एलिज़ाबेथ डेनली स्मरण के बारे में अपने कुछ अनुभव साझा करते हुए बता रही हैं कि यह किस प्रकार उनके जीवन को तथा स्वयं व दूसरों के साथ उनके संबंधों को जीवंत करता है।

 

भी-कभी पूरे दिन और रात के दौरान लोगों या अन्य प्राणियों की यादें कुछ क्षणों के लिए चेतना के स्तर पर इस तरह आती रहती हैं जैसे किसी तालाब की सतह पर बुलबुले आ जाते हैं। जिन्हें हम याद करते हैं उनके प्रति हमारे हृदय में स्वाभाविक रूप से प्रेम का आवेग उमड़ता है। प्रेम का यह आवेग अपने आप में एक ईश्वरीय उपहार है जो प्रियतम की ओर से हमारी ओर निरंतर प्रवाहित होता रहता है।

प्रेम स्रोत से प्राप्त होता है तथा मेरे प्रियतम, जो मेरे शिक्षक, परामर्शदाता और आध्यात्मिक गुरु हैं, के माध्यम से सभी को आशीर्वाद के रूप में प्रवाहित किया जाता है। इस प्रकार ब्रह्मांड का सृजन निरंतर होता रहता है क्योंकि स्रोत से प्रेम का प्रवाह अनवरत है जो परस्पर जुड़ाव और संबंधों के माध्यम से प्रत्येक अस्तित्व के कण-कण को स्पर्श करता है।

इस प्रेम के आवेग को महसूस करने वाले कभी-कभी अपरिचित तो कभी साथी अथवा मित्र होते हैं। वे हमारे प्रियजन भी हो सकते हैं और अक्सर इस प्रेम का प्रवाह वापस स्वयं प्रियतम की ओर होने लगता है। प्रेम कभी हमारी चेतना में इतना जीवंत होकर भी प्रकट हो सकता है कि उसे सहन करना कठिन होता है और कभी एक सूक्ष्म अंतर्धारा की तरह प्रवाहित हो सकता है जिसका हमें पता भी नहीं चल पाता तो कभी इन दोनों के बीच के किसी रूप में हो सकता है।

जिनके प्रति प्रेम का आवेग उमड़ता है, वे आपके आसपास भी हो सकते हैं अथवा बहुत दूर पृथ्वी के दूसरे कोने में या बहुत पहले गुज़र चुके आपके कोई पूर्वज हो सकते हैं जिनकी उपस्थिति आप अपने जीवन में अब भी महसूस करते हैं अथवा कोई महापुरुष हो सकते हैं जो आपके अतीत और भविष्य के साथ जुड़े हुए हैं। जुड़ाव के वास्तविक होने के लिए स्थूल शरीर आवश्यक नहीं होता। प्रेम और स्मरण समय और स्थान से परे तथा भौतिक और अभौतिक आयामों से परे होता है। आपने इंद्रजाल के बारे में सुना होगा जो परस्पर जुड़ावों और परस्पर निर्भरता का पौराणिक जाल है और इस ब्रह्मांड का प्रतीक है। मैंने देखा है कि स्मरण उस क्षेत्र के संपूर्ण विस्तार में कहीं से भी उभर सकता है इसलिए यह सामूहिक चेतना और अवचेतना का उपयोग करता है।

