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The Heartfulness Dasara Event

The Heartfulness Dasara Event

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महल में हाथियों की परेड, औचक समूह ध्यान, सदहृदयता भरे कार्यों का प्रसार – हार्टफुलनेस दशहरा उत्सव

मैं बहुत सौभाग्यशाली रही जो मुझे मैसूर में होने वाले वार्षिक दशहरा उत्सव के लिए निमंत्रण मिला | यह मैसूर आश्रम में होने वाली अपनी किस्म की पहली घटना थी, इसलिए उससे क्या उम्मीद की जाये इसका मुझे कोई अंदाजा नहीं था | मैंने अपना बैग भरा और बेंगलुरु की भागदौड़ भरी जिंदगी से अपना सफर शुरू किया | अपनी रेल यात्रा के दौरान मुझे पता लगा कि मैसूर अपने दशहरा उत्सव के लिए मशहूर है जो कि वहां 17वीं शताब्दी से, राजा के आदेश से इसे खूब धूमधाम से मनाया जाने लगा | यह परंपरा आज तक चली आ रही है, महल 100,000 लाइट बल्बों से जगमग हो उठता है और इसे रंगीन लाइटों से सजाया जाता है |

दशहरा अच्छाई की बुराई पर जीत के उपलक्ष में मनाया जाता है और इसकी शुरुआत से संबंधित 2 कहानियां मशहूर है | पहली कहानी के मुताबिक एक ताकतवर राक्षस था महिषासुर उसने कई वर्षों तक तपस्या की और यह वरदान प्राप्त किया कि वह मनुष्य या किसी भी अन्य आत्मा के द्वारा पराजित ना हो सकेगा | फिर उसने दुनिया में जुल्म ढाने शुरू कर दिए | उसे प्राप्त वरदान के कारण ब्रह्मा, विष्णु, शिव कोई भी देवता उसे पराजित ना कर सका, इसलिए तीनों ने अपनी शक्तियों को मिलाकर देवी दुर्गा का रूप दिया और उन्हें अपने शस्त्र देखकर शक्ति प्रदान की | 9 दिन उस असुर से लड़ने के बाद दुर्गा ने उसे मार दिया और धर्म की पुनर्स्थापना की | एक दूसरी कहानी मे जो की रामायण से है, राम ने रावण का वध किया, जो कि एक 10 सिरों वाला असुर था और उसने राम की पत्नी सीता का अपहरण कर लिया था | इस लड़ाई मे भगवान राम के साथ उनके भाई लक्ष्मण, उनके अनुयाई हनुमान और समस्त वानर सेना थी | दशहरा का शाब्दिक अर्थ है 10 का वध, यानी 10 सिर वाले राक्षस रावण का वध |

सत्संग और नाश्ते के तुरंत बाद हम ब्रीफिंग के लिए इकट्ठा हुए | इस सप्ताहांत का विषय था, दशहरे की दशा में, प्रकाश को भीतर और बाहर से प्रकाशित करना | हमारा मिशन था – इस भीतरी प्रकाश को काम में लेना – जहां भी हम जाएं, अपने क्रियाकलापों और नियत कार्यक्रमों द्वारा सदहृदयता और आनंद का प्रसार करना | यूनिफॉर्म के तौर पर हमारे पास एक स्माइली बैच था इस निर्देश के साथ यह दिन ढलने के साथ ही यह बैच एक नए व्यक्ति को देना था | हम सब के पास कार्ड्स थे, जो कि हमने पिछली रात बनाए थे, जिसमें केवल यह लिखा था “आज एक व्यक्ति के चेहरे पर मुस्कान लाएं” | खाने के पैकेट के बक्सों का एक ढेर तैयार था मेहनती सेवा कर्मियों के लिए और पुलिस वालों के लिए जो कि इस उत्सव के लिए ड्यूटी पर तैनात थे | एक छोटी जोश भरी वार्ता के बाद टुकड़ियां चल पड़ीं अपनी पीली बसों में सवार होने के लिए, जो कि उस सप्ताहांत के लिए हमारी सवारी थी | हम एक फौज के समान थे – एक सदहृदयता वाली फौज |



