घरकार्यक्षेत्रआधुनिकीकरण के चौराहे पर

इस दुनिया में परिवर्तन लाने के लिए हम सभी की ज़िम्मेदारी है और सहिष्णुतासमावेशिताज्ञान व आंतरिक विकास पर आधारित एक नई संस्कृति का निर्माण करने की आवश्यकता है। स्वामी मुकुंदानंदजी इन दोनों विषयों पर अपने विचार व्यक्त कर रहे हैं।

 

स पृथ्वी पर रहने वाली मानव जाति के सदस्य के रूप में विश्व स्तर पर शांति सुनिश्चित करने की हम सभी की संयुक्त ज़िम्मेदारी है। फिर भी, भले ही हम इस महान और इच्छित लक्ष्य को पहचान चुके हैं, यह अब भी हमारी पहुँच से बाहर है।

लिखित मानव इतिहास के पिछले 5,000 वर्षों में कम से कम 5,000 युद्ध लड़े गए। इनमें से सबसे बुरे युद्ध का अंत वर्ष 1945 में हुआ जब संसार में सबने एकजुट होकर विश्व शांति की आवश्यकता महसूस की और संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की। लेकिन इसके बावजूद आज भी कहीं न कहीं युद्ध जारी है।

दुनिया एक अविभाज्य इकाई नहीं है। इसमें मेरे और आपके जैसे लोग मौजूद हैं। विश्व शांति तभी स्थापित हो सकती है जब इसमें शामिल हर इकाई शांतिपूर्ण हो। हर इकाई के शांतिपूर्ण होने पर ही हम विश्व शांति को सुनिश्चित कर सकते हैं।

क्या ऐसी शांति हासिल करना संभव है जिसपर किन्ही बाह्य तत्वों का प्रभाव न हो, जो विपत्तियों के बावजूद बनी रहे, जिसे कोई हमसे छीन न सके? हाँ, यह संभव है। हमारी प्राचीन ज्ञान की पुस्तकों ने हमें वह सिखाया है। वे कहती हैं कि शांति को हमें अपने अंदर, अपने मन में खोजना होगा।

हमारा मन ही बंधन है और मुक्ति का कारण भी है। हमारा मन इतना शक्तिशाली है कि यह नारकीय परिस्थितियों को भी स्वर्ग सरीखी परिस्थितियों में बदल सकता है। और सबसे उत्तम स्वर्गिक परिस्थितियों में भी आपको नारकीय पीड़ा का एहसास करा सकता है। इसलिए हमारा मन ही शांति की कुंजी है।

एक बार की बात है, हैदराबाद में एक व्यापारी था जो दुनिया से विरक्ति चाहता था। इसलिए वह अपना घर-बार और काम-काज छोड़कर हिमालय में रहने लगा। वहाँ वह एक मठ में पहुँचा जहाँ रहने के लिए उसे एक झोपड़ी दी गई। वहाँ रहकर उसने आध्यात्मिक साधना शुरू की। साधना करके उसने कुछ हद तक प्रगति कर ली थी कि तभी वर्षा-ऋतु आ गई। वर्षा के साथ-साथ तरह-तरह की प्राकृतिक आवाज़ें भी सुनाई देने लगीं - मेंढक और झींगुर मौसम का आनंद ले रहे थे। लेकिन इनसे ध्यान में बैठा यह आदमी परेशान था। जब उसकी सहनशीलता समाप्त हो गई तब उसने खिड़की खोली और ज़ोर से चिल्लाया, ‘शांत!’

चूँकि उसकी साधना एक अच्छे स्तर तक पहुँच गई थी इसलिए जब वह बोला तब प्रकृति ने भी उसकी बात का पालन किया। मेंढक और झींगुर शांत हो गए। वह वापस अपना ध्यान करने लगा लेकिन उसे एहसास हुआ कि वह ध्यान नहीं कर पा रहा था। एक और आवाज़ उसे परेशान कर रही थी। दरअसल यह आवाज़ बाहर से नहीं बल्कि उसके अंदर से आ रही थी। उसकी अंतरात्मा की आवाज़ कह रही थी, “क्या, मैंने जो किया, वह सही था?” उसने बहुत कोशिश की लेकिन अपने अंदर की इस आवाज़ को चुप नहीं करा पाया। अंत में उसने फिर से खिड़की खोली और कहा, “शुरू करो!” मेंढक और झींगुर सभी फिर से कोलाहल करने लगे। वह वापस ध्यान करने चला गया। और इस बार उसे पूर्ण शांति मिली – आंतरिक शांति।

आंतरिक शांति पर बाह्य तत्वों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता और उस शांति को हमसे कोई नहीं छीन सकता। तो मन इतना शक्तिशाली साधन है। बस, हमें इसे शुद्ध करने की ज़रूरत है। अध्यात्म का सार है - मन की शुद्धि। अब, मन को शुद्ध कैसे करते हैं? मन को परमशुद्ध, सर्वोच्च से जोड़कर। जब हम छोटे बच्चे थे, हमने सुना था, “भगवान नहीं तो शांति नहीं। जहाँ ईश्वर नहीं है वहाँ शांति नहीं हो सकती।” और “ईश्वर को जानो, शांति को जान जाओगे। जब तुम परमात्मा को जान लोगे तब तुम्हें शांति का स्वत: ज्ञान हो जाएगा।” इसलिए जब हम अपने मन को परमशुद्ध से जोड़ते हैं तब हमें मन की शुद्धता प्राप्त होती है और मन की यही शुद्धता सच्ची शांति प्राप्त करने में हमारी मदद करती है।

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भारत आज एक मोड़ पर, आधुनिकीकरण के चौराहे पर खड़ा है। आज हम विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं और जल्द ही तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएँगे। विश्व के मंच पर अपनी जगह लेने के लिए हम तैयार हैं। विश्व नेता बनने पर जल्द ही दुनिया के विचारक नेता भी बन जाएँगे।

सहिष्णुता, समावेशिता, ज्ञान और आंतरिक विकास भारत की विरासत है। ढाई हज़ार साल पहले जगद्गुरु शंकराचार्य ने सवाल पूछा था - ‘जगत जितम् केन?’ यानी दुनिया को कौन जीतेगा? फिर उन्होंने उत्तर दिया - ‘मनो हि येन,’ यानी वह, जो अपने मन पर विजय प्राप्त कर लेगा। इसलिए यदि हम शांति प्राप्त करना चाहते हैं तो हमें युद्ध की घोषणा करने की आवश्यकता है - बाहर की दुनिया में लड़ा गया युद्ध नहीं बल्कि अपने भीतर लड़ा गया युद्ध - अपने भीतर मौजूद राक्षसों के खिलाफ़ युद्ध।


जब हम अपने मन को परमशुद्ध से जोड़ते हैं तब हमें मन की शुद्धता प्राप्त होती है और मन की यही शुद्धता सच्ची शांति प्राप्त करने में हमारी मदद करती है।


वैश्विक आध्यात्मिकता महोत्सव 2024 में
दिए गए व्याख्यान का अंश


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स्वामी मुकुंदानंद

स्वामी मुकुंदानंद

स्वामी मुकुंदानंद जेके योग के संस्थापक और एक लोकप्रिय लेखक हैं। वे मन प्रबंधन और योग विज्ञान के अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर... और पढ़ें

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