थॉमस स्टैनले, ब्रिस्टल, यू.के. में मनोविज्ञान के स्नातकोत्तर श्रेणी के छात्र हैं। वे हमें अव्यवस्था कम करने और शिंटोवाद के महत्व के प्रति हुई अपनी जाग्रति के बारे में बताते हुए समझाते हैं कि इनसे हमें अपनी पृथ्वी की बेहतर देखभाल के लिए क्या सीख मिलती है।

दो सप्ताह पहले, मुझे एक ऐसा अनुभव हुआ जिसने मुझे उन चीज़ों के साथ, जो मेरे पास हैं, अपने संबंध के बारे में सोचने के लिए प्रेरित किया। अपना घर बदलने की तैयारी में मैंने उतने ही कपड़े बाहर रखे जिनकी मुझे अगले पाँच दिन ज़रूरत पड़ती। मैंने उन्हें अपनी अलमारी में टाँग दिया और बाकी सबको कार्ड-बोर्ड के डब्बों में डालकर एक विराम लिया। मेरी अलमारी अब केवल अलग ही नहीं दिख रही थी (यह फलालैन कमीज़ों के साथ ठसाठस भरी हुई नहीं थी) अपितु इसे देखकर अचानक ही मुझे एक अलग एहसास हुआ। मैं सहजता और स्वतंत्रता के एहसास से भर गया। 

28 साल तक इस समान के साथ रहने के बाद, मैं अब अपने ऊपर इन सबके भार को समझने लगा। मैं सोचने लगा कि मैं इस सारे सामान के साथ क्यों रह रहा था यदि यह अप्रत्यक्ष रूप से अपने बोझ तले मुझे दबा रहा था? कोटों के कम हैंगर संभालकर रखने की इस नई आज़ादी से प्रेरित होकर मैंने अपने मानसिक स्वास्थ्य पर इन भौतिक वस्तुओं के प्रभावों के बारे में जानने की कोशिश की और अव्यवस्था को दूर करने के वैकल्पिक दृष्टिकोण के लिए शिंटो (एक जापानी धर्म) का सहारा लिया।

हमारा वातावरण हमारी मनोदशा, हमारी भावनाएँ, हमारे विचारों और हमारे कार्यों को तय करता है।”—कमलेश पटेल

यह सच है। हमारा वातावरण हमें अनेक प्रकार से प्रभावित करता है। प्रकृति में बिताया गया अधिक समय हमारे स्वास्थ्य को और बेहतर बना सकता है। गाँवों की अपेक्षा शहरों में मानसिक अस्वस्थता का ज़्यादा खतरा होता है। और वास्तुशिल्प डिज़ाइन किसी भी कार्यस्थल की उत्पादकता को प्रभावित कर सकते हैं। यह हमारे डी.एन.ए. को भी प्रभावित कर सकते हैं। हम जब अपने वातावरण की बात करते हैं तो हम प्रायः खुले स्थानों के बारे में सोचते हैं, लेकिन हमारा सामान भी उस वातावरण का ही हिस्सा है। हमारे कपड़ों से लेकर पलंग के नीचे रखे काँच की उन बोतलों से भरे डिब्बे तक, जो फूलदान बनने वाले थे (क्या केवल मैं ही ऐसा सोचता हूँ?), हमारी सभी चीज़ें ऐसे पर्यावरणीय कारक हैं जो हमारे मन को प्रभावित करते हैं।

अव्यवस्था या कबाड़ भी एक पर्यावरणीय कारक हो सकता है। अव्यवस्था या कबाड़ से मेरा तात्पर्य, वे वस्तुएँ हैं जो हमारे वातावरण को अस्त-व्यस्त बनाती हैं। एक अध्ययन से पता चला है कि अधिक कबाड़ का संबंध सारा दिन रहने वाले अवसाद, शाम की थकावट और संबंधों में असंतुष्टि से है। हमारी चीज़ें जिनमें वे चीज़ें भी शामिल हैं जिनसे हमें मोह है पर हम उन्हें नियमित रूप से इस्तेमाल नहीं करते (जैसे अधूरे काम, पुराने वस्त्र और भावुकतापूर्ण कागज़ात या पत्र) इस अव्यवस्था में योगदान देती हैं। इसका मतलब है कि ऐसी अव्यवस्था-प्रवण वस्तुओं को अपने पास संभाले रखना, हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। तो क्या ऐसी वस्तुओं को हटा देना हमें बेहतर महसूस कराएगा? ऐसा प्रतीत होता है!

