लालाजी महाराज

1873 A.D. – 1931 A.D.

हार्टफुलनेस परम्परा के प्रथम गुरु, फ़तेहगढ़ के श्री राम चन्द्र थे जिन्हें लोग प्रेम से लालाजी कहते थे | उन्होंने प्राणाहुति की इस पुरातन योग कला को पुनर्जीवित किया ताकि अपने आध्यात्मिक विकास में रुचि रखने वाले सभी जिज्ञासु चेतना के उच्चतम विस्तार का अनुभव कर सकें |

यह लालाजी का दृढ़ विश्वास था कि आत्म-विकास के लिए गृहस्थ जीवन ही सब से अनुकूल है | दर असल सच्चाई के रास्ते पर सजगता से चलने के लिए उनकी पत्नी हीं उनकी प्रेरणा स्त्रोत थीं |

लालाजी स्वभाव से बहुत शान्त प्रकृति के थे और दूसरों के सुख-दुःख से आसानी से प्रभावित हो जाते थे | उन्हें शायद हीं कभी क्रोध आता था | निरर्थक बातचीत को प्रोत्साहन न देते हुए वे निपुणता से अपने विचारों को व्यक्त कर सुनने वालों का मन मोह लेते थे | उनके व्यक्तित्व, रहन-सहन तथा सरल व्यवहार की वजह से वे सभी के आदर एवं प्रेम पात्र थे |

लालाजी में किसी भी व्यक्ति में पलक झपकते ही आध्यात्मिक जागृति ले आने की क्षमता थी मगर वे ऐसे किसी भी तरह के प्रदर्शन को पसंद नहीं करते थे | हृदय की विभिन्न जटिलताओं को हटाने के लिए वे अपने अनुयायियों को उनके शत्रुओं से मित्रता करने की सलाह देते थे| वे आत्म-साक्षात्कार के लिए नैतिकता को अनिवार्य तथा प्रेम को सबसे बड़ी साधना मानते थे | उनके अनुसार जीवन में कष्ट और यातनाएं असल में दिव्य कृपा होती हैं जिसमें अनेक रहस्य छुपे होते हैं | 

जब वे अपने कार्यालय में नहीं होते तो जिज्ञासुओं को प्रशिक्षण दिया करते तथा रात को दो बजे तक उन्हें प्राणाहुति देते थे | नौकरी से सन् 1929 में सेवा-निवृत्ति के बाद लालाजी ने अपना सारा समय आध्यात्मिक कार्य में लगा दिया तथा हर दिन २-३ घण्टे पुस्तकें , पत्र एवं लेख लिखवाने में व्यतीत करते | वे उर्दू , फ़ारसी तथा अरबी भाषा के विद्वान थे तथा उन्हें हिन्दी एवं संस्कृत का भी अच्छा ज्ञान था | 

लालाजी ने सरल एवं धर्मपरायण जीवन व्यतीत किया | उनकी कीर्ति दूर-दूर तक फैली थी तथा कई लोग उनके पास शान्ति एवं आध्यात्मिक मार्गदर्शन  के लिए आया करते थे | उनके द्वार से कोई भी व्यक्ति आध्यात्मिक उन्नति का आशीर्वाद लिए बिना नहीं गया | उनकी आवाज़ बहुत मधुर थी तथा उनके गीतों में अपने श्रोताओं की आत्मा को छू लेने की क़शिश थी | इन्हीं महान् मार्गदर्शक के अथक प्रयास के परिणाम स्वरुप आज आध्यात्म के जिज्ञासुओं को हार्टफुलनेस ने एक सरल तथा प्रभावशाली पद्धति प्रदान की है | 

प्राणाहुति की यह कला लालाजी ने आगे चल कर शाहजहाँपुर के श्री राम चन्द्र (जिन्हें बाबूजी के नाम से जाना जाता है) को सौंप दी जो हार्टफुलनेस परम्परा के द्वितीय मार्गदर्शक बने |