घररिश्तेसही और गलत एवं नैतिकता के सिद्धांत

पॉल वोल्पे नैतिकतापूर्ण जीवन जीते हैं। वे अपनी एक पूर्व छात्रा और हमारी संपादक कशिश कलवानीसे बात कर रहे हैं कि कैसे हम कार्यस्थल मेंअपने परिवारों में और खुद के लिए भी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में नैतिकतापूर्ण निर्णयों पर निर्भर होते हैं। प्रोफ़ेसर वोल्पे इस बात पर भी चर्चा करते हैं कि कैसे सदाचारजीवन मूल्य और नैतिकता आपस में जुड़े हैं और कैसे बात हमेशा सही और गलत की नहीं होती।

 

प्र. - शुरुआत करने के लिए हमें अपने बारे में तीन मज़ेदार तथ्य बताएँ।

पहला तथ्य- मेरे पिता एक रब्बी (यहूदी आध्यात्मिक गुरु) थे। मेरे तीन भाइयों में से दो रब्बी हैं और मेरी दो बेटियों में से एक रब्बी है। मैं आध्यात्मिक लोगों से घिरा हुआ हूँ। दूसरा तथ्य - मैंने एक स्नातक विद्यालय से मालिश चिकित्सक (massage therapist) की शिक्षा प्राप्त की। तीसरा तथ्य - मेरे पास एक हैंग ग्लाइडिंग लाइसेंस है।

प्र. - वाह, यह तो सच में मज़ेदार है।

आप नैतिकता को सबसे सरल तरीके से कैसे परिभाषित करेंगे?

नैतिकता की मेरी परिभाषा पाठ्यपुस्तकों या शब्दकोश में नहीं मिलती। नैतिकता का अर्थ है कि हम दुनिया में अपने मूल्यों को कैसे निर्धारित, व्यक्त और मूल्यांकित करते हैं। सदाचार का अर्थ है कि हम अपने रिश्तों को उन मूल्यों की अभिव्यक्ति के रूप में कैसे स्थापित करते हैं, बनाए रखते हैं और उन्हें कैसे निभाते हैं।

प्र. - मुझे याद है कि आपने कक्षा के पहले दिन यही कहा था। बात यह नहीं है कि क्या सही है और क्या गलत है बल्कि यह दो सही बातों के बीच का टकराव है। इसने मुझे सचमुच बहुत प्रभावित किया।

मुझे लगता है कि हमें नैतिकता के बारे में गलत तरीके से सिखाया जाता है। हमें सिखाया जाता है कि नैतिकता सही और गलत का निर्णय करना है और कभी-कभी ऐसा होता भी है। आपको बच्चों को बुनियादी बातें ज़रूर सिखानी चाहिए - चोरी करना गलत है, मार-पीट करना गलत है, कुछ मामलों में झूठ बोलना गलत है। एक बार जब आप उन बुनियादी सिद्धांतों को समझ लेते हैं तब आपका शेष जीवन एक अलग प्रश्न का जवाब खोजने में लगता है - मेरे कुछ नैतिक मूल्य हैं जिन्हें मैं दुनिया में व्यक्त करना चाहता हूँ लेकिन जब उनमें टकराव होता है तब मैं क्या करूँ? यही नैतिक दुविधाएँ हैं। ये शायद ही कभी सही और गलत के बारे होती हैं। हम कहते हैं, “यहाँ क्या करना उचित होगा?” लेकिन वास्तव में हमारा मतलब होता है, “यहाँ क्या करना सबसे सही होगा?” क्योंकि केवल एक ही चीज़ सही नहीं होती है बल्कि करने के लिए बहुत सारी सही चीज़ें होती हैं।

मैं डॉक्टरों को नैतिकता सिखाता हूँ और उन्हें नैतिक मूल्यों के टकराव के मामले देता हूँ। कोई मरीज़ कुछ करना चाहता है जबकि दूसरी बात उसके हित में सर्वोत्तम होती है। एक मरीज़ की स्वायत्तता एक अच्छा मूल्य है, एक डॉक्टर की अपने मरीज़ों की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी एक अच्छा मूल्य है लेकिन उन दोनों मूल्यों का कभी-कभी एक साथ पालन नहीं हो पाता है। तब आप कैसे पता करते हैं कि क्या करना सबसे उचित होगा?