हमें मैसूरु की गलियों में निकल पड़े, चामुंडी की पहाड़ियों से होते हुए हम अपने पहले पड़ाव की तरफ चल पड़े जो था – चामुंडेश्वरी मंदिर | यह वही जगह है जहां से दशहरा आधिकारिक रूप से देवी चामुंडेश्वरी की पूजा के बाद शुरू होता है | यात्री बसें बेजान शरीरों की तरह पार्किंग में खड़ी थी जिन में स्कूली लड़के लड़कियां अंदर बाहर आ जा रहे थे | गली नुक्कड़ पर सामान बेचने वाले विक्रेता हर किस्म की खाने और पीने की चीजें बेचते हुए चारों ओर फैले हुए थे और आवाजें लगा लगा के सामान बेच रहे थे | शुरू शुरू में हम सहमे से किनारे खड़े थे, अपने आसपास के माहौल को समझने की कोशिश करते हुए, यह सोचते हुए कि क्या करें ? तभी किसी ने, एक भेंट की तरह, एक खाने का पैकेट एक विक्रेता को थमा दिया, जिसने जवाबी सद्भावना के तौर पर ग्रुप में से एक बच्चे को तरबूज का छोटा सा कप थमा दिया | इस प्रकार यह शुरू हो गया ! यहां से हम सब भीड़ में चारों ओर फैल गए, उन सभी आगंतुकों को खाने के पैकेट और स्माइली कार्ड और बैज बांटते हुए ,जो मंदिर परिसर में हमें मिले | कुछ गली के बच्चों के चेहरे खिल उठे जब उन्होंने हमसे खाने के पैकेट और स्माइली बैच प्राप्त किए | दिन गर्म होने लगा था और कई पुलिस वाले, बस ड्राइवर और अन्य सेवा कर्मी हम से पानी की बोतलें, समोसे और क्रीम बन प्राप्त करके, जो कि हमने उन्हें उपहार स्वरूप दिया था, कृतज्ञ महसूस कर रहे थे | जब खाली हाथ हो गए, हम दोबारा इकट्ठा हुए, हमने बस के आसपास की गंदगी साफ की और अपने अगले गंतव्य की तरफ चल पड़े|

हमारा अगला पड़ाव था फूलों की प्रदर्शनी, जहां, चारों तरफ सभी प्रकार के पौधों, पेड़ों और फूलों से घिरे हुए स्थल पर हमने अपना पहला भीड़ द्वारा औचक ध्यान (meditation flash mob) का प्रयोग किया | इसमें एक व्यक्ति केंद्र में बैठ जाता और धीरे-धीरे हमें से और लोग उसके साथ जाकर चारों ओर गोलाई में बैठ जाते, धीरे-धीरे घेरा बढ़ता जाता ,जैसे कि कोई इंसानी फूल हो, जो आलथी-पालथी मार के बैठे हुए चुपचाप बैठकर ध्यान करते हुए लोगों का बना हुआ हो | चारों ओर इतना सौंदर्य और हलचल के बीच, ज़रूर अजीब लगता होगा इतने सारे लोगों को चुपचाप बैठकर ध्यान करते हुए देखना | जब ध्यान समाप्त हुआ कुछ लोग हमारी ओर उत्सुकता और जिज्ञासा भरी निगाहों से देख रहे थे |

सबसे बेहतरीन चीज अंत के लिए संजोए हुए हम मैसूर के राज महल पहुंचे जोकि दशहरा उत्सव के दौरान लाइटों की जगमगाहट के लिए मशहूर है | लोगों की अथाह भीड़ के बीच में, हमें कुछ खाली जगह मिल गई और हमने एक बार फिर चुपचाप दोबारा औचक समूह ध्यान आयोजित किया | इस बार कई लोग आए और हमारे साथ ध्यान में शामिल गए | ध्यान के बाद हमने उनसे ध्यान और हार्टफुलनेस के संबंध में बातचीत की | हम सजे- धजे हाथी और ऊंटों के एक जुलूस में शामिल हुए, जोकि अंधेरा होने पर महल में होने वाली रोशनी की जगमगाहट से ठीक पहले महल से निकला | धीरे धीरे, जैसे-जैसे अंधेरा होता गया एक एक करके महल की लाइटें जलनी शुरू हुई और धीरे-धीरे करके पूरा महल एक प्रकाश के चमकते गोले में बदल गया | ग्रैमी पुरस्कार विजेता संगीतकार और पर्यावरणविद, रिकी केज ने भारत के समृद्ध वातावरण से प्रेरित होकर गीतों की एक श्रृंखला प्रस्तुत की, जिनमें यह संदेश था की धरती मां को बचाने के लिए, प्रदूषण से इसकी रक्षा करने के लिए और प्राकृतिक शुद्धता और पवित्रता को बनाए रखने के लिए हम सब को एकजुट हो जाना चाहिए |जब हम आश्रम लौटे, हमने अलाव जलाया गया, और अंगारों की रोशनी में संगीत की धुन पर नृत्य किया |

