जून के महीने मेंविश्व संगीत दिवस मनाया जाता है। इसलिए सारा बब्बर तानसेन की कहानी प्रस्तुत कर रही हैं जो दर्शाती है कि कैसे एक महान गुरु ने एक बालक की संगीत प्रतिभा को उसकी एक शरारत के ज़रिये पहचाना और उसे सबसे उत्कृष्ट संगीतकार बना दिया। तानसेन संगीत प्रेमी भी थे और संगीतज्ञ भी। वे जीवन में कई उतार-चढ़ावों से गुज़रे और उन्होंने ऐसे मधुर संगीत दिए जो आज भी संगीतकारों और संगीत परंपराओं को प्रेरित करते हैं।

 

ह कहानी मध्य भारत के ग्वालियर शहर की है। कई वर्ष पहले वहाँ एक धनवान कवि, पंडित मिश्रा और उनकी पत्नी रहते थे। उन्हें कोई संतान न होने का बड़ा दुख था। एक मित्र ने उन्हें प्रसिद्ध संत और संगीतकार मोहम्मद गौस से मिलने की सलाह दी। मोहम्मद गौस ने पंडित मिश्रा को आशीर्वाद दिया और उनके हाथ में एक पवित्र धागा बाँधा। उनकी भविष्यवाणी के अनुसार एक बालक का जन्म हुआ, जिसका नाम रामतनु रखा गया।

रामतनु को पढ़ने-लिखने से ज़्यादा जंगल में घूमना पसंद था। जंगल में बैठकर वह पक्षियों और जानवरों की आवाज़ों की नकल किया करता था।

एक दिन एक गायक मंडली जंगल से गुज़र रही थी। उसे देखकर रामतनु झाड़ियों के पीछे छिप गया और बाघ की तरह दहाड़ने लगा। पूरी मंडली डरकर भाग निकली। लेकिन मंडली के मुखिया ने जंगल में मिले संकेतों से तुरंत समझ लिया था कि जंगल में उस वक़्त कोई बाघ नहीं था बल्कि वह किसी की शरारत थी। मंडली के मुखिया ने उसे झाड़ियों के पीछे से बाहर बुलाया और उसे उसके पिता के पास ले गया।

वास्तव में, उस गायक मंडली का नेतृत्व मशहूर संगीतकार संत हरिदास कर रहे थे।

रामतनु के घर जाकर संत हरिदास ने उसके माता-पिता से पूछा कि क्या वे उस प्रतिभाशाली ध्वनि कलाकार को प्रशिक्षित करने की अनुमति देंगे। उसके माता-पिता ने अनचाहे मन से अपने इकलौते बच्चे को उनके साथ भेजने की स्वीकृति दे दी।

बुनियादी शिक्षा से शुरू करते हुए रामतनु ने गायन और रागों की रचना की कला में महारत हासिल की। उसके मधुर संगीत की वजह से उसे तानसेन नाम दिया गया। शिक्षा प्राप्त करते हुए दस वर्ष बीत गए। फिर एक दिन तानसेन को अपने पिता से संदेश मिला और वे उनसे मिलने चल दिए। जब वे वहाँ पहुँचे तो देखा कि उनके पिता बहुत बीमार थे। तानसेन के लिए उनका अंतिम संदेश था कि वे उन संत मोहम्मद गौस से मिलें जिनकी कृपा से उनका जन्म हुआ था। तानसेन अपनी माँ की देखभाल के लिए घर पर रहे, लेकिन एक वर्ष के भीतर माँ का भी निधन हो गया। वे मोहम्मद गौस से मिलने के इच्छुक थे और उन्होंने इसके लिए संत हरिदास से अनुमति माँगी। संत हरिदास ने खुशी-खुशी अनुमति दे दी कि वे जब चाहें, उनसे मिलने जा सकते हैं। तीन वर्षों तक तानसेन ने मोहम्मद गौस की शागिर्दी में तालीम ली और अपनी संगीत प्रतिभा को निखारा।

 

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उसी दौरान मोहम्मद गौस ने तानसेन को ग्वालियर के शासक से मिलवाया। दोनों अच्छे मित्र बन गए और तानसेन अक्सर राजमहल में जाने लगे जहाँ वे अन्य संगीतकारों को सुनते थे। महल में आना-जाना लगा रहने के कारण तानसेन की मुलाकात हुसैनी से हुई, जो रानी की परिचारिका थी। तानसेन को उससे प्रेम हो गया और दोनों ने विवाह कर लिया। मोहम्मद गौस के निधन के बाद भी तानसेन और हुसैनी उनके आश्रम में रहते रहे। मोहम्मद गौस अपनी संपत्ति और संगीत विद्यालय तानसेन को सौंप गए थे।

एक दिन, तानसेन को रीवा के राजा का संदेश मिला। उन्हें अपनी संगीत प्रस्तुति देने के लिए आमंत्रित किया गया था। उनके लिए यह एक बड़ा अवसर था और राजा ने उन्हें कई तोहफ़े दिए। एक बार मुगलों के महान शहंशाह अकबर रीवा आए। तब तानसेन ने उनके लिए संगीत प्रस्तुति दी। अकबर तानसेन की संगीत प्रतिभा से अत्यधिक प्रभावित हुए और रीवा के राजा ने तानसेन से कहा कि वह शहंशाह अकबर के दरबार को अपनी मधुर धुनों से रौशन कर दें।

अकबर की राजधानी आगरा में तानसेन का राजसी स्वागत हुआ। अकबर तानसेन के संगीत के इस कदर कायल हुए कि उन्होंने तानसेन को अपने राज्य का सर्वोच्च सम्मान दिया। अकबर ने उन्हें अपने नवरत्नों यानी राज-दरबार की नौ सबसे बेहतरीन प्रतिभाओं में शामिल कर लिया।

