सुरज सहगल ममता सुब्रमण्यम से एकजुट होने और सकारात्मक बदलाव व स्पष्ट दृष्टि के साथ समुदाय बनाने के बारे में बातचीत करते हैं।

प्र. - आप एक हार्टफुलनेस प्रशिक्षक हैं, क्या आप इसके बारे में समझा सकते हैं?

हम जो करते हैं उसका एक मकसद मानवता और एक-दूसरे की सेवा करना है। तथापि, प्रशिक्षक की प्राथमिक भूमिकाओं और ज़िम्मेदारियों में से एक है, जीवित गुरु का प्रतिनिधित्व करना - यह समझना कि वे जो काम कर रहे हैं, उसका एक उद्देश्य है और उनकी तरफ़ से काम करना। अक्सर यह कार्य हमारी सांसारिक तथा मानवीय स्तर की समझ से कहीं ज़्यादा होता है।

प्र. - किसी नए या अनुभवी अभ्यासी को ध्यान के अभ्यास में मार्गदर्शन देने के लिए एक जीवित गुरु का होना क्यों आवश्यक है? एक प्रशिक्षक की मदद से आपकी समझ और आपके अभ्यास की गहनता में क्या अंतर आया है?

मुझे लगता है कि किसी भी क्षेत्र में महारत हासिल करने के लिए हमेशा एक शिक्षक की ज़रूरत होती है, चाहे वह कराटे मास्टर हो अथवा कला शिक्षक। हम उन लोगों की नकल करके और उनके बारे में समझकर सीखते हैं जिन्होंने हमसे पहले उस क्षेत्र में महारत हासिल की है। मनुष्य होने के नाते, हमारे पास किताबें पढ़ने, अतीत की बातों से समझने और फिर उसके अनुसार आगे बढ़ने की अनोखी क्षमता होती है। पूरा वैज्ञानिक समुदाय लगातार पुनरावृत्ति करने, नए सिरे से काम करने, परीक्षण करने तथा नई चीज़ों की खोज करने और अब तक के उपलब्ध ज्ञान के आधार पर आगे बढ़ने से संबंधित है।

मेरा मानना है कि आध्यात्मिक क्षेत्र संपूर्ण है। यह आपके अस्तित्व और जीवन के हर पहलू को निर्देशित और प्रभावित करता है। अतः यह और भी आवश्यक हो जाता है कि आपके जीवन में कोई ऐसा व्यक्ति हो जो आपका मार्गदर्शन करे और ज़रूरत पड़ने पर दिशा भी दिखाए। मैंने हार्टफुलनेस के साथ जुड़कर बहुत कुछ सीखा है। यहाँ ‘प्रेरणा ग्रहण की जाती है सिखाई नहीं जाती’ वाली उक्ति लागू होती है, है ना? हार्टफुलनेस के गुरुओं ने कुछ अभ्यासों को विकसित और संहिताबद्ध किया है जिनका पालन करने से व्यक्ति आध्यात्मिक दृष्टि से गहनता प्राप्त करता है। इसके अलावा उनके बात करने के तरीके, आचरण, किसी प्रश्न का उत्तर देने के तरीके तथा चलने के तरीके पर गौर करके भी बहुत कुछ सीखा जा सकता है।

मानव जीवन में बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि हम कैसी प्रतिक्रिया करते हैं, हम किस पर ध्यान देते हैं और अपने परिवेश के प्रति कैसे प्रतिक्रिया करते हैं। मुझे लगता है कि दाजी और उनसे पहले के गुरुओं को ध्यान से देखने पर, कभी-कभी सचेत रूप से, मैंने कुछ बातें सीखीं, जैसे किस तरह से वे गिलास मेज़ पर रखते हैं या कैसे वे उन चीज़ों को भी देख लेते हैं जिन्हें अक्सर लोग नज़रअंदाज़ कर देते हैं। मैंने यह भी देखा कि किसी व्यक्ति से मिलने के घंटों बाद भी वे उसकी भावनाओं के बारे में सोचते रहते थे। इनमें से कुछ बातों को तो मैं सचेत रूप से आत्मसात कर सकता हूँ लेकिन बहुत कुछ अचेतन रूप से होता है, जैसे ध्यान के दौरान या जब हम बड़े स्तर पर किसी बड़ी ध्यान सभा में शामिल होते हैं तब उस शांति में दी गई शिक्षा को अनजाने में ही ग्रहण कर लेते हैं।