निश्चित रूप से आप कुछ गलत कार्य कर सकते हैं, जैसे मरीज़ को मार देना ताकि आपको उसके बारे में चिंता करने की ज़रूरत ही न हो। लेकिन आमतौर पर कई सही चीज़ें होती हैं जो आप कर सकते हैं। परिपक्व होने का अर्थ यह पता लगाने की कोशिश करना है कि सर्वोत्तम सही कार्य क्या है।


नैतिकता का अर्थ है कि हम दुनिया में अपने मूल्यों को कैसे निर्धारितव्यक्त और मूल्यांकित करते हैं। सदाचार का अर्थ है कि हम अपने रिश्तों को उन मूल्यों की अभिव्यक्ति के रूप में कैसे स्थापित करते हैंबनाए रखते हैं और उन्हें कैसे निभाते हैं।


प्र. - यह एक बेहतरीन उदाहरण है। आप बायोएथिक्स (जैवनैतिकता) के क्षेत्र में काम करने के लिए कैसे प्रेरित हुए और इसका सबसे फ़ायदेमंद पहलू क्या रहा है?

मुझमें न्याय की एक अत्यधिक विकसित भावना है। जब लोग अपने उच्चतम सर्वोत्तम गुणों को अभिव्यक्त करते हैं तब मैंने हमेशा उन्हें समझने की कोशिश की है। यह मेरे व्यक्तित्व का हिस्सा है। मुझे हमेशा से विज्ञान, चिकित्सा और प्रौद्योगिकी में रुचि थी। उन्हीं चीज़ों को एक साथ लाकर जैवनैतिकता नामक यह अद्भुत क्षेत्र बना।

आजकल यह वाकई एक जाना-माना क्षेत्र है लेकिन उस समय यह लोगों को बहुत कम ज्ञात था। जैवनैतिकता के बारे में इतना अद्भुत क्या है? जब आप इसमें विशेषज्ञता विकसित कर लेते हैं तब आप इसे कहीं भी लागू कर सकते हैं। हर व्यवसाय में और हर समूह में नैतिक चुनौतियाँ होती हैं चाहे बात आंतरिक हो या दुनिया के साथ संबंधों की। यदि नैतिकता यह है कि हम दुनिया में अपने मूल्यों को कैसे व्यक्त करते हैं तो हमारी प्रत्येक बातचीत में नैतिक तत्व होते हैं।

यह तय करना कि कोई व्यवसाय अपने ग्राहकों और कर्मचारियों के साथ कैसा व्यवहार करेगा, उसके उत्पाद कितने सुरक्षित होंगे, उसका कार्य-स्थल कितना सुरक्षित होगा, वह कैसे और कहाँ विज्ञापन करेगा, वह सस्ते श्रम से दूसरे देश में अपना माल कैसे बनाएगा, किस जगह के कानून श्रमिकों की ठीक से रक्षा नहीं करते - इनमें से प्रत्येक निर्णय एक नैतिक निर्णय है। व्यवसायों में हर समय नैतिक निर्णय लिए जाते हैं। व्यवसायी और व्यापारी हर समय नैतिक निर्णय लेते हैं। हमारे रिश्तों में - दोस्तों के साथ, जीवनसाथी के साथ, माता-पिता के साथ, जब हम किसी दुकान में जाते हैं और वहाँ के क्लर्क से बात करते हैं - हर चीज़ में हमेशा नैतिकता का तत्व होता है।

