नीना रुबिनस्टीन अलोंसो हैथवे पश्चिम में हार्टफुलनेस के शुरुआती दिनों को याद करती हैं।
शाहजहाँपुर, भारत
मैं थोड़ी उदास थी और तभी मेरे पति फ़र्नैन्डो ने मुझे अपने दोस्त जिम के साथ ध्यान करने का सुझाव दिया जो पास में ही रहता था और जो भारत जाकर एक गुरु, बाबूजी, से मिल चुका था। पहली सिटिंग से ही मुझे हृदय से जुड़ाव महसूस हुआ और मैं सोचने लगी कि मुझे अपने जीवन में यह अब तक क्यों नहीं मिला था। लेकिन मेरे मन में अभी भी कुछ सवाल थे। मेरे मन में विचार आया कि ध्यान करते समय मुझे जो शांति महसूस हुई, वह कहीं आत्म-सम्मोहन या कल्पना तो नहीं थी।
पक्का विश्वास करने के लिए मैंने शाहजहाँपुर जाकर बाबूजी से मिलने का मन बनाया। फ़र्नैन्डो भी मेरे साथ गए और हमने हर दिन बाबूजी के साथ घंटों बिताए। वहाँ एक प्रेमपूर्ण, शुद्ध वातावरण में आध्यात्मिक ऊर्जा बह रही थी। हमसे कोई शुल्क नहीं लिया गया - यहाँ तक कि हमारे भोजन या आश्रम में हमारे कमरे के लिए भी नहीं; दान ऐच्छिक था। शाम के ध्यान के दौरान हॉल के दरवाज़े खुले रहते थे और हमें पक्षियों की चहचहाहट सुनाई देती थी, जो एक ऊँचे कोने में अपने घोंसलों की ओर उड़ रहे होते थे। वे हमें भौतिक दुनिया की याद दिलाते थे।
डोल, फ्रांस
सैकड़ों लोग एक विशाल तंबू में बैठे थे। चारीजी ने सभी लोगों पर दृष्टि डाली और कहा, “कृपया ध्यान शुरू करें।” मैं ध्यान में गहरी डूबती गई और फिर सहसा मुझे भिनभिनाने की आवाज़ सुनाई दी। मुझे नहीं पता कि वह कहाँ से आ रही थी। अचानक एक चीख सुनाई दी जैसे किसी को मधुमक्खी ने डंक मार दिया हो या वह डर गया हो। उसके बाद फिर से तब तक शांति बनी रही जब तक कि चारीजी ने यह नहीं कहा, “बस कीजिए” और उसके साथ ही सिटिंग समाप्त हो गई। मुझे नहीं पता कि ध्यान के दौरान क्या हुआ था। जब मैंने अपनी आँखें खोलीं तो देखा कि सभी ठीक लग रहे थे। मधुमक्खी या जो कुछ भी थी वह जा चुकी थी।
मद्रास, भारत
मद्रास में एक इमारत की दूसरी मंज़िल पर ध्यान चल रहा था। हम एक-दूसरे के करीब बैठे थे लेकिन हमें कोई दिक्कत नहीं थी। मैं चारीजी के सान्निध्य में होने के लिए आभार महसूस कर रही थी, हालाँकि घंटों यात्रा करने की वजह से जेट-लैग था और सिर चकरा रहा था। ध्यान तब तक गहरा था जब तक कि अगली इमारत से तेज़ आवाज़ें नहीं आने लगीं। लोग चिल्लाने लगे, फिर खटपट और पीटने की आवाज़ें आने लगीं। बाद में हमें पता चला कि वह शोर निर्माण कार्य की वजह से आ रहा था। लेकिन इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ा क्योंकि मैं बहुत गहराई से ध्यान में डूबी हुई थी। शोर हो रहा था, लेकिन इससे ध्यान में कोई विघ्न नहीं पड़ा।
मणपक्कम, भारत