प्र. - जब आप यह कह रहे हैं तब मैं उन प्रशिक्षकों के बारे में सोच रही हूँ जिन्हें मैंने देखा है। मैं हर प्रशिक्षक के व्यवहार में विशिष्टता देखती हूँ चाहे वह उनकी शांतचित्तता हो, उनका विराम लेने का तरीका हो या जिस तरह वे दूसरों के प्रति और उनकी ज़रूरतों के प्रति सचेत रहते हैं। मैं यह भी जानती हूँ कि वे भी हमारी तरह सामान्य इंसान हैं और हार्टफुलनेस के सिद्धांतों के आधार पर निरंतर व सचेत रूप से वैसा बनने का प्रयास कर रहे हैं जैसा वे बनना चाहते हैं।

ऐसे क्षणों में एक प्रशिक्षक के रूप में, जब आपको लगता है कि आप विकास के उस बिंदु तक पहुँचने में संघर्ष कर रहे हैं तब आप क्या करते हैं? और हमें किस ओर बढ़ने की आकांक्षा रखनी चाहिए?

हाल ही में मैं पिता बना हूँ। इस वजह से मैंने इस बात पर काफ़ी विचार किया कि एक बच्चे के जीवन में पिता की क्या भूमिका होती है। कई मायनों में हम सभी भावनात्मक यंत्र हैं, है ना? हम संसार में सोचने, ध्यान देने और कौशल विकास की क्षमता के साथ आते हैं। लेकिन यह बहुत हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि हम अपना ध्यान कहाँ लगाते हैं। हमारा ध्यान कहाँ लगता है, यह काफ़ी हद तक उन भावनाओं पर निर्भर करता है जिनसे हम प्रेरित होते हैं।

एक बच्चा किसी विशिष्ट चीज़ पर ही क्यों ध्यान देता है? ऐसा अपेक्षाओं और उस वातावरण, जिसमें वह बड़ा हो रहा है, द्वारा दिए गए भावनात्मक पुरस्कार अथवा दंड, चाहे वे कितने ही मामूली क्यों न हों, की वजह से होता है। हमारे आस-पास जो कुछ भी है वह हमें आकार देता है। यह एक साधारण सा तथ्य है। चाहे वह आपसे अपेक्षा रखने वाला एक स्कूल का शिक्षक हो या स्कूल-व्यवस्था हो जो आपको ग्रेड पर बहुत अधिक ध्यान देने के लिए मजबूर करती है, ऐसी स्थितियों में आपमें बहुत सारी भावनाएँ उठती हैं और आपकी उपलब्धियाँ उन्हीं से प्रेरित होती हैं।

मेरे कुछ दोस्त ऐसे थे जो शारीरिक तंदुरुस्ती में बहुत रुचि रखते थे। यह मुख्यतः इसलिए था क्योंकि उनके पारिवार की सैन्य पृष्ठभूमि थी जहाँ शारीरिक तंदुरुस्ती और शौर्य को बहुत महत्व दिया जाता था। हालाँकि उन्होंने पीएचडी की लेकिन तंदुरुस्त रहना मानो उनके अस्तित्व का एक अभिन्न हिस्सा था। बचपन से लेकर जीवनभर की भावनाएँ हमें भावनात्मक मशीन बना देती हैं।

मैं यह बात इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि हम में से हरेक इतना भिन्न है और हम सबकी अपनी-अपनी इच्छाएँ, विचार और आकांक्षाएँ हैं। एक अभिभावक की भूमिका के बारे में जानते हुए भी मैं अपने बच्चों को गिरने से नहीं रोक सकता। मैं उन्हें इस सच्चाई से नहीं बचा सकता कि वे गिर गए हैं। जीवन ऐसे ही चलता है। उनका दिल टूटेगा। वे किसी चीज़ की आकांक्षा रखेंगे और असफल भी होंगे। मैं इससे उन्हें नहीं बचा सकता। लेकिन अक्सर अभिभावक की भूमिका बच्चे का मार्गदर्शन करने और उसे सही दिशा दिखाने की होती है। आप कहते हैं, “ओह, तुम असफल हो गए। लेकिन तुम अब भी आगे बढ़ सकते हो। तुम थोड़ी मदद से फिर से आगे बढ़ सकते हो।” आपकी भूमिका लगभग एक भावनात्मक मार्गदर्शक की तरह है कि किसी चीज़ से कैसे निपटना है क्योंकि हम भावनात्मक मशीनें बन गए हैं।

