेशा देने के महत्व पर ज़ोर दिया तथा भौतिक संपत्ति की तुलना में शिक्षा और कौशल साझा करने को महत्व दिया। अपने कर्मों के माध्यम से उन्होंने हमें समझाया कि जीवन का सार विनम्रता और दयालुता से दूसरों का पोषण, सुरक्षा और उत्थान करने में निहित है।
अपने कर्मों के माध्यम से उन्होंने हमें समझाया कि जीवन का सार विनम्रता और दयालुता से दूसरों का पोषण, सुरक्षा और उत्थान करने में निहित है।

एक आध्यात्मिक योद्धा का मूक प्रभाव
“बच्चे को सिखाने का सबसे अच्छा तरीका है स्वयं उदाहरण बनना।”
—मदर टेरेसा
अनेक ज़िम्मेदारियों के बावजूद मेरी माँ ने अपने आध्यात्मिक अभ्यास में कभी कोई कमी नहीं बरती। सुबह का ध्यान, शाम की सफ़ाई और रात्रिकालीन प्रार्थना के मामले में कोई समझौता नहीं होता था। हम उनके साथ चुपचाप बैठ जाते और उनकी तरह पूजा करने की नकल करते, बिना इस एहसास के कि यह हमें कितनी गहराई से आकार दे रहा था। प्रत्येक रविवार, चाहे हम कहीं भी होते थे, वे हार्टफुलनेस केंद्र ढूँढ ही लेती थीं और हमें अपने साथ ले जाती थीं। उनकी अपने मार्ग के प्रति सादगी, विनम्रता और प्रसन्नता से भरी प्रतिबद्धता ने परोक्ष रूप से हमें प्रभावित किया जिससे हम स्वयं ही जिज्ञासु बन गए।
कवि खलील जिब्रान के शब्दों में, “आपके बच्चे आपके बच्चे नहीं हैं। वे जीवन की अपने प्रति तड़प की संतानें हैं। वे आपके माध्यम से आते ज़रूर हैं लेकिन आपके नहीं हैं; यद्यपि वे आपके साथ रहते हैं फिर भी वे आपके नहीं हैं।”
जैसे-जैसे हम बड़े होते गए, मेरी माँ हमारी मित्र बन गईं जिनके साथ हम अपनी पसंद, रुचियों और दुविधाओं के बारे में खुलकर बात कर सकते थे। उन्होंने हमें अपने दिल की बात सुनना और जीवन के फ़ैसले लेने के लिए अपने अंतर्ज्ञान का उपयोग करना सिखाया।
जैसे-जैसे हम बड़े होते गए, मेरी माँ हमारी मित्र बन गईं जिनके साथ हम अपनी पसंद, रुचियों और दुविधाओं के बारे में खुलकर बात कर सकते थे। उन्होंने हमें अपने दिल की बात सुनना और जीवन के फ़ैसले लेने के लिए अपने अंतर्ज्ञान का उपयोग करना सिखाया लेकिन उनका विवेक सिर्फ़ हम तक ही सीमित नहीं था। पिछले कई सालों में, मेरे मित्रों और सहकर्मियों ने उनकी मौजूदगी में सुकून पाया है। वे अक्सर उनका मार्गदर्शन लेने के लिए हमारे घर आते हैं। मैं अक्सर मज़ाक करती हूँ कि वे मुझसे ज़्यादा मेरी माँ के मित्र हैं!
शिष्टता और शक्ति का जीता-जागता उदाहरण
“माँ का प्रेम असीम होता है, उसकी शक्ति अद्वितीय होती है और उसका विवेक कालातीत होता है।”
आज भी मेरी माँ एक प्रेरणास्रोत हैं – केवल मेरे लिए ही नहीं बल्कि उन सभी के लिए जो उनके साथ समय व्यतीत करते हैं। अकेले ही हमारा पालन-पोषण करना आसान नहीं था लेकिन उन्होंने सभी बाधाओं को पार किया और यह सुनिश्चित किया कि हमें ऐसी शिक्षा मिले जो हमारे लिए आवश्यक थी। साथ ही उन्होंने हमें अपने कर्मों और नैतिक मूल्यों के माध्यम से दुनिया में अपनी पहचान बनाना सिखाया। उन्होंने हमें चुपचाप रहकर बदलाव लाने वाला बनाया, सत्य पर अडिग रहना सिखाया और उन लोगों की रक्षा करना सिखाया जो अपनी रक्षा स्वयं नहीं कर सकते।
हर समस्या का समाधान ढूँढने वाले दृष्टिकोण के साथ असफलताओं से ऊपर उठने की क्षमता उनकी सबसे बड़ी ताकतों में से एक रही है। उन्होंने कभी भी परिस्थितियों को हमारे भाग्य पर हावी नहीं होने दिया। यहाँ तक कि जब वे गंभीर गठिया से पीड़ित थीं तब भी उन्होंने योग और अपने दृढ़ संकल्प की सहायता से स्थिति को पलटने के बारे में सोचा। वे आज भी पैदल चल कर लंबी दूरी तय करती हैं, यात्राएँ करती हैं तथा हमेशा की तरह उसी उत्साह के साथ जीवन को अपनाती हैं।
वे अभी भी मेरी सबसे बड़ी शिक्षिका, मेरा अविचल सहारा और शिष्टता के मूर्त रूप का एक सच्चा उदाहरण हैं। उनके माध्यम से मैंने सीखा है कि प्रेम का मतलब हासिल करना नहीं है बल्कि पोषित करना, मार्गदर्शन करना और अंततः श्रद्धापूर्वक स्वतंत्र छोड़ देना है। मैंने उनसे जीवन में भरोसा करना, दयालु स्वभाव रखना और प्रेम को स्वतंत्र रूप से बहने देना सीखा है, जैसा वे हमेशा करती रही हैं।
इस प्रकार उनकी विरासत जारी रहेगी - न केवल हममें, बल्कि उन सभी में जो उनके संपर्क में आए क्योंकि वे हमारे घर की केंद्र बिंदु हैं, हमारे मार्ग का प्रकाश हैं तथा प्रेममय अनासक्ति का जीवंत स्वरूप हैं।
“ईश्वर हर जगह नहीं हो सकता और इसलिए उसने माँ को बनाया।”
—रुडयार्ड किपलिंग

उनके माध्यम से मैंने सीखा है कि प्रेम का मतलब हासिल करना नहीं है बल्कि पोषित करना, मार्गदर्शन करना और अंततः श्रद्धापूर्वक स्वतंत्र छोड़ देना है। मैंने उनसे जीवन में भरोसा करना, दयालु स्वभाव रखना और प्रेम को स्वतंत्र रूप से बहने देना सीखा है, जैसा वे हमेशा करती रही हैं।

अदिति सक्सेना
अदिति अपने चरित्र के निर्माण का श्रेय अपनी माँ और आध्यात्मिक गुरु को देती हैं। अदिति इंफोसिस टेक्नोलॉजीज़ में वरिष्ठ सलाहकार हैं। वे एक एथलीट भ... और पढ़ें