तेजेश्वर सिंह प्रेम की प्रकृति और बारीकियों पर अपना दृष्टिकोण बता रहे हैं।
हृदय एक फूल है
बहुत कोमल, फिर भी साहस भरा।
इसके अंतरतम में
प्रेम समाहित है मोहकता भरा।
हृदय की भूमिका
हम अक्सर हृदय का उपयोग उन भावनाओं को व्यक्त करने के लिए करते हैं जिन्हें हम महसूस करते हैं। लेकिन इसमें कुछ और भी होता है और वह है प्रेम। प्रेम ही हृदय को उसका गुण देता है। हम अक्सर अपने प्रेम को व्यक्त करने के लिए दिल के चिह्न का उपयोग करते हैं, कभी-कभी लिखित संदेश में या किसी बच्चे द्वारा बनाए गए चित्र में। अगर यह इतने स्पष्ट रूप से प्रेम दर्शाता है तो इसका उपयोग उस चीज़ के लिए करना उचित है जिसके लिए यह बखूबी जाना जाता है। हम जानते हैं कि हृदय का भौतिक कार्य पूरे शरीर में ऑक्सीजन युक्त रक्त की आपूर्ति करना है जिससे वह जीवित और स्वस्थ रहता है। मेरा मानना है कि भावनात्मक हृदय के साथ भी ऐसा ही है – प्रेम हृदय से गुज़रता है और हमें भावनात्मक रूप से स्वस्थ रखता है।
यह सब कहाँ से शुरू होता है?
जिस प्रकार उदारता की शुरुआत अपने घर से होती है उसी प्रकार प्रेम भी अपने घर, यानी हृदय की गहराई में निहित होता है। इसकी शुरुआत स्वयं से प्रेम करना सीखने से होती है। यह आप जो हैं वैसे ही स्वयं को स्वीकार करना या अपनी खामियों को स्वीकार करना हो सकता है। जितना अधिक आप अपने बारे में जानेंगे, दूसरों को समझना उतना ही आसान हो जाएगा। हम सभी प्रेम करने में सक्षम हैं। यह हममें सहज रूप से मौजूद है। हमें केवल अपने हृदय के माध्यम से इसे अपने पूरे तंत्र में प्रवाहित करने की ज़रूरत है।
क्या यह प्रेम है?
प्रेम को सही मायने में केवल प्रेम के द्वारा ही परिभाषित किया जा सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इसके जैसा कुछ और नहीं है। अगर मुझे इसे शब्दों में व्यक्त करना हो तो मैं इसे आपके दिल की सबसे गहरी प्रतिध्वनि कहूँगा क्योंकि यह किसी प्रतिध्वनि की तरह आप ही से आती है। आप ही प्रेम का स्रोत हैं। आपके हृदय से निकली यह गूँज शब्दों, कार्यों और भावनाओं में प्रकट होती है। प्रतिध्वनि का एक मूलभूत तत्व रिक्तता होता है या दूसरे शब्दों में अवरोधों का अभाव। आपका हृदय जितना खाली होगा उतना ही अधिक आप इसे प्रेम की गूँज से भर सकते हैं।
इसे भावना की एक तरंग दैर्घ्य (wavelength) के रूप में सोचें। जब आप इसमें अन्य पहलुओं को जोड़ते हैं तो यह या तो आवृत्ति को बढ़ाता है या उसमें व्यवधान पैदा करता है, उसी तरह जैसे इमारतों से रेडियो तरंगों में व्यवधान होता है। एक सामान्य व्यवधान है अपेक्षा रखना। यह एक बाँध बनाने जैसा है जो नदी के प्रवाह को नियंत्रित करता है। इसकी तुलना एक माँ द्वारा अपने नवजात शिशु को पहली बार गोद में लेने से करें। उसकी केवल एक ही प्रबल भावना होती है। उसके हृदय के माध्यम से प्रवाहित होने वाला प्रेम शुद्ध व निस्स्वार्थ होता है जो इच्छाशक्ति के उपयोग के बिना बेहतरीन ढंग से प्रवाहित होता है। यह उस प्रेम का उदाहरण है जिसे हम सभी अपने हृदय में बनाए रख सकते हैं।
प्रेम चहुँ ओर है
आप इस दुनिया में अपने माता-पिता के प्रेम के कारण आए हैं। एक माँ अपने बच्चे को प्रेम से पालती है। अपनी युवावस्था में किसी से प्रेम करना एक ऐसी चीज़ है जिसका आप खुशी से इंतज़ार करते हैं। आपके बहुत से निर्णय प्रेम पर आधारित होते हैं।
पहली बार जब आपकी माँ आपको अपनी गोद में लेती है तब से लेकर आखिरी बार तक जब आप किसी को अपना प्रिय मानते हैं, वह प्रेम है। यह केवल इंसानों के लिए नहीं है यह प्रकृति में भी है। आपके प्रति प्रकृति माँ का प्रेम आपको वह सब कुछ प्रदान करता है जिसकी आपको आवश्यकता है। वास्तव में वातावरण में चारों ओर प्रेम ही प्रेम है। जितना अधिक आप इसे खोजते हैं उतना ही अधिक आप इसे पाते हैं।
