डॉ. इचक अडीज़ेस 'एक्सपोज़र थेरेपी' (अत्यधिक चिंता का उपचार करने के लिए तकनीक जिसमें मरीज़ चिंता उत्पन्न करने वाली स्थितियों में रखा जाता है) के साथ प्रयोग करते हैं जिसमें वे अपनी परछाइयों यानी अपने जीवन के नकारात्मक पक्ष का सामना करते हैं तथा सीखते हैं कि जिन नकारात्मक आदतों को वे बदलना चाहते हैं और जिन समस्याओं को वे हल करना चाहते हैं, उनसे कैसे निपटा जाए।

मैं अक्सर कहता हूँ कि समस्याएँ परछाइयों की तरह होती हैं। अगर आप उनसे भागोगे तो वे आपका पीछा करती रहेंगी। यदि आप पीछे मुड़कर उनका सामना करते हुए आगे बढ़ोगे तो वे आपसे दूर भागेंगी। हालाँकि मैंने अपने ग्राहकों को उनकी समस्याओं का सामना करने के लिए यह सुझाव दिया था लेकिन मैंने इसे अपने निजी जीवन में नहीं अपनाया था। पर इस सप्ताह सब बदल गया।

मेरे लिए भूखे रहना एक समस्या है (यह उन दिनों के घाव का निशान है जब मैं यहूदियों के नरसंहार के दौरान भूख से पीड़ित रहता था)। और मेरी सबसे बड़ी कमज़ोरी ब्रेड है। ब्रेड के बिना भोजन, यहाँ तक कि मिशेलिन पाँच सितारा भोजन भी, मुझे पसंद नहीं है। लेकिन वह मोटापा बढ़ाने वाली लत है। इसलिए, मैं अपनी इस नकारात्मक आदत से छुटकारा पाने की कोशिश करने लगा। मैंने सभी को निर्देश दे दिया कि कभी भी मेज़ पर ब्रेड न रखें और घर में भी ब्रेड न रखें। लेकिन यह प्रयास सफल नहीं हुआ। परछाइयों ने मेरा पीछा किया यानी मेरी आदत नहीं छूटी। मुझे किसी भी तरह ब्रेड मिल ही जाती।

इस सप्ताह मेरे मन में यह विचार आया कि जो सलाह मैं दूसरों को देता हूँ उस पर खुद भी अमल करूँ, ताकि जो कुछ भी मुझे पसंद है लेकिन मेरे लिए अच्छा नहीं है, मैं उसका सामना करूँ। मैंने ब्रेड को अपनी आँखों के सामने रखते हुए अपने आप से यह प्रश्न किया, “क्या तुम ब्रेड के इस टुकड़े को छोड़ने की हिम्मत रखते हो या इसके आगे कमज़ोर हो?” बस फिर क्या था? यह काम कर गया और मैं अब तक छह पाउंड वज़न कम कर चुका हूँ।

इस अभ्यास का प्रभाव ब्रेड न खाने से भी कहीं अधिक बड़ा था। मेरी ताकत बढ़ रही है जिससे किसी की भी अनुचित आलोचना से अब मैं दुखी नहीं होता। मैं ऐसे लोगों से दूर नहीं रहता, मैं उनका सामना करता हूँ और उनसे निपटता हूँ। मैंने प्रतिदिन व्यायाम करना शुरू कर दिया है। यह मेरे लिए एक बड़ा परिवर्तन है।

मुझे कल रात ही पता चला कि मनोविज्ञान में इसे एक्सपोज़र थेरेपी कहा जाता है।

जैसा कि मैंने पहले ही कहा है, मैं अब व्यायाम करता हूँ। इसका एक हिस्सा अपने घर से गेट तक, ऊपर (चढ़ाई) की ओर चलना है। मेरे साथ चलने वाले लोगों ने मुझसे कहा कि जिस सड़क पर मैं चल रहा हूँ उसकी तरफ़ नहीं बल्कि ऊपर की ओर देखूँ। लेकिन जब मैंने ऐसा किया तो गेट की दूरी को देखकर मैं निराश हो गया। वह बहुत दूर था लेकिन जब मैंने अपने पैरों को एक-एक कदम आगे बढ़ाते हुए देखा तो मुझे प्रोत्साहन मिला।


मैं अक्सर कहता हूँ कि समस्याएँ परछाइयों की तरह होती हैं। अगर आप उनसे भागोगे तो वे आपका 
पीछा करती रहेंगी। यदि आप पीछे मुड़कर उनका सामना करते हुए आगे बढ़ोगे तो वे आपसे दूर भागेंगी। 


मैंने युक्तिपूर्ण योजना बनाने के बारे में सोचा। हमें बताया जाता है कि अपने लक्ष्य पर केंद्रित रहें। दूर की सोचें। मुझे अब लगता है कि यह गलत है। यह हतोत्साहित कर सकता है। अपना लक्ष्य निर्धारित करें, रास्ता चुनें, फिर अपनी ओर देखें कि आप एक समय में एक कदम कैसे आगे बढ़ते हैं। समय-समय पर इस बात की भी जाँच करें कि आप सही रास्ते पर हैं या नहीं और सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं या नहीं। बस चलते रहें और जाँचते रहें कि आप आगे बढ़ रहे हैं।

देखते हैं कि मैं अगले सप्ताह क्या सीखूँगा।

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