डॉ. स्नेहल देशपांडे पिछले तीस वर्षों से बच्चों की फ़िज़ियोथेरेपी के क्षेत्र में विकासात्मक चिकित्सक के रूप में कार्यरत हैं। ये उन परिवारों के साथ काम करती हैं जिनके बच्चे अपनी काबिलियत को एक अलग ही तरीके से ढूँढ निकालते हैं। इन परिवारों के साथ काम करने से इन्हें अपने आप में दृढ़ता प्राप्त हुई है और अनुकूलन के तरीके सीखने में मदद मिली है। ये हार्टफुलनेस इंस्टीट्यूट की स्वास्थ्य सेवाओं के अंतर्गत CME और अन्य उपक्रमों की निदेशिका भी हैं। यहाँ वे अपनी टीम को कार्य-जीवन संतुलन के बारे में जानकारी दे रही हैं।

प्रश्न - 30 वर्षों से अधिक समय से आप सेवारत हैं। आपके लिए आजीविका के क्या मायने हैं? 

फ़िज़ियोथैरेपिस्ट, माँ और पत्नी के रूप में काम मेरे अस्तित्व का एक अभिन्न अंग रहा है। मेरी माँ ने मुझे सिखाया था कि काम ही पूजा है। अगर तुम ईश्वर की पूजा करना चाहती हो तो जो काम तुम कर रही हो उसकी पूजा करो। चूँकि बचपन से यह बात मेरे मन में समाई हुई थी, मैंने निश्चय कर लिया था कि ज़िंदगी में मैं चाहे जो करूँ, काम ज़रूर करूँगी। पारिवारिक जीवन और व्यावसायिक जीवन के बीच मेरे लिए कोई अंतर नहीं था। मैं मानती हूँ कि काम काम है, खुशी है, आनंद है।

 हममें से अधिकांश लोग अपने जीवन का 40% वक्त काम करते हुए बिताते हैं। हमें अपना कार्यस्थल अच्छा लगना चाहिए क्योंकि वह भी हमारा एक घर है। पर क्या हम सचमुच अपने कार्यस्थल को अपना घर मानते हैं जहाँ हम तनावमुक्त रह सकें? जब भी हम तनावमुक्त होते हैं तब हम सर्वोत्तम कार्य कर पाते हैं। जब हम घर और कार्यस्थल में अपने बर्ताव और रवैय्ये की तुलना करते हैं तब हमें समझ आता है कि जीवन को सधा हुआ और संतुलित बनाने के लिए हमें कुछ चीज़ों को बदलना होगा।


अगर तुम ईश्वर की पूजा करना चाहती हो तो जो काम तुम कर रही हो उसकी पूजा करो।


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प्रश्न - अपने कार्य में आनंद लेने के लिए कार्यस्थल को भी घर मानने का यह तरीका बहुत ही अद्भुत है। फिर भी अधिकांश लोगों को यह कठिन लगता है। इसके क्या कारण हो सकते हैं?

हमें लगता है कि काम हमारी बाकी की ज़िंदगी से अलग है और हम अपने और अपने काम के बीच एक दूरी बना लेते हैं। हकीकत में हमारा काम हमसे अलग नहीं है। सवाल यह है कि हम कोई विशेष काम क्यों करते हैं? बेशक, मनुष्य के लिए असंभव कुछ भी नहीं है लेकिन फिर भी हम कई बार ऐसे काम करते हैं जो हमें पसंद नहीं होते। ऐसा हम अपनी आजीविका कमाने के लिए करते हैं या फिर अपने माता-पिता या दोस्तों के कहने पर या फिर किसी और सामाजिक दबाव के कारण करते हैं।
उदाहरण के लिए हम कह सकते हैं, “क्योंकि वह सी ए है इसलिए मैं भी बनना चाहता हूँ,” या फिर, “मेरे पिताजी चाहते हैं कि मैं डॉक्टर बनूँ, इसलिए मैं डॉक्टर बनूँगा। लेकिन हम खुद क्या करना चाहते हैं? हमारी अंतरात्मा क्या करना चाहती है? क्या हम अपने आप से कभी ये सवाल करते हैं? या फिर अपने आप से यह पूछते हैं, “मैं ऐसा क्या करना चाहता हूँ जिससे मानवता का भी भला हो?” अगर हम अपने आप से ये सवाल करें और अपने काम को कुछ ऐसा मानें जिससे हम वह बदलाव ला सकें जिसके लिए हम इस संसार में हैं तो मुझे पूरा यकीन है कि हमें कार्य-जीवन संतुलन, जो हमारे जीवन और काम के एकीकरण के लिए सबसे महत्वपूर्ण है, प्राप्त हो सकता है।

प्रश्न - आपको ऐसे क्यों लगता है कि आज की पीढ़ी के लिए जीवन और काम के बीच एकीकरण होना ज़रूरी है?