कई वर्ष बाद हम मणपक्कम में बाबूजी मेमोरियल आश्रम में थे। हॉल में हज़ारों लोग बैठे थे और ध्यान में लीन थे कि तभी पास की मस्जिद से माइक्रोफ़ोन पर ऊँची आवाज़ आने लगी जो लोगों के लिए नमाज़ अदा करने का बुलावा था। बार-बार अज़ान की आवाज़ आ रही थी। लेकिन उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ा, क्योंकि हम दूसरे ही आयाम में थे, ध्यान निर्विघ्न रहा। तभी एक विचार मन में उठा कि हम सभी अलग-अलग रास्तों से ईश्वर तक पहुँच रहे हैं, काश हर कोई भिन्नताओं को स्वीकार करता, बहस नहीं करता, एक-दूसरे से नफ़रत नहीं करता, अलग-अलग रास्तों, नेताओं, इतिहासों को लेकर हमले और हत्या नहीं करता।

कोपेनहेगन, डेनमार्क और म्यूनिख, जर्मनी
हमने हफ़्तों तक कोपेनहेगन के एक बड़े घर में बाबूजी और चारीजी के साथ ध्यान किया। उसके बाद हम ट्रेन से म्यूनिख आ गए। लेकिन वहाँ का बैठक-कक्ष छोटा था, इसलिए देर से आने वाले लोग बाहर बगीचे में बैठते थे; मौसम न ज़्यादा ठंडा था और न ही ज़्यादा गर्म। एक विशेष रूप से गहरी सिटिंग के बाद सोनिया और मैं पास के एक रेस्तराँ में बैठे थे कि सहसा मेरा दिल इतनी तेज़ी से धड़कने लगा कि मैं खाना भी नहीं खा पाई। मैंने एक प्रशिक्षक से पूछा कि इसका क्या अर्थ था, लेकिन उन्हें ठीक से नहीं पता था। फिर मुझे चारीजी से पूछने का मौका मिला। उन्होंने मुझे गहरी निगाह से देखा और कहा कि मैं जो महसूस कर रही थी वह प्रिय गुरुदेव, बाबूजी, के लिए प्रेम का अतिरेक था। यह बात मेरे भीतर गूंजने लगी और मुझे सच्ची लगी। कुछ घंटों के बाद दिल की धड़कन की तीव्रता कम हो गई। सिटिंग के दौरान मैं हमेशा दिल में एक तरह की पीड़ा महसूस करती हूँ जिसमें मुझे प्राणाहुति के प्रवाह का एहसास होता है।

पेरिस, फ्रांस
हम एक विश्वविद्यालय के सभागृह में बैठे थे और बुज़ुर्ग व कमज़ोर बाबूजी को, मंच के दाईं ओर अपनी कुर्सी तक चलने के लिए सहायता की आवश्यकता थी। चारीजी बीच में बैठे थे और सिटिंग की तैयारी कर रहे थे। तभी मैंने हवा में प्रकाश की तरंगों को बहते हुए देखा। ये ऊर्जा की दृश्यमान तरंगें थीं जो बाबूजी के हृदय से चारीजी तक बह रही थीं। मुझे महसूस हुआ कि सिटिंग के दौरान हृदय के प्रकाश की ये किरणें हमें प्रेषित की जाएँगी। मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं। ध्यान इतना गहन व शुद्ध था और मैं इस कदर उसमें तल्लीन हो गई कि मैं भूल गई कि ध्यान शुरू होने से पहले मैंने क्या देखा था। मुझे प्रकाश की वे तरंगें कई साल बाद चारीजी के साथ एक ध्यान के दौरान याद आईं। वह तो उसकी एक झलक थी जो हमें ध्यान में दिया जाता है।
मेरा बैले स्टूडियो, मैसाचुसेट्स एवेन्यू, कैंब्रिज, मैसाचुसेट्स
हम कई वर्षों से रविवार की सुबह यहाँ ध्यान कर रहे थे। यह बैले नृत्य के लिए बनाया गया एक आयताकार तहखाना था, जो साधारण और शांत था। कुछ लोग देर से आते थे, कुछ जल्दी चले जाते थे लेकिन ध्यान लोगों की इन गतिविधियों से अप्रभावित था। जब मार्च 2020 में कोविड आया तब मुझे छब्बीस साल तक वहाँ बैले सिखाने के बाद स्टूडियो बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
