उपचार और करुणा में हृदय की बुद्धिमत्ता
हैरिंगटन हार्ट एंड वैस्कुलर इंस्टीट्यूट, यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल्स, केस वेस्टर्न रिज़र्व स्कूल ऑफ़ मेडिसिन, क्लीवलैंड ओहायो, अमेरिका के संजय राजगोपालन और काइल राजगोपालन हमारे जीवन में हृदय की भूमिका की आध्यात्मिक समझ और हृदय चिकित्सा-विज्ञान के बीच संबंध के बारे में जानकारी दे रहे हैं। वे प्राचीन और आधुनिक वैज्ञानिक अध्ययन को इस तरह जोड़कर बता रहे हैं जिससे अनेक व्यावसायिक चिकित्सकों के जीवन और काम में आमूल परिवर्तन हो सकता है।
लंबे समय तक वैज्ञानिकों का विचार था कि भावनाएँ और अनुभूतियाँ केवल मस्तिष्क से आती हैं। लेकिन अब वे जानते हैं कि इसमें हृदय भी एक बड़ी भूमिका निभाता है। यह नई समझ भावनाओं और चेतना के बारे में हमारी सोच को बदल सकती है। अब हृदय को केवल एक प्रतीकात्मक रूप में नहीं बल्कि एक ऐसे अंग के रूप में देखा जा रहा है जो सीधे तौर पर इस बात को प्रभावित करता है कि हम कैसा महसूस करते हैं। इस तथ्य ने हृदय को समानुभूति, करुणा और प्रेम के केंद्र में रख दिया है जिसे हम अनुभूतियों की गहरी जागरूकता मान सकते हैं।
‘नारायण सूक्तम्’ नामक एक प्राचीन संस्कृत स्तोत्र में, जो 7,000 साल से भी अधिक पुराना है, हृदय को जागरूकता का प्रवेश द्वार बताया गया है। इसके एक श्लोक में हृदय के स्थान का वर्णन इस प्रकार है, “यह कंठ के नीचे, नाभि से एक हाथ की चौड़ाई ऊपर है जो जीव ज्योति रूपी आत्मा के रूप में परमात्मा का निवास है।”1 अगले श्लोक में हृदय व तंत्रिका-तंत्र के संबंध के बारे में कहा गया है, “तंत्रिकाओं से घिरा हुआ, अधोमुखी कमल की कली के सदृश उस हृदय में एक सूक्ष्म स्थान है जहाँ हर वस्तु का आधार अर्थात परमात्मा विद्यमान है।” यह स्तोत्र हृदय को एक अनूठे रूप में प्रस्तुत करता है जो तंत्रिका-तंत्र के साथ इसके शारीरिक स्थान और आध्यात्मिक महत्व दोनों को ही व्यक्त करता है।
यह दर्शाता है कि हृदय की शरीर में रक्त प्रवाहित करने की प्रतिक्रिया, जो हालाँकि उत्तेजनाओं के प्रति मस्तिष्क से मिलने वाली ‘तेज़’ प्रतिक्रियाओं से कम होती है, पहले हो सकती है और अपनी शारीरिक अवस्था के बारे में हमारी भावनात्मक जागरूकता को प्रभावित कर सकती है।
हृदय और मस्तिष्क के बीच का संबंध फ्रांसीसी चिकित्सक क्लाउड बर्नार्ड के विचारों के बाद से काफ़ी विकसित हुआ है जिन्होंने वर्ष 1865 में इनके संबंधों पर प्रकाश डाला था।2 हालाँकि उन्होंने भावनाओं में हृदय की भूमिका को स्वीकार किया लेकिन उनका मानना था कि यह मस्तिष्क के प्रभाव से कमतर है। बर्नार्ड ने कहा कि जब हमारा मस्तिष्क बाहरी उत्तेजनाओं को समझता है तब यह तंत्रिकाओं के माध्यम से हृदय की संरचना और कार्यप्रणाली में परिवर्तनों को उत्प्रेरित करता है - जैसे हृदय गति में वृद्धि। हृदय के कार्य में आया यह परिवर्तन हमें अपनी चिंता या भय जैसी भावनाओं के बारे में जागरूक होने में