आपने पूछा कि मेरे कार्य का सबसे लाभप्रद भाग क्या रहा है? अपने व्यावसायिक जीवन में मैं एक बार ‘नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन’ (NASA) का जैवनैतिक सलाहकार था। मैं ‘प्लान्ड पेरेंटहुड फ़ेडरेशन ऑफ़ अमेरिका’ का भी जैवनैतिक सलाहकार रहा। मैंने कैनेडा में उचित परियोजनाओं के लिए लाखों डॉलर का राज्य कोष देने वाली समितियों में भी काम किया। मैं धर्मशाला में दलाई लामा जी से भी मिला। मैं मशहूर गायकों और निर्देशकों से मिला हूँ। मैंने कभी नहीं सोचा था कि नैतिकता मुझे कहाँ-कहाँ ले जाएगी। मैं सोचता था कि मैं एक शैक्षिक व्यवसाय में जा रहा हूँ और यह कभी नहीं सोचा था कि अपने व्यावसायिक जीवन में मैं इतनी सारी चीज़ें कर पाऊँगा जो मैंने की हैं।

प्र. - हमारे बहुत से पाठक युवा हैं। हम रोज़मर्रा की ज़िंदगी की परिस्थितियों में नैतिक रूप से कैसे सोच सकते हैं? यह देखते हुए कि युद्ध चल रहे हैं और जलवायु परिवर्तन हो रहा है, एक युवा वयस्क के जीवन में नैतिकता का क्या महत्व है?

नैतिकता चुनौतीपूर्ण है। यह आसान नहीं है और सरल भी नहीं। कई बार नैतिक निर्णय कष्टप्रद होता है जिसका मतलब है कि आपको कोई अन्य वांछनीय परिणाम नहीं मिला। व्यवसायों के लिए नैतिक कार्य करने का अर्थ पैसों का नुकसान होना हो सकता है। मेरे लिए नैतिक कार्य करने का अर्थ किसी अवसर को ठुकराना या आय को ठुकराना या किसी मित्र को खोना हो सकता है। हम मज़ाक में कहते हैं कि नैतिकता कायरों के लिए नहीं है।

सामान्य नैतिक निर्णय लेना आसान है। जब हम ऐसी स्थिति का सामना करते हैं जहाँ सबसे अच्छा काम करने का अर्थ कोई अन्य महत्वपूर्ण चीज़ छोड़ देना होता है तब हम अक्सर असफल हो जाते हैं। हम सभी ऐसा करते हैं लेकिन समस्या खासकर तब होती है जब बड़े व्यवसाय ऐसा करते हैं, सरकारें ऐसा करती हैं, सत्ता में मौजूद लोग ऐसा करते हैं। मेरे लिए एक नेता की परिभाषा का एक हिस्सा किसी संगठन, देश या समूह के लिए सर्वोत्तम सही काम करने की ज़िम्मेदारी लेना है। इसे बनाए रखना एक कठिन मानक है और हम लोगों को इसमें बार-बार विफल होते देखते हैं।

प्र. - तो फिर हम दैनिक जीवन में नैतिक विकल्प कैसे चुनें?

हम व्यवसायों को नैतिक विकल्प चुनने की एक पद्धति सिखाते हैं। हम अपने व्यक्तिगत जीवन में जिस तरह नैतिक विकल्प चुनते हैं यह उससे थोड़ा अलग है। अक्सर हम जानते हैं कि नैतिक विकल्प क्या है, लेकिन संघर्ष इस बात का होता है, “क्या मुझमें वास्तव में वह करने का साहस है जो मुझे सही लगता है?” ऐसी परिस्थितियाँ होती हैं जहाँ सही नैतिक विकल्प विवादास्पद या समस्यात्मक होता है और जहाँ कोई भी विकल्प पूरी तरह से सही नहीं लगता। यह एक नैतिक दुविधा है। अक्सर उनमें समझौता करने की आवश्यकता होती है। तब हम उनके बारे में दोस्तों और प्रियजनों के साथ बात करते हैं।

