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दिसंबर 2023 में दस मृत्तिका-शिल्पी और मूर्तिकारों ने साथ मिलकर धरती से जुड़े अपने माध्यम यानी मिट्टी से बनी अपनी कृतियों द्वारा यह अभिव्यक्त किया कि एक संकटग्रस्त संसार को साझा करना कैसा लगता है। अनन्या पटेल ने उन कलाकारों को उनके वातावरण में काम करते देखा और उन परियोजनाओं के बारे में लिखा जिन पर वे काम कर रहे थे।

दिसंबर माह में दो हफ़्तों के लिए विश्व भर के दस मृत्तिका-शिल्पी (ceramists) और मूर्तिकार सिरेमिक्स सेंटर में एकत्र हुए। यह एक लाभ-निरपेक्ष स्टूडियो है जिसकी स्थापना वर्ष 1998 में वडोदरा में की गई थी। यह अपनी तरह का भारत का पहला स्टूडियो है जो कलाकारों को सहयोग देता है। इसमें स्वर्गीय ज्योत्सना भट्ट की प्रमुख भूमिका रही है। वे एक प्यारी शिक्षिका और कलाकारा थीं। उन्होंने सिरेमिक सेंटर और इससे जुड़े समुदाय के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस केंद्र ने हमेशा इस आदर्श के तहत काम किया है कि प्रयोगों में सहयोग देने और रचनात्मक विचारों के क्रियान्वयन के लिए कलाकारों को स्थान, मूलभूत सुविधाएँ एवं तकनीकी विशेषज्ञता उपलब्ध हों। इसमें मुख्यतः रचनात्मक अभिव्यक्ति पर ध्यान दिया जाता है न कि व्यावसायिक लाभ पर।

इस स्टूडियो में ज्योत्सना भट्ट जी की स्मृति में आयोजित किए जाने वाले ‘रिमेंबरिंग ज्योत्स्ना भट्टशिविर की श्रृंखला में इन दस कलाकारों का दूसरा समूह था और वे इस केंद्र को नई आवाज़ और परिप्रेक्ष्य देने के लिए आए थे। वे ‘द अर्थ वी शेयर यानी हम सबकी धरती विषय के अंतर्गत यहाँ एकजुट हुए थे और उन्होंने मानव और पर्यावरण के मध्य अंतर्संबंधों, भू-राजनैतिक तनाव तथा जलवायु परिवर्तन के कारण उभरी समस्याओं के बारे में चिंतन, प्रयोग और साथ मिलकर काम किया। शिविर के अंत में एक सामूहिक प्रदर्शनी रखी गई और कलाकारों ने दर्शकों को ‘हम सबकी धरती के सौंदर्य और कोमलता पर चिंतन करने के लिए आमंत्रित किया। कार्य के दौरान कलाकारों ने अपने रचनात्मक अभ्यास पर, सिरेमिक सेंटर में काम करने पर, मुख्य विषय के बारे में अपने दृष्टिकोण पर और इस बात पर भी चिंतन किया कि किसी सामूहिक सामुदायिक व्यवस्था में काम करने का क्या फ़ायदा होता है। 

फाल्गुनी भट्ट मूलतः वडोदरा की रहने वाली हैं और वे काफ़ी समय से सिरेमिक सेंटर के साथ जुड़ी हुई हैं। उन्होंने ही शिविर के इस प्रकरण की संकल्पना की, कलाकारों का चयन किया और प्रदर्शनी का आयोजन किया। उन्होंने कहा, “कलाकृतियों की यह श्रृंखला खोए हुए भूदृश्य और प्राकृतिक जगत पर मानवीय गतिविधियों के प्रभाव के बारे में जानकारी देती है। मेरी कोशिश प्राकृतिक वातावरण के सौंदर्य को रेखांकित करने के साथ इस बात की ओर ध्यान खींचना है कि हमने किस तरह इसे बदला और नष्ट किया है।

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शालिनी दाम अपने कार्य में भू-राजनैतिक विवरणों को प्रदर्शित करती हैं। यहाँ वे अपनी छह मीटर लंबी कलाकृति के घटकों को तैयार कर रही हैं जिनमें वे विभिन्न समाजों व संस्कृतियों में प्रतीकात्मकता के माध्यम से शांति एवं युद्ध के द्वंद्व के बारे में जानकारी दे रही हैं।