मदद करता है। उदाहरण के लिए, कल्पना कीजिए कि आप रात में अकेले टहल रहे हैं और अचानक एक आवाज़ सुनते हैं। आप चौंक जाते हैं और अक्सर इससे पहले कि आप भय को सचेत होकर महसूस करें, मस्तिष्क और हृदय के बीच तंत्रिका-तंत्र में तेज़ी से होने वाली प्रतिवर्ती कार्रवाई के कारण आपके हृदय की गति बढ़ सकती है। यह दर्शाता है कि हृदय की शरीर में रक्त प्रवाहित करने की प्रतिक्रिया, जो हालाँकि उत्तेजनाओं के प्रति मस्तिष्क से मिलने वाली ‘तेज़’ प्रतिक्रियाओं से कम होती है, पहले हो सकती है और अपनी शारीरिक अवस्था के बारे में हमारी भावनात्मक जागरूकता को प्रभावित कर सकती है।
आज हृदय की चिकित्सकीय समझ कहीं अधिक परिपक्व है। अब हम इसे सिर्फ़ एक रक्त प्रवाहित करने वाले पंप के रूप में नहीं देखते। यह एक जटिल व शरीर के अन्य अंगों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ अंग है जिसका अपना तंत्रिका तंत्र है। हृदय और मस्तिष्क के बीच दोतरफ़ा संचार होने से भावनाओं और शारीरिक प्रतिक्रियाओं का सहजता से एकीकरण हो जाता है।3 कई मामलों में हृदय से निकलने वाले संकेत मस्तिष्क से निकलने वाले संकेतों से पहले आते हैं और उन पर हावी होते हैं। उदाहरण के लिए, हृदय द्वारा स्रावित प्रोटीन व अन्य अणु मस्तिष्क की गतिविधि को गौण रूप से प्रभावित करते हैं।4
जब आप किसी प्रियजन को देखते हैं तब आप जो सौहार्द और निष्कपटता महसूस करते हैं, उसके बारे में सोचिए। प्रायः छाती में महसूस होने वाली यह अनुभूति हृदय का मस्तिष्क को प्रेम और लगाव की भावनाओं को संप्रेषित करने का तरीका हो सकती है। यह अनुभूति मात्र एक मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रिया से कुछ अधिक हो सकती है। यह हृदय में ही निहित और वहीं उत्पन्न हो सकती है। जहाँ मस्तिष्क इन भावनाओं को संसाधित और उनका विवेचन करता है, वहाँ हृदय इन्हें उत्पन्न करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हमारी सोच में यह बदलाव हमारे भावनात्मक जीवन में हृदय के महत्व को उजागर करता है। इससे यह संकेत मिलता है कि जितना हम पहले सोचते थे, हमारी भावनाएँ उससे कहीं ज़्यादा हृदय-केंद्रित होती हैं।
हार्टफुलनेस हमारे विचारों और भावनाओं के बीच के संबंध पर एक दिलचस्प दृष्टिकोण प्रदान करता है, जिसमें प्राचीन ज्ञान व आधुनिक समझ का मेल है।5 आध्यात्मिक शब्दावली में, ‘चक्र’ हमारे शरीर में ऊर्जा के केंद्र हैं जो हमारी आध्यात्मिक ऊर्जा को प्रभावित करते हैं। हार्टफुलनेस परंपरा में 16 चक्र हैं – 3 निचले चक्र, ‘हृदय क्षेत्र’ के 5 चक्र, ‘मनस क्षेत्र’ से संबंधित 7 चक्र और 1 चक्र हृदय और मनस क्षेत्र के परे है जिसे ‘केंद्रीय क्षेत्र’ के रूप में जाना जाता है।
कई आध्यात्मिक परंपराएँ सुझाव देती हैं कि हमें थोड़ा रुककर, अपने दिल से महसूस करने के बाद सोच-समझकर प्रतिक्रिया करनी चाहिए। इस हृदय-आधारित दृष्टिकोण से हम अपने अतीत से प्रभावित जल्द राय बनाने और स्वतः होने वाली प्रतिक्रियाओं से बच सकते हैं। डर या दर्द से प्रेरित होकर प्रतिक्रिया करने के बजाय हम अधिक समानुभूति और समझ के साथ प्रतिक्रिया कर सकते हैं।