न्यूनतमवाद (Minimalism) पर एक वैज्ञानिक साहित्य समीक्षा में किए गए 21 अध्ययनों से पता चला है कि जीवन में उपभोग और अधिकता को कम करने से स्वास्थ्य में सुधार होता है। अपने मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर करने के लिए हमें कम चीज़ें खरीदनी चाहिए। न्यूनतमवाद, जिसे स्वैच्छिक सादगी के रूप में भी जाना जाता है, पूरे ग्रह में व्याप्त हो रहा ऐसा सिद्धांत है जो उपभोक्तावाद के विपरीत हमें कम से कम में रहने के लिए प्रेरित करता है। हममें से कुछ के लिए यह उन विचारों के प्रति जागरूक होने का सुअवसर हो सकता है जो हमें अलग-अलग तरह की वस्तुएँ संग्रहीत करने पर मजबूर करते हैं। जो विचार और ऊर्जा हम अपनी संपत्ति को देते हैं और जो ऊर्जा हम उनसे लेते हैं, यह उन पर ध्यान देने का अवसर है। जापान एक ऐसा देश है जिसकी संस्कृति में न्यूनतमवाद अंतर्निहित है।

जापान की न्यूनतमवादी प्रथाएँ

कोनमारी पद्धति, चीज़ों को व्यवस्थित करने वाली एक लोकप्रिय पद्धति है। इसे मेरी कोन्डो ने विकसित किया जो एक जापानी लेखिका, टीवी प्रस्तुतकर्ता और सलाहकार हैं। वे अपनी सर्वाधिक लोकप्रिय पुस्तक, ‘दि लाइफ़ चेंजिग मैजिक ऑफ़ टाइडिंग अप’ और नेटफ़्लिक्स चैनल पर अपने टीवी शो, ‘टाइडिंग अप विद मेरी कोन्डो’, के लिए भी जानी जाती हैं।

clutter-clarity2.jpg


न्यूनतमवाद, जिसे स्वैच्छिक सादगी के रूप में भी जाना जाता है, पूरे ग्रह में व्याप्त हो रहा 
ऐसा सिद्धांत है जो उपभोक्तावाद के विपरीत हमें कम से कम में रहने के लिए प्रेरित करता है।


सीधे शब्दों में कहें तो कोनमारी पद्धति के अनुसार हमें एक श्रेणी की अपनी सभी वस्तुओं को एक जगह एकत्रित करना चाहिए और फिर उनमें से उन्हीं वस्तुओं को रखना चाहिए जो आपको आनंदित करती हैं। यह जानने के लिए कि क्या यह वस्तु मुझे आनंद देती है, उसे हाथ में पकड़कर देखें कि क्या उससे आपको आनंद महसूस हो रहा है। उदाहरण के लिए, सबसे पहले अपने कपड़ों से शुरू करें। उन कपड़ों को रखें जिनसे आपको आनंद की अनुभूति होती है और उन्हें अलग रख दें जिनका स्पर्श आपको अच्छा नहीं लगा। फिर यही प्रक्रिया पुस्तकों, कागज़ों इत्यादि के साथ दोहराएँ। जो वस्तुएँ आप रखने का निर्णय लेते हैं उन्हें एक विशेष स्थान दिया जाता है, जहाँ वे रखी रहेंगी।