जब भी हम किसी चीज़ का पहली बार सामना करते हैं तब परिस्थिति बहुत भावनात्मक होती है। जब मैं यूसी बर्कले में स्नातक छात्र प्रशिक्षक था तब मैं कई ऐसे छात्रों से आमने-सामने बात करता था जिन्हें जीवन में पहली बार ‘सी’ ग्रेड मिला था। एक ऐसा व्यक्ति होने के नाते जो सामान्यतया समानुभूति रखने की कोशिश करता है और लोगों की स्थिति को समझता है, मैं छात्रों से बात करता था और समझ सकता था कि ‘असफल होना’ उन्हें कितना भारी महसूस होता था। मैं उनसे कहता था कि, आपको ऐसा लगता है मानो आपकी दुनिया ही उजड़ गई है। मैं आपसे उम्र मैं दस साल बड़ा हूँ और मैं आपको एक ही बात कह सकता हूँ कि ‘कॉलेज के दौरान आपको शायद कुछ और ‘सी’ ग्रेड मिलेंगे। यह तो आपका पहला सेमेस्टर है, आपका पहला साल है। कोई बात नहीं, आप इसे पार कर लेंगे। यह मुश्किल स्थिति है लेकिन इससे आप बहुत कुछ सीख सकते हैं। इस काम से मुझे एक अभिभावक की भूमिका को समझने में बहुत मदद मिली क्योंकि आप पहले ही बहुत सी चीज़ों से गुज़र चुके होते हैं। यही कारण है कि दादा-दादी के होने से हमें काफ़ी आराम रहता है क्योंकि उन्होंने कई तरह की भावनाओं और उतार-चढ़ाव का अनुभव किया होता है।

एक प्रशिक्षक की भूमिका भी ऐसी ही है। जब मैं पिछले दस सालों में हुई अपनी प्रगति के बारे में सोचता हूँ तो मुझे लगता है कि यह मेरी आंतरिक प्रगति है। इसका ज़्यादातर हिस्सा भावनाओं और स्थितियों के इर्द-गिर्द घूमता है जिसमें तीव्र भावनाओं पर नियंत्रण भी शामिल है। कभी मैं सोचता था - जब अचानक मुझे ईश्वर के साथ एकाकार होने की तीव्र ललक महसूस होती है और यह असहनीय हो जाती है तब उस समय मैं अपने आप को कैसे संभालूँ? मैं कहाँ जाऊँ? क्या कोई समझ भी पाएगा कि वह भावना क्या होती है? ऐसे ही समय पर एक प्रशिक्षक का होना ज़रूरी है। यह सिर्फ़ किसी ऐसे व्यक्ति का होना नहीं है जिसने इसमें महारत हासिल कर ली है और जानता है कि आगे क्या करना है। प्रशिक्षक ऐसा व्यक्ति है जिसने शायद आपसे पहले उस स्थिति का अनुभव किया है और जो आपको समझा सकता है, “अरे, मुझे पता है कि तुम असफल हो गए हो लेकिन तुम अकेले नहीं हो। मेरे साथ भी ऐसा हो चुका है।” यह हमें याद दिलाता है कि अतीत में किसी खास स्तर की भावनाओं का अनुभव करने और उन पर महारत हासिल करने का मतलब यह नहीं है कि हमने सब प्राप्त कर लिया है। यह हमारे लिए सीखने, आगे बढ़ने का प्रयास करने तथा यह याद रखने के लिए एक आधार प्रदान करता है कि चाहे हम कितनी भी कठिनाइयों का सामना करें, हमारा साथ देने के लिए एक प्रशिक्षक मौजूद है।


एक अच्छी आध्यात्मिक साधना के मूल तत्वों में से एक तत्व समुदाय भी है। हम एक-दूसरे से बहुत कुछ सीख सकते हैं और एक-दूसरे का साथ देकर हम प्रगति भी करते हैं।


 