हृदय और मन के बीच का संबंध समझने से हम यह जान पाते हैं कि हमारे विचार हमारी भावनाओं को कैसे प्रभावित कर सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि हमारे विचार माथे के पास स्थित एक गहरे आंतरिक स्थान (जिसे कभी-कभी ‘चित्त लेक’ कहते हैं) से उत्पन्न होते हैं और हृदय के चक्रों से जुड़ने के लिए नीचे की ओर आते हैं।6
मन से विचारों का यह प्रवाह कभी-कभी हमारी महसूस करने की सहज क्षमता को बाधित कर सकता है क्योंकि किसी स्थिति का आँकलन या विश्लेषण कभी-कभी अनुभूति से पहले ही हो सकता है। उस समय के बारे में सोचिए जब आपने किसी तनावपूर्ण स्थिति में आवेगपूर्ण ढंग से प्रतिक्रिया की हो या शायद कुछ ऐसा कह दिया हो जिसके बारे में बाद में आपको पछतावा हुआ हो। उस स्थिति में आप थोड़ा ठहरकर व अपने दिल से जुड़कर अधिक समानुभूति और समझदारी के साथ प्रतिक्रिया कर सकते थे।
यह जानकारी हमें दूसरों के साथ बातचीत में करुणा और समानुभूति जैसी हृदय आधारित भावनाओं को विकसित करने में मदद कर सकती है। जब हम तनावपूर्ण स्थितियों का सामना करते हैं – विशेषकर जिनके कारण दर्द भरी यादें या प्रबल भावनाएँ उत्पन्न होती हैं – तब अतीत के अनुभवों के आधार पर स्वतः ही प्रतिक्रिया करना आम बात है। लेकिन हम उस समय पहले अपने दिल से जुड़कर अपनी प्रतिक्रिया को बदल भी सकते हैं।
कई आध्यात्मिक परंपराएँ सुझाव देती हैं कि हमें थोड़ा रुककर, अपने दिल से महसूस करने के बाद सोच-समझकर प्रतिक्रिया करनी चाहिए। इस हृदय-आधारित दृष्टिकोण से हम अपने अतीत से प्रभावित जल्द राय बनाने और स्वतः होने वाली प्रतिक्रियाओं से बच सकते हैं। डर या दर्द से प्रेरित होकर प्रतिक्रिया करने के बजाय हम अधिक समानुभूति और समझ के साथ प्रतिक्रिया कर सकते हैं।
हृदय के इस ‘सूक्ष्म स्थान’ में प्रवेश करके हम एक गहरी जागरूकता प्राप्त करते हैं जो हमें दूसरे व्यक्तियों से तथा सार्वभौमिक चेतना से जोड़ती है। यह अभ्यास संबंधों को बेहतर बनाता है और व्यक्तिगत विकास व स्वास्थ्य को बढ़ाता है। अंततः यह हमें सिखाता है कि चुनौतीपूर्ण क्षणों में भी हमारे पास प्रतिक्रियात्मक होने के बजाय करुणा को चुनने की शक्ति है।
हृदय के इस ‘सूक्ष्म स्थान’ में प्रवेश करके हम एक गहरी जागरूकता प्राप्त करते हैं जो हमें दूसरे व्यक्तियों से तथा सार्वभौमिक चेतना से जोड़ती है।

कई स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के लिए विशेष रूप से जीवन-मृत्यु की स्थितियों का सामना करने वालों के प्रति सहानुभूति और करुणा दिखाना आवश्यक है। हालाँकि रोगियों को मुख्यतः चिकित्सीय मामलों के रूप में देखने की प्रचलित प्रवृत्ति हृदय और मन को अलग कर सकती है। केवल विश्लेषणात्मक सोच पर निर्भर रहना अक्सर करुणा और सहानुभूति को सीमित कर देता है जिसे रोगी चिकित्सक से वास्तव में चाहते हैं।