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लंबे समय तक नैतिकता का अध्ययन करने के बाद हम जो विशेषज्ञता विकसित करते हैं, उसमें किसी नैतिक परिस्थिति को उसके कई हिस्सों में बाँटकर स्पष्ट करना होता है। उदाहरण के लिए, मैं प्रसूति एवं स्त्री रोग के नए डॉक्टरों के पास साल में तीन-चार या पाँच बार जाता हूँ। वे मुझे अपनी नैतिक दुविधाएँ भेजते हैं, फिर हम उनके बारे में बात करते हैं। उन्हें यह पता लगाने में परेशानी होती है कि कौन सा मुद्दा सामाजिक है, कौन सा मुद्दा नैदानिक है, कौन सा मुद्दा कानूनी है और कौन सा मुद्दा नैतिक है। क्योंकि ये सब आपस में उलझे होते हैं। मैं उनके लिए इन्हें सुलझाने में मदद करता हूँ क्योंकि वह नैतिक मुद्दा मूल्यों में संघर्ष का होता है। और यह नैदानिक, सामाजिक और कानूनी मुददों से अलग होता है। जब तक आपको यह सब स्पष्ट न हो, यह समझना कठिन है कि क्या करना है। कभी-कभी शुरुआत नैतिक मूल्यों को स्पष्ट करने से करते हैं - “मेरे विचार में वह कौन-सा नैतिक मूल्य है जिसका मुझे सम्मान करना चाहिए? क्या यह रोगी की स्वायत्तता है या रोगी का सर्वोत्तम हित?”

21वीं सदी में संयुक्त राज्य अमेरिका में, यह रोगी की स्वायत्तता है। देश ने यही तय किया है कि हम इस नैतिक मूल्य का सम्मान करेंगे। यह हर देश में लागू नहीं होता। कुछ देशों में यदि कोई चिकित्सक सोचता है कि मरीज़ जो कर रहा है वह उसके सर्वोत्तम हित में नहीं है तो वह मरीज़ की बात की अनदेखी कर देगा। अमेरिका में भी ऐसा ही होता था लेकिन हमने व्यक्तिगत पसंद के मूल्य को प्राथमिकता देने का निर्णय लिया। इसका अर्थ यह नहीं है कि हम सही हैं और दूसरे देश गलत। हमारे पास एक सर्वोतम सही विकल्प है जबकि एक अन्य देश अपनी परंपराओं, अपने इतिहास, अपने नैतिक मूल्यों, अपनी धार्मिक पृष्ठभूमि, अपनी राजनीतिक मान्यताओं आदि के आधार पर कहता है, “हमारा मानना है कि सर्वोतम सही विकल्प वह करना है जो वस्तुतः चिकित्सा को समझने वाले लोगों की दृष्टि में रोगी के सर्वोत्तम हित में है। और हमें विश्वास है कि अंततः मरीज़ हमें धन्यवाद देंगे, भले ही अभी वे हमें धन्यवाद न दें।” यह एक रक्षात्मक नैतिक स्थिति है।

माता-पिता के रूप में हम अपने बच्चों को नैतिक शिक्षा देने का प्रयास करते हैं क्योंकि अधिकांश समय जब हम निर्णय लेते हैं तब हम बैठकर उनका विश्लेषण नहीं करते और न ही उनके अलग-अलग हिस्से करके देखते हैं। हम सहज रूप से वही करते हैं जो हमें सबसे सही लगता है। माता-पिता का अपने बच्चों के साथ काम का एक हिस्सा उन्हें यह सिखाना है कि अंतर्ज्ञान से नैतिकता के प्रति अच्छी केंद्रीयता को कैसे विकसित करना है।


हमारे रिश्तों में - दोस्तों के साथजीवनसाथी के साथमाता-पिता के साथजब हम किसी दुकान में जाते हैं और वहाँ के क्लर्क से बात करते हैं - हर चीज़ में हमेशा नैतिकता का तत्व होता है।


प्र. - इससे मेरे मन में बहुत सारे प्रश्न उठ रहे हैं। एक प्रश्न यह है - क्या आप कुछ निर्णयों के लिए खुद को दोषी महसूस करते हैं? आपने बताया कि आप नर्सों से बात करते हैं और डॉक्टरों को सिखाते हैं। यदि आपका अपना पूर्वाग्रह उनकी समझ को प्रभावित करता है तो क्या होगा?