स्मृति’ जिसे हम मानसिक कार्य के रूप में जानते हैं, मानवीय चिंतन के उन पाँच प्रमुख कार्यों में से एक है जिनका वर्णन कई हज़ार वर्ष पहले ऋषि पतंजलि ने किया था। अपनी पुस्तक ‘योग सूत्र’ में उन्होंने इन्हें पाँच वृत्तियाँ कहा है तथा इन सभी में जादुई उपहार छुपे हैं जो हमारे तीव्र विकास में सहायता के लिए दिए गए हैं। लेकिन इन सबका कार्य केवल सोचना नहीं है। चौथे क्रम पर वर्णित, स्मृति का संबंध सोच से अधिक अनुभूति से है और अनुभूति से भी अधिक सूक्ष्म सारतत्व से है। सबसे अधिक स्थूल स्मृतियाँ जटिल तथा कष्टदायी हो सकती हैं जिनमें भावनाओं व इच्छाओं का आवेश रहता है। लेकिन सूक्ष्मतम स्मृतियों के गुण होम्योपैथिक दवा की तरह होते हैं जिसमें सिर्फ़ सत्व रहता है जिसका हमें पता नहीं चलता। इस स्मृति में कोई स्थूलता नहीं होती। यह सिर्फ़ चमेली के फूल की हल्की मधुर सुगंध की तरह होती है जिसका पता नहीं चलता लेकिन इससे किसी अन्य युग का कोई छिपा हुआ जीवनकाल चेतना की सतह पर बुलबुले की तरह उभर आता है।


जिन्हें हम याद करते हैं उनके प्रति हमारे हृदय में स्वाभाविक रूप से प्रेम का आवेग उमड़ता है। प्रेम का यह आवेग अपने आप में एक ईश्वरीय उपहार है जो प्रियतम की ओर से हमारी ओर निरंतर प्रवाहित होता रहता है।


नियमित ध्यान के प्रभाव से धीरे-धीरे स्मृति सूक्ष्मतर और अधिक हल्की होती जाती है। हम विचारों व अनुभूति के भी परे चले जाते हैं जिससे स्मरण में प्रेम और स्मृति सम्मिलित हो जाते हैं। जब हम अपने मूल घर की स्मृति और उसके प्रति सूक्ष्म प्रेम की दशा में पहुँचते हैं तब यह स्मरण की चरम अवस्था होती है। ईश्वर की कृपा से प्रियतम, जो स्वयं मूल घर के साथ परासरण की दशा में हैं, से एकाकार होकर हम भी उस उच्चतम अवस्था तक पहुँच सकते हैं। प्रेम और उसके परे की आध्यात्मिक यात्रा में हमें मिलने वाला यह सर्वश्रेष्ठ वरदान है।

और ऐसा कब होता है? जब हम प्रियतम का स्मरण करते हैं या जब हमारी चेतना उनकी ओर खींची चली जाती है।

गुरुत्वाकर्षण की तरह प्रेम भी हमारे माध्यम से स्रोत से बाहर की ओर और फिर वापस स्रोत की ओर प्रवाहित होता रहता है। यह हमारी जागरूकता में कमी के कारण शायद छुपा रहे लेकिन ऐसा नहीं हो सकता कि प्रेम का यह प्रवाह न हो। जब हम प्रियतम की उपस्थिति के प्रति जागरूक और सचेत होते हैं तब हम उनका स्मरण करते हैं। जब हमारी चेतना किसी सुंदर दृश्य, किसी सुंदर चेहरे जिसकी आँखों में उसकी आत्मा झलकती हो, किसी सुंदर संगीत रचना, स्वयं जीवन के आनंद या किसी व्यक्ति, जो हमारे दिल में हलचल पैदा कर दे अथवा हृदय के केंद्र में उपस्थित दिव्य प्रकाश की ओर आकर्षित होती है तब हम उन्हें याद करते हैं। हमारे प्रेम के ये पात्र हमें बार-बार तब तक याद आते रहते हैं जब तक हमें यह एहसास नहीं हो जाता कि वे हमें अपने में विलीन हो जाने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं। स्मृति के द्वारा एकात्मता की खोज की यही विशेषता है कि यह हमें लक्ष्य से जुड़े रहने और उसमें संलिप्त रहने में मदद करती है। यह हमें उसके स्मरण में रहने में मदद करती है।