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जीन एपलबी हार्टफुलनेस इंस्टिट्यूट में पॉटरी यानी कुम्हारी की प्रमुख हैं और इस शिविर में एक कलात्मक परियोजना को विकसित करने के लिए आई थीं। 

उन्होंने बताया, “जब मैंने अपनी पहली कलाकृति बनाई तब से मैंने महसूस किया कि मुझे कुछ मार्गदर्शन मिल रहा था और कलाकृति के विचार मेरे सामने पूर्ण रूप में उभर रहे थे। ऐसा नहीं था कि मुझे जितना ज़्यादा मिल रहा था, मैं उसे खोज रही थी। हाल ही में जीन को जो मार्गदर्शन मिला उससे वे प्राचीन मानव सभ्यता को लेकर एक काल्पनिक कथा गढ़ने लगीं। उन्होंने प्राचीन लोगों द्वारा बनाई गई और सुरक्षित रखी गई वे चीज़ें बनाईं जिन्हें वर्तमान में खोजा और उपयोग में लाया जाना है। इन बर्तनों का निर्माण उन्होंने इसलिए किया कि दूसरे लोग इस पर विचार कर सकें। उन्हें आशा थी, “इनसे लोगों को इस बात को समझने के लिए प्रेरणा मिलेगी कि हमारी पृथ्वी पर बहुत-सी जगहों पर बहुत से लोग रहते रहे हैं। सभी ने इस धरती को संवारने के लिए हम पर भरोसा किया है ताकि हम सब लोग एक हो जाएँ।

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श्वेता मानसिंगका कहती हैं, “मैं मानती हूँ कि कलाकार के विचारों की एक आवाज़ होती है जो उसके काम में प्रतिध्वनित होती है और उसके दर्शकों को सुनाई देती है। यह कला न्यूनतमवाद की अभिव्यक्ति है जिसके लिए आशा की जाती है कि वह दर्शक को चिंतन करने और अपने अंतर की गहराई में जाने के लिए प्रेरित करेगी। मेरी सिरेमिक की कलाकृतियाँ हमारी प्राण शक्ति या ऊर्जा, प्रकृति और पृथ्वी के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता की भावना की अभिव्यक्ति हैं।

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डॉक्टर जूली बार्थलम्यु मधुमक्खियों और अन्य कीटकों के बारे में अपना अनुसंधान जारी रखने के विचार से प्रेरित हैं। ऑस्ट्रेलिया में वनों में लगी आग ने वहाँ की जैव विविधता को, विशेषकर कीटकों की प्रजातियों को, नष्ट कर दिया। उसकी प्रतिक्रिया के रूप में उन्होंने वर्ष 2020 में अपनी कला की ‘हैबिटैट श्रृंखलाशुरू की। वे स्वयं एक मधुमक्खी पालक हैं और उनकी कलाकृतियाँ सक्रिय छत्ते हैं जिन्हें उन्होंने वास्तुकला के अनुसार बनाया है। उनमें मधुमक्खियाँ रह सकती हैं और अपनी जनसंख्या में वृद्धि भी कर सकती हैं। 

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मधुमक्खियों में और उनके सहयोगी समुदाय में यह रुचि एक अन्य सह कलाकार अंतरा सिन्हा में भी है। अंतरा बताती हैं, “हमारी सभ्यता में उपलब्ध भिन्न-भिन्न प्रकार के घरोंदों और उनकी वर्तमान स्थिति को देखकर मुझमें कौतुहल उत्पन्न हो गया है। मैं मधुमक्खी के छत्तों, मधुमक्खियों और इन संवेदनशील जीवों में मौजूद परस्पर सहयोग के बारे में सोचती रहती हूँ और उसकी तुलना मनुष्यों से करती हूँ।

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मेरे लिए एक नई सामग्री को खोजना और उसका विस्तार करना नई मित्रता बनाने के समान है।


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इंद्राणी सिंह कैसिमे ने सिरेमिक सेंटर में विकसित हो रहे कलाकारों के एकसाथ मिलकर काम करने वाले समुदाय पर अपने विचार साझा किए, “मैंने यहाँ कुछ जीवन भर के लिए मित्र बनाए हैं इसलिए कुल मिलाकर यह मेरे लिए एक बढ़िया अनुभव रहा। हमारे काम में कुछ चिन्ह और कोण होते हैं जिनमें कुछ छिपे होते हैं और कुछ दिखाई देते हैं और जिन्हें खोजाना होता है। मेरे लिए एक नई सामग्री को खोजना और उसका विस्तार करना नई मित्रता बनाने के समान है।