एक अन्य सवाल माता-पिता का अपने बच्चों को नैतिकता सिखाने के बारे में है - क्या कटु अनुभवों के आधार पर बना माता-पिता का पूर्वाग्रह उनके बच्चों पर भी असर डालेगा और उनके निर्णयों को प्रभावित करेगा?

हम सभी पूर्वाग्रह से ग्रस्त होते हैं। नैतिक समुदाय में हमारा मानना है कि कठिन और जटिल निर्णयों के लिए हमें समूहों में उनके बारे में बात करनी चाहिए। कोविड के दौरान मैं ‘एसोसिएशन ऑफ़ बायोएथिक्स प्रोग्राम डायरेक्टर्स’ का अध्यक्ष था जिसके कार्यक्षेत्र में अमेरिका में जैवनैतिक कार्यक्रम चलाने वाला हर संगठन शामिल है। उस समय हमें बहुत सारे कठोर निर्णय लेने पड़े।

शुरुआत में हमें लगा था कि कुछ अस्पतालों में वेंटिलेटर कम पड़ सकते हैं। हम अस्पतालों के लिए नीतियाँ बना रहे थे कि कमी होने पर वेंटिलेटर किसे मिलेगा। मैं हर दो सप्ताह में जैवनैतिकता के सभी अध्यक्षों और केंद्रों के नेताओं को फ़ोन करने लगा। हमने इन सभी बातों पर चर्चा की और उन सवालों पर पत्र प्रकाशित किए।

जब मैं नासा में था, अंतरिक्ष उड़ान केवल सरकारी एजेंसी से नियंत्रित होने की बजाए दुनिया भर में निजी अंतरिक्ष एजेंसियों के द्वारा भी नियंंत्रित किए जाने की ओर विकसित हो रही थी। हम नैतिकतावादियों और निजी व व्यावसायिक क्षेत्रों के कुछ लोगों को एक साथ लाए क्योंकि अंतरिक्ष में मनुष्यों को ले जाने और उनके शरीर पर प्रयोग करने के बारे में बहुत सारे नैतिक प्रश्न हैं। अंतरिक्ष में प्रयोग करने के लिए मनुष्य बहुत कम मिलते हैं।

जब व्यावसायिक कंपनियाँ अंतरिक्ष में मनुष्य भेजने लगेंगी तब दवाई कंपनियाँ, चिकित्सा उपकरण कंपनियाँ और वाणिज्यिक उपकरण कंपनियाँ उपकरण भेजकर उन शरीरों पर प्रयोग करना चाहेंगी। नासा के पास इसके लिए एक सुविकसित प्रक्रिया है लेकिन वाणिज्यिक कंपनियों के पास नहीं है।

इसलिए हम कई अलग-अलग क्षेत्रों, संस्कृतियों, धर्मों और पृष्ठभूमियों से आने वाले व्यापक अनुभव वाले लोगों को एक साथ लाकर इन सवालों पर बहस करते हैं और सर्वोत्तम नीतियाँ बनाने का प्रयास करते हैं। फिर हम एक पत्र प्रकाशित करते हैं ताकि अन्य लोग उसे पढ़ सकें।