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प्र. - हार्टफुलनेस को अब लाखों लोग अपना चुके हैं और 160 देशों में 16,000 से ज़्यादा प्रशिक्षक इस संगठन में कार्य कर रहे हैं। हम लगातार बढ़ रहे हैं। ऐसे में एक-दूसरे से जुड़े रहना मुश्किल हो सकता है। संपर्क बनाने के ऐसे कई साधन हैं, जिनमें प्रशिक्षक भी शामिल हैं, जो हम सभी को एक साथ जोड़कर रखते हैं। मैं अक्सर एक प्रशिक्षक के रूप में अपनी ज़िम्मेदारी पर विचार करती हूँ कि मैं जहाँ भी ध्यान कराने के लिए जाऊँ वहाँ एक समुदाय का निर्माण करूँ। इसलिए नहीं कि मुझे लगता है कि मेरी ही विधि सबसे अच्छी है बल्कि इसलिए कि मैं बस लोगों के दिलों से जुड़ना चाहती हूँ। मुझे लगता है कि आप भी ऐसा ही कुछ महसूस करते होंगे।

एक अच्छी आध्यात्मिक साधना के मूल तत्वों में से एक तत्व समुदाय भी है। हम एक-दूसरे से बहुत कुछ सीख सकते हैं और एक-दूसरे का साथ देकर हम प्रगति भी करते हैं। मैं एक ऐसे वातावरण में पला-बढ़ा हूँ जहाँ मेरे माता-पिता दोनों ही प्रशिक्षक थे। हमारे यहाँ साप्ताहिक सामूहिक ध्यान हुआ करते थे और अनेक लोग व्यक्तिगत सत्रों के लिए हमारे घर पर आते थे। मेरे मन में समुदाय का अर्थ इसी तरह विकसित हुआ। गृह प्रवेश, दीवाली पार्टी या किसी त्यौहार पर मिलना-जुलना सभी कुछ ध्यान से शुरू करना और फिर साथ भोजन करना, यह सब बहुत ही सामान्य लगता था। आप इन अवसरों को अपने आस-पास के लोगों के साथ एक पवित्र शांति में मनाते हैं। इस शांति में हम न केवल ईश्वर के साथ अपने प्रेम को साझा करते हैं बल्कि सबके साथ उस दिव्य प्रेम को भी साझा करते हैं।

हमारे विवाह समारोह को विशिष्ट बनाने वाली बात यह थी कि इसे दाजी ने शांत वातावरण में हमारे कुछ निकटतम परिवारजनों की मौजूदगी में कराया था। उन चालीस मिनटों में, मुझे लगा कि अपने प्रियजनों के साथ बातचीत के दौरान प्रेम व सद्भावपूर्ण बातों का इतना अच्छा आदान-प्रदान हुआ कि वह औपचारिकता में कहे गए शब्दों तथा लिफ़ाफ़े में दिए गए रुपयों से कहीं अधिक मूल्यवान था। मेरे विचार में ऐसा अनुभव गहन व स्थायी होता है जो पूरी तरह से आपकी उदार मानसिकता, आपके हृदय और आपकी नीयत पर निर्भर करता है।

जब समुदाय निर्माण की बात आती है तब वास्तव में परिवर्तन तभी हो सकता है जब हम इस दिशा में सोचते हैं, “मैं कैसी दुनिया में रहना चाहता हूँ? मैं दुनिया को किस रूप में देखना व महसूस करना चाहता हूँ? मानवता के कौन से सर्वोत्तम पहलू मैंने अनुभव किए हैं चाहे वे हार्टफुलनेस समुदाय में हों या किसी अन्य ध्यान समुदाय में या सामान्य जीवन में?” और फिर हम यह कह पाएँ, “ठीक है, अपनी क्षमता और साधनों के आधार पर मैं अभी किसका अनुकरण कर सकता हूँ?” लेकिन उससे भी बढ़कर हम यह कह पाएँ, “मैं अपने परिवेश को कैसा देखना चाहता हूँ और उसके लिए मैं क्या संकल्प ले सकता हूँ?”

मुझे लगता है कि शीघ्र ही बात केवल यहाँ तक सीमित नहीं रहेगी कि लोग ध्यान करते हैं या नहीं, बल्कि इससे आगे बढ़ते हुए उन लोगों से शुरुआत करनी होगी जो इस पवित्र शांति में आपके साथ शामिल हैं। कम से कम मुझे तो यही लगा कि यह इससे कहीं आगे की बात है। हम अपने आस-पास के लोगों से और उन लोगों से शुरुआत करते हैं जिनकी हम परवाह करते हैं। हम अपनी क्षमता के अनुसार जो भी संभव होता है, करते हैं और जो हम करना चाहते हैं उसके लिए संकल्प लेते हैं। वह अवश्य पूरा होगा। हमारे पास ध्यान की शक्ति है तथा हमारे साथ हमारे गुरु हैं।


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सूरज सहगल

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