यदि हर चिकित्सक अपने उपचार के साधनों में हृदय-आधारित कौशलों को शामिल कर ले तो यह चिकित्सा-विश्लेषण और करुणामय देखभाल के बीच के अंतर को पाट सकता है। यह दृष्टिकोण न केवल रोगी को बेहतर अनुभव देता है बल्कि स्वास्थ्य की समग्र समझ को भी बढ़ाता है जो अंततः देखभाल करने वाले और रोगी दोनों के अनुभव को समृद्ध बनाता है।
चिकित्सकों को अपने व्यवसाय में हृदय-केंद्रित ध्यान देने को सम्मिलित करने के लिए प्रयास और अभ्यास की आवश्यकता हो सकती है लेकिन इसके लाभ बहुत ज़बरदस्त हैं। जब हम अपने हृदय को शामिल करते हैं तो यह सही विचारों को प्रेरित कर सकता है। जब हमारी भावनाएँ हमारे विचारों का मार्गदर्शन करती हैं तब हमारी प्रतिक्रियाएँ अधिक करुणामय और प्रासंगिक हो सकती हैं।

जब हम अपने हृदय को शामिल करते हैं तो यह सही विचारों को प्रेरित कर सकता है। जब हमारी भावनाएँ हमारे विचारों का मार्गदर्शन करती हैं तब हमारी प्रतिक्रियाएँ अधिक करुणामय और प्रासंगिक हो सकती हैं।
कुछ पल रुककर हृदय-केंद्रित मन:स्थिति के साथ रोगी से बातचीत करने से वह मुलाकात एक गहन उपचारात्मक अनुभव बन सकती है। रोगी अक्सर इन हृदय-केंद्रित भावनाओं को समझते हैं क्योंकि वे अपने देखभाल करने वालों से आने वाली भावनात्मक तरंगों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं। यह संबंध विश्वास को बढ़ाता है और चिकित्सक-रोगी के संबंध को मज़बूत बनाता है।
समय के साथ देखभाल करने वालों के लिए हृदय-केंद्रित दृष्टिकोण अभ्यास या साधना बन सकता है जिससे वे सचेत रहकर उच्च स्तर के कार्य कर सकते हैं। जिस प्रकार एक कुशल संगीतकार विभिन्न सुरों को अच्छी तरह मिलाकर सुरीला संगीत बनाता है उसी प्रकार हृदय-केंद्रित दृष्टिकोण से हमारे विचारों और भावनाओं में सामंजस्य आ जाता है, जिससे हमारा जीवन अधिक संतोषजनक और करुणामय हो जाता है।
संदर्भ
- नारायण सूक्त (इंटरनेट) -https://en.wikipedia.org/w/index.php?title=Narayana_sukta&oldid=1217270843 पर उपलब्ध
- बर्नार्ड सी लेक्चर ऑन दि फ़िज़िओलॉजी ऑफ हार्ट एंड इट्स कनेक्शन विद द ब्रेन, डिलीवर्ड एट द सोरबोन, 27 मार्च 1865. बाई जे.एस.मॉरेल (इंटरनेट)। सावनह, पर्स - http://archive.org/details/39002086349314. med.yale.ed पर उपलब्ध
- गियानीनो जी. इटी एएल., 2024. दि इंट्रिसिक कार्डियक नर्वस सिस्टम - फ़्रॉम पैथॉफ़िज़ियोलॉजी टू थैरेपीयूटिक इंप्लीकेशंस। बायोलॉजी 13:105
- डेनियल जी. इटी एएल., 2020. हार्ट एंड ब्रेन - कॉम्प्लेक्स रिलेशनशिप लेफ़्ट फ़्रॉम वेंट्रिकुलर डिसफ़ंक्शन। कुर कार्डियोल रैप. 22:72
- श्री के.डी. पटेल, 2023. स्पिरिचुअल एनाटॉमी - मेडिटेशन,चक्रा एंड द जर्नी टू द सेंटर। ग्रैंड सेंट्रल पब्लिशिंग।
- श्री के.डी. पटेल, 2023. द एत्थ चक्र - सरेंडर, स्पिरिचुअल एनाटॉमी - मेडिटेशन, चक्र, एंड द जर्नी टू द सेंटर. ग्रैंड सेंट्रल पब्लिशिंग।