बस कुछ सोच और एहसास
डॉ. इचक अडीज़ेस आपसी विश्वास और सम्मान की प्रकृति पर अपने कुछ विचार व्यक्त कर रहे हैं। वे बता रहे हैं कि हम किसी का सम्मान किए बिना उस पर विश्वास क्यों कर सकते हैं और विश्वास किए बिना सम्मान क्यों कर सकते हैं।
आम बातचीत में हम अक्सर इन अवधारणाओं का एक-दूसरे के स्थान पर उपयोग करते हैं जैसे कि वे समानार्थी हों। लेकिन ऐसा नहीं है। मैं समझाता हूँ।
दार्शनिक इमैनुअल कांट सम्मान को “दूसरे व्यक्ति की अलग तरीके से सोचने की संप्रभुता” के रूप में परिभाषित करते हैं। इसे आमतौर पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता समझा जाता है। पारस्परिक सम्मान लोकतंत्र का एक सांस्कृतिक स्तंभ है।
मैं एक कदम और आगे बढ़ा और मैंने अपने आप से पूछा कि मुझे उन लोगों का सम्मान क्यों करना चाहिए जो मुझसे असहमत हैं? इसका उत्तर है, क्योंकि मैं उनकी असहमतियों से सीखता हूँ।
हिब्रू भाषा में हम सम्मान व्यक्त करने के लिए दो शब्दों का उपयोग करते हैं - आदर और सराहना। मेरे विचार में पारस्परिक सम्मान पारस्परिक सराहना का पर्याय है। मैं आपकी असहमति की सराहना करता हूँ जब तक कि यह सम्मानपूर्वक की जाती है, यानी आप मेरी असहमतियों से सीखने के लिए तैयार हैं।
जब विभिन्न पक्षों के बीच विविधता और परस्पर सम्मान होता है तब आपस में तालमेल होता है। आदान-प्रदान और एक-दूसरे से सीखने के परिणामस्वरूप कार्य बेहतर होता है।
अब, सवाल यह उठता है कि विविध ज्ञान या धारणा वाले लोगों को अपने विचारों का आदान-प्रदान क्यों करना चाहिए? इसमें ऊर्जा और समय लगता है।
जब विभिन्न पक्षों के बीच विविधता और परस्पर सम्मान होता है तब आपस में तालमेल होता है। आदान-प्रदान और एक-दूसरे से सीखने के परिणामस्वरूप कार्य बेहतर होता है।
उन्हें ऐसा इसलिए करना चाहिए क्योंकि वे आदान-प्रदान से लाभान्वित होते हैं। आदान-प्रदान में जो भी नए सुझाव अपनाए जाते हैं उनसे प्रत्येक पक्ष को लाभ होता है। इसे सहजीविता कहा जाता है। जब हम सभी एक ही संस्था से संबंधित होते हैं तब सहजीविता उत्पन्न होती है। संस्था में हम जो भी योगदान देते हैं उससे हमें लाभ अवश्य होगा। उदाहरण के लिए, गुर्दा अपना काम करके पूरे शरीर की स्वस्थता में योगदान देता है और एक स्वस्थ शरीर बदले में गुर्दे को स्वस्थ रखता है। ऐसा होने के लिए, संस्था में विश्वास होना चाहिए, यह भरोसा होना चाहिए कि इसमें सभी की भलाई है और सभी उस भलाई के साझेदार हैं।
अंतर
ये अवधारणाएँ एक-दूसरे पर निर्भर नहीं हैं। व्यक्ति किसी पर विश्वास कर सकता है लेकिन ज़रूरी नहीं कि वह उसका सम्मान भी करे। उसी तरह व्यक्ति किसी का सम्मान कर सकता है लेकिन ज़रूरी नहीं कि वह उस पर विश्वास भी करे।
उदाहरण के लिए, मैं अमेरिकी व्यवस्था पर भरोसा करता हूँ और ईमानदारी से अपने करों का भुगतान करता हूँ क्योंकि मैं मानता हूँ कि व्यवस्था भ्रष्ट नहीं है और मुझे बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा का लाभ मिलेगा। लेकिन साथ ही, झूठी खबरों के प्रचलन के कारण मेरे मन में राजनेताओं के लिए कोई सम्मान नहीं है।
इसके विपरीत, मैं अपने व्यावसायिक साझेदारों का सम्मान करता हूँ, लेकिन कुछ लोग सेवानिवृत्त होने वाले हैं और कंपनी का ‘दोहन’ करना चाहते हैं, जबकि मैं इसे आगे बढ़ाना चाहता हूँ। साझे हित का भाव खत्म हो गया है और निर्णयों में अविश्वास बढ़ रहा है।
पहले सम्मान का होना ज़रूरी है। कोई यह नहीं कह सकता - “जब आप मुझे यह विश्वास दिला देंगे कि आपके पास कहने के लिए कुछ महत्वपूर्ण है तभी मैं सम्मान के साथ, खुले मन से आपकी बात सुनना शुरू करूँगा।” किसी व्यक्ति के तर्क को सुनने के लिए सबसे पहले आपको उदार बनना होगा यानी सुनने और ध्यान देने के लिए उनकी बातों का सम्मान करना होगा।
दूसरी ओर, विश्वास को विकसित करने की आवश्यकता है। दूसरे पक्ष के तर्क और असहमति को सुनने से पहले हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उनके दिल में हमारे हितों का खयाल है। जैसा कि यहूदी संत ने कहा, “सम्मान करें और संदेह करें।” सुनें और सीखें, लेकिन पहले जाँच लें कि दोनों के हित समान हैं। शायद इसीलिए आम भाषा में हम विश्वास शब्द को पहले रखते हैं। हम “आपसी सम्मान और विश्वास” के बजाय “आपसी विश्वास और सम्मान” कहते हैं।
एक स्वस्थ कंपनी, देश या विवाह के लिए आपसी विश्वास और सम्मान दीर्घकालिक सफलता के लिए महत्वपूर्ण हैं।

विश्वास को विकसित करना पड़ता है। इसे विकसित करना कठिन है और खोना आसान है। इसलिए अपना समय लें। पहले विश्वास करें और देखें कि दूसरा पक्ष कैसे इसका प्रतिदान करता है। परखते रहें और निगरानी करना कभी बंद न करें क्योंकि जैसे-जैसे परिवर्तन होता है, साझा हित हमेशा खतरे में होते हैं।
एक स्वस्थ कंपनी, देश या विवाह के लिए आपसी विश्वास और सम्मान दीर्घकालिक सफलता के लिए महत्वपूर्ण हैं। अमेरिका एक घटती हुई विश्व शक्ति है, क्योंकि मेरे विचार से हम एक-दूसरे के प्रति विश्वास और सम्मान खो रहे हैं। कांग्रेस यानी यहाँ की संसद में पक्ष और विपक्ष के बीच सकारात्मक संवाद करना कम होता जा रहा है। इस आपसी विश्वास और सम्मान में गिरावट का एक कारण पक्षपाती समाचार हैं।
बस कुछ सोच और एहसास,
डॉ. इचक अडीज़ेस
ichak@adizes.com
https://www.ichakadizes.com/post/the-difference-between-trust-and-respect