यद्यपि यह तरीका न्यूनतमवाद से मिलता-जुलता है पर कोन्डो का कहना है, “न्यूनतमवाद ‘कम’ में रहने की सलाह देता है लेकिन कोनमारी पद्धति उन वस्तुओं के साथ रहने की सलाह देती है जिन्हें आप सचमुच प्रेम करते हैं।” कोनमारी पद्धति का अनुसरण करके आप उन उद्देश्यपूर्ण चीज़ों से घिरे रहते हैं जो वातावरण को ऐसा बना देती हैं जिससे आपके अंदर की सकारात्मकता झलकती है।

कोन्डो कहती हैं कि घर की उन चीज़ों को हटाना जिनसे आपको आनंद नहीं मिलता, आपको हर वस्तु की उपयोगिता पर चिंतन करने का मौका देता है और अपने अतीत के अनुभवों से सीखने का अवसर प्रदान करता है। वे कहती हैं कि यह इस बात को समझने में मदद करता है कि यह आनंद का एहसास आपके लिए क्या मायने रखता है, जो विकसित होते-होते भविष्य में कबाड़ को दूर करने में आपके लिए सहायक होगा। सफ़ाई करते समय वे आपको एक ऐसा वातावरण बनाने का संकल्प लेने के लिए प्रोत्साहित करती हैं जो आपको वह बनने के लिए मदद करेगा जैसा बनने की आप आकांक्षा रखते हैं।

हालाँकि कोनमारी पद्धति के प्रति मुख्यधारा में रुचि बढ़ी है, फिर भी इसके पीछे एक गहरी सोच है जिसको प्रायः अनदेखा किया जाता है और वह है जापान की एक धार्मिक पद्धति शिंटो 

clutter-clarity3.jpg

का प्रभाव। कोन्डो पहले एक शिंटो मंदिर में पुजारिन के रूप में काम करती थीं, जिसने उनकी पद्धति को प्रभावित किया, “शिंटोवाद और मंदिरों में साफ़-सफ़ाई को मानसिक उन्नति और आध्यात्मिक प्रशिक्षण के रूप में देखा जाता है। मैं सलाह देती हूँ कि लोग अपने घरों को एक मंदिर के रूप में विकसित करें जो घर के सभी सदस्यों के लिए एक शक्ति-स्थल बने।”

साहित्य में शिंटो का ज़िक्र सबसे पहले आज से 2000 वर्ष पूर्व हुआ था। एक सर्वेक्षण में यह पाया गया कि जापान के 80% लोगों के कथनानुसार वे शिंटो परंपरा का पालन करते हैं जबकि 4% लोग इसे धर्म के रूप में मानते हैं।

शिंटो क्या है? एक धर्म? एक अभ्यास? एक जीवन जीने का ढंग? सरल शब्दों में कहें तो शिंटो ‘कामी’ में विश्वास है। ‘कामी’ वे दिव्य हस्तियाँ हैं जो मनुष्यों के साथ ही रहती हैं, ज़्यादातर प्रकृति की सुंदर वस्तुओं में, और ब्रह्मांड पर निगरानी रखती हैं। मनुष्य ‘कामी’ का सम्मान करते हैं और बदले में उनका प्यार पाते हैं। हम चढ़ावे और प्रार्थना द्वारा उनके साथ संवाद करते हैं जो, माना जाता है कि वातावरण के साथ एक पवित्र संबंध बनाए रखने में मदद करता है। सफ़ाई और सुव्यवस्था शिंटो के प्रमुख रिवाज़ हैं क्योंकि इसमें ऐसी मान्यता है कि अपशिष्ट और प्रदूषण व्यक्ति को ‘कामी’ की रचनात्मक प्रकृति, जिसे ‘मसूबी’ कहते हैं, से अलग करते हैं। और मसूबी ब्रह्मांड में हर चीज़ और हर व्यक्ति को आपस में जोड़ती है।

“पश्चिम में हमें सिखाया जाता है कि स्वच्छता धार्मिकता के बराबर है। शिंटो पद्धति में स्वच्छता ही धार्मिकता है।” यह हमें कोन्डो के काम की गहरी समझ और एक वैकल्पिक दृष्टिकोण देती है कि कैसे हम घर की साफ़-सफ़ाई को सामान्य कार्य से कृतज्ञता का दैवीय कार्य बना सकते हैं।