इंद्राणी ने इस अवसर का उपयोग अपने वातावरण और समूह के भीतर उभरती सहक्रियता की विशिष्ट खूबियों के साथ प्रयोग करने के लिए किया। वे अपनी सामग्री अपने साथ लेकर आई थीं जैसे पौंडिचेरी में उनके स्टूडियो के निकट एक समुद्रतट पर पाई जाने वाली ज्वालामुखी रेत और उसे सिरेमिक सेंटर की मिट्टी, ग्लेज़ और लकड़ी की राख के साथ मिलाकर उन्होंने अनोखी बनावट व प्रभावों वाली कृतियाँ बनाईं। उनकी ‘मेमोरी वेसल्स’ की श्रृंखला का निर्माण उनके सहयोगी कलाकारों के कार्यस्थलों से जमा की गई अलग-अलग प्रकार की मिट्टियों के मिश्रण से हुआ है।

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खगेश्वर राउत माध्यम के अनूठे गुणों से प्रेरित हैं। उनका मानना है कि सिरेमिक की एक कलाकृति बनाने के लिए प्रकृति के सभी तत्व एक साथ काम करते हैं। सिरेमिक पृथ्वी से उत्पन्न होता है और जल से ढलनशीलता पाता है जिसके बिना आप उसे आकार नहीं दे सकते। वायु उसे सुखा देती है लेकिन वह नाज़ुक और कमज़ोर होता है। जब उसे अग्नि में पकाया जाता है तब उसे शक्ति मिलती है और उसका स्वरूप बना रहता है।

उन्होंने और अन्य लोगों ने यह पाया कि भारत में ऐसे समुदाय पर आधारित स्टूडियो बहुत कम हैं जहाँ कलाकार समानता के आधार पर काम करने का अवसर पा सकें, अपने विचार व ज्ञान साझा कर सकें और एक-दूसरे से प्रेरणा प्राप्त कर सकें। उनका कहना था, “हम लोग अपने-अपने स्टूडियो में काम करने और अपने खुद के ही काम का प्रचार करने के आदी हैं। हम भूल गए हैं कि कला एक-दूसरे के साथ विचारों का आदान-प्रदान करके ही सीखी और रची जाती है न कि एकाकी रह कर। पहले यह ऐसा ही था लेकिन अब हम न तो खुद ऐसा करते हैं और न ही युवा कलाकारों को ऐसा करना सिखाते हैं।

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कला एक-दूसरे के साथ विचारों का आदान-प्रदान करके ही सीखी और रची जाती है न कि एकाकी रह कर।


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एक-दूसरे के साथ कुछ ही दिन बिताने के बाद उस स्थान में एक सामंजस्य और घनिष्ठता का भाव पैदा हो गया था। सभी सहभागियों ने अपने ज्ञानवर्धन और नए आयामों को जानने के लिए एक-दूसरे को सहयोग दिया और साथ मिलकर कार्य किया। इससे उन्हें नया दृष्टिकोण मिला व आवश्यकता पड़ने पर काम करने में मदद मिली। उन लोगों ने कलाकारों द्वारा सामुदायिक कला स्थानों पर अपनी शिक्षाओं और अनुभवों के बारे में बताने की ज़रूरत को व्यक्त किया ताकि युवा रचनाकारों को अधिक ज्ञान और अवसर मिल पाएँ। कई कलाकारों ने उदारता से अपनी नई खोजें और विधियाँ सिरेमिक सेंटर में बताईं ताकि सिरेमिक कलाकारों की भावी पीढ़ियों को उसका लाभ मिल सके और उनको एक सम्मान व देखभाल से भरा वातावरण मिल सके ताकि वे संभावनाओं को बढ़ाने वाली अर्थपूर्ण कलाकृतियाँ बना सकें।

फ़ोटोग्राफ़ी साभार - सिरेमिक सेंटर, बड़ौदा


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अनन्या पटेल

अनन्या पटेल

अनन्या एक डिज़ाइनर एवं चित्रकार हैं जिन्हें कहानी सुनाने के विभिन्न प्रभावकारी तरीके ढूँढना अच्छा लगता है। वे सामाजिक प्रभाव वाली परियोजनाओं पर काम करती हैं और एक युवा संगठन चलाती है... और पढ़ें

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