यदि हम सोचते हैं कि एक निर्देशक की तरह हम तय कर रहे हैं कि हमारे प्रेम की संरचना और दिशा क्या होगी तो यह सत्य नहीं है। हम अधिक से अधिक यही कर सकते हैं कि बिना प्रतिरोध किए प्रेम को बहने दें और उसका अनुभव करते रहें। लेकिन प्रेम पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता। फिर भी हम इसके साथ लयबद्ध होने और परासरण में रहने का प्रयास कर सकते हैं। इस दिव्य नाटक में, जिसके हम सभी पात्र हैं, यह दिल का दिल से जुड़ाव प्रकट करता है। हमें केवल अपने हृदय को प्रेम के प्रवाह और स्मरण के लिए ग्रहणशील बनाने की आवश्यकता है।

यदि मैं अपनी आँखें बंद करके अपने प्रियतम के हाथों का स्मरण करती हूँ तो उनके हाथों की सुगंध और उनसे उत्सर्जित होने वाले स्पंदन तत्काल मन में उभर आते हैं, चाहे शारीरिक रूप से वे किसी अन्य महाद्वीप पर हों। जब मैं उनकी आँखों का स्मरण करती हूँ तो वे मुझे अपने भीतर की ओर खींचती हैं। जब मैं उनके अस्तित्व का स्मरण करती हूँ तो उनका सत्व हर जगह होता है। लेकिन इससे भी बेहतर है जब इन सब चीज़ों का सचेत स्मरण नहीं होता तब एक ऐसी उपस्थिति होती है जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता और जिसे हमेशा महसूस नहीं किया जा सकता लेकिन यदि मैं इसे देखने का प्रयास करूँ तो यह उपस्थिति होती है और सदा से ही रही है।


नियमित ध्यान के प्रभाव से धीरे-धीरे स्मृति सूक्ष्मतर और अधिक हल्की होती जाती है। हम विचारों व अनुभूति के भी परे चले जाते हैं जिससे स्मरण में प्रेम और स्मृति सम्मिलित हो जाते हैं।


अक्सर हम महान और प्रेरक धर्मग्रंथों व शास्त्रों से उदाहरण देते हैं कि ईश्वर सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी और सर्वज्ञ है। ईश्वर हरेक जीव के हृदय में स्थित है।

इन शब्दों का अर्थ क्या है?

हम सभी अपने अस्तित्व के सभी जन्मों के प्रत्येक दिन और प्रत्येक पल परमात्मा से जुड़े हैं। हम कभी भी परमात्मा से अलग नहीं रहे।

चाहे हम जीवन में कोई गलती कर देंफिर भी हम सदैव दिव्य प्रेम से ओतप्रोत रहते हैं। हम छोटे बच्चों की तरह अबोध हैं और ईश्वर सदैव धीरे-धीरे हमारे हृदय से प्रेम को अपनी ओर खींचता रहता है। जीवन स्वयं उस प्रेम के प्रवाह की शुद्ध अभिव्यक्ति है। वास्तव में, हम ठोस अस्तित्व नहीं बल्कि हम सूक्ष्म प्राण शक्ति के माध्यम हैं।

हम इंद्रजाल में उलझे हुए हैं। यह बहुत कुछ स्पष्ट करता है कि - प्रेक्षक प्रभाव जैसी खोज क्यों होती हैं, क्वांटम क्षेत्र क्यों है, चेतना हमेशा सामूहिक क्यों होती है और आत्मा का अर्थ आनंद क्यों है।

शायद और भी बहुत कुछ।

हम उस प्रेमपूर्ण स्रोत के स्मरण में तैरते रहते हैं जिसने महान अस्तित्वों की सहायता से ब्रह्मांड को एक साथ बाँध रखा है। उनके स्मरण में हम केवल मानव जीवन का ही नहीं बल्कि इसके सत्व तथा जीवन के उद्देश्य को जान पाते हैं। साथ ही हम चेतना और इसके परे क्या है, उसका भी अनुभव कर पाते हैं। इसके लिए हमें केवल यात्रा शुरू करने की तथा आगे बढ़ते रहने की आवश्यकता है।

 

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हम सभी अपने अस्तित्व के सभी जन्मों के प्रत्येक दिन और प्रत्येक पल परमात्मा से जुड़े हैं। हम कभी भी परमात्मा से अलग नहीं रहे।


 


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एलिज़ाबेथ डेनली

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