मानसिक तनाव के कारण। गूगल में सबसे ज़्यादा शायद इसी शब्द को ढूँढा जाता है। हम अपने तनाव को कैसे बढ़ाते हैं? हम काम संबंधी तनाव को कैसे बढ़ाते हैं? शुरुआत में यह सब अकल्पनीय होता है। जब हम अपने व्यावसायिक जीवन की शुरुआत करते हैं तब कहते हैं, “अरे वाह, मैं डॉक्टर हूँ,” या फिर “मैं इंजीनियर बन गया हूँ। लेकिन जब हम सचमुच काम करना शुरू करते हैं तब वही बात एक दुःखद घटना लगने लगती है। हम जब भी दोस्तों से मिलते हैं तो कहने लगते हैं, “आजकल काम में यह हो रहा है,” या फिर, “वहाँ शिफ़्ट्स होते हैं,” या “मुझे अपनी नौकरी पसंद नहीं है। कार्य संबंधी तनाव आजकल की सबसे बड़ी समस्या है। 

कार्य-जीवन संतुलन अंततः हमारे ही चुनावों की उत्पत्ति है। जब हम अपनी क्षमता से ज़्यादा काम स्वीकार कर लेते हैं या जब हम अपने काम को किसी और को नहीं सौंप पाते हैं तब हम खुद के लिए तनाव पैदा कर लेते हैं। अपने कार्य-जीवन संतुलन में सुधार लाने से हमारे मानसिक स्वास्थ्य में भी सुधार होता है क्योंकि इससे हमें व्यवस्थित होने में सहायता मिलती है। हम बेहतर वर्गीकरण कर पाते हैं, हमारी अलमारी में कपड़े ज़्यादा सलीके से रखे जाते हैं, हमारे घर ज़्यादा साफ़-सुथरे रहते हैं इत्यादि। संतुलित होने का मतलब है बेहतर शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, व्यवसायिक और बौद्धिक स्वस्थता। स्वास्थ्य हमारी ज़िंदगी के हर पहलू से जुड़ा है। किसी भी एक पहलू पर जब हम काम करते हैं तो ज़िंदगी के बाकी पहलुओं पर भी उसका प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न - क्या आप हमें कुछ स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे बता सकती हैं?

इस बात को स्वीकारें कि “मैं यही ज़िंदगी जीने वाला हूँ।

अपने कार्यस्थल पर रचनात्मक बनें। काम करते हुए बेझिझक हर दिन कुछ अच्छा करें। अपने कार्यस्थल पर ताज़े फूल सजाकर रखना या फिर अपने प्रियजनों की तस्वीर रखना- ऐसी छोटी-छोटी बातों से भी आपको खुशी मिलेगी।

अपने कार्यस्थल पर औरों की मदद लें। मदद माँगने से आप अयोग्य या अक्षम सिद्ध नहीं होंगे। मदद माँग कर आप सिर्फ़ यह कह रहे हैं, “मैं भी यहाँ हूँ, नया हूँ। आओ साथ चलें।

अपना एक नियोजित कार्यक्रम (schedule) बनाएँ जो आधुनिक जीवन में बहुप्रचलित है। उसमें अपने जागने का समय, व्यायाम का समय, ध्यान का समय और कार्यस्थल तक जाने का समय शामिल करें। एक समय सारिणी बनाने से आपको यात्रा करने के समय का उपयोग करने और काम पर 15 मिनट जल्दी पहुँचने में मदद मिलेगी। 

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रूपरेखा तैयार करें कि आप कहाँ जाना चाहते हैं। सोचें कि क्या करने से आप बेहतर काम कर पाएँगे। जब आप निस्स्वार्थ भाव से काम में अपना समय व ऊर्जा लगाते हैं तब वास्तव में आपको अपना काम बेहतर करने में मदद मिलती है। फिर आपको लगेगा कि आप वास्तव में अपना योगदान दे रहे हैं और इससे आपको खुशी मिलेगी। अपने काम में एक उद्देश्य ढूँढें और फिर आपका कार्यस्थल अपने आप ही एक खुशनुमा स्थान बन जाएगा।

कुछ सीमाएँ निर्धारित करें ताकि आपका काम आपके घर में चुपके से दाखिल न हो जाए।

कुछ समय अपने उपकरणों को बंद कर दें ताकि आप अपने आपको कुछ समय दे सकें। आपके दिमाग को भी तरोताज़ा होने के लिए वक्त चाहिए होता है। अपने मोबाइल पर स्क्रोलिंग करने के बजाय अपने किसी दोस्त से या फिर परिवार के किसी व्यक्ति से बात करें या बस शांत रहें।

ये कुछ उपाय हैं जिन्हें मैं अपने व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन को एकीकृत करने के लिए करती हूँ। बस थोड़े से समायोजन से अंततः हम अपनी ज़िंदगी में खुशी और सामंजस्य बनाए रख सकते हैं।


कार्य-जीवन संतुलन अंततः हमारे ही चुनावों की उत्पत्ति है।


 


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स्नेहल देशपांडे

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डॉ. स्नेहल एक विकासात्मक चिकित्सक हैं जो ‘स्नेह ... और पढ़ें

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