जब व्यक्तिगत नैतिकता या बच्चों को पढ़ाने की बात आती है तब यह सिर्फ़ माता-पिता की बात नहीं होती है। बच्चे अपने साथियों, स्कूलों और धार्मिक संस्थानों से भी नैतिकता सीखते हैं। सबसे अच्छी बात जो हम कर सकते हैं वह यह समझना है कि हम सभी में पूर्वाग्रह होते हैं। जब बच्चे परिवार के बाहर विभिन्न मूल्यों और विचारों को सीखते हैं तब रक्षात्मक और आलोचनात्मक हुए बिना उन पर गंभीरता से विचार करें। तुरंत बिना सोचे-समझे प्रतिक्रिया करते हुए यह न कहें, “हे भगवान, यह गलत है!” विचारों पर सोचने और चर्चा करने से बच्चों को नैतिक मूल्यों के बारे में समीक्षात्मक भावना व समीक्षात्मक राय बनाने में मदद मिलती है। माता-पिता बनना एक कठिन काम है।


इसलिए हम कई अलग-अलग क्षेत्रोंसंस्कृतियोंधर्मों और पृष्ठभूमियों से आने वाले व्यापक अनुभव वाले लोगों को एक साथ लाकर इन सवालों पर बहस करते हैं और सर्वोत्तम नीतियाँ बनाने का प्रयास करते हैं। फिर हम एक पत्र प्रकाशित करते हैं ताकि अन्य लोग उसे पढ़ सकें।


प्र. - क्या आप हमारे पाठकों को कुछ और बताना चाहेंगे?

नैतिक मूल्यों को लेकर हमारे लिए सबसे कठिन चीज़ों में से एक है उनकी रक्षा करना। जब कोई भी हमारे मूल्यों को चुनौती देता है तब हमें ऐसा लगता है कि वह हमें गहरे स्तर पर तकलीफ़ दे रहा है। किसी अन्य व्यक्ति की उनके मूल्यों के बारे में अभिव्यक्ति सुनना अक्सर हमें तकलीफ़ देता है। दुनिया में कई झगड़े वास्तव में दूसरे पक्ष के मूल्यों पर मनन करने के लिए बिना सोचे-समझे इनकार करने से होते हैं। हम अपने मूल्यों को सही बताकर उनका बचाव करते हैं और दूसरों के मूल्यों को गलत, बुरा या पथ से भटके हुए बताते हैं। तो हम वहीं वापस आ गए हैं जहाँ शुरुआत में थे। यह इस पूरे विचार को बिगाड़ देता है कि नैतिकता मूल्यों के टकराव के बारे में है और लोग मूल्यों को अलग तरह से प्राथमिकता देते हैं।

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दूसरे व्यक्ति को ध्यान से सुनना एक ऐसा कौशल है जिसे हम विकसित कर सकते हैं। अगर मैं कोई संदेश देना चाहूँ तो वह यह होगा कि अब हमें दुनिया में और अधिक गहराई से सुनने की ज़रूरत है।

प्र. - मुझे लगता है कि सुनना एक ऐसा प्रभावशाली साधन है जो बहुत सी गलतफ़हमियों को दूर कर देता है।

आपके लिए आगे क्या है?

मैं जून में अपने केंद्र के निदेशक का पद छोड़ रहा हूँ और एमोरी में संघर्ष-समाधान, मध्यस्थता और शांति बढ़ाने के लिए एक नया केंद्र बना रहा हूँ। मैं अगले वर्ष विश्राम-काल (सबैटिकल) में ओस्लो, जिनेवा, द हेग और अन्य स्थानों की यात्रा करूँगा तथा विभिन्न संघर्ष समाधान केंद्रों में लोगों से बात करूँगा और कुछ नए तरीके के प्रतिरूप बनाने का प्रयास करूँगा।

बहुत बढ़िया। हमारे लिए समय निकालने के लिए आपका धन्यवाद।


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पॉल वोल्पे

पॉल एक अमेरिकी समाजशास्त्री और जैवनैतिकतावादी हैं। वे अटलांटा, जॉर्जिया में एमोरी विश... और पढ़ें

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