क्रिस्टीन प्रिसलैंड यहाँ किताबों और अच्छी कहानियों को कहने की कला के प्रति अपने प्रेम का ज़िक्र कर रही हैं। साथ ही, वे एक खास लेखक, अलेक्ज़ेंडर मेक्कॉल स्मिथ, के बारे में बता रही हैं जो उन्हें प्रेरित करते हैं और उन्हें खुशी देते हैं
मुझे किताबें पढ़ने का बहुत शौक है। मैं ऐसी किताबें ढूँढती हूँ जो मेरा मन बहलाएँ, उम्मीद जगाएँ और मानवीय दशा तथा हमारे सामने आने वाली विभिन्न दुविधाओं व परिस्थितियों के बारे में मेरी समझ को बढ़ाएँ। जिस लेखक की किताबें मैं अक्सर पढ़ती हूँ, उनका नाम है, अलेक्ज़ेंडर मेक्कॉल स्मिथ। वे स्कॉटलैंड निवासी हैं। उनका जन्म अफ़्रीका में हुआ था और उन्होंने यू.के. व अन्य देशों के विश्वविद्यालयों में चिकित्सा कानून पढ़ाया है। अभी वे एडिनबरा, स्कॉटलैंड में रहते हैं।
उनकी बायोएथिक्स, यानी जैवनैतिकता, की पृष्ठभूमि और रुझान की झलक उनकी कृतियों में साफ़ दिखाई पड़ती है। जैसे - ‘द नंबर 1 लेडीज़ डिटेक्टिव एजेंसी’ जो बोत्सवाना की पृष्ठभूमि में लिखी गई, ‘इज़ाबेल डलहौज़ी’ और ‘44 स्कॉटलैंड स्ट्रीट’, दोनों एडिनबरा की पृष्ठभूमि में लिखी गईं। इसके अलावा उन्होंने बच्चों के लिए और अन्य कई पुस्तकें लिखीं और उनमें भी यही रुझान है। एक बार संडे टाइम्स स्कॉटलैंड में एक समीक्षक ने उनके बारे में लिखा था, “उनकी काबिलियत यह है कि वे छोटी-छोटी चीज़ों में ईश्वर को देख लेते हैं।”
मैं उनकी पुस्तकों को क्यों संजोकर रखती हूँ और बार-बार पढ़ती हूँ?
उनमें बुद्धिमानी से कहानी कहने का गुण है। उनके पात्र अक्सर जीवन के बारे में आंतरिक दार्शनिक विचारों में संलग्न रहते हैं और हमारे सामने आने वाली सामान्य और बड़ी मामूली चीज़ों के प्रति नैतिक और दयालु दृष्टिकोण रखते हैं। हर किताब में बदलती दुनिया के अनुकूल बनते हुए आशा, दया, समझ, उम्मीद, शांति और परंपरा के प्रति सम्मान की झलक देखने को मिलती है। वे परेशान करने वाले लोगों और परिस्थितियों पर प्रतिक्रिया देने और आशावादी बने रहने के तरीकों पर भी विचार करते हैं। वे कभी उपदेश नहीं देते, बस हल्के-फुल्के हास्य और सरलता के साथ वे शिष्ट व विनम्र शैली में लिखते हैं। उनकी किताबें मुझे सोचने और सीखने पर मजबूर करती हैं।
हर किताब में बदलती दुनिया के अनुकूल बनते हुए आशा, दया, समझ, उम्मीद, शांति और परंपरा के प्रति सम्मान की झलक देखने को मिलती है।
हाल ही में अपने पाठकों को भेजी एक ईमेल में उन्होंने अपनी नई पुस्तक को प्रस्तुत करते हुए लिखा -
“यदि प्यार बिना शर्त के होता है तो इसमें कोई भी शर्त कैसे हो सकती हैं? बेशक यह सच है, जब तक आप इसे उन परिस्थितियों के संदर्भ में नहीं देखते जिनमें बिना शर्त प्यार पनप सकता है। या जब तक आप इसे इस तरह नहीं पढ़ते जिससे ऐसा लगे कि जिसे हम आमतौर पर बिना शर्त प्यार मानते हैं, उसमें वास्तव में कुछ शर्तें जुड़ी होती हैं। ये शर्तें केवल चरम परिस्थितियों में लागू हो सकती हैं। इज़ाबेल खुद इस पर चर्चा करना पसंद करेगी। लेकिन हम में से ज़्यादातर लोग, जो एक व्यस्त जीवन जीते हैं, मानते हैं कि ऐसी बहस में पड़ने के लिए जीवन में समय नहीं है। हममें से अधिकतर लोगों के लिए तो अहम बात यह है कि प्यार होता है और यह प्यार इस बेचारी व आहत दुनिया का उपचार कर पा रहा है, जिसकी इस दुनिया को बेहद ज़रूरत है।”
“इज़ाबेल दूसरों के प्रति शिष्टाचार और उनका मान रखने में विश्वास करती है। वह हमारे समाजों में बढ़ते कटु विभाजनों से दुखी है – ऐसे विभाजन जिनमें लोग अविश्वास और गुस्से के कारण एक-दूसरे से नाराज़ रहते हैं। यह उसके बिलकुल विपरीत है जो इज़ाबेल दुनिया के लिए चाहती है। हमें एक-दूसरे से प्यार करना चाहिए या फिर मर जाना चाहिए... इज़ाबेल इस मूलभूत सत्य में विश्वास रखती है।
“मुझे इन उपन्यासों को लिखना बहुत पसंद है। ये मुझे एक ऐसी दुनिया में ले जाते हैं जहाँ सद्गुणों की सराहना की जाती है। लेकिन वे मेरी इस मान्यता को भी दृढ़ बनाते हैं कि हमारी सभ्यता - वे नैतिक मूल्य और मान्यताएँ जिन्हें हमने सदियों में बनाया है - उन लोगों के इसे नष्ट करने के प्रयासों के बावजूद भी बच जाएगी, जो किसी भी चीज़ में बहुत विश्वास नहीं रखते। काल्पनिक कहानियाँ हमें दुखी और युद्धरत संसार की भयावहता से बचने के लिए भावनात्मक और बौद्धिक सहारा देती हैं। इससे कठिन समय में हमें राहत मिलती है।”
और अंत में,
“हमारे अपने जीवन में प्रेम भरे कार्यों से,
मित्रतापूर्ण कार्यों से, बस उन लोगों की सराहना से जो रोज़
हमारे रास्ते में आते हैं और जो नहीं भी आते,
इन कार्यों से, मुझे लगता है, हमें दिखाया जाता है कि क्या
हो सकता है;
इन कार्यों से हम धरती के उस छोटे से कोने को बदल सकते हैं, जो हमें दिया गया है...”
अलेक्ज़ेंडर मैक्कॉल स्मिथ
बर्टी प्लेज़ द ब्लूज़, 44 स्कॉटलैंड स्ट्रीट सीरीज़, अबैकस, 2012
क्रिस्टीन प्रिसलैंड
क्रिस्टीन की आध्यात्मिक यात्रा 24 वर्ष की आयु में शुरू हुई जब वे स्थल-मार्ग से भारत पहुँचीं और अपने गुरु से सन् 1972 में मिलीं। तब से वे हार्टफुलनेस की अभ्यासी एवं प्रशिक्षिका हैं। ... और पढ़ें