अगली सुबह सत्संग के बाद फिर एक बार अपनी पीली बसों में सवार होकर वृंदावन गार्डन और वेणु गोपाल स्वामी मंदिर की तरफ रवाना हुए | यह मंदिर लंबे समय से खोया हुआ था और पानी के नीचे डूबा हुआ था | मंदिर के हर एक टुकड़े को तोड़ा गया, हर एक टुकड़े पर नंबर लगाया गया, और प्रत्येक टुकड़े को नई जगह – होसा कन्नबधि गांव, पर धैर्यपूर्वक असली रूप में पुनः स्थापित किया गया | भगवान श्री कृष्ण के इस मंदिर के बाहर हमने एक बार फिर ध्यान में बैठने का निश्चय किया | अधिकाधिक लोग हमारे साथ ध्यान में शामिल होते गए इस हद तक की पूरा इलाका असीम शांति में डूब गया | एक मां को अपने बच्चे को यह कहते हुए सुना गया – जरूर यह इस मंदिर की प्रथा होगी, इसलिए उसने बेटे को आंखें बंद करने और ध्यान में बैठने का निर्देश दिया | हमारा अंतिम पड़ाव था कन्नड़ कवि और दार्शनिक, कुवेंपु का घर, जहां उनके मेज और शयन कक्ष को उसकी असली दशा में सहेज कर रखा गया था| उस घर में घुसते ही मुझे एक गहरी शांति और स्थिरता का एहसास हुआ जैसे कि उस महान कवि की उपस्थिति वहां अब भी मौजूद हो |


पूरा सप्ताहांत गतिविधियां के चक्रवात में व्यतीत हो गया | बेंगलुरु वापस लौटते समय रास्ते में, अपना संक्षिप्त समय जो कि मैंने सदहृदयता की उस फौज के साथ बिताए थे, से प्राप्त हुई शिक्षाओं पर विचार करते हुए व्यतीत हुआ | इसने मुझे दान की शक्ति की शिक्षा दी | जैसे नुक्कड़ विक्रेता के उदाहरण में जिसने बच्चे को तरबूज का कप भेंट किया, जब हम पूरी तरह देते हैं बिना कुछ पाने की उम्मीद के, इससे उदारता का एक तूफान सा उमड़ पड़ता है, जिसकी प्रतिध्वनी कार्य समाप्त हो जाने के पश्चात भी गूंजती रहती है | इससे मुझे सकारात्मक कार्य की कीमत की भी शिक्षा मिली | जैसी मां और बच्चे मंदिर में ध्यान के लिए बैठे, जो हम देखते हैं उसी की अपने भीतर पुनर्स्थापना करते हैं, हम दूसरे के कार्यों की नकल करते हैं | हमें अपने उदाहरण से नेतृत्व करना चाहिए और इतना बहादुर होना चाहिए की हम प्रकाशित कर सकें – पहले खुद को – और फिर पथ को, ताकि लोग अनुसरण कर सके | और खुशकिस्मती से, रास्ता पहले ही गढ़ा जा चुका है – द हार्टफुलनेस वे |

अच्छाई की बुराई पर जीत की कहानियां कोई नई नहीं है और प्रत्येक संस्कृति में प्रचलित है | बुराई के परिशोधन के रीति रिवाज दुनिया के हर कोने में मनाए जाते हैं | यह रीति रिवाज समाज मे कुछ पलों के लिए सुचिता और व्यवस्था बहाल करने में जरूर मददगार होते हैं | बाहरी स्वरूपों में ध्यान देने पर हम भटक जाते हैं और भीतर ध्यान देने की आवश्यकता को नजरअंदाज कर देते हैं | क्रांति भीतर से ही शुरू होनी चाहिए |

अंत में मैसूरू की युवा टीम को अपनी शानदार योजना और सत्कार भावना के लिए हार्दिक धन्यवाद |

यह लेख करेन-ओ-नील द्वारा लिखा गया है जो आयरलैंड की निवासी हैं |

वह वर्तमान में हार्टफुलनेस मेडिटेशन पर फैलोशिप कर रही हैं और बेंगलुरु आश्रम, भारत में रहती हैं |

अक्टूबर 19, 2018
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