प्रेम और लगाव
जहाँ प्रेम होता है वहाँ लगाव होना आम बात है लेकिन यह बाधा बन जाती है। चूँकि आप महसूस करते हैं कि आप उस व्यक्ति का हिस्सा हैं जिससे आप प्रेम करते हैं, यह आपके निर्णय को प्रभावित करता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि आप अवचेतन रूप से जानते हैं कि आप उनके बारे में जो निर्णय लेंगे, वह आपको भी प्रभावित करेगा।
लगाव के साथ अपेक्षा और आधिपत्य का विचार भी जुड़ जाता है। सतही तौर पर इन भावनाओं का होना सामान्य लगता है लेकिन जब समय खराब होता है तब यह लगाव की भावना ही है जो आपको वह करने से रोकती है जो आपके लिए और दूसरे व्यक्ति के लिए सबसे अच्छा है। एक माँ और नवजात शिशु का उदाहरण याद कीजिए। जन्म से पहले दोनों शारीरिक रूप से जुड़े हुए थे लेकिन यह अलगाव ही है जो माँ को निस्स्वार्थ प्रेम करने का अवसर देता है जब वह अपने बच्चे को देखती है। बेशक, हम सभी माँ नहीं हैं लेकिन यह इस बात का उदाहरण प्रस्तुत करता है कि हम क्या करने में सक्षम हैं।
बुरे लोगों से प्रेम करना
प्रत्येक व्यक्ति से प्रेम कैसे करें? आप किसी ऐसे व्यक्ति से कैसे प्रेम कर सकते हैं जिसने आपके साथ दुर्व्यवहार किया है या समाज के लिए खराब काम किया है? आप किसी ऐसे व्यक्ति से कैसे प्रेम कर सकते हैं जो जघन्य अपराध के लिए कारावास में है? इसे करने के दो खूबसूरत तरीके हैं और वे हैं प्रार्थना और कृतज्ञता। आप प्रार्थना कर सकते हैं कि उन्हें प्रेम का एहसास करने और बदलने का अवसर मिले। और आप इस बात के लिए कृतज्ञ रह सकते हैं कि जीवन ने आपको बेहतर अवसर प्रदान किए और आप वैसी परिस्थिति में नहीं रहे कि आपको कुछ गलत करना पड़े।
इसे अगले स्तर पर ले जाना
प्रेम का असली सार महसूस करने में नहीं बल्कि बनने में है।
मेरे आध्यात्मिक गुरु दाजी ने मुझे हमेशा अपने हरेक काम को प्रेम भरे हृदय के साथ करने के लिए प्रोत्साहित किया है। हर किसी से प्रेम करना काफ़ी नहीं है, खुद ही प्रेम बन जाना बेहतर है।
प्रेम क्यों बनें? क्या हर किसी से प्रेम करना काफ़ी नहीं है? प्रत्येक व्यक्ति से प्रेम करना फिर भी एक सीमित विचारधारा है जबकि प्रेम तो असीमित है। जब आप प्रेम बन जाएँगे, आप उसे बनाए रखेंगे। इसे इस तरह देखें - चंद्रमा का प्रकाश खूबसूरत है लेकिन प्रकाश के लिए वह सूर्य पर निर्भर होता है। सूर्य अपना प्रकाश स्वयं उत्पन्न करता है और अपने मार्ग में आने वाली प्रत्येक वस्तु को प्रकाशित करता है। जब आप प्रेम बन जाते हैं तब आप दूसरों के दिलों को रोशन कर देते हैं। असीमित को धारण करने के लिए आपको स्वयं असीमित बनना होगा।
एक प्रश्न शेष रहता है - प्रेम कैसे बनें?
हार्टफुलनेस का तरीका मेरी मदद कर रहा है। इसमें ध्यान संबंधी कुछ अभ्यास हैं जो आपके ‘स्व’ का अनुभव करने पर केंद्रित है। यहीं से प्रेम की शुरुआत होती है।
अगर मुझे इसे शब्दों में व्यक्त करना हो तो मैं इसे आपके दिल की सबसे गहरी प्रतिध्वनि कहूँगा क्योंकि यह किसी प्रतिध्वनि की तरह आप ही से आती है। आप ही प्रेम का स्रोत हैं। आपके हृदय से निकली यह गूँज शब्दों, कार्यों और भावनाओं में प्रकट होती है।
प्रेम का असली सार महसूस करने में नहीं बल्कि बनने में है।
कलाकृति - जस्मी मुद्गल

तेजेश्वर सिंह
तेजेश्वर को लिखने की प्रेरणा कविता के प्रति उनके जुनून से मिली। उन्हें सप्ताहांत में खाना बनाना और स्वयंसेवा करना पसंद है। उनका सपना है विश्व की यात्रा करना और प्रकृति की सुंदरता का... और पढ़ें