काजल गुप्ता अपने पहली बार माँ बनने के अनुभव को व्यक्त कर रही हैं और बता रही हैं कि कैसे इससे उनकी जागरूकता बढ़ी और उन्हें विकसित होने में मदद मिली।
मेरे लिए सजग होने का अर्थ है - बिना कोई राय बनाए अपने मौजूदा विचारों, अनुभूतियों एवं मनोभावों (या उनके अभावों) से तालमेल बिठाना और उनके प्रति जागरूक होना। यह ‘यहीं और अभी’ यानी वर्तमान में होना है। मैं अनेक वर्षों से ध्यान का अभ्यास कर रही हूँ इसलिए अपने अंदर जाना मेरे लिए जीने का एक ढंग बन गया है। मन में इस बात के रहते, उत्साहित होकर मैंने अपने मातृत्व की शुरुआत यह सोचते हुए की कि मैं सब कुछ संभाल लूँगी। लेकिन मैं कितनी नादान थी! क्योंकि जैसा डॉ. शेफाली सबारी कहती हैं, “अपने बच्चों पर से अपना नियंत्रण छोड़ना संभवतः सबसे बड़ी आध्यात्मिक चुनौती है जिसका हम माता-पिता के रूप में सामना करते हैं।” अपनी इस जारी यात्रा में मैंने ‘सजग परवरिश’ के पाँच सिद्धांतों को अपनाया है जिनसे मैं न केवल जुड़ाव महसूस करती हूँ बल्कि उन्हें जीवन में उतारने का प्रयास भी करती हूँ।
1. अपने बच्चे को जैसा वह वास्तव में है, आपसे अलग, उसे सच में जानें, समझें और अनुभव करें।
जी हाँ! आप जिस चीज़ के लिए चाहें योजना बना सकते हैं - अपने बच्चे के कपड़े, उसके कमरे की सजावट, उसे स्तनपान कराना है या बोतल से दूध पिलाना है, कब से ठोस आहार शुरू करना है। आप अपनी परवरिश के तरीके के लिए भी योजना बना सकते हैं। लेकिन आप बच्चे के स्वभाव के लिए योजना नहीं बना सकते। हर बच्चा अलग होता है। आपको अपने परवरिश के तरीके को बच्चे की ज़रूरतों और स्वभाव के अनुरूप व अनुकूल बनाना होगा। मैंने छ: माह तक स्तनपान कराने और उसके पश्चात बोतल से दूध पिलाने का निर्णय लिया था लेकिन मेरा बच्चा मेरे जीवन में मानो यह तय करके आया था कि उसे स्तनपान ही करना है और उसने दुनिया की हर तरह की बोतल को अपनाने से इंकार कर दिया। मैंने उसे छ: माह में ठोस आहार देने का सोचा था लेकिन वह साढ़े चार माह में ही फल चखने के लिए तैयार था। मैं बहुत ही सुंदर डिज़ाइन के लकड़ी के खिलौने लेकर आई थी लेकिन मेरे बच्चे को भड़कीले रंगों वाले, चमकीले और भद्दे दिखने वाले प्लास्टिक के खिलौनों में रुचि थी। मैं जो कहना चाह रही हूँ वह यह है कि हमें चाहिए कि हम बच्चे की पल-पल बदलती ज़रूरतों से अपना तालमेल बनाएँ न कि अपनी अपेक्षाएँ उस पर थोपें।
“जब आप बच्चे की परवरिश करते हैं तब आपका यह समझना बहुत ज़रूरी है कि आप “अपने छोटे स्वरूप” को बड़ा नहीं कर रहे बल्कि एक स्वतंत्र अस्तित्व को बड़ा कर रहे हैं जिसका अपना स्वयं का एक व्यक्तित्व है। इसी वजह से यह महत्वपूर्ण है कि आप अपने हर बच्चे को खुद से एक अलग अस्तित्व समझें। बच्चों पर किसी भी तरह से हम अधिकार या स्वामित्व नहीं जमा सकते। इस बात को जब हम अपने अंतःकरण की गहराई से जान लेते हैं तब हम उन्हें अपनी आवश्यकताओं के अनुसार ढालने की बजाय उनकी परवरिश उनकी ही ज़रूरतों के अनुरूप करेंगे।” —‘द कॉन्शियस पेरेन्ट’, डॉ. शेफाली सबारी
इस ‘कैसे करें’ में से अपना रास्ता स्वयं निकालें, थोड़ा रुकें, अपना और अपने बच्चे का
अवलोकन करें और फिर निर्णय लें कि आप दोनों के लिए क्या सर्वश्रेष्ठ है।
2. आप बच्चों के साथ जब भी कुछ कर रहे हों तब 100% उनके साथ रहें।
जैसा किसी भी सजग रहने के अभ्यास के साथ होता है, उसी पल पर अपना पूरा ध्यान दें, न कि भविष्य या भूतकाल के बारे में सोचते रहें। मैं जानती हूँ और यह मेरा प्रतिदिन का अनुभव है कि आजकल के भाग-दौड़ भरे जीवन में यह कितना मुश्किल हो सकता है। लेकिन मैं हमेशा प्रयास करती हूँ कि जब मैं बच्चे के साथ हूँ तो पूरी तरह से उसके ही साथ रहूँ। मैंने पाया है कि सबसे अच्छा तरीका यह है कि उन्हें स्वतंत्रता से खेलने दें और अनावश्यक हस्तक्षेप न करें। उनको खेलते हुए देखना और उनके संसार में झाँकना एक अद्भुत अनुभव है।