लेक व्यू एवेन्यू, कैंब्रिज, मैसाचुसेट्स
यहाँ निर्माण कार्य का शोर जल्दी शुरू हो जाता था, बुलडोज़र पड़ोस के आँगन में मिट्टी ढो रहे होते थे। दशकों के ध्यान के बाद भी मैं उन समस्याओं से निपटते समय तीव्र भावनाओं को महसूस करती थी जिन्हें मैं हल करना नहीं जानती थी। मुझे डर लगता था कि इसके बाद क्या होगा। मुझे नहीं पता था कि मैं इस घर का रख-रखाव कैसे करूँगी जो मेरे नाम पर था क्योंकि फ़र्नैन्डो के पास पहले से ही एक और संपत्ति थी और वे उदार और प्यार करने वाले इंसान थे। लेकिन वे फेफड़ों के कैंसर से गंभीर रूप से बीमार थे। वे कई वर्षों से कीमोथेरेपी करवा रहे थे और मुझे उन्हें खोने का डर था।
वर्ष 1985 में चारीजी हमारे घर आए। वे हमारे बैठक-कक्ष में सामूहिक ध्यान कराते थे। लेकिन उन्होंने मेरी चिंता को भांप लिया और मुझे ऊपरी मंज़िल के मेरे छोटे से ध्यान कक्ष में एक व्यक्तिगत सिटिंग दी। एक बार बाहर टहलते हुए मैंने फूलों की ओर इशारा किया जिन्हें ‘फ़ॉरगेट मी नॉट’ कहा जाता है। इस पर उन्होंने कहा कि वे आध्यात्मिक रूप से सतत स्मरण की याद दिलाते हैं। बाद में उसी दिन दोपहर में वे ढेर सारे पिज़्ज़ा लेकर मेरे घर में प्रवेश कर रहे थे क्योंकि उन्होंने सुना कि जो हमारे कैंब्रिज समूह के लिए दोपहर के भोजन का प्रबंध करने वाला था, वह भूल गया था। प्रेमपूर्ण उदारता के साथ मुस्कुराते हुए उन्होंने हम सभी को एक-एक टुकड़ा दिया।
जाने से पहले वे मेरे पति से मिलना चाहते थे जो पूरा दिन बिस्तर पर आराम कर रहे थे। फ़र्नैन्डो मिलने के लिए धीरे-धीरे नीचे आ गए। चारीजी ने उनसे हाथ मिलाया और उनके आतिथ्य के लिए उन्हें धन्यवाद दिया। मुझे लगा जैसे कि प्रेम और करुणा युक्त प्राणाहुति बह रही थी। फ़र्नैन्डो के प्यार और संवेदनशीलता के कारण ही मैं वर्षों पहले ध्यान में आई थी। अगले वर्ष जुलाई 1986 में जब उनका निधन हो गया तब चारीजी मेरे साथ संपर्क में रहे। उन्होंने मुझे लिखने के लिए कहा, मेरे पत्रों का बहुत दयालुता और उदारता से उत्तर दिया। उन्होंने मुझे बताया कि ध्यान हमें संभाले रखता है, “परिवर्तन दर परिवर्तन।” विभिन्न प्रकार की मानवीय पीड़ाओं के बारे में बाबूजी कहा करते थे, “बहुत पीड़ा।”
कुछ वर्ष बाद चारीजी न्यूयॉर्क आए और हम स्टेटन आईलैंड पर श्री कमलेश पटेलजी के घर पर मिले, जिन्हें हम अब दाजी कहते हैं, जो हार्टफुलनेस के वर्तमान गुरु हैं। तब उनके भोजन-कक्ष की मेज़ के चारों ओर एक छोटा समूह इकट्ठा हुआ था। लेकिन इन दिनों कान्हा शांतिवनम् और अन्य जगहों पर हमारी संख्या बहुत अधिक होती है क्योंकि मिशन लगातार बढ़ रहा है।