मेरे अनुभव का परिणाम

मैंने अपना अधिकांश जीवन अव्यवस्था में बिताया है; फ़र्श पर चारों ओर बिखरा सामान, मेरे पलंग के नीचे कला-परियोजनाओं के बेतरतीब विचार वाले कागज़, संगीत वाद्यों का संग्रह पर उन्हें प्रयोग न करना, आदि। मेरी यह रचनात्मक अव्यवस्था एक तरह से मेरी पहचान बन गई थी और मैं कुछ हद तक इससे संतुष्ट भी था। पीछे मुड़कर देखता हूँ तो पाता हूँ कि अत्यधिक व्यवस्था प्रिय परिवार में जन्म लेने के कारण मुझे व्यवस्था से नफ़रत हो गई थी। मेरी इस अव्यवस्था ने मुझमें कुछ मानसिक उलझनें और मस्तिष्क का हल्का धुँधलापन अवश्य पैदा किया जिनसे उबरने का मैं आज भी प्रयत्न कर रहा हूँ। इसलिए मैं उन लोगों के प्रति समानभूति रखता हूँ जिन्हें अपनी अस्त-व्यस्तता से कोई परेशानी नहीं होती। हो सकता है कि उनके पास ध्यान देने के लिए इससे ज़्यादा ज़रूरी मामले हों या फिर उनका जीवन जीने का तरीका ही अलग हो।


यदि हममें से प्रत्येक व्यक्ति अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में पृथ्वी के प्रति कृतज्ञता अभिव्यक्त करने की और उसकी व उससे संबंधित सभी चीज़ों की अच्छी देखभाल करने लगे तो हम पृथ्वी पर उपभोक्तावाद के दुष्प्रभाव को कम करके उसके स्वास्थ्य को बहाल कर सकते हैं।


कुल मिलाकर, व्यवस्थित रहने का एक अपना महत्व है। इसे देखने का एक तरीका यह भी है कि जब आप जल्दी में होते हैं तब चीज़ें ढूँढने में कम समय लगाते हैं और ज़रूरी सामान ढूँढने में भी कम समय लगाते हैं, जिससे आप उन चीज़ों और व्यक्तियों के साथ अधिक समय बिता पाते हैं जो आपको खुशी देते हैं।

यदि मुझे घर न बदलना होता तो शायद मुझे व्यवस्था का महत्व समझ में न आता और मैंने अपने आस-पास के वातावरण के साथ अपने नए संबंध को महसूस न किया होता। हाँ, अपने वातावरण से व्यक्तिगत रूप से अलग होने से अस्त-व्यस्तता हो सकती है जो तनाव को बढ़ा सकती है और एकाग्रता को कम कर सकती है। तुलनात्मक रूप से देखा जाए तो वैश्विक स्तर पर अपने वातावरण से अलगाव के कारण बड़े पैमाने पर विलुप्ति और परिदृश्य का प्रदूषण हो सकता है जिसे मैं हमारे सामूहिक घर की सामूहिक अव्यवस्था और अस्वच्छता के रूप में देखता हूँ।

मुझे अब शिंटोवाद का महत्व समझ में आ रहा है और मैं महसूस करता हूँ कि यदि हममें से प्रत्येक व्यक्ति अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में पृथ्वी के प्रति कृतज्ञता अभिव्यक्त करने की और उसकी व उससे संबंधित सभी चीज़ों की अच्छी देखभाल करने लगे तो हम पृथ्वी पर उपभोक्तावाद के दुष्प्रभाव को कम करके उसके स्वास्थ्य को बहाल कर सकते हैं। 

कलाकृति - अनन्या पटेल 


Comments

थॉमस स्टैनले

थॉमस स्टैनले

थॉमस मनोविज्ञान के स्नातकोत्तर हैं तथा एक हार्टफुलनेस अभ्यासी हैं जो चेस्टर, यू.के. में रहते हैं। वे अध्यात्म और मनोविज्ञान के सम्मिश्रण में दिलचस्पी रखते ह... और पढ़ें

उत्तर छोड़ दें