तानसेन अक्सर अकबर के लिए गीत गाते थे - कभी उन्हें नींद से जगाने के लिए, कभी सुलाने के लिए, तो कभी उनका तनाव दूर करने के लिए जो इतने बड़े साम्राज्य को संभालने के कारण राजा को महसूस होता था।

तानसेन के संगीत ने कई बार बहस को शांत करने में मदद की। उनके संगीत ने शहरों में घुस आने वाले जंगली जानवरों को भी शांत किया और संगीत के महत्व को सम्मान दिलाया। एक शाम, शहंशाह अकबर ने तानसेन से मिलने का निश्चय किया। जब वे पहुँचे, उस समय तानसेन तानपुरा बजाते हुए गीत गा रहे थे। शहंशाह बरामदे में बैठकर शांति से उनके संगीत को सुनते रहे। शहंशाह ने प्रस्तुति का आनंद लिया और उन्हें एक हीरे का हार दिया। उसे देख अन्य ईर्ष्यालु दरबारी तानसेन के खिलाफ़ षड्यंत्र रचने लगे।

तानसेन पर भारी कर्ज़ था जिसे उन्होंने वह हीरे का हार बेचकर चुकाया। दरबारियों ने यह बात अकबर के कानों में डाल दी। राजा अकबर बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने तानसेन को तब तक दरबार में न आने के लिए कह दिया जब तक कि वे हार वापस न ले आएँ। दुखी मन से तानसेन रीवा के राजा के पास गए और उन्हें अपनी समस्या बताई।

राजा ने उन्हें चिंता न करने और गीत गाने के लिए कहा। तानसेन ने बहुत सुंदर गीत गाया। रीवा के राजा ने तानसेन को अपने पूर्वजों की रत्नों से जड़ी चरण पादुकाएँ दीं। तानसेन ने इस उपहार को राजा अकबर को भुगतान के रूप में सौंप दिया।

 

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वे रत्न जड़ित चरण पादुकाएँ उस हार से कहीं अधिक मूल्यवान थीं। शहंशाह को एहसास हो गया कि उन्होंने तानसेन को गलत समझा और उन्होंने माफ़ी माँगी। तानसेन की ख्याति और बढ़ गई और लोग उन्हें सुनने के लिए दूर-दूर से आने लगे। इससे जिन दरबारियों ने षड्यंत्र रचे थे, उनकी ईर्ष्या और भी बढ़ गई। उन्होंने एक और षड्यंत्र रचा। उन्होंने राजा से कहा कि तानसेन को राग दीपक प्रस्तुत करने के लिए कहा जाए। राग दीपक ऐसा राग था जिसकी शक्ति इतनी प्रबल थी कि वह आग लगा सकता था और गायक को जला भी सकता था।

तानसेन ने राजा से ऐसा न करने की विनती की, लेकिन अकबर नहीं माने। तानसेन इस बारे में सोचने लगे कि वे क्या करें और उन्होंने तैयारी करने के लिए कुछ हफ़्तों का समय माँगा।

तानसेन जानते थे कि राग दीपक का गायन खतरे से खाली नहीं है, लेकिन वे यह भी जानते थे कि यदि साथ में मेघ राग, जो बारिश लाता है, प्रस्तुत किया जाए तो आग की प्रचंडता से बचा जा सकता है। इसलिए उन्होंने अपनी बेटी सरस्वती और गुरु हरिदास की शिष्या रूपा को मेघ राग गाने के लिए प्रशिक्षित किया।

प्रस्तुति के दिन दरबार में भारी संख्या में दरबारी और राजसी मेहमान आए हुए थे। दूर-दूर से लोग तानसेन को सबसे कठिन राग, राग दीपक, गाते हुए सुनने के लिए आए थे। दरबार में बिना जलाए हुए दीपक रखे गए थे। तानसेन ने प्रस्तुति शुरू की। गीत के शुरू होने पर हवा गर्म व घनी हो गई और दीपक जल उठे। धीरे-धीरे हवा में गर्मी बढ़ने लगी, फव्वारे उबलने लगे और फूल मुरझा गए। सभी पसीने से लथपथ हो गए। तानसेन स्वयं भी तपने लगे। उन्होंने प्रस्तुति जारी रखी और मन में आकुलता लिए उनकी बेटी सरस्वती और रूपा ने अपना संगीत-गायन शुरू किया। शुरुआती झिझक के बाद वे पूरे सुर में राग मेघ गाने लगीं। उनके सटीक सुरों से आसमान में बादल आ गए और गरजने लगे। तानसेन बारिश का स्वागत करने के लिए बाहर भागे। लेकिन बारिश उनके भीतर जलती हुए आग को ठंडा न कर सकी और वे दो महीने तक बीमार रहे। दिन-रात शहंशाह अकबर तानसेन के पास बैठे रहते और उनकी सेहत के लिए दुआ करते। आखिरकार तानसेन स्वस्थ हो गए और ईर्ष्यालु दरबारियों को निर्वासित कर दिया गया।

इस घटना के बाद तानसेन का अब कोई सानी नहीं रह गया। वे सर्वकालिक महान संगीतकार बन गए।


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सारा बब्बर

सारा एक कहानीकार, मोंटेसरी सलाहकार और बच्चों की एक पुस्तक की लेखिका हैं। वे एक प्रकृतिवादी भी हैं और बाल्यावस्था में पारिस्थितिकी चेतना के विषय में डॉक्टरेट कर रही हैं। वे आठ वर्षों... और पढ़ें

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