“खेलना-कूदना बच्चों से बात करने का मुख्य तरीका है। एक बच्चे को खेलने से रोकना वैसा ही है जैसे बड़ों को सोचने और बात करने से रोकना। उनके खेल के प्रत्येक पल पर नियंत्रण करना वैसा ही है जैसा किसी के कहे गए प्रत्येक शब्द पर नियंत्रण करना।” —‘प्लेफुल पेरेन्टिंग’, लॉरेंस कोहेन
3. दूसरों की टिप्पणियों को व्यक्तिगत तौर पर न लेने का प्रयास करें।
यह मेरे लिए बहुत कठिन था और अभी भी यदि मैं खुद पर काम न करूँ तो इसको लेकर मैं संघर्ष करती हूँ। बच्चा पैदा होने पर आपके आसपास रहने वाला हर व्यक्ति यही मानता है कि बच्चे के लालन-पालन में न केवल उसे राय देने का अधिकार है बल्कि उसी का तरीका सर्वश्रेष्ठ है। ऐसा लगता है जैसे बच्चा पैदा होने पर हार्मोन का हावी होना और बच्चे को जीवित रख पाना काफ़ी नहीं होता, लोग आप पर अपनी बिन माँगी सलाह और विशेष टिप्पणियों की बरसात कर देते हैं। यह सिलसिला जन्म देने के प्रारंभ के कुछ सप्ताहों के पश्चात भी नहीं रुकता है बल्कि यह बार-बार होता रहता है – बच्चे को नींद के लिए कैसे प्रशिक्षित करें, शौच करना कैसे सिखाएँ, शिशु के नखरों से कैसे बचें, अनुशासित कैसे करें - यह एक अंतहीन सूची है।
यहाँ पुनः इस ‘कैसे करें’ में से अपना रास्ता स्वयं निकालें, थोड़ा रुकें, अपना और अपने बच्चे का अवलोकन करें और फिर निर्णय लें कि आप दोनों के लिए क्या सर्वश्रेष्ठ है। अपना स्वयं का ‘गाँव’ यानी समूह बनाना महत्वपूर्ण है जिसमें ऐसे लोग हों जिनसे आपको प्रेरणा और सहायता मिलती है। लेकिन यह ‘गाँव’ ऐसा होना चाहिए जहाँ आप दोनों को सुरक्षित महसूस हो। याद रखें कि आपके असली साथी यह जानते हैं कि कब चुप रहना है और सिर्फ़ सुनना है।
“एक बच्चे के लालन-पालन में पूरे गाँव का योगदान होता है।” —अफ़्रीकी कहावत
साथ में सीखें, साथ में हँसें, साथ में रोएँ और साथ में बढ़ें!
4. भावनात्मक आवेग और चिड़चिड़ेपन के दौरान पहले संपर्क बनाएँ, फिर निर्देश दें।
हम अक्सर बच्चों के नखरों का प्रत्युत्तर देने के बजाय उन पर प्रतिक्रिया देते हैं। जब एक बच्चे का भावनात्मक आवेग बहुत तीव्र होता है तब कोई भी सीख या परिणाम का डर अप्रभावी होता है। और बच्चे ही क्यों बड़ों के साथ भी तो यही होता है। सज़ा देने के बजाय बच्चों को उनके भावनात्मक आवेग के दौरान संभालने के लिए, आपके द्वारा शांत रवैया अपनाने से आपके शांत भाव का उन पर भी असर पड़ेगा जिससे उनमें ग्रहणशीलता और समझदारी आएगी।
“जब बच्चों पर बड़ी-बड़ी भावनाएँ हावी होने लगती हैं तब हमारा काम है अपनी शांति को उनके साथ बाँटना, उनके बवाल में शामिल होना नहीं।” —एल. आर. नॉस्ट
5. यह आपके और बच्चे दोनों के सीखने की यात्रा है।
परवरिश क्रमानुसार नहीं चलती। सच तो यह है कि पिछले लगभग एक वर्ष में मैंने अपने बच्चे से इतना ज़्यादा सीखा है जिसका मैं कभी अनुमान भी नहीं लगा सकती थी। साथ में सीखें, साथ में हँसें, साथ में रोएँ और साथ में बढ़ें! आप ही की तरह आपके बच्चे भी यह महसूस करने के हकदार हैं कि उन्हें हर सूरत में प्यार और दुलार मिले - इसलिए कि वे अस्तित्व में हैं, न कि सिर्फ़ जब वे अनुशासन में होते हैं, उन्हें अच्छे अंक मिलते हैं या वे सफल होते हैं।
हम उनकी परवरिश का सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर लें, फिर भी हम पूरी तरह से नहीं जान सकते कि उनका जीवन उन्हें कहाँ लेकर जाएगा। हम अपने बच्चों को सिर्फ़ प्यार कर सकते हैं, उन्हें स्वीकार कर सकते हैं और उनके अस्तित्व के रहस्य का सम्मान कर सकते हैं। अपना सर्वश्रेष्ठ दें, सच्चे बने रहें और आध्यात्मिक रूप से विकसित होने के इस अवसर के लिए कृतज्ञता व्यक्त करें।
“आपके बच्चे आपके नहीं हैं। वे इस जीवन की अपने लिए चाहत के पुत्र और पुत्रियाँ हैं... वे आपके माध्यम से आए हैं लेकिन आपसे नहीं आए और हालाँकि वे आपके साथ हैं फिर भी वे आपके नहीं हैं।” —खलील जिब्रान

काजल गुप्ता
वर्तमान में काजल नैदानिक परीक्षण उद्योग में कार्यरत हैं और वे एक प्रशिक्षित लाइफ़ कोच भी हैं। उन्होंने हृदय विज्ञान में Ph.D की है तथा कर्करोग विज्ञान, कार्ड... और पढ़ें